Search
Close this search box.

Share

पोषण स्तर एवं आहार श्रृंखला (Trophic Level and Food Chain)

किसी भी इकोतंत्र में उसका वनस्पति संघटक प्राथमिक उत्पादक (Primary Producer) कहलाता है, जिसका उपभोग शाकाहारी (Herbivores) प्राणियों द्वारा किया जाता है। अपने आहार हेतु केवल जीव-जन्तुओं पर जीवित रहने वाले प्राणियों को मांसाहारी (Carnivores) कहा जाता है। वनस्पति और जन्तुओं दोनों से आहार प्राप्त करने वाले प्राणियों को सर्वाहारी (Omnivores) कहते हैं; मनुष्य को इसी श्रेणी में रखा जाता है। 

पोषण स्तर एवं आहार श्रृंखला (Trophic Level and Food Chain)

इकोतंत्र में आहार पोषण प्रक्रिया (Feeding Process) क्रमानुसार घटित होती है। आहार ऊर्जा एक वर्ग से दूसरे वर्ग में स्थानान्तरित होती रहती है । इन्हीं वर्गों को पोषण स्तर ( Trophic Level) कहा जाता है तथा दो जैव वर्गों के मध्य आहार ऊर्जा के प्रवाह को आहार श्रृंखला (Food Chain) कहा जाता है। आहार श्रृंखला में सामान्यतया चार पोषण स्तर होते हैं- 

पोषण स्तर (Trophic Levels)

प्रथम पोषण स्तर (First Order Trophic Level)

आहार, ऊर्जा श्रृंखला के प्रथम पोषण स्तर (First Order Trophic Level) के अंतर्गत पेड़-पौधों को शामिल किया जाता है। प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा पौधे स्वयं अपना भोजन बनाते हैं। इसलिए पौधों को स्वपोषित (Phototrophs) कहते हैं। दूसरे वर्ग के लिए पौधों द्वारा आहार ऊर्जा पैदा की जाती है, इसलिए इन्हें प्राथमिक उत्पादक भी कहा जाता है ।

द्वितीय पोषण स्तर (Second Order Trophic Level)

प्रथम पोषण स्तर पर निर्भर रहने वाले शाकाहारी (herbivores) जीव इसके अंतर्गत आते हैं जिन्हें प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers) भी कहते हैं। गाय, भैंस, ऊंट, हाथी, भेड़, बकरी, हिरन, खरगोश आदि द्वितीय पोषण स्तर के जीव हैं।

Trophic Level

तृतीय पोषण स्तर (Third Order Trophic Level)

अपने आहार के लिए द्वितीय पोषण स्तर के जीवों का शिकार करने वाले मांसाहारी जीवों (Carnivores) को इस श्रेणी में गिना जाता है। इनमें मेढक, मछली, मगर आदि जलीय जन्तु तथा शेर, चीता, आदि स्थलीय पशुओं को शामिल किया गया है। 

चतुर्थ पोषण स्तर (Fourth Order Trophic Level)

पहले, दूसरे और तीसरे तीनों पोषण स्तरों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपना आहार ग्रहण करने वाले प्राणियों को चतुर्थ पोषण स्तर में शामिल किया गया है। मनुष्य इसी श्रेणी का प्राणी है जो कि पौधों से शाक-सब्जियाँ, फल, खाद्यान्न तथा अपने पशुओं के लिए घास प्राप्त करता है पशुओं एवं जीवों से मांस, दूध प्राप्त करता है। इस वर्ग का प्राणी सर्वभक्षी (Omnivores) कहा जाता है।

Trophic Level and Food Chain
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा निवेश एवं ऊर्जा ह्रास

उपरोक्त चित्र द्वारा स्पष्ट है कि प्रथम पोषण स्तर में संचित की गई रासायनिक ऊर्जा ऊपर के सभी पोषण स्तरों के प्राणियों के जीवन निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आवश्यक होती है। प्रथम पोषण स्तर की ऊर्जा इकोतंत्र की आधारभूत ऊर्जा होती है। इस पर शाकाहारी, मांसाहारी एवं सर्वाहारी तीनों पोषण स्तरों का भार होता है। अतः प्रथम पोषण स्तर का वृत्त सबसे बड़ा दिखाया गया है और सर्वाहारी स्तर को सबसे छोटे वृत्त द्वारा दिखाया गया है। 

इन चारों पोषण स्तरों के जीवों में आहार ऊर्जा का स्थानांतरण एवं रूपांतरण होता रहता है जिससे ऊर्जा का ह्रास भी होता रहता है। इसी प्रकार चारों पोषण स्तरों से श्वसन-क्रिया द्वारा ऊर्जा का निर्गमन (Output) भी होता रहता है। स्थानांतरण एवं रूपांतरण प्रक्रिया पर ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम तथा श्वसन क्रिया एवं जंतुओं का भ्रमण में निर्गमित ऊर्जा पर ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम लागू होता है। 

प्रथम नियम में ऊर्जा नष्ट नहीं होती, जबकि द्वितीय नियम में ऊर्जा पर्यावरण में निर्गमित होकर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है। इकोतंत्र में रासायनिक अथवा आहार ऊर्जा के विविध पोषण स्तरों में स्थानांतरण एवं निर्गमन पर भण्डारित बायोमास का आकार एवं प्रकार निर्भर करता है। आहार श्रृंखला में प्रथम पोषण स्तर के बाद क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे पोषण स्तरों के प्रजातियों की संख्या घटती जाती है। प्रथम पोषण स्तर के बायोमास का आकार सर्वाधिक बड़ा तथा उसके बाद आकार घटता जाता है। इसी प्रकार प्रथम से अंतिम पोषण स्तर की ओर ऊर्जा की सुलभता भी घटती चली जाती है।

पारिस्थितिक तंत्र में सामान्य ऊर्जा प्रवाह
पारिस्थितिक तंत्र में सामान्य ऊर्जा प्रवाह

चित्र में आयताकार खण्डों द्वारा 1, 2, 3 की संख्या से पोषण स्तर प्रथम (पौधे); पोषण स्तर दो (शाकाहारी) और पोषण स्तर तीन (मांसाहारी) प्रदर्शित किये गए हैं। L = कुल ऊर्जा निवेश (सौर ऊर्जा ), AL = पौधों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा, PG = ऊर्जा, A = शोषण स्तर पर कुल ऊर्जा संग्रह, PN = वास्तविक प्राथमिक ऊर्जा, P = उत्पादन (उपभोक्ता द्वारा), NU = अप्रयुक्त ऊर्जा, NA = उपभोक्ता द्वारा त्याज्य ऊर्जा, कुल प्राथमिक द्वितीय R = श्वसन द्वारा ऊर्जा प्रदर्शित है। 

नीचे मापक पर ओडम के अनुसार औसत ऊर्जा का प्रवाह दिखाया गया है जो प्रतिदिन 3000 Kcal प्रतिवर्ग मीटर सूर्यताप द्वारा प्राप्त होता है एवं पोषण स्तरों में जीवों द्वारा प्रयोग के साथ-साथ घटता चला जाता है। 

चित्र में ऊर्जा के रैखिक प्रवाह का प्रदर्शन किया गया है। जिस प्रकार इकोतंत्र में पोषण स्तर समानाकार नहीं होते, उसी प्रकार ऊर्जा प्रवाह भी हर जगह समान नहीं होता। पोषण स्तर जितने अधिक होंगे, उस इकोतंत्र में ऊर्जा प्रवाह अधिक होगा। पोषण स्तर जितने कम होंगे, ऊर्जा प्रवाह भी कम होगा। जैसे किसी वन इकोतंत्र में कई पोषण स्तर पाये जाते हैं तो वहाँ ऊर्जा प्रवाह भी अधिक पाया जाता है। किसी झील या तालाब इकोतंत्र में कम पोषण स्तर पाये जाते हैं इसलिए वहाँ पर ऊर्जा प्रवाह भी कम लम्बा होगा। 

ऊर्जा एकल रूप में एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में प्रवाहित होती रहती है और अन्ततोगत्वा समाप्त हो जाती है अथवा रूपांतरित हो जाती है अथवा प्रकृति में समाहित हो जाती हैं। .इकोतंत्र में एकल मार्ग द्वारा ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है तथापि यह पोषक तत्वों को चक्रीय व्यवस्था प्रदान करता है। ऊर्जा प्रवाह पदार्थों एवं तत्वों को गति देता है। ऊर्जा प्रवाह में रुकावट आने से इकोतंत्र असंतुलित एवं अव्यवस्थित हो जाता है। 

ऊर्जा के प्रवाह में सामान्यतया उस समय रुकावट आती है जब ऊर्जा ग्रहण करने वाली श्रृंखला की कोई कड़ी दुर्बल हो जाती है। उदाहरणार्थ, जनसंख्या विस्फोट, नगरीयकरण, औद्योगिकीकरण आदि घटनाओं से वनों का विनाश होता है जिससे किसी प्रदेश विशेष के इकोतंत्र का प्रथम पोषक स्तर नष्ट हो जाता है। फलस्वरूप प्राकृतिक ऊर्जा प्रवाह को ग्रहण करने वाली कड़ी आहार श्रृंखला से कट जाती है और उस इकोतंत्र में प्राकृतिक ऊर्जा प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।

इस घटना को हम उस प्रदेश का पारिस्थितिक संकट (Ecological Crisis) कहते हैं। इस संकट का तात्कालिक प्रभाव भले ही कम दिखाई देता हो किंतु इसके दूरगामी परिणाम बहुत भयंकर होते हैं। ओडम के अनुसार सूर्यताप से औसतन प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर 3000 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसमें से 1500 Kcal ऊर्जा पौधों द्वारा शोषित की जाती है जिसका केवल एक प्रतिशत (15 Kcal) रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होता है। द्वितीय और तृतीय पोषण स्तर पर यह घटकर क्रमश: 1.5 Kcal और 0.3 Kcal रह जाता है। सामान्यतया एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में स्थानांतरण के समय अधिकांश ऊर्जा का ह्रास होता रहता है परन्तु यह कहा जा सकता है कि इसकी गुणवत्ता बढ़ती जाती है।

You Might Also Like

One Response

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Category

Realated Articles