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पौधों का वर्गीकरण (Classification of Plants)
पादप जगत की सबसे बड़ी विशेषता उनकी विविधता है। पृथ्वी पर प्रथम पौधों (primitive plants) की उत्पत्ति जलीय पर्यावरण में हुई। इसके बाद से पौधों ने विभिन्न जलवायु प्रदेशों (विषुवत रेखीय उष्णार्द्र जलवायु से ध्रुवीय एवं आर्कटिक शीत जलवायु तक) तथा विभिन्न आवासों (habitats) (सागर तल से उच्च पर्वतों तथा जलीय भागों से लेकर स्थलीय भागों तक) एवं विभिन्न पर्यावरण दशाओं में अपना अनुकूलन (adaptation) किया है जिस कारण विभिन्न पर्यावरण वाले क्षेत्रों में विशिष्ट प्रकार के पादप एवं पादप समुदायों का विकास हुआ है।
अपने चारो ओर देखने पर हमें पौधों के आकार में पर्याप्त अन्तर एवं विषमता देख्नने को मिलेगी। जहां एक ओर इनका आकार एक कोशिका वाले अति सूक्ष्म पौधों (जैसे-शैवाल तथा सागरीय डायटम) रूप में देखने को मिलता है; वहीं दूसरी ओर उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धी क्षेत्रों के पुष्पी एवं फलदार वृक्ष वृहदाकार होते हैं। आकार, संरचना, कार्यकलाप आदि के दृष्टिकोण से पौधों में विश्व स्तर पर इतनी विविधतायें होती हैं कि पौधों का कुछ खास वर्गों में विभाजन करना सम्भव नहीं हो पाता है।
इसके अलावा आज तक समस्त स्थलीय एवं जलीय पौधों की प्रजातियों का पता नहीं लग पाया है। अब तक पौधों की मात्र 40,000 प्रजातियों की ही जानकारी मिल पायी है जबकि केवल उष्णकटिबन्धी भागों में ही हजारों अज्ञात प्रजातियों का पता नहीं लग पाया है।
सामान्य रूप से पौधों का वर्गीकरण उनकी आकारिकीय विशेषताओं (morphological characteristics), उनके पदानुक्रम (hierarchy), उनके जीवन-रूपों (life-forms) आदि आधारों पर किया जाता है। अब तक पौधों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया गया है :
- आकारिकीय वर्गीकरण
- पदानुक्रमीय (hierarchical) वर्गीकरण
- रौनकीयर का वर्गीकरण
- जलवायु-आधारित वर्गीकरण
- पारिस्थितिकीय वर्गीकरण
- ग्राइम का वर्गीकरण
इस लेख में हम पौधों के वर्गीकरण (Classification of Plants ) के अंतर्गत आकारिकीय वर्गीकरण (Morphological Classification) को विस्तार से जानेंगे:
पौधों का आकारिकीय वर्गीकरण (Morphological Classification)
मौटे तौर पर आकारिकीय विभिन्नताओं तथा जनन प्रक्रिया (reproductive processes) के आधार पर पौधों को 2 वृहद् वर्गों में विभाजित किया जाता है :
- पुष्परहित पौधे या क्रिप्टोगैम्स
- पुष्पी पौधे (flowering plants) या फैनरोगैम्स
पुष्पहीन पौधे (Cryptogams)
क्रिप्टोगैम्स श्रेणी के पौधे पुष्पविहीन (non-flowering) होते हैं, अत: इनमें फल तथा बीज भी नहीं होते। अत: पुष्पहीन पौधे अपने वंश या सन्ततियों (offsprings) का जनन अपने अन्दर छिपे बीजाणुओं (spores) द्वारा करते हैं। दूसरे शब्दों में समस्त जनन प्रक्रिया इस तरह के पौधों के शरीर में अन्तर्निहित होती हैं। इनकी शारीरिक संरचना अत्यन्त सरल होती है।
पुष्पहीन पौधों को निम्न 6 श्रेणियों में विभाजित किया जाता है :
बैक्टीरिया
बैक्टीरिया एक कोशिका (single celled) पौधे हैं। कुछ बैक्टीरिया को जन्तुओं की श्रेणी में भी रखा जाता है। जैसे सूक्ष्म जीव जो सामान्यतया अपरदाहारी (detritivores) होते हैं जिन्हें वियोजक (decomposers) या रोगाणु (microbe) कहते हैं। कुछ बैक्टीरिया अपनी एकल कोशिका को दो भागों में विभक्त करके सन्ततियों (offspring) का जनन करते हैं। जिस कारण इन्हें शाइजोफाइटा भी कहते हैं। आहार निर्माण तथा आहार ग्रहण करने की आदत (feeding habits) के आधार पर पादप बैक्टीरिया को निम्न 2 उपप्रकारों में विभाजित किया जाता है :
स्वपोषी (autotrophic) बैक्टीरिया
स्वपोषी बैक्टीरिया अपना आहार स्वयं बनाते हैं। ये बैक्टीरिया सौर प्रकाश एवं पोषक तत्वों के साथ प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपना आहार निर्मित करते हैं।
परपोषी बैक्टीरिया
ये बैक्टीरिया अपना भोजन स्वयं पैदा नहीं करते वरन् अपने आहार के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं। ये जन्तु बैक्टीरिया मृत जीवों को वियोजित तथा विघटित करती हैं तथा जैवमण्डल में पोषक तत्वों के चक्रण (cycling) में सहायक होती हैं।
शैवाल (Algae)
शैवाल (Algae) संवहनी (vascular) पादप होता है। वास्तव में ये जल में रहने वाला सूक्ष्म पौधा होता है जिसकी संरचना सरल होती है। इनका अति सूक्ष्म रूप एक कोशिका (single-celled) वाला होता है जबकि बड़े शैवाल कई कोशिकाओं वाले होते हैं। कुछ शैवाल मिट्टियों में भी रहते हैं।
ये प्रकाश रसायन क्रिया (photochemical mechanism) द्वारा ऊर्जा प्राप्त करते हैं। शैवाल पौधे थैलोफाइटा श्रेणी के पौधे होते हैं।
कवक (Fungi)
कवक पौधे प्रकाश संश्लेषण नहीं करते हैं, अपितु अपने भोजन के लिए अन्य जीवों के उत्पादनों पर निर्भर करते हैं। कुछ कवक परजीवी (parasite) होते हैं जो अन्य जीवित जीवों से अपना आहार प्राप्त करते हैं तथा कुछ मृतजीवी (saprophyte) होते हैं जो अपने आहार हेतु मृत जैविक पदार्थों पर निर्भर करते हैं। कुकुरमुत्ता (mushroom) प्रमुख उदाहरण है। कवक पौधे भी थैलोफाइटा श्रेणी के पौधों में आते हैं। ये असंवहनी (non-vascular) पौधे होते हैं।
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
ये असंवहनीय पौधे होते हैं, अर्थात् इनकी आन्तरिक संरचना इस तरह की होती है कि पौधे के एक भाग से विभिन्न भागों में तरल पदार्थों का संचार या गमन नहीं हो पाता है। इसके अन्तर्गत काई (moss) को सम्मिलित किया जाता है।
काई या लाइकेन (lichen)
इस वर्ग में ऐसे पौधे आते हैं जिनमें कवक तथा शैवाल साथ-साथ एक ही पौधे के रूप में होते हैं। इस तरह ये मिश्र (composite) पौधे होते हैं। इस मिश्र पौधे का एक भाग यानी कवक परजीवी होता है, जिसे उसी पौधे का दूसरा भाग यानी शैवाल आहार प्रदान करता है। काई का पहला भाग रसायनपोषी (chemotroph) शैवाल होता है जो रसायनसंश्लेषण (chemosynthesis) विधि से अपना आहार बनाता है जबकि दूसरा भाग कवक परपोषी (hetrotroph) होता है तथा अपना आहार रसायनपोषी शैवाल से प्राप्त करता है।
उपरोक्त पुष्पहीन पौधों के पांचों प्रकारों को सम्मिलित रूप से असंवहनीय पुष्पहीन पादप (non-vascular cryptogams) कहते हैं क्योंकि इनमें ऐसी संरचना नहीं होती है कि पोषक तत्वों का तरल रूप में पौधे के एक भाग से दूसरे भाग में प्रवाह या गमन हो सके।
टेरिडोफाइटा
ये संवहनीय (vascular) पौधे होते हैं परन्तु इनमें सन्तति जनन उपरोक्त असंवहनीय पादपों के समान ही एक कोशिका के दो भागों में विभक्त होने पर होता है। इसके अन्तर्गत फर्न, अश्वपुच्छ (horsetails) आदि को शामिल किया जाता है।
पुष्पी पौधे (Flowering Plants)
पुष्पी पौधे (phanerogams) अपने बीजों के द्वारा संतान उत्पत्तिज करते हैं। इन्हें स्पर्मेंटोफाइटा भी कहते हैं। क्योंकि इनमें शुक्राणु होते हैं। ये संवहनीय (vascular) पौधे होते हैं। इनके दो उपविभाग होते हैं :
अनावृत्तबीजी (gymnosperms)
इस श्रेणी के पौधों में बीज किसी खोल में नहीं ढके होते हैं बल्कि खुले रहते हैं। कोणधारी (शंक्वाकार) वृक्ष जैसे पाइन, स्प्रूस, जूनिफर आदि इस श्रेणी में आते हैं।
आवृत्तबीजी (angiosperms)
इस श्रेणी के पौधों में बीज रक्षक आवरण (protective cover) में ढके रहते हैं। ये वास्तविक पुष्पी पौधे होते हैं तथा सभी प्रकार के पौधों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इनका विकास सबसे बाद में (लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व) हुआ है। इन्हें बीज के अंकुरण के समय पत्तियों की संख्या के आधार पर पुनः दो उपप्रकारों में विभाजित किया जाता है
द्विबीजपत्री
ऐसे पौधों में बीज के अंकुरण के समय दो पत्तियां निकलती हैं। दलहनी खाद्यान्न पौधे इस श्रेणी में आते हैं। इनके बीज में दो भाग होते हैं, जैसे मटर, अरहर, उरद, मूंग, चना, आम, महुआ आदि में।
एकलबीजपत्री
इस तरह के पौधों में बीज का एक ही भाग होता है तथा अंकुरण के समय एक ही पत्ती निकलती है। इस श्रेणी के पौधों के अन्तर्गत अधिकांश खाद्यान्न (cereals) होते हैं, उदाहरण के लिए गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि तथा अन्य घासें।
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