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भूसंचलन (Earth Movements): परिचय
यदि हम सम्पूर्ण पृथ्वी पर नजर डालें तो पाएंगे कि पृथ्वी का धरातल एक समान नहीं है। कहीं तो ऊँचे-2 पहाड़ हैं, कहीं समतल मैदान, कहीं सपाट शीर्ष वाले पठार व कहीं गहरी खाइयाँ और ये उच्चावच भी स्थिर नहीं हैं। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो इनमे भी समय के साथ बदलाव आता रहता है। इन उच्चावचों (पर्वत, पठार, मैदान आदि ) में परिवर्तन दो तरह के होते हैं
1. दीर्घकालिक तथा
2. आकस्मिक (अल्पकालिक)
दीर्घकालिक परिवर्तन इतनी मन्द गति से होते हैं कि मनुष्य को उसका आभास नहीं हो पाता है । जैसे पर्वतों का निर्माण। इसके ठीक विपरीत आकस्मिक परिवर्तन कुछ सेकेण्ड या मिनट में ही हो जाते हैं, परिणामस्वरूप मनुष्य उसका आभास शीघ्र पा लेता है । ज्वालामुखी तथा भूकम्प इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
अन्तर्जात बल एवं बहिर्जात बल का अर्थ
अब बात करें धरातल पर परिवर्तन लाने वाले बलों की तो इन बलों के दो प्रमुख स्रोत हैं। एक वो बल जिनकी उत्पत्ति पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होती हैं जिन्हें अन्तर्जात बल कहा जाता हैं। इन्हीं बलों द्वारा धरातल पर असमानताओं का जन्म होता है। जैसे प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियों द्वारा पर्वत, पठार, रिफ्ट घाटियाँ आदि का निर्माण होना।
दूसरे वो बल जिनकी उत्पत्ति पृथ्वी की सतह पर होती है जिन्हें बहिर्जात बल कहते हैं। ये बल पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा धरातल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने में सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। जैसे पवन, बहते हुए जल की अपरदन प्रक्रिया द्वारा पर्वत आदि को काटकर समतल करने का प्रयास लगातार चलता रहता है। निक्षेप प्रक्रिया द्वारा धरातल पर गहरे भागों को अवसाद द्वारा भरने का कार्य किया जाता है। अत: अन्तर्जात बलों द्वारा धरातल की विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
ये भी पढ़ें 1.पर्वतीय संचलन 2.वलन के प्रकार |
प्रस्तुत लेख में हम केवल अन्तर्जात बलों की ही चर्चा करेंगे।
अन्तर्जात बल (Endogenetic Force)
जैसा की हम जन चुके हैं कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उठने वाले बलों को अन्तर्जात बल कहा जाता है। इन बलों के कारण पृथ्वी में दो तरह के संचलन (movements) उत्पन्न होते हैं –
1. क्षैतिज संचलन (horizontal movement)
2. लम्बवत् संचलन (vertical movement)
पृथ्वी पर इन्हीं संचलनों द्वारा अनेक विषमताओं अर्थात् तरह-तरह के उच्चावचों (पर्वत, पठार, मैदान, भ्रंशन आदि) का जन्म होता है। अन्तर्जात बलों के उत्पन्न होने की क्रिया तथा कारणों के बारे में हमें कम जानकारी प्राप्त है, क्योंकि इनका सम्बन्ध भूगर्भ से है। सामान्य रूप में अन्तर्जात बलों की उत्पत्ति के सम्भावित कारणों में पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापीय विषमता तथा शैलों का सिकुड़ना तथा फैलना ही सत्य के अधिक करीब लगता है।
शैलों में संकुचन प्राय: भूगर्भ में तापमान में अंतर के कारण ही होता है। तापमान में अंतर के कारण चट्टानों में फैलाव तथा संकुचन के कारण, उनमें स्थानान्तरण (displacement) तथा समायोजन (adjustment) मंद गति व कभी-कभी तेज गति से होता है । इस प्रकार तीव्रता के आधार पर अन्तर्जात बलों को दो भागों में विभाजित किया जाता है:
तीव्रता के आधार पर अन्तर्जात बलों का विभाजन
1. आकस्मिक संचलन (sudden movement)
2. पटल विरूपणी संचलन (diastrophic movement)
(1) आकस्मिक संचलन (sudden movement)
आकस्मिक संचलन में अन्तर्जात बलों के द्वारा धरातल पर अचानक या तीव्र गति से होने वाले परिवर्तन देखने को मिलते हैं। आकस्मिक संचलन के प्रमुख कारण भूकम्प तथा ज्वालामुखी क्रियाएं हैं। ज्वालामुखी के विस्फोट द्वारा अचानक भारी परिवर्तन हो जाते हैं।
लावा धरातल के नीचे क्षैतिज या लम्बवत दरारों या अन्य खाली जगहों में सिल, डाइक, बैथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ आदि के रूप में जमा हो जाता है। धरातल के ऊपर लावा के प्रवाह से लावा पठार, लावा मैदान, विभिन्न प्रकार के शंकुओं आदि का निर्माण होता है। भूकम्प के कारण कुछ क्षणों के अन्दर ही भूतल पर झील, सागर, आदि का निर्माण हो जाता है।
इनको भी देखें 1. भ्रंश एवं संबंधित शब्दावली 2. विश्व के प्रमुख मैदान |
(2) पटलविरूपणी संचलन (diastrophic movement)
पटलविरूपणी संचलन में अन्तर्जात बल मन्द गति से कार्य करते हैं तथा इनका प्रभाव हजारों वर्षों बाद देखने को मिलता है तथा वृहदकार स्थलरूपों का निर्माण होता है। पटलविरूपणी संचलन में पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न होने वाली लम्बवत् व क्षैतिज दोनों तरह की गतियों को शामिल किया जाता है। क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से पटलविरूपणी संचलन को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से पटलविरूपणी के प्रकार
(अ) महादेशीय संचलन (epeirogenetic movement)
(ब) पर्वत निर्माणकारी संचलन (orogenetic movement)
(अ) महादेशीय संचलन (epeirogenetic movement)
‘Epeirogenetic’ शब्द ग्रीक भाषा के ‘एपीरोज’ (epeiros), जिसका शाब्दिक अर्थ ‘महाद्वीप’ होता हैं तथा ‘जेनेसिस’ (genesis) जिसका अर्थ ‘उत्पत्ति’ होता है, दो शब्दों से मिलकर बना है। अत: महादेशीय संचलनों का संबंध महाद्वीपों की उत्पत्ति से है। इस संचलनों के कारण महाद्वीपों में उत्थान तथा अवतलन; व निर्गमन तथा निमज्जन की क्रियाएँ होती हैं। ये दोनों ही क्रियाएँ लम्बवत् संचलन से संबंधित हैं। दिशा के आधार पर इन्हें पुनः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
दिशा के आधार पर महादेशीय संचलन के प्रकार
(i) उपरिमुखी संचलन (upward movement)
(ii) अधोमुखी संचलन (downward movement)
(i) उपरिमुखी संचलन (upward movement)
उपरिमुखी संचलन (धरातल की लम्बवत दिशा में ऊपर की ओर) के कारण महाद्वीपों में दो तरह के उत्थान होते हैं। प्रथम वर्ग में महाद्वीपीय भाग या उनका कोई भाग अपनी नजदीकी सतह से ऊँचा उठ जाता है । इसे उत्थान (upliftment) या उभार कहते हैं। दूसरे वर्ग में महाद्वीप का तटीय भाग सागरतल के सापेक्ष (जो पहले जलमग्न था ) ऊपर उठ जाता है। इसे निर्गमन (emergence) कहते हैं ।
(ii) अधोमुखी संचलन (downward movement)
अधोमुखी संचलन (धरातल की लम्बवत दिशा में नीचे की ओर) के कारण महाद्वीपीय भाग में दो तरह के धँसाव होते हैं। प्रथम भाग में स्थल का भाग स्थानीय या प्रादेशिक रूप में अपनी नजदीकी सतह से नीचे धँस जाता है। इस क्रिया को अवतलन कहते हैं।
दूसरे रूप में स्थलखण्ड सागर तल से नीचे चला जाता है तथा जलमग्न हो जाता है। इस क्रिया को निमज्जन (submergence) कहते हैं। यहां देखने योग्य बात यह है कि अवतलन की क्रिया तटीय भाग या महाद्वीप के बीच कहीं हो सकती है, परन्तु निमज्जन की क्रिया तटीय भागों या सागरीय भागों में ही होती है।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविंद्र सिंह
- भूआकृतिक विज्ञान, बी. सी. जाट
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