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हरियाणा: अवस्थिति एवं विस्तार (Haryana: Location and Extent)

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इस लेख के माध्यम से आप हरियाणा की अवस्थिति एवं विस्तार (Haryana: Location and Extent) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

हरियाणा: संक्षिप्त परिचय

भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित वर्तमान हरियाणा प्रदेश राजनैतिक इकाई के रूप में संयुक्त पंजाब के 35.18 प्रतिशत भूभाग पर 1 नवम्बर 1966 को अस्तित्व में आया परन्तु इसकी प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अति प्राचीन, सैंधव एवं वेदकालीन है। 

वेदों में वर्णित सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के बीच में स्थित भूभाग ‘ब्रह्मावर्त’ के नाम से प्रसिद्ध था। यह समस्त भू-भाग वनाच्छादित था। भारत के ब्रह्मज्ञानी ऋषि-मुनियों ने वेद ग्रन्थ, पुराण-उपनिषद एवं गीता सहित अतिपयोगी महाकाव्यों की रचना इसी पावन धरा पर की। यह क्षेत्र पावन, पवित्र तथा देवभूमि के रूप में विश्व विख्यात हुआ। अतः यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि यह प्रदेश भारतीय सभ्यता का पोषक ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संस्कृति की पहचान भी यहीं हुई थी। 

पुरातत्व एवं नृविज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी) तथा मानव इतिहास को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रदेश का नाम तथा भौगोलिक सीमाएँ बदलते रहे हैं। इसके नामकरण के बारे में अनेक विचार प्रस्तुत किए गए। सर्वप्रथम ‘हरियाणा’ शब्द का प्रयोग विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ऋगवेद’ में ‘रज हरियाणे’ के रूप में हुआ जैसा कि नाम से विदित है कि हरियाणा का उद्भव दो शब्दों के मेल से सम्भव लगता है जैसे हरि का अरण्य, भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली; ‘हर का अयन’, भगवान शिव का घर और ‘हरित अरण्य’ अर्थात हरा-भरा वन। 

वास्तव में सर्वमान्य मत भी यहाँ की हरियाली से सम्बन्धित माना जाता है। भौगोलिक दृष्टि से भी यही उचित प्रतीत होता है। आधुनिक काल में भी यह नाम बहुत सार्थक है। यहाँ का उपजाऊ मैदान केन्द्रीय अन्न भण्डारण में प्रमुख योगदान कर्ता है। इसे अन्न की बुखारी की संज्ञा भी दी गई है।

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हरियाणा: अवस्थिति एवं विस्तार

हरियाणा प्रदेश का विस्तार 27°39′ से 30°55′ उत्तरी अक्षांश से लेकर 74°28′ से 77°36′ पूर्वी देशान्तर तक है। हरियाणा प्रदेश भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है तथा राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किलोमीटर है जो देश का 1.34 प्रतिशत भू-भाग है। 

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हरियाणा प्रदेश भू-आवेष्ठित (लैण्ड-लोक्ड) महाद्वीपीय स्थिति वाला भूखण्ड है। प्राकृतिक तौर से यमुना नदी पूर्वी सीमा निर्धारित करके इस प्रदेश को उत्तर प्रदेश से अलग करती है। पश्चिमी सीमा राजस्थान की मरुभूमि द्वारा, दक्षिणी सीमा अरावली की अवशिष्ट पहाड़ियों से, उत्तर-पूर्वी सीमा लघु हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों द्वारा और उत्तर-पश्चिमी सीमा पंजाब के मैदान से निर्धारित होती है। 

इन प्राकृतिक सीमाओं से घिरा हुआ क्षेत्र राष्ट्रीय जीवन में विशेष महत्व रखता है। यदि भारत एक जैविक इकाई मान ली जाए तो हरियाणा का स्थान उसके हृदय-स्थल पर अवस्थित होता है। अतः हरियाणा प्रदेश को भारत का हृदय कहें तो उचित प्रतीत होता है। 

हरियाणा के उत्तर में हिमाचल प्रदेश, पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में केन्द्र प्रशासित राज्य दिल्ली, दक्षिण व पश्चिम में राजस्थान और उत्तर-पश्चिम में पंजाब व राज्य की राजधानी चण्डीगढ़ एवं केन्द्र प्रशासित क्षेत्र की सांझी सीमाएँ हैं। इन सभी राज्यों के साथ राज्य व्यवस्था की समानता के कारण सामाजिक व आर्थिक तन्त्र के माध्यम से हरियाणा प्रदेश के सर्वांगीण विकास पर गहन प्रभाव पड़ा है।

इस प्रदेश के प्रत्येक जिले की सीमा किसी न किसी राज्य की सीमा से मिलती है। विषमबाहु चतुर्भुज आकृति धारण किये हुए इस प्रदेश का अक्षांश व देशांतरीय विस्तार लगभग 3° X 3° का है। अर्थात लघु आकार है। भारत के राज्यों में इसका बीसवाँ स्थान है। शिवालिक की पहाड़ियों को छोड़कर इनसे लगता हुआ अधिकांश समतल मैदान सर्वगम्य है तथा यातायात की सुलभता है। राष्ट्रीय राजधानी की दिल्ली की निकटता के कारण परिवहन व्यवस्था व ढांचागत संरचना निर्माण में प्रदेश ने अभूतपूर्व प्रगति की है।

FAQs

हरियाणा का गठन कब हुआ था?

हरियाणा का गठन 1 नवम्बर 1966 को संयुक्त पंजाब के 35.18 प्रतिशत भूभाग पर हुआ था।

हरियाणा की भौगोलिक अवस्थिति और विस्तार क्या है?

हरियाणा का विस्तार 27°39′ से 30°55′ उत्तरी अक्षांश और 74°28′ से 77°36′ पूर्वी देशान्तर तक है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किलोमीटर है, जो भारत का 1.34 प्रतिशत भू-भाग है।

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हरियाणा की सीमाएँ किन-किन राज्यों से मिलती हैं?

हरियाणा की सीमाएँ उत्तर में हिमाचल प्रदेश, पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में दिल्ली, दक्षिण और पश्चिम में राजस्थान, और उत्तर-पश्चिम में पंजाब से मिलती हैं। राज्य की राजधानी चण्डीगढ़ भी केंद्र प्रशासित क्षेत्र है।

हरियाणा का नामकरण कैसे हुआ?

‘हरियाणा’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग ऋगवेद में ‘रज हरियाणे’ के रूप में हुआ था। यह हरि का अरण्य (भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली), हर का अयन (भगवान शिव का घर) और हरित अरण्य (हरा-भरा वन) जैसे शब्दों से इसकी उत्पत्ति हुई है।

हरियाणा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है?

हरियाणा की प्राकृतिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अति प्राचीन, सैंधव और वेदकालीन है। इसे ‘ब्रह्मावर्त’ के नाम से जाना जाता था और यह क्षेत्र पवित्र तथा देवभूमि के रूप में विख्यात है।

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