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विभिन्न धर्मों के अनुसार पृथ्वी की आयु

पृथ्वी की उत्पत्ति और उसकी आयु हमेशा से जिज्ञासा और विवाद का विषय रही है। वैज्ञानिक और धार्मिक विचारधाराओं ने पृथ्वी की आयु का अनुमान लगाने के अपने-अपने प्रयास किए हैं। हालांकि, धार्मिक दृष्टिकोणों में इन अनुमानों को तर्क और प्रमाण से सिद्ध करना कठिन होता है। इस लेख में हम विभिन्न धर्मों के मतों के आधार पर पृथ्वी की आयु के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

पृथ्वी की आयु जानने में कठिनाई

पृथ्वी की आयु का सही-सही अनुमान लगाना कठिन है क्योंकि इस क्षेत्र में प्रमाणों की कमी है। भूगर्भिक प्रक्रियाएँ बेहद धीमी गति से होती हैं, जिन्हें मानव अपने जीवनकाल में प्रत्यक्ष रूप से देख नहीं सकता। भूगर्भशास्त्री जेम्स हटन (James Hutton) ने 1785 में इस मत का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी के ऊपर परिवर्तन होते रहते हैं, परन्तु इन परिवर्तनों में इतना अधिक समय लग जाता है कि मानव के लिए उन परिवर्तनों की तिथि का ज्ञान करना असम्भव हो जाता है। 

इस प्रकार पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में किसी तथ्य का पता लगाना व्यर्थ है, क्योंकि ‘न भूत का लक्षण है न अन्त की कोई आशा है’- “No vestige of a beginning, no prospect of an end.” 

विभिन्न धर्मों के मत

1. ईरान के विद्वानों का मत

ईरान के धार्मिक विद्वानों ने माना कि पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 1200 वर्ष पहले हुई। हालांकि, यह मत सर्वथा असत्य प्रतीत होता है क्योंकि कई ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं जो इससे कहीं अधिक प्राचीन हैं।

2. भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार

भारतीय विद्वानों ने पृथ्वी की आयु लगभग 2,00,00,00,000 वर्ष मानी है।

  • भारतीय कर्मकाण्ड में यह उद्धरण मिलता है:
    ‘ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्ठाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे।’
  • इस गणना के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 1,97,29,49,032 वर्ष होती है।
  • यह गणना यद्यपि अनुमानित है, लेकिन वैज्ञानिक अनुमानों से मेल खाती है।

3. ईसाई धर्म के अनुसार

ईसाई धर्म के एक पादरी अशर (Usher) ने 17वीं शताब्दी में पृथ्वी की उत्पत्ति का अनुमान प्रस्तुत किया।

  • उनकी पुस्तक “The Annals of the World” के अनुसार:
    • पृथ्वी की उत्पत्ति 4004 ईसा पूर्व, 2 अक्टूबर, प्रातः 7 बजे हुई।
  • यह अनुमान पृथ्वी की आयु को बहुत छोटा दर्शाता है और असत्य प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

धार्मिक मतों के आधार पर पृथ्वी की आयु का अनुमान तर्क और वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में स्वीकार्य नहीं है। ये मत अधिकतर कल्पनाओं पर आधारित हैं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सत्य प्रतीत नहीं होते। फिर भी, विभिन्न धर्मों के ये विचार हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को समझने में मदद करते हैं।

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