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न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त (Principle of Least Effort)

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न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त (Principle of Least Effort)

यह सिद्धान्त गुरुत्व मॉडल का ही एक रूप है जिसमें यह मान लिया जाता है कि विभिन्न समुदायों का पारस्परिक प्रवास इस प्रकार होता है कि सम्पूर्ण तंत्र को न्यूनतम प्रयास करना पड़े। सन् 1940 में जी०के० जिफ (G.K. Jipf) ने न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त का प्रतिपादन किया और वस्तुओं, सूचनाओं तथा व्यक्तियों के स्थानान्तरण की व्याख्या की। 

इस सिद्धान्त के अनुसार दो स्थानों या नगरों के मध्य होने वाले प्रवास की मात्रा उनके मध्य की दूरी से निर्धारित होती है। दोनों स्थानों के मध्य दूरी जितनी लम्बी होगी लोगों को प्रवास के लिए अधिक प्रयत्न करना पड़ेगा जबकि मनुष्य स्वभावतः न्यूनतम प्रयास से ही किसी अभीष्ट को पाना चाहता है। अतः दूरी की लम्बाई में वृद्धि के साथ-साथ प्रवास की मात्रा घटती जाती है। किन्तु प्रवास की मात्रा में ह्रास केवल दूरी में वृद्धि का ही परिणाम नहीं होता है बल्कि इस पर सम्बन्धित स्थानों की जनसंख्या आकार का भी प्रभाव होता है।

 उदाहरण के लिए दो बड़े नगरों के मध्य प्रवास की मात्रा किसी छोटे नगर और उसके ग्रामीण क्षेत्र के मध्य होने वाले प्रवास की तुलना में निश्चय ही अधिक होगी। अतः इस माडल में दूरी के साथ ही दोनों केन्द्रों की जनसंख्या को भी सम्मिलित किया जाता है। प्रवास की मात्रा का परिकलन निम्नलिखित सूत्र के द्वारा किया जा सकता है – 

जिफ के न्यूनतम प्रयास, सिद्धान्त का परीक्षण अमेरिकी नगरों पर करने से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि प्रवास की मात्रा और दूरी में विपरीत सम्बन्ध है। यह तथ्य इस मॉडल की सार्थकता की पुष्टि करता है। 

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न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त की आलोचना

कुछ विद्वानों ने इसकी आलोचना करते हुए इसे अनुपयोगी और दोषपूर्ण बताया है। एलैक्स ईकलस ने इसे जनसंख्या के प्रवास की व्यख्या करने में असमर्थ बताया और कहा कि गुरुत्व और न्यूनतम प्रयास माडल में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। अतः इसमें भी वे दोष विद्यमान हैं जो गुरुत्व मॉडल में पाए जाते हैं। एण्डरसन के मतानुसार प्रवास की मात्रा दूरी बढ़ने के साथ-साथ तीव्रतर गति से कम होती जाती है, अतः दूरी की घात (Power) 1 से अधिक किन्तु 2 से कम होनी चाहिए। 

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