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इस लेख को पढ़ने के बाद आप नदी के निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River) से उत्पन्न विभिन्न स्थलरूपों की पहचान कर पाएंगे।
नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)
यदि नदी का अपरदन कार्य विनाशी होता है तो निक्षेप कार्य रचनात्मक होता है। अपरदन के समय नदियाँ स्थलखण्ड को काटकर, घिसकर या चिकना बनाकर विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण करती हैं। इसके विपरीत निक्षेपण कार्य में तरह-तरह के मलवा अथवा अवसाद को विभिन्न रूपों में जमा करके विचित्र स्थलरूपों की रचना करती हैं।
भूआकृति विज्ञान में अपरदन से उत्पन्न स्थलरूपों को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है, क्योंकि ये स्थल की सामान्य सतह से ऊँचे होते हैं तथा आसानी से देखे जा सकते हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि निक्षेपण कार्य नगण्य होता है। निक्षेपात्मक स्थलरूप भी मानव के लिए अत्यधिक आर्थिक महत्व वाले होते हैं।
उदाहरण के लिए डेल्टा आदि कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होते हैं। बाढ़ के समय बिछायी गई जलोढ़ मिट्टियाँ कृषि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं। निक्षेप द्वारा उत्पन्न स्थलरूपों की व्याख्या के पहले निक्षेप के कारण, निक्षेप के उचित स्थान आदि का उल्लेख करना आवश्यक है।
नदी निक्षेप के कारण
नदी के वेग में कमी होना
वेग में कमी कई कारणों से होती है, जिनको नीचे बताया गया है –
नदी के जलमार्ग ढाल का कम होना
जलमार्ग ढाल में कमी के कारण नदी की जल प्रवाह गति में निश्चय ही कमी आ जाती है। जलमार्ग ढाल में कमी के कई कारण होते हैं। उदाहरण के लिए-
- पटल विरूपण (diastrophism) के कारण नदी के मार्ग में स्थल का नीचा होना या उसका एक तरफ झुक जाना।
- मुख्य नदी के डेल्टा में विस्तार होना।
- नदी का ऊपरी भाग से नीचे की ओर कम ढाल वाले क्षेत्रों में पहुंचना।
- नदी के मार्ग में अधिक घुमाव का होना।
- अधिक अपरदन के कारण नदी का क्रमबद्ध अवस्था की ओर पदार्पण।
नदी के जल में अधिक विस्तार होना
जब नदी का जल अधिक दूरी में फैलकर प्रवाहित होता है तो निश्चय ही में नदी का वेग कम हो जाता है। संकरे मार्ग से प्रवाहित होने वाले जल का वेग अधिक होता है परन्तु जब वही जल अधिक विस्तृत भाग पर फैलकर बहता है तो नदी का वेग कम होता है। नदी के जल का विस्तृत होना कई बातों पर आधारित होता है-
- जब नदी पर्वतीय भाग से उतर कर निचले भाग में आती है तो ढाल में कमी के कारण जल अधिक दूरी में फैल जाता है।
- बाढ़ के समय जल नदी के किनारों के ऊपर से होकर विस्तृत भागों में फैल जाता है।
नदी के मार्ग में अवरोध पैदा होना
जब नदी के मार्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है तो नदी का वेग कम हो जाता है। यह अवरोध कई रूपों में होता है। उदाहरण के लिए –
- भूमिस्खलन (landslide) के कारण चट्टानों का भाग खिसक कर नदी के मार्ग में आकर बाँध के रूप में अस्थायी अवरोध उत्पन्न कर देता है।
- कभी-कभी नदियों के मार्ग में बालुका स्तूपों (sand dunes) के निर्माण से अवरोध होता है।
- नदी के साथ बहते हुए लकड़ी के टुकड़े जब नदी की प्रवाह दिशा की आड़ी दिशा (transverse) में हो जाते हैं तो मार्ग में साधारण अवरोध हो जाता है।
- अचानक अधिक निक्षेपण से भी प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है आदि।
नदी के जल के आयतन में कमी होना
जब अचानक या धीरे-धीरे नदी के जल की आपूर्ति कम हो जाती है तो आयतन में कमी आ जाने से नदी का वेग कम हो जाता है। यह सामान्य तथ्य है कि अधिक आयतन वाली नदी, तीव्र ढाल के साथ तीव्र वेग वाली होती है। नदी के आयतन में कमी अग्रलिखित कारणों से होती है-
- जलवायु में परिवर्तन के कारण वर्षा में कमी के कारण वाहीजल (runoff) में कमी।
- शुष्क भागों में वाष्पीकरण द्वारा जल का विनाश।
- निस्पन्दन (seepage- जल का नीचे रिसना) के कारण नदी के जल में ह्रास।
- सरिता अपहरण द्वारा नदी की सहायक नदियों के जल का अपहरणकर्ता नदी में चला जाना या मुख्य नदी के कुछ भाग का अपहरणकर्ता नदी में मिल जाना।
- मानव द्वारा नहर आदि के लिए नदी के जल का बड़े पैमाने में उपयोग।
- मुख्य नदी की मुख्य जलधारा का कई जलधाराओं में बंट जाने के कारण प्रत्येक जलधारा के आयतन में कमी।
- बाढ़ के चले जाने पर जल के आयतन में अस्थायी कमी होना।
नदी में बोझ (अवसाद भार) की वृद्धि
जब नदी में परिवहन किए जाने वाले पदार्थों की मात्रा, नदी के परिवहन सामर्थ्य से अधिक हो जाती है तो नदी को अतिभारित नदी (overloaded stream) कहते हैं। ऐसी अवस्था में नदी अपने अतिरिक्त पदार्थों का निक्षेपण करना प्रारम्भ कर देती है। नदी के भार में वृद्धि अग्रलिखित रूपों में होती है-
- नदी के शीर्ष भाग में अपरदन के कारण निचले भाग ही में भार की वृद्धि।
- हिमानी जलोढ़ (glacio-fluvial) द्वारा नदी के भार में वृद्धि। जब हिमानी पिघल जाता है तो उसके अपरदन द्वारा प्राप्त मलवे को हिमानी जलोढ़ कहते हैं।
- मुख्य नदी की सहायक नदियों द्वारा अत्यधिक मलवे का लाया जाना।
- वनस्पति आवरण में कमी के कारण नदी के मार्ग में अधिक अपरदन द्वारा मलवा का आना। प्रायः ऐसा होता है कि उच्च ढाल से आने वाली नदियाँ अपने साथ इतना अधिक मलवा ला देती हैं कि नदी उसे ढोने में समर्थ नहीं हो पाती है। फलस्वरूप मुख्य नदी द्वारा अतिरिकत पदार्थों का निक्षेपण प्रारम्भ हो जाता है।
नदी के निक्षेपण कार्य द्वारा उत्पन्न स्थलरूप
नदी के निक्षेप द्वारा विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है, जिन्हें रचनात्मक स्थलरूप कहते हैं। प्रमुख निक्षेपात्मक स्थलरूप निम्नलिखित हैं-
1. जलोढ़ पंख (alluvial fans)
2. जलोढ़ शंकु (alluvial cones)
3. प्राकृतिक तटबन्ध (natural levees) या प्राकृतिक बांध (natural embankment)
4. बाढ़ का मैदान (flood plains)
5. डेल्टा (delta)
जलोढ़ पंख (alluvial fans)
जलोढ़ पंख नदी द्वारा रचनात्मक स्थलरूपों में महत्वपूर्ण होता है तथा नदी की तरुणावस्था के अन्तिम तथा प्रौढ़ावस्था के प्रथम चरण का परिचायक होता है। जब नदियां अधिक बोझ के साथ पर्वतीय भागों को छोड़कर समतल भागों में प्रवेश करती है तो ढाल में कमी के कारण उनके वेग में अचानक कमी आ जाती है।
अत: नदी अपने साथ लाए चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़ों से लेकर बारीक टुकड़ों को पर्वतीय ढाल के पास अर्धवृत्ताकार रूप में जमा कर देती है, जिसे जलोढ़ पंख कहा जाता है। जलोढ़ पंख की रचना इस प्रकार होती है कि उसके किनारे वाले भाग में बारीक कणों का तथा पर्वतीय ढाल के पास बड़े-2 चट्टानी टुकड़ों का जमाव होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नदी के वेग में अचानक से कमी होने पर उसकी परिवहन क्षमता कम हो जाती है, जिससे वह बड़े चट्टानी टुकड़ों को पहले जमा करती है तथा बारीक़ कणों को बाद में छोडती है।
जलोढ़ शंकु (alluvial cones)
सामान्य रूप में तो जलोढ़ पंख तथा जलोढ़ शंकु एक ही होते हैं, लेकिन फिर भी इनमें थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिलता है जो इस प्रकार है
- जलोढ़ शंकु की अपेक्षा जलोढ़ पंख का ढाल मंद होता है।
- जलोढ़ शंकु का निर्माण ऐसे इलाकों में होता है जहां पर नदियां तीव्र पर्वतीय ढाल वाले इलाकों से होकर नीचे उतरती है। ऐसी स्थिति में जमा होने वाला मलबा अधिक दूर तक नहीं फैलता, जिससे तीव्र ढाल वाले जलोढ़ शंकु का निर्माण होता है।
- जलोढ़ शंकु के निर्माण के लिए कम जल तथा अधिक मलबे की आवश्यकता होती है।
प्राकृतिक तटबन्ध (natural levees)
नदी के दोनों ओर किनारों पर मिट्टियों के जमाव द्वारा बने लंबे-लंबे बंधों को, जो दिखने में कम ऊंचाई वाले कटक के समान होते हैं, तटबंध कहलाते है। क्योंकि यह बंध प्रकृति द्वारा ही बनाए जाते हैं तथा इसे बाढ़ के समय हमारी सुरक्षा भी होती है, जिसके कारण इनको प्राकृतिक तटबन्ध (natural levees) कहा जाता है।
प्राकृतिक तटबन्ध (natural levees) का निर्माण नदी के निक्षेप के कारण ही होता है तथा इनकी उत्पत्ति बहुत ही सरल है। जब कभी बाढ़ के समय नदी अपने किनारो को पार कर लेती है, तो उसका जल फैल कर दूर-दूर तक जाने लगता है। जिसके कारण नदी के वेग में कमी हो जाती है तथा नदी अपने साथ लाए मलबे का निक्षेप करने लगती है। नदी के द्वारा नदी के दोनों किनारों पर निक्षेप के द्वारा बनने वाले कम ऊंचाई वाले लंबे-लंबे कटकों को ही प्राकृतिक तटबन्ध (natural levees) कहा जाता है।
बाढ़ का मैदान (flood plains)
जब कभी अधिक बरसात होने पर या अन्य किसी कारण से नदी में जल की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। तब जल नदी के किनारो को तोड़कर आसपास के क्षेत्र में फैल जाता है। इस प्रक्रिया में नदी के वेग में कमी आ जाती है तथा वह अपने साथ लाए बारीक चट्टानी कणों को आसपास के निचले क्षेत्रों में जमा कर देती है। यह प्रक्रिया साल दर साल होने से नदी के आसपास का क्षेत्र कुछ विषमताओं के साथ लगभग समतल मैदान में परिवर्तित हो जाता है,जिस नदी बाढ़ का मैदान कहा जाता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं बाढ़ का मैदान नदी के आसपास का क्षेत्र है, जहां तक नदी का जल बाढ़ के समय पहुंचता है।
डेल्टा (delta)
डेल्टा नदी द्वारा निर्मित रचनात्मक स्थलरूपों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। प्रत्येक नदी जब कभी सागर या झील में गिरती है, तो उसके मार्ग में अवरोध एवं वेग में कमी होने से मलबे अथवा अवसाद का जमाव होने लगता है। जिससे एक विशेष प्रकार की स्थलरूप की रचना होती है, डेल्टा कहा जाता है। इस डेल्टा का नाम ग्रीक अक्षर (Δ) डेल्टा के आधार पर किया गया है। क्योंकि इस स्थलरुप का आकार प्राय: (Δ) डेल्टा से मिलता है। सबसे पहले (Δ) डेल्टा शब्द का उपयोगनील नदी के मुहाने पर हुए निक्षेपात्मक स्थलरुप के लिए हेराडोट्स ने किया था। उसके बाद सभी नदियों के मुहाने बनने वाले ऐसे स्थाल्रोपो के लिए इस शब्द का उपयोग किया जाने लगा।
FAQs
जलोढ़ पंख अर्धवृत्ताकार स्थलरूप होते हैं जो तब बनते हैं जब नदियाँ पर्वतीय भाग से निकलकर समतल भाग में प्रवेश करती हैं। यहाँ पर नदी के वेग में कमी होने से यह अपने साथ लाए गए चट्टानों के टुकड़े और बारीक कणों को जमा कर देती है। जलोढ़ पंख का ढाल सामान्यतः मंद होता है।
डेल्टा नदी के मुहाने पर बनने वाला एक स्थलरूप है, जो नदी के मलबे के जमा होने से बनता है। जब नदी समुद्र या झील में गिरती है, तो इसके वेग में कमी आने से मलबा जमा हो जाता है, जिससे डेल्टा का निर्माण होता है। इसका आकार अक्सर त्रिकोणीय होता है, जिसे ग्रीक अक्षर Δ (डेल्टा) से जोड़ा जाता है।
प्राकृतिक तटबंध नदी के किनारों पर बने मिट्टी के जमाव होते हैं, जो नदी के दोनों ओर लंबी पट्टियों के रूप में दिखते हैं। ये तटबंध बाढ़ के समय नदी के जल के फैलाव से बनते हैं और जलधाराओं के किनारे पर अवसाद के जमा होने से उत्पन्न होते हैं।
जलोढ़ शंकु और जलोढ़ पंख दोनों ही निक्षेपात्मक स्थलरूप होते हैं, लेकिन जलोढ़ शंकु का ढाल तीव्र होता है और यह अधिक संकरे क्षेत्रों में बनता है, जबकि जलोढ़ पंख का ढाल मंद होता है और यह व्यापक क्षेत्रों में फैलता है। जलोढ़ शंकु आमतौर पर कम जल और अधिक मलबे के साथ बनता है।
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