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पार्थिव एकता की संकल्पना (Concept of Terrestrial Unity)
धरातल पर पाए जाने वाले सभी भौगोलिक तत्व चाहे वे भौतिक हों या सांस्कृतिक, जड़ हों या चेतन एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में सम्बंधित होते हैं और किसी भी तत्व का बिल्कुल अलग और स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। एक तत्व अन्य तत्वों से प्रभावित होता है और उन्हें प्रभावित करता है। अतः किसी क्षेत्र का वास्तविक भूदृश्य वहाँ के प्राकृतिक और मानवीय पर्यावरण के सभी तत्वों के सम्मिलित तथा मिले जुले प्रभावों एवं अंतर्क्रियाओं का परिणाम होता है।
इस प्रकार प्रत्येक भौगोलिक तत्व अन्य तत्वों के अन्तर्सम्बंधों का परिणाम होता है, अतः किसी तत्व के विश्लेषण के लिए यह जानना आवश्यक होता है कि उसके नियंत्रक या उसे प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं और उसे किस प्रकार प्रभावित करते हैं। इस प्रकार भौतिक भूगोल को पारिस्थितिकी (Ecology) का और मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) का अध्ययन माना जाता है।
पार्थिव एकता की संकल्पना विभिन्न तथ्यों के बीच घनिष्ट सम्बंध को दर्शाती है अतः इसे अंतर्सम्बंध (Inter-relationship) की संकल्पना भी कहा जाता है। हम्बोल्ट और रिटर सहित सभी जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने पार्थिक एकता को भूगोल का मौलिक सिद्धांत माना था। फ्रेडरिक रेटजेल (R. Ratzel) ने भी पार्थिव एकता के सिद्धांत को ही प्रमुख माना था। वे सम्पूर्ण विश्व को उसके व्यक्तिगत तत्वों के रूप में नहीं बल्कि सभी तत्वों के समष्टि स्वरूप या एक इकाई के रूप में देखते थे।
रेटजेल भौगोलिक एकता के पोषक थे और पार्थिव एकता के सिद्धांत को मानव भूगोल की आधारशिला मानते थे। प्रमुख फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं- ब्लाश, ब्रूंश, डिमाजियां आदि ने पार्थिक एकता या अंतर्सम्बंध के सिद्धान्त को मानव भूगोल का प्रमुख सिद्धान्त माना है। वाइडल डी ला ब्लाश ने लिखा है कि ‘सभी भौगोलिक उन्नति में प्रमुख विचार पार्थिव एकता का है’ (The dominant idea in all geographical progress is that of terrestrial unity)। उनके शब्दों में, ‘मानव भूगोल के तत्व पार्थिव एकता से सम्बंधित हैं और केवल उसी के माध्यम से उनकी व्याख्या की जा सकती है।’
पार्थिव एकता एक सार्वभौमिक सत्य है जो प्रत्येक देश-काल में विद्यमान होती है। जिस प्रकार ब्रह्मांड में विभिन्न नक्षत्र एक-दूसरे की आकर्षण शक्तियों के कारण संतुलित रहते हैं उसी प्रकार भूतल पर भी विविध प्रकार के भौगोलिक तथ्य एक-दूसरे से प्रभावित तथा सम्बंधित होते हैं।
अमेरिकी भूगोलवेत्ता एल्वर्थ हंटिगटन (E. Huntington) ने भौतिक दशाओं की अंतर्क्रियाओं तथा मानव क्रियाओं पर पड़ने वाले उनके प्रभावों की व्याख्या की है। उनके अनुसार भौतिक पर्यावरण के सभी तथ्य एक-दूसरे से प्रभावित तथा सम्बंधित हैं। अतः किसी एक तथ्य को समझने के लिए दूसरे सम्बद्ध तथ्यों की जानकारी भी आवश्यक होती है।
इस प्रकार अंतर्सम्बंध का सिद्धांत यह प्रतिपादित करता है कि विश्व के किसी भी भौतिक या मानवीय तथ्य को एकाकी या स्वतंत्र नहीं माना जा सकता क्योंकि प्रत्येक तथ्य अन्य अनेक तथ्यों से सम्बंधित होता है। उदाहरण के लिए पर्वत और नदियां पृथ्वी के तल पर भिन्न इकाइयों के रूप में दिखाई पड़ते हैं किन्तु उनकी उत्पत्ति और विकास प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से एक-दूसरे पर आधारित है।
पृथ्वी के ऊपर समस्त वायुमंडलीय दशाएं सूर्यातप से नियंत्रित होती हैं और एक दूसरे से सम्बंधित रहती हैं। जलवायु और वनस्पति भी परस्पर घनिष्ट रूप से सम्बंधित हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रदेशों की प्राकृतिक वनस्पति और पशु जगत में भी घनिष्ट सम्बंध पाया जाता है। पारस्परिक अंतर्सम्बंध केवल प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों तक ही सीमित नहीं है बल्कि मानव सहित सम्पूर्ण सांस्कृतिक तत्व विभिन्न प्राकृतिक तत्वों से सम्बंधित हैं।
जनसंख्या वितरण के मानचित्र पर नजर डालते ही मनुष्य और भौगोलिक पर्यावरण के मध्य अंतर्सम्बंध स्पष्ट होने लगता है। नदियों के जमावों द्वारा निर्मित समतल मैदानी भाग समतल धरातल, जल की प्राप्ति और उपजाऊपन के कारण प्राचीन काल से ही मानव संकेन्द्रण के क्षेत्र रहे हैं। उर्वर मिट्टी के अतिरिक्त खनिज पदार्थों की प्राप्ति, उद्योगों की स्थापना तथा नागरीकरण आदि से भी जनसंख्या की सघनता और समूहन में वृद्धि होती है ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि समस्त भौगोलिक घटनाएं पृथ्वी की सार्वभौमिक एकता से सम्बंधित हैं। अतः किसी क्षेत्र या तथ्य का भौगोलिक अध्ययन स्वतंत्र रूप में नहीं बल्कि समन्वित रूप में किया जाना चाहिए। किसी प्रदेश के विभिन्न तत्वों की सम्बद्धता को उस प्रदेश की आंतरिक सम्बद्धता (Internal coherence) कहा जाता है जो स्थानिक समाकलन (Spatial integration) को व्यक्त करता है।
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