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नदी अपरदन का सिद्धान्त (Principal of River Erosion)

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इस लेख में हम नदी अपरदन का कार्य व नदी अपरदन के सिद्धान्त के बारे में विस्तार से जानेंगे।

नदी अपरदन के सिद्धान्त को समझने के लिए हमें पहले नदी के अपरदन कार्य को समझना होगा। तो आइए पहले हम नदी के अपरदन कार्य को समझते हैं। 

नदी अपरदन का कार्य (River’s Erosional Work)

नदी के अपरदन कार्य के महत्व को प्रमुख विद्वान सैलिसबरी के शब्दों द्वारा समझा जा सकता है उन्होंने बताया है कि “नदी के प्रमुख कार्यों में से एक कार्य, स्थल का सागर तक ले जाया जाना है।” अर्थात् नदियां अपने अपरदन कार्य द्वारा ऊंचे उउठे धरातलीय भागों को काटकर अपने साथ परिवहन करके ले जाती हैं और किसी गहरे स्थान या सागर में जमा करती रहती हैं। 

हालांकि नदी द्वारा अपरदन कार्य में अपक्षय का भी योगदान रहता है। अपक्षय की विभिन्न क्रियाओं द्वारा समीपी चट्टान विघटित तथा वियोजित होकर कमजोर हो जाती है तथा बहता हुआ जल (नदी) अपक्षयित पदार्थों को अपने बहा ले जाता है। नदियाँ अपरदन का कार्य दो रूपों में करती हैं। एक तो नदी का जल घाटी की तली तथा किनारे को काटता है और दूसरे नदी के साथ चलने वाले पदार्थ आपस में भी एक दूसरे का अपरदन करते रहते हैं। फलस्वरूप अपरदन के लिए नदी में बोझ (load) का होना आवश्यक है। नदी के बोझ (भार) में कंकड़, पत्थर, रेत आदि पदार्थ शामिल किए जाते हैं।

नदी अपरदन का सिद्धान्त (Principal of River Erosion)

नदी का अपरदन कार्य नदी के ढाल तथा वेग एवं उसमें स्थित नदी के बोझ (अवसाद भार) पर निर्भर होता है। नदी के अवसाद भार (sediment load) के अन्तर्गत ग्रैवेल, रेत, सिल्ट तथा क्ले को शामिल किया जाता है। ग्रैवेल के अन्तर्गत बोल्डर (256 mm), कोबुल (64-256mm), पेबुल (4-64 mm) तथा ग्रैनूल (2-4mm) आते हैं। अपरदन के लिए यह आवश्यक है कि नदी के साथ कंकड़-पत्थर आदि विद्यमान हों। 

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नदी द्वारा अपरदन न केवल बोझ की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है, बल्कि उसके आकार (size and calibre of load) द्वारा भी निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए यदि बोझ के पदार्थ महीन कण वाले हैं तथा आकार में छोटे हैं तो वे जल के साथ लटक कर (in suspension) चलते हैं और अपरदन कम करते हैं । इसी तरह यदि पदार्थ इतने महीन होते हैं कि वे घुलकर जल के साथ चलते हैं तो अपरदन नगण्य होता है। इसके विपरीत यदि बोझ के पदार्थ इतने बड़े होते हैं कि वे जल के साथ लुढ़ककर या कूदते हुए चलते हैं तो उनसे अपरदन सर्वाधिक होता है।

इसी तरह बोझ की मात्रा का भी अपरदन पर खासा प्रभाव देखने को मिलता  है। प्राय: यह भी कहा जाता है कि नदी में बोझ की मात्रा जितनी अधिक होगी, उसके द्वारा अपरदन भी उतना ही अधिक होगा, परन्तु यह सर्वत्र सत्य नहीं होता है। वास्तव में प्रत्येक नदी में अधिकतम भार ग्रहण करने तथा उसे ढोने की एक निश्चित सीमा होती है। इस सीमा से अधिक भार होने पर नदी उसका परिवहन करने में असमर्थ होती है। 

यदि नदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार भार अर्थात् अधिकतम भार का वहन करती है तो अपरदन का कार्य नगण्य होता है क्योंकि अधिक भार के कारण नदी के वेग में शिथिलता आ जाती है। इस आधार पर अपरदन तथा नदी भार के बीच निम्न सम्बन्धों का निम्न रूप में प्रतिपादन किया जा सकता है- 

(i) नदी में अवसाद भार या बोझ के अभाव में अपरदन कम होता है । 

(ii) अधिकतम अवसाद भार या बोझ पर भी अपरदन कम होता है। 

(iii) इन दोनों अवस्थाओं के बीच की दशा में अपरदन सर्वाधिक होता है। इस अवस्था के पूर्व अपरदन बढ़ता है तथा इसके पश्चात् अपरदन घटता है। इसे ‘अपरदन का सामान्य सिद्धान्त’ कहते हैं। 

उपरोक्त की गई चर्चा से ही अपरदन की समस्या समाप्त नहीं हो जाती। यहाँ पर केवल नदी के बोझ का ही विचार किया गया है। नदी के अपरदन को प्रभावित करने वाले अन्य कारक भी हैं जैसे नदी का वेग (velocity) तथा जलमार्ग की ढाल प्रवणता (channel gradient) । 

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यदि नदी का बोझ यथेष्ट है, परन्तु नदी का वेग कम है तो अपरदन अधिक नहीं हो पायेगा। तीव्र वेग से बहने वाली नदी की अपरदन शक्ति निश्चिय ही अधिक होती है। नदी का वेग दो बातों पर आधारित होता है – नदी के मार्ग का ढाल तथा नदी में जल का आयतन । जब नदी का ढाल तथा आयतन अधिक होता है तो निश्चित ही नदी वेग अधिक होता है। यदि तीव्र वेग के साथ यथेष्ट बोझ भी सुलभ है तो नदी द्वारा अपरदन सर्वाधिक होता है। साधारण रूप में नदी के वेग तथा अपरदन शक्ति में वर्ग का अनुपात होता है। 

इसे निम्न गुर द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है- 

अपरदन शक्ति ∝ (नदी का वेग)6

अर्थात् यदि नदी का वेग दोगुना कर दिया जाय तो उसकी अपरदन शक्ति चौगुनी हो जायेगी। यदि नदी वेग चौगुना कर दिया जाय तो उसकी अपरदन शक्ति 16 गुनी हो जायेगी। 

यह सम्बन्ध उस समय होता है, जबकि नदी का बोझ समान रहे क्योंकि नदी बोझ में परिवर्तन के साथ नदी वेग तथा अपरदन दोनों में परिवर्तन हो जाता है। नदी के अपरदन कार्य में अपरदित होने वाले स्थलखण्ड की संरचना का भी पर्याप्त प्रभाव होता है। यदि स्थलखण्ड की चट्टान अत्यधिक संगठित, संधियों से विहीन तथा अभेद्य एवं अप्रवेश्य होती है तो अपरदन सरलता से नहीं हो पाता है। इसके विपरीत असंगठित, मुलायम, संधियुक्त, प्रवेश्य तथा भेद्य चट्टान का अपरदन सरलता से तथा सर्वाधिक मात्रा में होता है।

References

  1. भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह

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