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भारत के उत्तरी मैदान का प्रादेशिक विभाजन

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इस लेख में आप भारत के उत्तरी मैदान का प्रादेशिक विभाजन के बारे में विस्तार से जान पाएंगे। जलवायु एवं स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर भारत के उत्तरी मैदान को निम्न चार मध्य प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है:

1. राजस्थान मैदान (The Plains of Rajasthan)

2. पंजाब-हरियाणा मैदान (The Punjab – Haryana Plains) 

3. गंगा मैदान (The Ganga Plains)

4. ब्रह्मपुत्र मैदान (The Brahmaputra Plain)

Regional Division of the Northern Plains of India
भारत के उत्तरी मैदान का प्रादेशिक विभाजन

भारत के उत्तरी मैदान का प्रादेशिक विभाजन

1. राजस्थान मैदान (The Plains of Rajasthan)

  • यह मैदान अरावली पर्वत के पश्चिम में स्थित हैं, जिसमें राजस्थान के मरुस्थल (Marusthal) और बागड़ (Bagar) का क्षेत्र शामिल हैं। 
  • इसका क्षेत्रफल लगभग 175,000 वर्ग कि. मी. है। 
  • इसका सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है। 
  • लूनी नदी (गुजरात) के निचले हिस्से में यह मैदान समुद्रतल से मात्र 20 मी. ही ऊपर हैं। 
  • इस मैदान के एक बड़े हिस्से की उत्पत्ति सागर के पीछे हटने (उपगमन) से हुई है, जिसका प्रमाण यहां स्थित लवणीय झीलों (सांभर, देगाना, डिडवाना, कुचमान, लुंकरणसार-ताल एवं पचप्रदा) से मिलता है।पर्मो- कार्बनी (Permo-carboniferous) काल में राजस्थान मैदान का अधिकतर भाग समुद्र के अंदर था। 
  • लगभग 300 वर्ग कि.मी. क्षेत्र (वर्षाकाल में) में विस्तृत सांभर झील जयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में लगभग 65 कि. मी. की दूरी पर स्थित है।
  • वर्तमान में लूनी इस मैदान की एक मात्र नदी है जो कच्छ के रण से प्रवाहित होकर सागर ( अरब सागर) तक पहुंच पाती है। इन नदी का जल ऊपरी भागों में निर्मल (मीठा) लेकिन नीचे जाने पर खारा हो जाता है। लूनी नदी के उत्तर में आंतरिक अपवाह वाला एक विस्तृत क्षेत्र विद्यमान है।
  • वर्तमान समय में राजस्थान मैदान का बड़ा भाग मरुस्थल है, जो अनुदैर्ध्य और अनुप्रस्थ बालूका स्तूपों (sand dunes) तथा बरचान (बरखान) से ढका है। इस बेसिन में बहुत सारे प्लाया (playa) झीलें भी हैं।
  • राजस्थान मैदान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में जलोढ़ मैदान हैं, जिन्हें यहां रोही (Rohi) कहते हैं। ये ‘रोही’ उपजाऊ मैदान हैं। इसके उत्तर-पूर्वी भाग में घग्गर नदी का शुष्क संस्तर (bed) स्थित है, जिसे घग्गर मैदान कहते हैं।

2. पंजाब-हरियाणा मैदान (The Punjab – Haryana Plains)

  • पंजाब-हरियाणा मैदान का विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम लगभग 640 कि.मी. और पश्चिम से पूरब लगभग 300 कि.मी. है। 
  • यह एक अधिवृद्धिकृत (aggradational) मैदान है, जिसका निर्माण सतलुज, ब्यास एवं रावी नदियों के निक्षेपों से हुआ है। 
  • इसका क्षेत्रफल लगभग 1.75 लाख वर्ग कि.मी. है। 
  • इस मैदान की ऊँचाई उत्तर में 300 मी. (जम्मू और कठुआ के पास) तथा दक्षिण-पश्चिम में 200 मी. है।
  • पूरब में दिल्ली कटक इसे गंगा के मैदान से अलग करता है। 
  • नदी कगारे (bluffs) और खादर क्षेत्र इन मैदानों की मुख्य स्थलकृतियां हैं। 
  • नदी कगारों, जिनकी ऊंचाई 3 मी. या इससे भी अधिक है, यहां ‘धाया’ (Dhaya) कहलाती हैं तथा खादर पट्टियों को ‘बेत’ (Bet) कहते हैं। 
  • शिवालिक के दक्षिण की लहरदार (undulating) स्थलाकृतियों का यहां से प्रवाहित छोटी नदियों, जिन्हें यहाँ ‘चोस‘ (chos) कहते हैं, द्वारा अपरदन किया गया है। 
  • इन मैदानों के दक्षिण पश्चिमी भागों (विशेषकर हिसार जिले) में रेत एवं स्थानांतरित बालूका स्तूपों की प्रधानता है। 
  • सतलुज, व्यास और रावी पंजाब-हरियाणा मैदान की बारहमासी नदियां हैं। सतलुज और यमुना नदियों के मध्य घघ्घर (प्राचीन सरस्वती) एक मौसमी नदी है, जो अंबाला कैंट से होकर प्रवाहित होती है। इस नदी का प्रवाह लगभग 10 कि.मी. लंबा है तथा इसमें केवल वर्षा काल में ही जल होता है।
  • पंजाब-हरियाणा मैदान दोआबों (दो नदियों के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता है) का बना हुआ है। 
  • इस मैदान के पांच दोआब निम्नलिखित हैं: 

(i) व्यास और रावी के मध्य स्थित बारी दोआब, (ii) व्यास और सतलुज के मध्य स्थित विस्त-जांलधर दोआब (iii) रावी व चेनाब के बीच रचना दोआब (iv)  चिनाब व झेलम के बीच चाज दोआब (v) झेलम, चिनाब तथा सिंधु के बीच सिंध सागर दोआब

3. गंगा मैदान (The Ganga Plains)

  • गंगा मैदान, पश्चिम में यमुना तथा पूरब में बंग्लादेश की सीमा तक लगभग 3.75 लाख वर्ग कि.मी. में फैला है। 
  • इसकी लंबाई लगभग 1400 कि.मी. और औसत चौड़ाई 300 कि. मी. है। 
  • इस मैदान का सामान्य ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व है तथा ढाल प्रवणता 15 से.मी. प्रति कि.मी. है। समुद्र तल से इसकी सर्वाधिक ऊँचाई सहारनपुर(276 मी.) में है तथा सागर द्वीप (3 मी.) में सबसे कम है।
  • भाबर, तराई, भांगड़, खादर, नदी तटबंध (bluff, levee), मृत वाहिकाएं, ‘खोल’ (Khol), ‘बिल’ (bill), ‘ताल’ एवं बेकार भूमि इस मैदान की मुख्य स्थलाकृतियां हैं। 

गंगा मैदान को निम्न तीन उप-विभागों में विभाजित करके अच्छे से समझा जा सकता है:

(i) ऊपरी गंगा मैदान (Upper Ganga Plain )

  • गंगा मैदान के इस हिस्से में गंगा-यमुना दोआब, रोहिलखंड मंडल तथा आगरा मंडल का कुछ भाग शामिल है। 
  • इसकी पश्चिमी सीमा यमुना नदी है, उत्तरी सीमा शिवालिक और 125 मी. समोच्च रेखा (contour) इसकी दक्षिणी सीमा है तथा पूर्वी सीमा 100 से.मी. की समवर्षा रेखा (Isohyet) निर्धारित होती है। 
  • यह मैदान पूर्व-पश्चिम की ओर 550 कि.मी. लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में 380 मीटर चौड़ा है। 
  • ऊपरी गंगा मैदान का फैलाव लगभग 1.49 लाख वर्ग कि.मी. में है। 
  • इस मैदान की ऊंचाई समुद्र-तल से 100 मी. से 300 मी. के बीच है। 
  • गंगा एवं यमुना के अलावा काली, शारदा, रामगंगा, घाघरा एवं राप्ती यहां की अन्य नदियां हैं। 
  • लहरदार रेत के टीलें इस मैदान की मुख्य विशेषता है, जिन्हें ‘भूड़’ (Bhur) के नाम से जानते हैं। 
  • यह मैदान भारत के सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक है, जहां गन्ना, चावल, गेहूं, मक्का, दलहनों, सरसों, चारे, सब्जियों एवं फलों की खेती की जाती है।

(ii) मध्य गंगा का मैदान (Middle Ganga Plain)

  • इस मैदान के अंतर्गत मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार मैदान (पटना तथा मुजफ्फरपुर तक) शामिल हैं। 
  • मध्य गंगा मैदान का फैलाव लगभग 1.44 लाख वर्ग कि.मी. में है। 
  • यह मैदान पूर्व-पश्चिम की ओर 600 कि.मी. लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में 330 मीटर चौड़ा है। 
  • इस मैदान की पश्चिमी सीमा 100 मीटर की समोच्च रेखा तथा पूर्वी सीमा उत्तर-पूर्व में 75 मीटर की समोच्च रेखा व दक्षिण-पूर्व में 30 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा निर्धारित होती है। 
  • उत्तर में, भारत-नेपाल सीमा के पास यह शिवालिक से सीमाबद्ध है। 
  • मध्य गंगा मैदान में जलोढ़ों का मोटा निक्षेप हैं, जिनमें कंकड़ (Kankar) की मात्रा कम है। 
  • वैसे तो यह प्रदेश एकरूपता और आकृतिहीनता प्रदर्शित करता है। फिर भी नदी तटबंध, गोखुर झील (ox-bow lake), ‘धुस’, ‘ताल’, ‘जाला’ और ‘चौर’ (दलदल भूमि) कहीं-कहीं इसके एकरूपता को भंग अवश्य करते हैं। 
  • क्योंकि इस मैदान की ढाल बहुत कम है अत: थोड़ी सा अवरोध आने पर इस प्रदेश की नदियां अपना रास्ता/प्रवाह बदलती रहती हैं। 
  • मध्य गंगा मैदान में गंडक और कोसी गंगा की प्रमुख बांयी तरफ की सहायक नदियां हैं तथा सोन इसकी प्रमुख दाहिनी तरह की सहायक नदी है।

(iii) निचला गंगा मैदान (Lower Ganga Plain)

  • निचले गंगा मैदान पश्चिम में पटना, उत्तर में दार्जिलिंग हिमालय की पदस्थली तथा दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक का क्षेत्र शामिल है। 
  • यह मैदान लगभग 80970 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 
  • इसकी पूर्वी सीमा पर असम और बंग्लादेश तथा पश्चिमी सीमा पर छोटानागपुर का पठार स्थित हैं। 
  • गंगा मैदान के निचले हिस्से में सुंदरबन डेल्टा है। 
  • इस मैदान के पूर्वी भाग में तिस्ता, जलधकीया और संकोश नदियां हैं, जो ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ हैं तथा पश्चिम में महानंदा, अजय और दामोदर नदियां बहती हैं। 
  • इसके दक्षिण-पश्चिम सीमा क्षेत्र में कसाई और सुवर्णरेखा नदियां प्रमुख हैं। 
  • इस मैदान का सामान्य ढ़ाल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर है।
  • निचले गंगा मैदान की उत्पत्ति राजमहल पहाड़ियों एवं मेघालय पठार के मध्य प्रायद्वीपीय भारत के अद्योसंवलन (downwarping) और उसमें गंगा तथा बह्मपुत्र नदियों द्वारा जमा किए गए अवसादों से हुई है।
  • निचले गंगा मैदान के मैदान में कुछ निम्न भू-भाग भी हैं जिन्हें बिल (Bill) कहा जाता है। 
राढ़ मैदान (Rahr Plain)
  • निचले गंगा मैदान का छोटानागपुर पठार के पूर्व स्थित भाग राढ़ मैदान कहलाता है। 
  • इस मैदान में दामोदर एवं स्वर्णरेखा नदियों प्रवाहित होती हैं। 
  • मृदा अपरदन इस मैदान की मूल समस्या है। 
  • राढ़ मैदान में मुख्य रूप से  चावल, मक्का और दालों की खेती होती है। 
सुंदरवन ( Sundarbans)
  • निचले गंगा मैदान के पूर्वी सीमांत हिस्से में सुंदरी नामक गरान (mangrove) वृक्षों का दलदलीय घना जंगल है, जिसे सुंदरवन के नाम से जाना जाता है। 
  • यह विश्व का सबसे बड़ा दलदलीय गरान (mangrove) वनस्पति क्षेत्र है। इनमें ‘रॉयल बंगाल टाईगर’ और मगरमच्छ पाए जाते हैं।

4. ब्रह्मपुत्र मैदान (The Brahmaputra Plain)

  • ब्रह्मपुत्र मैदान उत्तरी भारत के विशाल मैदान का पूर्वी हिस्सा है। 
  • पश्चिम में धुबरी से पूर्व में सदिया तक इस मैदान की लंबाई लगभग 800 कि.मी. और चौड़ाई लगभग 80 कि.मी. है।
  • यह लगभग 56,275 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है। 
  • पश्चिम को छोड़कर यह मैदान चारों तरफ से ऊंचे पर्वतों से घिरा है। 
  • ब्रह्मपुत्र नदी इस मैदान की पूरी लंबाई में अनुप्रस्थ रूप से बहती है। यहां ढाल काफी कम है जिस कारण ब्रह्मपुत्र यहां उच्च रूप से गुथी हुई (draided) नदी के रूप में है तथा यहां कई द्वीप भी विद्यमान हैं। 
  • भारत का सबसे बड़ा तथा विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नदी द्वीप (अमेजन नदी के मराजी द्वीप के बाद), मजुली द्वीप (930 वर्ग कि.मी.) इन्हीं में से एक द्वीप है। 
  • ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों तरफ (इसकी घाटियों में) अनेक अलग-थलग एकाकी पहाड़ी टीले (Monadnocks) हैं। 
  • ब्रह्मपुत्र मैदान भारत के सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक है, जहां चावल और पटसन मुख्य फसलें हैं।
  • ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी एवं दक्षिणी किनारों की भू-आकृतिक बनावट में स्पष्ट अंतर विद्यमान है। 
  • असम से उतरने वाली ब्रह्मपुत्र की उत्तर की सहायक नदियां जलोढ़ पंखों का निर्माण करती हैं, जो आपस में मिलकर सहायक नदियों के प्रवाह को बाधित करती हैं और इन्हें विसर्पो (meanders) के रूप में मुख्य नदी (ब्रह्मपुत्र) के समानांतर प्रवाहित होने को मजबूर करती हैं। इसी कारण से ब्रह्मपुत्र के उत्तरी किनारे पर अनेक तटबंध स्थित हैं तथा बिलों’ (Bils), गोखुर झीलों (ox-bow lakes), दलदलीय भूमि और घने जंगलों वाली तराई भूमि का निर्माण हुआ है। 
  • दक्षिणी भाग की सहायक नदियां अपेक्षाकृत काफी बड़ी हैं। यहां धनश्री और कपिली नदियों ने अपने शीर्षवर्ती अपरदन द्वारा मिकिर एवं रंगमा पहाड़ियों को मेघालय पठार से लगभग अलगकर दिया गया है। 
  • असम घाटी को दो उप-भागों में विभाजित किया जा सकता है: 

(i) ऊपरी असम घाटी और (ii) निचली असम घाटी। इस विभाजन का निर्धारण 94° पूर्वी दिशांतर के आधार पर किया गया है। 

  • ब्रह्मपुत्र के दायें किनारे की सहायक नदियां जालीनुमा (trellis) अपवाह और बायें किनारे की नदियां पादपाकार (dendritic) अपवाह प्रतिरूपों का निर्माण करती हैं। 
  • निचली ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी भागों में अनेक दलदलीय क्षेत्र विद्यमान हैं।

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