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नदी अपरदन के रूप (Form of River Erosion)

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इस लेख के माध्यम से हम नदी अपरदन के विभिन्न रूपों जैसे घोलीकरण, अपघर्षण, जलगति क्रिया सन्निधर्षण आदि का वर्णन करेंगे।

नदी द्वारा अपरदन कार्य रासायनिक व यांत्रिक अपरदन  रूप किया जाता है। रसायनिक अपरदन के रूप में नदियाँ घोलीकरण द्वारा अपरदन करती हैं तथा यांत्रिक अपरदन में, अपघर्षण (corrasion or abrasion), जलगति क्रिया (hydraulic action) तथा सन्निधर्षण (attrition) क्रियाओं द्वारा यह कार्य सम्पन्न होता है। इन सबमें यांत्रिक अपरदन सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। आइए अब उपरोक्त नदी अपरदन के रूपों का वर्णन करें। 

नदी अपरदन के रूप (Form of River Erosion)

घोलीकरण या संक्षारण (solution or corrosion)

नदी के बहते हुए जल के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के घुलनशील पदार्थ कार्बोनेशन की क्रिया द्वारा पानी में घुलकर चट्टान से अलग हो जाते हैं तथा जल के साथ बहने लग जाते हैं। भूमिगत जल द्वारा भी चट्टान से घुलनशील पदार्थ अलग हो जाते हैं तथा जलस्रोतों द्वारा धरातल पर आकर नदी से मिल जाते हैं। घोलन की क्रिया द्वारा प्राप्त पदार्थों की मात्रा निश्चय ही अधिक होती है। 

मरे महोदय के अनुसार नदी के प्रत्येक घनमील जल में लगभग 7,62,587 टन खनिज पदार्थ होते हैं तथा इसका आधा भाग कैलशियम कार्बोनेट होता है । उनकी बात को सत्य मान लिया जाए तो धरातल पर बहने वाली  सभी नदियों द्वारा सागर में लाए गए घुलनशील पदार्थों की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है। यह माना जाता है कि सामन्यतया हरवर्ष समस्त भूपटल की नदियों द्वारा 6500 घनमील जल सागर तक ले जाया जाता है। 

उपरोक्त गणना के आधार पर प्रतिवर्ष लगभग 5,000,000,000 टन खनिज पदार्थ घोलीकरण की क्रिया से प्राप्त होता है तथा घोल के रूप में यह सागर तक पहुँचता है। 

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अपघर्षण (corrasion or abrasion) 

नदी के साथ कंकड़, पत्थर आदि भी नदी के भार के रूप में बहते चलते हैं। इन पदार्थों के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के घर्षण तथा टूट-फूट की क्रिया को ‘अपघर्षण की क्रिया’ कहते हैं। अपघर्षण की मात्रा तथा रूप, नदी जल के साथ बहने वाले चट्टानी टुकड़ों व अवसाद के गुणों पर आधारित होता है। इनमें गोलाश्म (boulder), कंकड़, पत्थर के टुकड़े सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इन पदार्थों को ‘छेदन यंत्र’ (drilling tools) कहते हैं जो कि नदी की घाटी में लम्बवत् (नदी की तली का) तथा क्षैतिज (पार्श्व या किनारें का) कटाव करते हैं। 

एक तो चट्टानी टुकड़े व अवसाद जल के साथ मिलकर नदी की घाटी के दोनों पार्श्वों को कुरेदकर तथा रगड़-रगड़ कर घिसते रहते हैं। इस क्रिया को ‘क्षैतिज अपघर्षण’ कहते हैं। इस प्रकार क्षैतिज अपघर्षण से नदी के किनारे कट कर चौड़े होते हैं। अतः अपरदन का यह रूप नदी की घाटी को चौड़ा करता है। वैसे तो क्षैतिज अपघर्षण नदी के प्रत्येक भाग में सक्रिय होता है लेकिन प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में यह अपरदन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। यहाँ पर इसे पार्श्ववर्ती या क्षैतिज अपरदन कहते हैं। 

दूसरे रूप में चट्टानों के टुकड़े नदी की तली में घर्षण द्वारा काट-छाँट करके उसे गहरा करते हैं । इस क्रिया को ‘लम्बवत् अपघर्षण’ (vertical abrasion) कहते हैं। नदी के तली में भँवर के साथ पत्थर के नुकीले टुकड़े ड्रिल मशीन की तरह घुमावदार छेद करते रहते हैं, जिससे संकरे परन्तु गहरे गर्त या गड्डे का निर्माण होता है। इसे जलगर्तिका (pot holes) कहते हैं। अपघर्षण की इस क्रिया द्वारा नदी की घाटी गहरी होती है। लम्बवत् अपघर्षण नदी की तरुणावस्था में सबसे अधिक होता है। 

सन्निघर्षण (attrition) 

नदी के साथ बहने वाले  कंकड़-पत्थर, आदि अपरदन कार्य दो रूपों में करते हैं। एक तो ये नदी की घाटी के किनारे तथा तली का घर्षण करते हैं। जिनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। दूसरे रूप में ये टुकड़े आपस में भी  टकराते रहते हैं, जिससे उनमें टूट-फूट होती रहती है। इस तरह टुकड़ों की आपस में रगड़ तथा घर्षण द्वारा टूटने की क्रिया को ‘सन्निघर्षण’ कहते हैं। इस क्रिया द्वारा टुकड़े टूटकर छोटे तथा महीन होते रहते हैं। मुख्य रूप से टुकड़ों का आकार गोल हो जाता है । सन्निघर्षण द्वारा कंकड़ अत्यधिक महीन तथा बारीक हो जाते हैं, जिनका परिवहन आसानी से हो जाता है। 

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जलगति क्रिया (hydraulic action) 

इस क्रिया द्वारा किए जाने वाले अपरदन में केवल जल का ही सहयोग होता है, अन्य साधनों का नहीं। बिना कंकड़-पत्थर आदि की सहायता के तथा बिना रासायनिक क्रिया के जल यांत्रिक ढंग से मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के कणों को धक्के द्वारा ढीला तथा कमजोर बनाकर तथा उन्हें चट्टान से अलग करके अपने साथ लेकर बहता है। इस क्रिया में जल का वेग अधिक महत्वपूर्ण होता है । 

उपरोक्त नदी अपरदन के चार प्रकार प्रायः एक दूसरे से गहन रूप में सम्बन्धित होते हैं। उदाहरण के लिए हाइड्रेशन की क्रिया से चट्टानों के कण कमजोर हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप अपघर्षण द्वारा उनका टूटना आसान हो जाता है। नदी के अपरदन में नदी की घाटी के किनारे का ढाल भी अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि ढाल तीव्र होता है तो गुरुत्व के कारण भूमि स्खलन (land sliding), अवपात (slumping), भूमि सर्पण (soil and land creep) आदि द्वारा घाटी के कगार सरक कर नीचे आते रहते हैं । इस तरह अपक्षय (weathering) तथा द्रव्यमान स्थानान्तरण (mass translocation) भी अपरदन में सहायक होते हैं ।

नदी के विभिन्न भागों के अनुसार अपरदन को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) पार्श्व अपरदन

(ii) लम्बवत् अपरदन

(iii) शीर्ष अपरदन

(iv) मुख अपरदन

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