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भारत का भूवैज्ञानिक इतिहास (Geological History of India)

भारत का भूवैज्ञानिक इतिहास (Geological History of India) अत्यंत प्राचीन और विविधतापूर्ण है, जो पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक फैला हुआ है। इस इतिहास को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने इसे विभिन्न कालखंडों में विभाजित किया है, जिससे हमें पृथ्वी और विशेषकर भारत के भूगर्भीय विकास की स्पष्ट समझ मिलती है।

नोट: इस लेख को अच्छे से समझने के लिए आप यदि भूवैज्ञानिक समय सारणी को पढ़ेंगे तो आपको निश्चित रूप से सहायता मिलेगी

भूवैज्ञानिक समय सारणी और भारत की विशेषताएँ

वैश्विक भूवैज्ञानिक समय सारणी के अनुसार, पृथ्वी के इतिहास को पाँच महाकल्पों (नवजीव, मध्यजीव, पुराजीव, प्राग्जीव, आद्य) में विभाजित किया गया है। हालांकि, भारत के भूवैज्ञानिक अभिलेख पूरी तरह से यूरोप से मेल नहीं खाते हैं। इसलिए, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के सर टी. हालैण्ड ने प्रमुख विषम विन्यासों के आधार पर भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास को चार कल्पों में वर्गीकृत किया है: आद्य (Archaean), पुराण (Purana), द्राविड़ (Dravidian), और आर्य (Aryan)

भारत के भूवैज्ञानिक कल्प और उनकी विशेषताएँ

  • आद्य कल्प (Archaean): यह भारत की प्राचीनतम शिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें शिस्ट, नाइस, ग्रेनाइट, और चानोंकाइट जैसी चट्टानें शामिल हैं। ये शिलाएँ प्रायद्वीपीय भारत के लगभग दो-तिहाई भाग पर फैली हुई हैं और प्राचीन भूखंड का आधार बनाती हैं।
  • पुराण कल्प (Purana): इसमें कुडप्पा और विन्ध्य शैल समूह शामिल हैं, जो प्राचीन भूखंड के किनारे या भीतर संग्रहीत अवसादों से बने हैं। इनका निर्माण प्रिकैम्ब्रियन काल (लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व) में हुआ।
  • द्राविड़ कल्प (Dravidian): इसका विस्तार कैम्ब्रियन से मध्य कार्बनी कालों तक (लगभग 541 से 323 मिलियन वर्ष पूर्व) फैला है। इस अवधि में समुद्री अवसादों का जमाव हुआ, जिससे चूनेदार और बालुकामय चट्टानों का निर्माण हुआ।
  • आर्य कल्प (Aryan): यह ऊपरी कार्बनी से नूतन काल (लगभग 323 मिलियन वर्ष पूर्व से वर्तमान) तक फैला है। इसमें गोंडवाना शैल समूह और दकन ट्रैप शामिल हैं, जिनसे प्रायद्वीपीय भारत के शेष एक-तिहाई क्षेत्र का निर्माण हुआ है।

भारत की प्रमुख भूवैज्ञानिक घटनाएँ और उनका प्रभाव

  • हिमालय का निर्माण: हिमालय के वलन और उत्थान की प्रक्रिया मध्य-मध्यनूतन (लगभग 14 मिलियन वर्ष पूर्व) से अभिनूतन काल (लगभग 7.5 लाख वर्ष पूर्व) तक जारी रही। यह प्रक्रिया भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट से टकराने के कारण हुई, जिससे टेथीज सागर के अवसाद वलित होकर हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ।
  • सिन्धु-गंगा मैदान का निर्माण: अतिनूतन से नूतन काल (लगभग 5 मिलियन वर्ष पूर्व से वर्तमान) के दौरान हिमानी और नदीय अवसादों के निक्षेपण से सिन्धु-गंगा मैदान का निर्माण हुआ, जो आज भारत का प्रमुख कृषि क्षेत्र है।
  • गोंडवाना शैल समूह और कोयला भंडार: गोंडवाना शैल समूह का निर्माण पर्मी-कार्बनी हिमयुग (लगभग 270 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान हुआ, जब हिमानियों और नदियों द्वारा संग्रहीत अवसादों का जमाव हुआ। इन शैलों में भारत का लगभग 95% कोयला भंडार पाया जाता है, जो देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत की भूवैज्ञानिक संरचनात्मक इकाइयाँ

भारत के भूगर्भीय इतिहास (Geological History of India) के आधार पर, इसे तीन प्रमुख संरचनात्मक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है:

  • प्रायद्वीपीय खंड: इसमें श्रीलंका सहित प्रायद्वीपीय भारत का त्रिभुजाकार पठारी क्षेत्र शामिल है, जो स्थिर और प्राचीन शिलाओं से बना है।
  • नवीन वलित पर्वतीय मेखला: इसमें हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र शामिल है, जो भारत की पश्चिमी, उत्तरी, और पूर्वी सीमाओं का निर्माण करता है।
  • सिन्धु-गंगा गर्त: यह पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, और असम का मैदानी क्षेत्र है, जो प्रथमोक्त दो विभागों को अलग करता है।

निष्कर्ष

भारत का भूवैज्ञानिक इतिहास (Geological History of India) अत्यंत जटिल और विविधतापूर्ण है, जिसमें प्राचीन शिलाओं के निर्माण से लेकर वर्तमान जलोढ़ अवसादों के जमाने तक की घटनाएँ शामिल हैं। इस इतिहास को समझना हमें न केवल पृथ्वी के विकास की प्रक्रिया की जानकारी देता है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होता है।

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