Search
Close this search box.

Share

अपक्षय के भ्वाकृतिक प्रभाव (Geomorphic Effects of Weathering)

Estimated reading time: 5 minutes

इस लेख में हम अपक्षय के भ्वाकृतिक प्रभावों को उदाहरणों के माध्यमों से समझने का प्रयास करेंगे।

अपक्षय के भ्वाकृतिक प्रभाव (Geomorphic Effects of Weathering)

अपक्षय द्वारा चट्टानपूर्ण का निर्माण होना 

भौतिक, रासायनिक एवं जैविक अपक्षय द्वारा चट्टानों ढ़ीली व कमजोर होकर विघटित तथा वियोजित हो जाती हैं तथा छोटे- छोटे टुकड़ो में टूटती रहती है, जिसके कारण अधिक मात्रा में चट्टान चूर्ण का निर्माण होता है। पृथ्वी की ऊपरी सतह पर जिस गहराई तक अपक्षय का प्रभाव होता है, उसे ‘अपक्षय मण्डल’ कहते हैं। 

हालांकि अपक्षय मण्डल की  गहराई सभी स्थानों पर एक समान नहीं पाई जाती, वरन् स्थान-स्थान पर अलग-अलग होती है। अपक्षय मण्डल की गहराई दो बातों पर निर्भर करती है – पहला, भूमिगत जल स्तर (groundwater table) की स्थिति तथा दूसरा, अपक्षय होने का समय। 

अपक्षय द्वारा उत्पन्न चट्टानचूर्ण का आर्थिक दृष्टि से अधिक महत्व होता है। इन्हीं चट्टानचूर्णो द्वारा मिट्टियों का निर्माण होता है, जो कि कृषि का मुख्य आधार है। चट्टानों के टूट-फूट से कई प्रकार के खनिजों की प्राप्ति हो जाती हैं, जो कि औद्योगिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं जैसे जिप्सम व चूना आदि की प्राप्ति इसी प्रकार से होती है।

पहाड़ी भागों में अपक्षय के कारण चट्टानें विघटित हो जाती हैं तथा भूमि स्खलन के फलस्वरूप चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़े नीचे गिरते हैं, जिनसे कभी-कभी मानव तथा मानव आवास को नुकसान होता  है। प्राय: इन टुकड़ों द्वारा पहाड़ी भागों में नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तथा इस प्रकार झीलों का निर्माण होता है। शीत प्रदेशों  में अपक्षय के कारण हिम के बड़े-बड़े टुकड़े सागरों में उतर आते हैं, जिससे जलयानों को क्षति उठानी पड़ती है। 

अपक्षय अपरदन के लिए सामग्री प्रदान करता है 

क्योंकि अपक्षय द्वारा चट्टानें ढीली व कमजोर हो जाती हैं, जिससे अपरदन का कार्य आसान हो जाता है क्योंकि अपरदन के विभिन्न कारक (आर्द्र प्रदेशों में बहता जल, उष्ण एवं शुष्क मरुस्थलीय भागों में वायु, शीतप्रधान प्रदेशों में हिमानी तथा सागरीय लहरें आदि (सागरीय तटों के किनारे पर) इन विघटित चट्टानों को आसानी से काट कर अपने साथ बहा ले जाते हैं) अपरदित पदार्थों का परिवहन करते रहते हैं। 

जब अपक्षय से प्राप्त पदार्थों का अपरदन के कारकों द्वारा परिवहन होता है तो ये पदार्थ आपस में टकराकर तथा तली को कुरेद कर अपरदन के कार्य में सक्रिय सहयोग देते हैं। यहाँ तक कि अपरदन के समय (बहते जल द्वारा) भी रासायनिक अपक्षय होता रहता है, जिससे नदी घाटी के किनारे की चट्टानें वियोजित होकर टूटकर जल के साथ हो लेती हैं। 

अपक्षय द्वारा धरातल का नीचा होना

अपक्षय के विभिन्न कारकों द्वारा चट्टानों में टूट-फूट होती रहती है तथा प्राप्त चट्टानचूर्ण का परिवहन के कारकों द्वारा दूसरे स्थानों पर स्थानान्तरण होता रहता है। जिसके फलस्वरूप अपक्षय से प्रभावित धरातलीय सतह नीची होती रहती है। 

स्थलाकृतियों का निर्माण

विशेषक अपक्षय (differential weathering) द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। जैसे जालीदार पत्थर (stone lattice), हागबैक, अपदलन गुम्बद (exfoliation domes), मेसा, बुटी (buttes) के निर्माण का प्रमुख कारक विशेषक अपक्षय (differential weathering) ही बताया गया है, परन्तु यहां यह भी याद रखना है कि इनके निर्माण में नदियों के बहते जल का योगदान अधिक रहता है। 

अपक्षय से प्राप्त अवसाद या मलवा के स्थानान्तरण तथा उनके दूसरे स्थानों पर जमा होने से कई प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है, जैसे- टालस शंकु (talus cone), टालस पंख (talus fans) आदि तथा इन पदार्थों के ढाल के सहारे सरकते समय वेदिकाओं की रचना होती है। इस प्रकार यदि देखा जाए तो अपक्षय तथा विशेषक अपक्षय स्वतंत्र रूप में उच्च पर्वत चोटियों के निर्माण तथा परिवर्तन से लेकर चट्टानचूर्ण के संचयन तथा जमाव से उत्पन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करते हैं। 

अपक्षय द्वारा निर्मित स्थ्लाकृतियाँ (Image Credit: www.google.com)

वास्तव में विशेषक अपक्षय के कारण कठोर शैल भाग सतह पर उच्चावच्च के रूप में प्रकट हो जाते हैं। यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त स्थलाकृतियों का निर्माण केवल विशेषक अपक्षय द्वारा सम्पन्न हुआ है, बताना कठिन है क्योंकि विशेषक अपक्षय शायद ही अन्य अपरदन के कारकों से अलग होकर कार्य करता हो तथा स्वतंत्र स्थलाकृतियों के निर्माण में समर्थ हो । 

वास्तव में अपक्षय तथा अपरदन द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियों में यह अंतर करना कठिन हो जाता है कि कितना कार्य अपक्षय ने किया है तथा कितना कार्य अपरदन ने। इतना अवश्य है कि साधारण स्थलाकृतियों के परितर्वन तथा निर्माण में विशेषक अपक्षय का महत्व कम नहीं है। 

अपक्षय के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक कारकों द्वारा चट्टानों में विघटन तथा वियोजन द्वारा प्राप्त असंगठित पदार्थों को चट्टानचूर्ण या नष्ट अवशेष या भग्न राशि (rockwaste) कहते हैं। चट्टानपूर्ण का ऊपरी ढाल से गुरुत्व तथा जल के स्नेहन (lubrication) द्वारा नीचे की ओर स्थानान्तरण (mass translocation) होता है तथा उनका ढाल की पदस्थली पर जमाव हो जाता है जिसे टालस (screes or talus) कहा जाता है। 

References

  1. भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह

FAQs

अपक्षय क्या है?

अपक्षय वह प्रक्रिया है जिसमें भौतिक, रासायनिक, और जैविक कारकों द्वारा चट्टानें विघटित होती हैं। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटती हैं, जिन्हें चट्टानचूर्ण कहते हैं।

रासायनिक अपक्षय क्या होता है?

रासायनिक अपक्षय में चट्टानों के खनिजों का विघटन होता है। इस प्रक्रिया में पानी, ऑक्सीजन, और अन्य रासायनिक तत्वों का योगदान होता है, जिससे चट्टानों के खनिज बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया से मिट्टी और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों का निर्माण होता है।

You May Also Like

One Response

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Category

Realated Articles