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भूआकृति विज्ञान:परिभाषा,प्रकृति एवं विषयक्षेत्र (Geomorphology: Definition, Nature and Scope)

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भूआकृति विज्ञान:परिभाषा,प्रकृति एवं विषयक्षेत्र (Geomorphology: Definition, Nature and Scope)

भूआकृति विज्ञान का अर्थ

जैसा कि हम जानते हैं भौतिक भूगोल के प्रमुख चार संघटकों के अध्ययन करने वाले विषय को अलग-अलग विज्ञान के नाम से सम्बोधित किया जाता है जैसे स्थलमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को भूआकृति विज्ञान, सागर तथा महासागर या जलमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को सागर विज्ञान, वायुमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को जलवायु विज्ञान तथा जीवमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को जैव भूगोल। यहां हम स्थलमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान भूआकृति विज्ञान के बारे में जानेंगे।

भूआकृति विज्ञान अर्थात् “जिओमोर्फोलोजी” (geomorphology) ग्रीक भाषा के ‘ge’ (पृथ्वी- earth), ‘marphi’ (रूप- form) तथा ‘logos’ (वर्णन- discourse) से बना है। इस प्रकार इसके शाब्दिक अर्थ से मालूम होता है कि भूआकृति विज्ञान मात्र स्थलरूपों का ही अध्ययन ठहरता है परन्तु यह इस विज्ञान का संकुचित अर्थ है। शाब्दिक अर्थ के आधार पर भूआकृति विज्ञान की एक परिभाषा प्रस्तुत की जा सकती है- “भूआकृति विज्ञान वह विज्ञान है जो कि स्थलमण्डल के विभिन्न उच्चावच्चों (जैसे-घाटियाँ, गार्ज, प्रपात, रने कन्दरायें, बालुका स्तूप, सर्क, रोधिका, पुलिन, क्लिफ आदि) का अध्ययन करता है”- “Geomorphology studies various relief features of lithosphere.” 

भूआकृति विज्ञान की परिभाषाएं

वारसेस्टर के अनुसार “भूआकृति विज्ञान पृथ्वी के उच्चावच्चों का व्याख्यात्मक वर्णन है”- “Geomorphology is the interpretative description of the relief features”.

अर्थात् भूआकृति विज्ञान वह विज्ञान है जो कि भूपटल के विभिन्न रूपों, उनको उत्पत्ति तथा इतिहास एवं विकास की व्याख्या करता है। इस प्रकार उच्चावच्चों के रूप, उत्पत्ति तथा विकास के इतिहास को समझने के लिए भूपटल की रचना सामग्री (चट्टान) तथा उस पर परिवर्तन लाने वाले आन्तरिक (ज्वालामुखी क्रिया, पटल विरूपणी बल आदि) तथा बाह्य बलों (अपक्षय तथा अपरदन) आदि प्रक्रियाओं का अध्ययन भी आवश्यक हो जाता है।

थार्नबरी के अनुसार “भूआकृति विज्ञान स्थलरूपों का विज्ञान है परन्तु इसमें अन्तः सागरीय रूपों (submarine forms) को भी सम्मिलित किया जाता है।” अर्थात् भूआकृति विज्ञान स्थलरूपों के अध्ययन से बढ़कर है क्योंकि इसके अन्तर्गत यदि वृहदाकार उच्चावच्चों यथा महासागर नितल, महाद्वीप, पर्वत आदि का अध्ययन किया जाता है तो लघु आकार वाले स्थलरूपों (अपरदन एवं निक्षेप जनित) का भी अध्ययन किया जाता है। 

स्ट्रालर महोदय के अनुसार “भूआकृति विज्ञान सभी प्रकार के स्थलरूपों की उत्पत्ति तथा उनके व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध विकास की व्याख्या करता है तथा यह भौतिक भूगोल का एक प्रमुख अंग है।” 

ए० एल० ब्लूम (1979) के अनुसार “भूआकृति विज्ञान स्थलाकृतियों तथा उन्हें परिवर्तित करने वाले प्रक्रमों का क्रमबद्ध वर्णन एवं विश्लेषण करता है।”

भूआकृति विज्ञान की प्रकृति (Nature of Geomorphology)

भूआकृति विज्ञान भूगोल की एक प्रमुख शाखा है, जो पृथ्वी की सतह पर पाई जाने वाली विविध आकृतियों का अध्ययन करती है। इस विज्ञान के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाएं कैसे इन आकृतियों का निर्माण करती हैं, उनके स्वरूप को बदलती हैं, और उनका निरंतर विकास करती हैं। भूआकृति विज्ञान का अध्ययन न केवल शैक्षणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राकृतिक आपदाओं, पर्यावरण प्रबंधन, और मानव समाज पर उनके प्रभाव को समझने में भी सहायक होता है।

1. भूआकृतियों का अध्ययन (Study of Landforms)

भूआकृति विज्ञान का प्राथमिक उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर पाई जाने वाले भूदृश्यों का अध्ययन करना है। इनमें पर्वत, घाटियाँ, पठार, मैदान, रेगिस्तान, नदियाँ, झीलें, और अन्य भू-आकृतियाँ शामिल हैं। प्रत्येक भू-आकृति की अपनी विशेषताएं होती हैं, जो उनके निर्माण के तरीकों और उनके विकास के इतिहास को दर्शाती हैं।

  • पर्वत (Mountains): पर्वत टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराव, वलन और ज्वालामुखी गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनते हैं। उनकी ऊँचाई, ढाल, और संरचना के अध्ययन से हमें टेक्टोनिक गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • घाटियाँ (Valleys): घाटियाँ नदियों या हिम द्वारा की गई अपरदन प्रक्रियाओं के माध्यम से बनती हैं। इनका अध्ययन विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अपरदन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है।
  • पठार (Plateaus): पठार ऊँचे और समतल क्षेत्र होते हैं, जो सामान्यतः टेक्टोनिक गतिविधियों या ज्वालामुखीय जमाव के परिणामस्वरूप बनते हैं।
  • मैदान (Plains): मैदानी क्षेत्र सपाट और विस्तृत होते हैं, जो नदियों के जमाव या अपरदन के कारण बनते हैं।

2. प्रक्रियाएँ और बल (Processes and Forces)

भूआकृति विज्ञान में विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं और बलों का अध्ययन किया जाता है, जो भू-आकृतियों के निर्माण, अपरदन, और परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

  • आंतरिक भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ (Internal Geological Processes): इनमें ज्वालामुखीय गतिविधियाँ, टेक्टोनिक प्लेट्स की गति, भूकंप, और पर्वत निर्माण शामिल हैं। ये प्रक्रियाएँ पृथ्वी की आंतरिक उष्मा और दबाव के कारण उत्पन्न होती हैं।
  • बाह्य भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ (External Geological Processes): इनमें पवन, बहता हुआ जाल, हिम, और जैविक कारक शामिल हैं। ये प्रक्रियाएँ अपरदन, परिवहन, और जमाव का कारण बनती हैं, जिससे भू-आकृतियों में परिवर्तन होता है।

3. जलवायु और मौसम का प्रभाव (Impact of Climate and Weather)

जलवायु और मौसम भू-आकृतियों के निर्माण और उनके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वर्षा और उच्च तापमान से अधिक अपरदन होता है, जबकि शीतल क्षेत्रों में बर्फ और ग्लेशियर प्रक्रियाएँ प्रमुख होती हैं। मौसम परिवर्तन भी भूआकृतियों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं, जैसे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, हिमनदों का पिघलना, और मरुस्थलीकरण।

4. समय और भूआकृतियाँ (Time and Landforms)

भूआकृतियों का विकास दीर्घकालिक प्रक्रियाओं का परिणाम होता है। लाखों वर्षों में हुई विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं और परिवर्तनों के कारण आज की भूमि आकृतियाँ बनी हैं। समय के साथ ये आकृतियाँ अपरदन और जमाव प्रक्रियाओं के कारण बदलती रहती हैं, जिससे नई आकृतियों का निर्माण होता है।

5. मानव गतिविधियों का प्रभाव (Impact of Human Activities)

आधुनिक युग में मानव गतिविधियाँ भूआकृतियों को काफी हद तक प्रभावित कर रही हैं। निर्माण कार्य, खनन, कृषि, और शहरीकरण से भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में परिवर्तन होता है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षति से भी भूआकृतियों पर प्रभाव पड़ता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि भूआकृति विज्ञान एक व्यापक और विविध क्षेत्र है, जो पृथ्वी की सतह पर होने वाली प्रक्रियाओं और उनके परिणामस्वरूप बनने वाली आकृतियों का अध्ययन करता है। यह विज्ञान न केवल प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि मानव समाज के लिए आवश्यक संसाधनों के प्रबंधन और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के उपायों को भी समझने में सहायक है। भूआकृति विज्ञान का गहन अध्ययन करने से हम पृथ्वी की सतह के विकास और इसके भविष्य के संभावित परिवर्तनों को समझ सकते हैं।

भूआकृति विज्ञान का विषय-क्षेत्र

भूआकृति विज्ञान के अध्ययन का प्रधान विषय पृथ्वी के विभिन्न उच्चावच्च हैं। स्थलमण्डल की सतह पर उर्ध्वाकार स्थलीय विषमताओं (vertical irregularities) को उच्चावच्च की संज्ञा प्रदान की जाती है। यदि उच्चावच्च विशाल पर्वतों के रूप में ऊँचे हो सकते हैं तो पहाड़ियों या टीलों के रूप में कम ऊँचे और घाटियों के रूप में गहरे हो सकते हैं।

विस्तार एवं आकार की दृष्टि से भूतल के उच्चावच्चों, जो भूआकृति विज्ञान के विषय-क्षेत्र के अध्ययन का केन्द्र स्थल है, को तीन वृहद् श्रेणियों में विभाजित किया जाता है –

प्रथम श्रेणी के उच्चावच्च (relief features of the first order)

इस वर्ग के अन्तर्गत धरातल के उन उच्चावच्चों को सम्मिलित किया जाता है जो कि प्रमुख हुआ करते हैं। उदाहरण के लिए महाद्वीप तथा महासागर नितल इस श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। इन दो विशाल स्थलरूपों के वर्तमान रूप तथा वितरण, उत्पत्ति एवं विकास की समुचित व्याख्या वांछित होती है। समस्त ग्लोब के 70.8 प्रतिशत भाग पर जलमण्डल (सागर एवं महासागर) तथा 29.2 प्रतिशत भाग पर स्थलमण्डल का विस्तार है। 

इन्हें भूतल के प्रारम्भिक उच्चावच्च के नाम से भी जाना जाता है। महाद्वीपों तथा सागरों की उत्पत्ति, वर्तमान रूप तथा सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इन दो प्रमुख उच्चावच्चों की उत्पत्ति के पहले पृथ्वी की उत्पत्ति तथा उसके भूगर्भिक इतिहास की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है, जो इसके विषय क्षेत्र को बृहद बनाते हैं। 

द्वितीय श्रेणी के उच्चावच्च (relief features of the second order)

पर्वत, पठार, मैदान तथा झीलों को द्वितीय श्रेणी के उच्चावच्चों के अन्तर्गत रखा जाता है। इनको संरचनात्मक स्थलंरूप (structural landforms) भी कहा जाता है। इन उच्चावच्चों का निर्माण मुख्य रूप से पृथ्वी के आन्तरिक बलों द्वारा प्रथम श्रेणी के उच्चावच्चों पर होता है। 

पटलविरूपणी बल (diastrophic force) महादेश जनक तथा पवर्तन बल इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। भूतल पर दो तरह के बल कार्य करते हैं- रचनात्मक बल (constructive force) तथा विनाशात्मक बल (destructive force)। चूँकि पर्वत, पठार, मैदान का (केवल द्वितीय वर्ग के स्थलरूप क्योंकि कुछ पर्वतों, पठारों तथा मैदानों का निर्माण अपक्षय तथा अपरदन द्वारा भी होता है) निर्माण पृथ्वी के आन्तरिक बल (रचनात्मक) द्वारा होता है अतः इन्हें रचनात्मक स्थलरूप कहते हैं। 

इनमें से प्रत्येक प्रकार के उच्चावच्च के सामान्य रूप, उनके निर्माण की प्रक्रिया तथा सम्बन्धित सिद्धान्त एवं विकास का अध्ययन किया जाता है।

तृतीय श्रेणी के उच्चावच्च (relief features of the third order)

द्वितीय श्रेणी के उच्चावच्चों पर निर्मित तथा विकसित स्थलरूपों को तृतीय श्रेणी के उच्चावच्चों के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। पर्वत, पठार, मैदान आदि प्रमुख उच्चावच्चों पर पृथ्वी के बाह्य बलों (अपक्षय तथा अपरदन) द्वारा अनेक स्थलरूपों की रचना होती है। चूँकि ये बाह्य बल विनाशकारी होते हैं अतः इनके द्वारा निर्मित स्थलरूपों को ‘विनाशात्मक स्थलरूप’ (destructional landforms) कहते हैं। 

इन बलों में बहता हुआ जल (नदी), पवन, हिमानी तथा सागरीय तरंग अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। नदियों द्वारा निर्मित स्थलरूप तीन तरह के होते हैं- अपरदनात्मक स्थलरूप (घाटियाँ, कैनियन, गार्ज, प्रपात, सोपान आदि), अवशिष्ट स्थलरूप – residual landforms (चोटियाँ, मोनाडनाक आदि) तथा निक्षेपात्मक स्थलरूप (जलोढ़ पंख, प्राकृतिक तटबन्ध, बाढ़ का मैदान, डेल्टा आदि)। 

हिमानी द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूपों में सर्क, U आकार की घाटी आदि, अवशिष्ट स्थलरूपों में एरेटी, मैटरहार्न, रॉशमुटोने तथा निक्षेपात्मक आकारों में हिमोढ़, एस्कर, ड्रमलिन, केम आदि महत्वपूर्ण होते हैं। इसी तरह पवन तथा सागरीय तरंगें भी अपरदत्त तथा निक्षेपण द्वारा विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण करती हैं। 

भूआकृति विज्ञान में तृतीय श्रेणी के इन्हीं स्थलरूपों को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।

FAQs

भूआकृति विज्ञान क्या है?

भूआकृति विज्ञान (Geomorphology) वह विज्ञान है जो पृथ्वी की सतह पर पाई जाने वाली आकृतियों, उनकी उत्पत्ति, संरचना और विकास का अध्ययन करता है। इसमें पर्वत, घाटियाँ, पठार, मैदान, और अन्य भू-आकृतियों का समावेश होता है।

भूआकृति विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ कौन-कौन सी हैं?

भूआकृति विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ हैं:
संरचनात्मक भूआकृति विज्ञान: जो भूमि आकृतियों की संरचना और उत्पत्ति का अध्ययन करता है।
जलवायु भूआकृति विज्ञान: जो जलवायु और मौसम के प्रभावों का अध्ययन करता है।
समुद्री भूआकृति विज्ञान: जो समुद्र तल की आकृतियों का अध्ययन करता है।
यांत्रिक भूआकृति विज्ञान: जो भू-आकृतियों के निर्माण में बल और गति का अध्ययन करता है।

भूआकृति विज्ञान का मानव समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

भूआकृति विज्ञान का अध्ययन मानव समाज पर कई तरीकों से प्रभाव डालता है, जैसे प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी और उनसे बचाव के उपाय, संसाधनों का सतत प्रबंधन, और भूमि उपयोग और शहरीकरण की योजना बनाना।

भूआकृति विज्ञान का भविष्य क्या है?

भूआकृति विज्ञान का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के प्रभाव के कारण पृथ्वी की सतह पर लगातार बदलाव हो रहे हैं। नई तकनीकों और अनुसंधान विधियों के माध्यम से भूआकृति विज्ञान का अध्ययन और भी विस्तारित हो रहा है, जिससे हमें भविष्य के लिए बेहतर योजना बनाने में मदद मिल सकती है।

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