ग्रामीण और नगरीय बस्तियों के बीच मूलभूत अंतर (Basic difference between Rural and Urban settlements) को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर विस्तार से समझा जा सकता है:
व्यवसाय में अंतर (Occupational Variations):
ग्रामीण बस्तियाँ: ग्रामीण बस्तियों में रहने वाले लोग मुख्यतः प्राथमिक व्यवसायों से जुड़े होते हैं। इनमें कृषि, पशुपालन, शिकार, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी, कंद-मूल और जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करना जैसे कार्य शामिल हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है। यहाँ के लोग अपनी जीविका के लिए परंपरागत कार्य करते हैं, जिनमें आधुनिक तकनीक का कम उपयोग होता है। खेती के अलावा, कई लोग छोटे पैमाने पर कुटीर उद्योग जैसे हस्तशिल्प, बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी करते हैं।
नगरीय बस्तियाँ: नगरीय बस्तियों के निवासी व्यापार, उद्योग, बैंकिंग, परिवहन, शिक्षा, चिकित्सा और प्रशासन जैसे आधुनिक और जटिल व्यवसायों से जुड़े होते हैं। यहाँ का जीवन गतिशील और व्यस्त होता है। नगरों में बड़े पैमाने पर कारखाने और उद्योग होते हैं, जो लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। साथ ही, यहाँ सेवा क्षेत्र, जैसे सॉफ्टवेयर, होटल व्यवसाय, और वित्तीय सेवाओं का प्रमुख योगदान होता है। नगरीय बस्तियाँ नई तकनीकों, नवाचार और बेहतर शिक्षा का केंद्र भी होती हैं।
वातावरण में अंतर (Environmental Variations):
ग्रामीण क्षेत्र: ग्रामीण बस्तियाँ प्राकृतिक वातावरण से घिरी होती हैं। यहाँ चारों ओर हरियाली, खेत-खलिहान, नदी-झरने और खुले स्थान मिलते हैं। ग्रामीण क्षेत्र का वातावरण शांत और प्रदूषण रहित होता है, जहाँ ताजी हवा और स्वच्छ पानी की उपलब्धता अधिक होती है। ग्रामीण जीवन प्रकृति पर आधारित होता है, इसलिए खेती और पशुपालन के लिए अनुकूल मौसम का होना बहुत जरूरी है।
नगरीय क्षेत्र: इसके विपरीत, नगरीय बस्तियों में कृत्रिम वातावरण का प्रभाव होता है। यहाँ का वातावरण प्रदूषित होता है, जिसमें कारखानों और वाहनों से निकलने वाला धुआँ मुख्य कारण है। शहरों में हरियाली कम होती है, और खुले स्थानों की कमी रहती है। यहाँ लोग बंद घरों और ऊँची इमारतों में रहते हैं। हालांकि, शहरों में मनोरंजन और आधुनिक सुविधाओं जैसे मॉल, सिनेमा, पार्क और क्लब की अधिकता होती है।
कार्य पद्धति में अंतर (Work Pattern):
ग्रामीण क्षेत्र: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय की विशेषता यह है कि इसमें मौसमी काम अधिक होता है। किसान केवल फसल बोने, कटाई और बुवाई जैसे निश्चित समय पर ही कार्य करते हैं। बाकी समय में वे खाली रहते हैं, या अन्य छोटे कार्य करते हैं। कृषि कार्य अक्सर श्रम प्रधान होता है और इसमें बहुत अधिक मेहनत लगती है, लेकिन इसके बावजूद आमदनी सीमित होती है।
नगरीय क्षेत्र: नगरों में काम करने वाले लोग पूरे साल तय समय पर नियमित रूप से काम करते हैं। चाहे वह सरकारी नौकरी हो, उद्योग में काम हो या निजी क्षेत्र की नौकरी हो, यहाँ कार्य का समय और प्रक्रिया निश्चित होती है। शहरों में समय की पाबंदी और पेशेवर रवैया अधिक महत्वपूर्ण होता है। काम के घंटे लंबे हो सकते हैं, लेकिन यहाँ आय का स्तर अधिक होता है और जीवन की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
जनसंख्या और मकानों की घनत्व (Population and Housing Density):
ग्रामीण क्षेत्र: ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि हर किसान को अपनी जमीन पर खेती करने और रहने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता होती है। गाँवों में लोग बिखरे हुए रहते हैं, और मकानों के बीच अधिक दूरी होती है। गाँव का आकार सीमित होता है, और यदि वहाँ स्थान की कमी होती है, तो लोग अन्य जगह बस जाते हैं या फिर रोजगार के लिए शहरों का रुख करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आवास साधारण और पारंपरिक होते हैं, और उनमें आधुनिक सुविधाओं की कमी होती है।
नगरीय क्षेत्र: नगरों में जनसंख्या का घनत्व और मकानों की सघनता बहुत अधिक होती है। सीमित जगह पर बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। यहाँ बड़े-बड़े अपार्टमेंट और घनी बस्तियाँ होती हैं। कारण यह है कि शहरों में रोजगार के अवसर अधिक होते हैं, और लोग इन अवसरों के कारण नगरों की ओर पलायन करते हैं। छोटे स्थानों पर कारखाने, कार्यालय और अन्य संस्थान हज़ारों लोगों को काम देते हैं, और ये सभी लोग इन्हीं के आसपास रहने के लिए मजबूर होते हैं।
जनसंख्या आकार सम्बन्धी विभिन्नता (Population Size Variations)
ग्रामीण बस्तियाँ सामान्यत: नगरीय बस्तियों से आकार और जनसंख्या में छोटी होती हैं। हालांकि, केवल जनसंख्या के आधार पर किसी स्थान को ग्राम या नगर कहना उचित नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ के निवासियों के मुख्य व्यवसाय क्या हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्थान पर लोग मुख्य रूप से कृषि कार्य करते हैं, तो उसे ग्रामीण बस्ती कहा जाएगा, चाहे उसकी जनसंख्या अधिक ही क्यों न हो।
गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र के कुछ गाँवों की जनसंख्या 5000 से अधिक है, जैसे सहारनपुर जिले का जड़ौदा पांडा गाँव, जिसकी आबादी 10,324 है। दूसरी ओर, छुटमलपुर, जिसकी जनसंख्या 10,281 है, नगरीय बस्ती के रूप में विकसित हो चुका है और व्यापार एवं परिवहन का प्रमुख केंद्र बन गया है। गाँव मुख्यत: कृषि पर आधारित होते हैं और अधिक आबादी होने के बावजूद ग्रामीण बस्ती कहलाते हैं। वहीं, नगरीय बस्तियाँ, चाहे आकार में छोटी हों, लेकिन उनका केंद्र व्यापार, उद्योग, और परिवहन होता है।
सामाजिक विभिन्नता (Social Variations)
ग्राम और नगरों की सामाजिक संरचना में बहुत अंतर होता है। नगरों में विभिन्न धर्मों, जातियों, और समुदायों के लोग मिलकर रहते हैं। यहाँ आपसी संपर्क का दायरा व्यापक होता है, क्योंकि लोग देश-विदेश के विभिन्न भागों से आकर यहाँ बसते हैं। नगरों में सामाजिक संबंध अक्सर औपचारिक होते हैं, और सामाजिक वर्गों के बीच दूरी अधिक होती है। यहाँ उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के लोग समान स्थान पर रहते हुए भी एक-दूसरे के करीब नहीं होते।
इसके विपरीत, गाँवों में सामाजिक संरचना सरल होती है। अधिकतर निवासी स्थानीय होते हैं और बाहरी लोग वहाँ कम ही बसते हैं। गाँवों में लोग एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं, चाहे वे किसी भी वर्ग के हों। यहाँ अमीर और गरीब के बीच की दूरी कम होती है, और सामुदायिक सहयोग अधिक होता है।
सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)
नगरों में सामाजिक गतिशीलता गाँवों से अधिक होती है, क्योंकि यहाँ व्यक्ति आसानी से अपना पेशा, स्थान और सामाजिक स्तर बदल सकते हैं। नगरों में शिक्षा, व्यापार, और तकनीकी विकास के कारण अवसर अधिक होते हैं। लोग एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में स्विच कर सकते हैं या एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
गाँवों में सामाजिक गतिशीलता सीमित होती है, क्योंकि यहाँ लोगों का जीवन खेती पर आधारित होता है। वे अपनी जमीन और समुदाय से जुड़े रहते हैं और स्थान परिवर्तन कम करते हैं। नगरों में धर्म, राजनीति, और संचार के साधनों ने गतिशीलता को बढ़ावा दिया है। मशीनी तकनीक और औद्योगीकरण ने श्रम-विभाजन और श्रम की अदल-बदल को बढ़ाया है, जिससे लोगों के लिए नए अवसर पैदा हुए हैं।
कार्य-कलाप एवं विन्यास (Layout and Functional Composition)
ग्राम और नगरों के कार्य-कलापों और भौतिक संरचना में बहुत भिन्नता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर मुख्यत: खेतों और कृषि भूमि के पास बनाए जाते हैं। यहाँ इमारतें साधारण होती हैं और मुख्य उद्देश्य कृषि कार्यों में सहूलियत देना होता है।
दूसरी ओर, नगरों में भवनों का निर्माण व्यापार, उद्योग, परिवहन, और आवासीय जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है। नगरों में दफ्तर, दुकानें, गोदाम, और वर्कशॉप मुख्य कार्य-स्थल होते हैं, जो एक-दूसरे से सड़क और रेल नेटवर्क द्वारा जुड़े रहते हैं। बड़े नगरों में श्रमिकों के लिए अलग-अलग लेबर कॉलोनियाँ बनती हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्यवस्था नहीं होती।
कार्यिक क्षेत्र (Functional Zones)
नगरों में अलग-अलग कार्यिक क्षेत्रों (Functional Zones) का विकास होता है। जैसे-जैसे नगर का आकार बढ़ता है, उसके केंद्र से इमारतें मुख्य सड़कों के साथ फैलती जाती हैं। बड़े नगरों में व्यापारिक, आवासीय, और औद्योगिक क्षेत्र अलग-अलग स्थानों पर विकसित होते हैं।
नगर का केंद्र या कोर (Core) व्यापारिक गतिविधियों का मुख्य स्थान होता है। दिन में यहाँ काफी हलचल रहती है, लेकिन रात को यह क्षेत्र सुनसान हो जाता है। बड़े नगरों में बाजार, औद्योगिक क्षेत्र, और रिहायशी क्षेत्र स्पष्ट रूप से अलग होते हैं। इसके विपरीत, गाँवों में रिहायशी क्षेत्र और बाजार एक ही स्थान पर होते हैं। यहाँ बाजार का अलग विकास नहीं होता, और दुकानें अक्सर घरों के पास या बीच में होती हैं।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि नगर और गाँव अपने आकार, कार्य, और सामाजिक संरचना में पूरी तरह भिन्न होते हैं। नगरों की विशालता और विविधता ने उन्हें बस्ती भूगोल का एक महत्वपूर्ण विषय बना दिया है। उनके अध्ययन से न केवल बस्तियों की संरचना को समझने में मदद मिलती है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप को भी समझा जा सकता है। वहीं, गाँवों की सरलता और स्थिरता उन्हें एक विशिष्ट पहचान देती है।