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नदी अपरदन द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियाँ (Erosional Landforms Created by River)

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नदी अपने अपरदन कार्य द्वारा V आकार की घाटी, गार्ज तथा कैनियन, जल प्रपात, जलगर्तिका, अवनमन कुण्ड, संरचनात्मक सोपान, नदी वेदिका, नदी विसर्प, समप्राय मैदान आदि का निर्माण करती है। इन स्थलाकृतियों के बारे नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है।

नदी अपरदन द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियाँ (Erosional Landforms Created by River)

V आकार की घाटी (V shaped valley)

सबसे पहले पर्वतों के ऊपरी भागों में नदी का जल गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से क्षैतिज अपरदन के बजाए लम्बवत अपरदन अधिक करता है अर्थात् नदी अपनी तली को काट कर उसे गहरा करती है, जिससे नदी घाटी की गहराई लगातार बढ़ती जाती है एवं एक समय के बाद घाटी का आकार अंग्रेजी भाषा के V अक्षर के समान दिखने लग जाता है। 

V आकार की घाटी के दोनों ओर की दीवारों का ढाल तीव्र तथा उत्तल (बाहर की ओर उभरा हुआ) होता है। नदी की V आकार घाटी बहुत तंग एवं संकरी होती है और समय के साथ गहराई तथा आकार दोनों में वृद्धि होती जाती। हालांकि घाटियों में थोड़ी बहुत मात्रा में क्षैतिज अपरदन भी होता है, जिससे घाटी चौड़ाई भी अति मंद गति से बढ़ती रहती है। 

V आकार की घाटी

गार्ज (garge)

गार्ज तथा कैनियन में इस प्रकार अन्तर स्थापित करना कठिन कार्य है। दोनों में अन्तर केवल आकार का होता है। अर्थात् गार्ज के विस्तृत रूप को कैनियन कह सकते हैं। 

गार्ज V आकार की घाटी का विस्तृत रूप होता हैं जिनमें नदी घाटी के दोनों तरफ की दीवारें अत्यन्त खड़े ढालवाली होती है तथा चौड़ाई की अपेक्षा गहराई बहुत अधिक होती है, जिसे गार्ज कहा जाता है। गार्ज में दीवारों का ढाल कभी-कभी इतना अधिक होता है कि दीवारें बिल्कुल लम्ब रूप में होती है। वास्तव में जब V आकार की घाटी का ढाल अधिक तीव्र हो जाता है तो गार्ज का निर्माण होता है।

वैसे तो गार्ज का निर्माण नदी द्वारा तीव्र गति से निम्न या लम्बवत कटाव द्वारा होता है। लेकिन कभी-कभी प्रपातों के बहुत तेज गति से पीछे हटने के कारण भी गार्ज का निर्माण होता है। उदहारण के लिए भारत में रांची पठार पर हुंडरुघाघ जलप्रपात के नीचे स्वर्णरेखा नदी ने संकरे गार्ज का निर्माण किया है।

कैनियन (Canyon)

गार्ज के विस्तृत रूप को ही कैनियन या संकीर्ण नदी कंदरा कहा जाता है। गार्ज की अपेक्षा यह आकार में विशाल परन्तु अधिक संकरा होता है। जिन पर्वतीय भागों में कठोर एवं संगठित चट्टानें होती हैं वहाँ नदी अपनी घाटी को गहरा तो कर देती है लेकिन किनारे वाले भागों का अपरदन (क्षैतिज अपरदन) नहीं कर पाती, जिसके कारण घाटी के दोनों ओर दीवारों का ढाल सीधा तथा तीक्ष्ण ही बना रहता है। 

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कैनियन की गहराई तथा दीवारों के ढाल इतने खड़े होते हैं कि ऊपर से देखने पर इसकी घाटी में बहने वाली नदी एक पतली सफेद रेखा के समान दिखाए देती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के एरिजोना प्रान्त में कोलोरैडो नदी का ग्राण्ड कैनियन संसार प्रसिद्ध कैनियन का उदाहरण है। यहाँ कैनियन की गहराई 2088.3 मीटर है तथा लम्बाई 482.8 किलोमीटर है।

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कोलोरैडो नदी का ग्राण्ड कैनियन

जल प्रपात तथा क्षिप्रिका (waterfalls and rapids) 

Waterfall

नदी घाटी के मार्ग में जब किसी स्थान पर नदियों का जल बहुत तेज गति से खड़े ढाल से नीचे की ओर गिरता है तो उसे ‘जलप्रपात’ कहते हैं। जलप्रपात का निर्माण तब होता है, जब नदी के मार्ग में कठोर तथा मुलायम चट्टानों की परतें या तो क्षैतिज अवस्था में या लम्बवत् अवस्था बिछी होती हैं। उस दशा में नदी का जल मुलायम चट्टान को तो काट डालता है, लेकिन कठोर चट्टान को नहीं काट पाता। परिणामस्वरूप जल उसके ऊपरी भाग से नीचे की ओर गिरने लगता है। जिसे हम  जलप्रपात के नाम से जानते हैं।

क्षिप्रिका जलप्रपात का एक छोटा एवं सामान्य रूप होता है। जलप्रपात तथा क्षिप्रिका में सामान्य अन्तर ही देखने को मिलता है। जहां जलप्रपात में ऊंचाई अधिक होती है व ढाल खड़ा होता है, वहीं क्षिप्रिका की ऊंचाई प्रपात की अपेक्षा कम तथा ढाल सामान्य होता है। इसके अतिरिक्त जलप्रपात में गिरने वाला जल ढाल की दीवार को नहीं छूता जबकि क्षिप्रिका में जल ढाल की दीवार को छूता हुआ चलता है।

जल गर्तिका (potholes) एवं अवनमन कुण्ड

नदी के जल के साथ बहने वाले चट्टानी टुकड़े छेदक या घर्षक यंत्र (grinding tools) का काम करते हैं। जब जल भंवर (eddies) के साथ ये छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़े तेजी से चक्कर लगाते हैं तो नदी की तली में छोटे-छोटे गड्डों या गर्तों का निर्माण करते हैं। इन्हीं गर्तों को जल गर्तिका कहा जाता है। यह कार्य वैसा ही होता है जैसे बढ़ई अपनी बर्मा मशीन को तेजी से घुमाकर लकड़ी में छेद करता है, उसी तरह भँवर के साथ तेजी से चक्कर लगाते हुए ये छेदक यंत्र नदी की तली में सुराख तथा छिद्र बनाते रहते हैं। 

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जल गर्तिका (potholes)

जलगर्तिका का आकार उस समय अण्डाकार होता है, जब ये कम गहरी होती हैं । इनका व्यास कुछ सेण्टीमीटर से लेकर कई मीटर तक होता है। व्यास की अपेक्षा गहराई अधिक होती है। जब जलगर्तिका की गहराई तथा व्यास अधिक होती है तो उसे अवनमन कुण्ड (plunge pool) कहते हैं। जलगर्तिका का निर्माण हिमानदी के मार्ग में भी होता है। 

संरचनात्मक सोपान (structural benches)

नदी के मार्ग में कभी-कभी कठोर तथा मुलायम चट्टानों की परतें क्रम से एक दूसरे के बाद क्षैतिज अवस्था में बिछी हुई होती हैं। ऐसी परिस्थिति में नदी द्वारा विशेषक अपरदन (differential erosion) द्वारा कठोर तथा मुलायम चट्टानों का कटाव अलग-2 दर से होता है। कठोर चट्टानों की अपेक्षा कोमल चट्टानें जल्दी कट जाती हैं तथा कठोर एवं प्रतिरोधी चट्टानें निकली रहती हैं। 

इस तरह विशेषक अपरदन द्वारा नदी की घाटी के दोनों ओर सोपानाकार सीढ़ियों का निर्माण हो जाता है। प्रायः इन्हें सोपान (benches) कहा जाता है; परन्तु इन सोपानों को नदी वेदिकाओं से अलग करने के लिए संरचनात्मक सोपान की संज्ञा प्रदान की जाती है, क्योंकि इनके निर्माण में एकमात्र चट्टान की कठोरता एवं कोमलता का हाथ रहता है, जबकि नदी वेदिकायें चट्टानों की कठोरता या कोमलता से सम्बन्धित नहीं होती हैं।

संरचनात्मक सोपान (structural benches)

नदी वेदिका (river terrace) 

नदी की घाटी के दोनों ओर सोपानाकार वेदिकाएँ मिलती हैं, जो संरचनात्मक सोपान के समान ही दिखाई देती हैं, क्योंकि ये भी सीढ़ीनुमा क्रम में एक के बाद एक नीचे की ओर उतरती चली जाती हैं। लेकिन इनके निर्माण की प्रक्रिया अलग-2 होती है। नदी वेदिकाएं  नदी के प्रारम्भिक या प्राचीन बाढ़ मैदान के अवशिष्ट भाग का प्रतीक होती हैं। 

नदी वेदिकाएं नदी के नवोन्मेष या पुनर्युवन की परिचायिका होती हैं। नदी वेदिकाओं की उत्पत्ति अत्यधिक सरल है। नदी अपनी वृद्ध अवस्था में बाढ़ का मैदान बनाती है। यह बाढ़ का मैदान निश्चय ही एक विस्तृत समतल भाग होता है। इस विस्तृत भाग में जलोढ़ मिट्टी तथा बजरी (gravel) का निक्षेप होता है। 

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अचानक सागरतल में परिवर्तन के कारण नदी में नवोन्मेष (पुनर्युवन, rejuvenation) आ जाता है जिससे नदी के निम्न या लम्बवत कटाव की क्षमता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप घाटी का गहरा होना प्रारम्भ हो जाता है। अब नदी अपनी पुरानी चौड़ी घाटी के अन्तर्गत नवीन एवं संकरी घाटी का निर्माण करती है। कुछ समय बाद यह नवीन घाटी क्षैतिज अपरदन (lateral erosion) द्वारा विस्तृत होती है परन्तु नदी अपनी पहले वाली घाटी के बराबर नहीं हो पाती है। परिणामस्वरूप नदी एक दूसरे बाढ़ के मैदान का निर्माण करती है। प्राचीन घाटी नवीन घाटी से एक सीढी या सोपान द्वारा अलग होती है। इसी सोपान को नदी वेदिका (river terrace) कहते हैं। 

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नदी विसर्प (river meanders)

नदी जब पहाड़ों को छोडकर मैदानी भाग में प्रवेश करती है तो उसकी निम्न या लम्बवत कटाव की क्षमता कम हो जाती है और क्षैतिज अपरदन अधिक सक्रिय हो जाता है।अब नदी घाटी को गहरा करने के बजाय चौड़ा करने लगती है। इस अवस्था में नदी का मार्ग न तो समतल होता है, न एक समान चट्टानों का ही बना होता है। अत: नदियाँ सीधे मार्ग से न प्रवाहित होकर बल खाती हुई टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होकर चलती हैं। इस कारण नदी के मार्ग में छोटे-बड़े मोड़ बन जाते हैं। इन मोड़ों को ही नदी विसर्प (river meander) कहते हैं। 

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एशिया माइनर की मियाण्डर नदी इसी तरह के बड़े-बड़े मोड़ों से होकर प्रवाहित होती है। इस नदी के नाम पर नदी के मोड़ों को मियाण्डर या विसर्प कहते हैं। विसर्प के प्रत्येक मोड़ में दो प्रकार के किनारे होते हैं। एक का अवतल ढाल होता है। इस ढाल पर नदी की धारा सीधे टकराती है तथा कटाव अधिक करती है। इस कारण अवतल किनारे पर क्लिफ का निर्माण होता है। इसी आधार पर अवतल किनारे को क्लिफ ढाल कहते हैं । 

अवतल किनारे के ठीक सामने दूसरी ओर उत्तल ढालवाला किनारा होता है। इस किनारे पर अपरदन के बजाय निक्षेप होता है। इस किनारे का ढाल मन्द होता है। इसे स्कन्ध (विस्तारित) ढाल (slip off slope) कहते हैं। विसर्प का आकार अर्द्ध-वृत्ताकार तथा कभी-कभी वृत्ताकार भी होता है। 

एक विसर्प की लम्बाई, नदी की चौड़ाई द्वारा ज्ञात की जा सकती है। सामान्य रूप से एक विसर्प की लम्बाई, नदी की चौड़ाई से 15 से 18 गुनी अधिक होती है। 

पेनीप्लेन (Peneplain)

समप्राय मैदान अथवा पेनीप्लेन का निर्माण उस समय होता है; जब नदी की अन्तिम अवस्था में क्षैतिज अपरदन द्वारा सतह की असमानताएं दूर हो जाती हैं। इस समय क्षैतिज अपरदन तथा निक्षेप दोनों मिलकर समप्राय मैदान का निर्माण करते हैं । कई चट्टानें कठोर होती हैं, जिनका नदी द्वारा अपरदन नहीं हो पाता तथा अपरदन अवशेष (erosion remnants) के रूप में इस मैदानी भाग में खड़ी रह जाती हैं। इन्हें मोनाडनाक (monadnocks) कहते हैं।

पेनीप्लेन एवं मोनाडनाक

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