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पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow in Ecosystem)

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इकोतंत्र अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है। सौर विकिरण से प्राप्त हुई ऊर्जा का इकोतंत्र के विविध घटकों में संचरण, गमन एवं स्थानान्तरण होता है। दूसरी ओर इकोतंत्र के विविध पोषण स्तरों द्वारा ऊर्जा का उत्सर्जन, निष्कासन अथवा बहिर्गमन होता रहता है। जीवजगत के विविध पोषण स्तर श्वसन क्रिया द्वारा ऊर्जा निष्कासित करते हैं। साथ ही जैव तत्वों का अवनयन, विघटन या समापन होने से उनके द्वारा संचित आहार ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा के रूप में मुक्त होकर वायुमण्डल में विलीन हो जाती है। 

इकोतंत्र अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र से निष्कासित ऊर्जा का पुनः संचरण नहीं हो पाता। मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ उसकी दैनिक गतिविधियों में ऊर्जा के उपभोग में तीव्रता से वृद्धि हुई है। पाषाण युगी मानव, जब तक उसे अग्नि का उपयोग ज्ञात नहीं था, प्रतिदिन 2000 K cal ऊर्जा का उपभोग करता था। आदि मानव, जब उसने कृषि कार्य प्रारम्भ कर दिया, 12,000 K cal ऊर्जा प्रतिदिन उपभोग करने लगा। मध्ययुगी मानव, पहिए के आविष्कार के बाद 70,000 K cal ऊर्जा प्रतिदिन उपभोग करने लगा। आधुनिक मानव अपने तकनीकी विकास के बाद दैनिक गतिविधियों में 2,30,000 K cal ऊर्जा का प्रतिदिन उपभोग कर रहा है। 

मानव द्वारा ऊर्जा उपभोग में विभिन्न युगों में हुई वृद्धि
मानव द्वारा ऊर्जा उपभोग में विभिन्न युगों में हुई वृद्धि

पारिस्थितिक तंत्र का ऊर्जा स्रोत (Energy Source of Ecosystem) 

चूँकि ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है; अतः सूर्य को सृष्टि का निर्माता और पालनहार कहा जाता है। सूर्य की लघु तरंगों के द्वारा प्रेषित ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा कहते हैं। विकिरण ऊर्जा से धरातल गर्म होकर ऊष्मा ऊर्जा का सृजन करता है। यही ऊष्मा ऊर्जा धरातल से दीर्घ तरंगों के रूप में निकलकर वायुमण्डल में तापमान को जन्म देती है। पेड़-पौधों की पत्तियाँ सौर ऊर्जा से प्रकाश संश्लेषण करके रासायनिक ऊर्जा का सृजन करती हैं। जलवाष्प द्वारा ग्रहण की गई सौर ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है। 

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खनिजों (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि) में व्याप्त ऊर्जा का प्रमुख आधार भी सौर ऊर्जा है। सौर ऊर्जा के अतिरिक्त पृथ्वी के गर्भ में व्याप्त ऊर्जा को भूताप ऊर्जा (Geothermal Energy) कहा जाता है। ऊर्जा का लेखा- जोखा पृथ्वी के ताप संतुलन एवं ताप बजट (Heat Budget) में रखा जाता है।

पृथ्वी को सौर ऊर्जा का सम्पूर्ण भाग प्राप्त नहीं होता। क्योंकि सौर ऊर्जा अवशोषण, परावर्तन और प्रकीर्णन द्वारा नियन्त्रित होती है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 14.9 करोड़ किमी. दूर है। सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 109 गुना अधिक बड़ा है। सूर्य का भार पृथ्वी के भार से तीन लाख गुना अधिक है। सूर्य तल पर 6000 डिग्री से. ताप है जो लघु तरंगों के विकिरण से पृथ्वी तल पर पहुँचता है; किन्तु सूर्य तरंगों का केवल 1/2 अरब वाँ भाग ताप ही धरातल पर पहुँच पाता है। अधिकांश ऊष्मा मार्ग में विनष्ट हो जाती है। 

वायुमण्डलीय गैसें, धूलकण, जलवाष्प, बादल आदि सौर ऊष्मा को अवशोषित अथवा परावर्तित कर देते हैं। अवशिष्ट या बची हुई ऊष्मा से प्रकाश तरंगें धरातल और वायुमण्डल को ऊर्जा प्रदान कर जीवन का संचरण करती हैं। प्रत्यक्ष रूप से वायुमण्डल को सौर ऊर्जा का केवल 14 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है। 34 प्रतिशत ऊर्जा धरातल के विकिरण से वायुमण्डल को प्राप्त होती है। पृथ्वी तल पर कुल ऊर्जा का 51 प्रतिशत भाग आता है जिसमें से 34 प्रतिशत सीधा सौर किरणों से तथा 17 प्रतिशत ताप विसरण से प्राप्त होता है। 

पृथ्वीतल और वायुमण्डल में कुल मिलाकर सूर्यताप का 65 प्रतिशत (क्रमशः 14+51) भाग प्राप्त होता है, जबकि उसका 35 प्रतिशत भाग वायुमण्डल से परावर्तित कर दिया जाता है। इसका बादलों द्वारा 27 प्रतिशत, प्रकीर्णन (Scattering) द्वारा 6 प्रतिशत और पृथ्वी द्वारा 2 प्रतिशत भाग परावर्तन (Reflection) प्रक्रिया द्वारा समाप्त कर दिया जाता है। इस प्रकार वायुमण्डल में जितनी मात्रा में ऊष्मा प्राप्त होती है, उतनी ही मात्रा में या तो परावर्तित कर दी जाती है या प्रयोग में आ जाती है और पृथ्वी का ताप संतुलन बना रहता है। 

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इकोतंत्र या पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow in Ecosystem)

इकोतंत्र अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह नियमित रूप से होता रहता है। किसी भी स्थिर द्रव्यमान वाले तंत्र में न तो ऊर्जा का सृजन होता है और न ही विनाश। ऊर्जा के रूप तथा स्थान में परिवर्तन हो सकता है, जैसे-विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण। इकोतंत्र में ऊर्जा का निवेश उसके निष्कासन या निर्गमन से संतुलित रहता है। ऊष्मागतिकी के इस प्रथम नियम को ऊर्जा संरक्षण का नियम कहते हैं। 

ऊष्मागतिकी के दूसरे नियमानुसार ऊर्जा के स्थानान्तरण एवं उसके रूपांतरण के प्रत्येक बिन्दु पर ऊर्जा ह्रास या क्षय होता है। इसे ऊर्जा का विसरण कहा जाता है, जिसमें निष्कासित, निर्गमित अथवा क्षयित ऊर्जा पुनः प्राप्त नहीं होती तथा यह ऊष्मा के रूप में वायुमण्डल में वापस चली जाती है। 

सौर ऊर्जा को पौधे अपनी पत्तियों के द्वारा ग्रहण करते हैं जो सकल ऊर्जा का 1-5 प्रतिशत हिस्सा होता है। प्रकाश संश्लेषण विधि के द्वारा पौधे इस सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करते हैं, जिससे उनका विकास होता है। रूपांतरण प्रक्रिया में श्वसन क्रिया आदि के द्वारा ऊर्जा का ह्रास भी होता है। इन पेड़-पौधों द्वारा एकत्रित की गई रासायनिक ऊर्जा को अन्य शाकाहारी जीव भोजन स्वरूप ग्रहण करते हैं। पौधों से पशुओं में स्थानांतरण के समय की ऊर्जा का ह्रास होता है। तत्पश्चात् माँसाहारी जीव शाकाहारी जीवों का भक्षण करते हैं। इस समय भी ऊर्जा का ह्रास होता है। 

इस प्रकार एक पोषण स्तर से दूसरे व तीसरे पोषण स्तरों में ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। ऊर्जा के इस संचरण में उसका रूपांतरण एवं ह्रास भी होता रहता है । एण्ड्रयू गूडी के अनुसार, ‘ऊर्जा प्रवाह के द्वारा किसी इकोतंत्र में उसके जैव तथा अजैव घटकों के मध्य पदार्थों का विनिमय होता है।’

(A flow of energy leads to an exchange of materials between living and nonliving parts within the ecosystem.’) – A. Goudie; ‘The Nature of the Environment’ (1989 II Edn.) p. 207 

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इकोतंत्र अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न संघटकों के बीच ऊर्जा का सम्प्रेषण (Transmission of Energy) उसकी आधारभूत कुंजी है। यह ऊर्जा उसे सौर विकिरण द्वारा मिलती है। इसी ऊर्जा से वायु एवं वर्षा को गति प्राप्त होती है और इसी से पौधे प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपने ऊतकों का निर्माण करते हैं जो कि अन्य जीवों को भोजन प्रदान करते हैं। मृत पौधों के पोषक अंश मृदा से पुनः पौधों की जड़ों के द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। 

पौधों में पाया जाने वाला रंगीन द्रव्य क्लोरोफिल सौर ऊर्जा को अवशोषित करके उसे कार्बनयुक्त जैवकणों (Organic Molecules) में बदल देता है। इसी प्रक्रिया का नाम प्रकाश-संश्लेषण है जो कि सजीव संघटकों की ऊर्जा का स्रोत है। प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा (Radiant Energy) रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होकर पौधों में संचित रहती है। प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश, पानी, कार्बनडाइऑक्साइड और ऊष्मा की आवश्यकता होती है। मूलरूप में कार्बनडाइआक्साइड और पानी तत्व रूप में प्रकाश ऊर्जा के साथ पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले क्लोरोफिल के द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं तथा आणविक प्रक्रिया द्वारा जैवतत्वों आक्सीजन, ग्लूकोज एवं कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है। 

श्वसन क्रिया द्वारा पौधे आक्सीजन एवं जलवाष्प वायुमंडल में छेड़ते हैं। पौधों में जैव रसायन श्वसन क्रिया से निर्गमित तत्वों से अधिक मात्रा में ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन होने पर पौधों का विकास होता है। पौधों द्वारा जैविक तत्वों (Organic Material) का उत्पादन सकल प्रकाश संश्लेषण के बराबर होता है। 

सकल प्रकाश संश्लेषण = कुल प्रकाश संश्लेषण – श्वसन क्रिया 

(Net Photosynthesis =  Total Photosynthesis – Respiration) 

इस प्रकार हरे पौधे प्राथमिक उत्पादक होते हैं; क्योंकि इन पर जीव-जन्तुओं का आहार निर्भर करता है। 

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