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पृथ्वी की आंतरिक संरचना (interior of the earth in hindi)

हम सब पृथ्वी की ऊपरी सतह को तो आसानी से देखकर इस पर फैले विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय तत्त्वों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं, लेकिन जब बात इसके आंतरिक भाग की बनावट या पृथ्वी की आंतरिक संरचना (interior of the earth in hindi) की आती है तो उसके बारे में जानकारी के कुछ ही स्रोत्र मौजूद हैं; जैसे ज्वालामुखी उद्गार एवं भूकंप विज्ञान जैसे प्राकृतिक स्रोत्र तथा घनत्व, दबाव व तापमान आदि अप्राकृतिक स्रोत्र।   

उपरोक्त दोनों स्रोत्र में से प्राकृतिक स्रोत्र के माध्यम से हम पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (interior of the earth in hindi) के विषय में अधिक सटीक जानकारी हासिल कर सकते हैं। ज्वालामुखी उद्गार के माध्यम से तो हम कुछ किलोमीटर की गहराई तक की  आंतरिक संरचना के बारे में अनुमान लगा सकते हैं, क्योंकि ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले लावा 200 से 400 किलोमीटर की गहराई से ही आता है। 

लेकिन भूकम्पों की लहरों की गति तथा उनके भ्रमण पथ के वैज्ञानिक अध्ययन एवं विश्लेषण के आधार पर पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की बहुत हद तक सटीक जानकारी हासिल कर सकते हैं। भूकम्पों की लहरों की गति तथा उनके भ्रमण पथ के वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन बड़े मण्डलों- क्रस्ट, मैण्टिल तथा कोर में विभक्त किया जाता है। भूकम्पीय लहरों की गति में अन्तर के आधार पर इन तीन प्रमुख मण्डलों के उप विभाग किए गए हैं। 

interior of the earth in hindi
पृथ्वी के आंतरिक भाग – क्रस्ट, मैण्टिल तथा कोर

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना (interior of the earth in hindi): क्रस्ट, मैण्टिल तथा कोर 

आइए अब हम इन तीनों मण्डलों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

क्रास्ट (crust)

  • क्रस्ट की गहराई के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं है। क्रस्ट की मोटाई M. J. Bradshaw, A. J. Abbott तथा A. P. Gelsthorpe के अनुसार महाद्वीपों के नीचे 50 किमी० तथा महासागरों के नीचे 5 किमी०, International Union of Geodesy and Geophysics के अनुसार 30 किमी० तथा अन्य स्रोतों के अनुसार 100 किमी बताई गई है। 
  • भूकम्पीय लहरों की गति में अन्तर के आधार पर क्रस्ट को भी दो उपविभागों ऊपरी क्रस्ट तथा निचली क्रस्ट में गया है, क्योंकि निचली क्रस्ट में P लहर की गति ऊपरी क्रस्ट की अपेक्षा अधिक होती है।
  • ऊपरी क्रस्ट तथा निचली क्रस्ट के बीच भी एक असम्बद्धता (discontinuity) का निर्माण देखने को मिलता है, जिसे  कोनराड (conrad discontinuity) असम्बद्धता के नाम से जाना जाता है। 
  • ऊपरी क्रस्ट में P लहर की गति 6.1 किमी० प्रति सेकेण्ड तथा निचली क्रस्ट में 6.9 किमी० प्रति सेकेण्ड होती है। चित्र 3.4 में P तथा S लहरों की विभिन्न गतियों तथा उनसे सम्बन्धित पृथ्वी के विभिन्न मण्डलों को दिखाया गया है।
  • ऊपरी क्रस्ट का घनत्व 2.8 तथा निचली क्रस्ट का 3.0 है।
discontinuity in earth interior
पृथ्वी के आंतरिक भाग में मौजूद विभिन्न असम्बद्धता

मैण्टिल (mantle)

  • निचली क्रस्ट तथा ऊपरी मैण्टिल के बीच एक असम्बद्धता (discontinuity) का निर्माण होता है (जिसके आधार पर क्रस्ट तथा मैण्टिल को अलग किया गया है), क्योंकि  यहां पर भूकम्पीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि हो जाती है। निचली क्रस्ट में P की 6.9 किमी प्रति सेकेण्ड की गति बढ़कर (निचली क्रस्ट के आधार पर) 7.9 किमी० से 8.1 किमी प्रति सेकेण्ड हो जाती है।
  • इस असम्बद्धता (discontinuity) की खोज सबसे पहले A. Mohorovicic द्वारा 1909 में की गई। अतः इसे मोहोरोविकिक असम्बद्धता या मोहो असम्बद्धता (Moho- discontinuity) कहते हैं। 
  • मोहो असम्बद्धता से लगभग 2900 किमी० की गहराई तक मैण्टिल का विस्तार है जिसके नीचे पृथ्वी का कोर (core) प्रारम्भ हो जाता है। 
  • ऊपरी मैण्टिल तथा निचली मैण्टिल के बीच भी एक असम्बद्धता (discontinuity) का निर्माण होता है, जिसे रेपिटी (Repetti discontinuity) असम्बद्धता के नाम से जाना जाता है।
  • मैण्टिल की मोटाई पृथ्वी की समस्त अर्द्धव्यास (6371 किमी०) के आधे से कम है; परन्तु पृथ्वी के आयतन (volume) का 83 प्रतिशत तथा द्रव्यमान (mass) का 68 प्रतिशत भाग मैण्टिल में समाया है।
  • International Union of Geodesy and Geophysics द्वारा  इसे निम्न भागों में विभाजित किया गया है-
    • (1) मोहो असम्बद्धता से 200 किमी० (प्रारम्भिक मतानुसार 400 किमी०) की गहराई का भाग
    • (2) 200 से 700 किमी० (प्रारम्भिक मतानुसार 400 से 1000 किमी०) की गहराई तक का भाग
    • (3) 700 से 2900 किमी० (प्रारम्भिक मतानुसार 1000 से 2900 किमी०) की गहराई तक का भाग
  • ऊपरी मैण्टिल में 100 से 200 किमी० की गहराई में भूकम्पीय लहरों की गति मन्द पड जाती है। इस भाग को निम्न गति का मण्डल (zone of low velocity) कहते हैं।

कोर (core)

  • कोर का विस्तार 2900 किमी० (मैण्टिल/कोर सीमा) से पृथ्वी के केन्द्र (6371 किमी०) तक है। 
  • मैण्टिल/कोर सीमा (2900 किमी०) को Gutenberg Weichert Discontinuity कहते हैं। 
  • इस सीमा या गुटेनबर्ग असम्बद्धता के सहारे घनत्व में अत्यधिक परिवर्तन (इस सीमा के ऊपर मैण्टिल का घनत्व 5.5 तथा नीचे कोर का घनत्व 10.0) तथा P लहर की गति में अचानक वृद्धि (13.6 किमी० प्रति सेकेण्ड) होती है। 
  • नीचे जाने पर यह घनत्व 12 से 13 तथा केन्द्र पर 13.6 हो जाता है। 
  • इस तरह कोर का घनत्व मैण्टिल के घनत्व से दो गुना से अधिक है परन्तु इसका आयतन पृथ्वी के आयतन का मात्र 16 प्रतिशत तथा द्रव्यमान (mass) का 32 प्रतिशत ही है। 
  • कोर को दो उपभागों में विभक्त किया जाता है- बाह्य कोर (outer core) तथा 2. आन्तरिक कोर (inner core) 
  • बाह्य कोर का विस्तार 2900 किमी० से 5150 किमी की गहराई के बीच है। इस मण्डल में भूकम्पीय S लहर प्रवेश नहीं हो पाती है, अतः इस मण्डल को तरल अवस्था में होना चाहिए। 
  • 5150 से 6371 किमी० की गहराई तक का भाग आन्तरिक कोर के अन्तर्गत आता है जो ठोस अवस्था में है एवं घनत्व 13.6 है। लहर की गति 11.23 किमी० प्रति सेकेण्ड होती है। 
  • ऊपरी या बाह्य कोर तथा निचले या आन्तरिक कोर के बीच भी एक असम्बद्धता (discontinuity) का निर्माण होता है, जिसे लेहमेन (Lehmann discontinuity) असम्बद्धता के नाम से जाना जाता है।
  • सामान्य रूप में कोर की रचना लोहा एवं निकल से हुई है। दूसरी संभावना के अनुसार कोर की रचना सिलिकेट (silicate) से मानी जाती है। 
  • अभिनव साक्ष्यों के आधार पर यह बताया जाता है कि इस समय वाह्य कोर में सिलिकन की मात्रा 20% तथा लोहे एवं निकल का प्रतिशत 80 है।

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