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गतिशीलता संक्रमण मॉडल (Mobility Transition Model)
प्रसिद्ध जनसंख्या भूगोलविद् ज़ेलिंस्की (W. Zelinsky) ने सन् 1971 में जनसंख्या के प्रवास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसे गतिशीलता संक्रमण मॉडल के नाम से जाना जाता है। जेलिंस्की के विचार से जनसंख्या के प्रवास की प्रवृत्ति जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाओं से काफी समानता रखती है। किसी भी देश या स्थान की जनसंख्या प्रवास की विभिन्न अवस्थाएँ (Phases) पाई जाती हैं जो जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाओं के लगभग समान होती है।
वास्तव में प्रवासी निर्णय या व्यवहार और जनांकिकीय परिवर्तन (अवस्थाएँ) दोनों ही औद्योगिकरण, नगरीकरण, प्रौद्योगिकी में होने वाले परिवर्तन आदि से प्रभावित होते हैं और सामान्यतया उनका अनुसरण करते हैं। जेलिंस्की ने जनसंख्या स्थानान्तरण के चार क्रमिक प्रकारों – (1) अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास, (2) प्रादेशिक प्रवास, (3) ग्रामीण से नगरीय प्रवास, और (4) अन्तः नगरीय एवं अन्तर्नगरीय प्रवास को जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त (माडल) की पाँच अवस्थाओं के द्वारा प्रदर्शित किया है।
इसके लिए उन्होंने आरेख का प्राश्रय लिया है जिसे चित्र में देखा जा सकता है। इसके साथ ही जेलिंस्की ने जनांकिकीय संक्रमण की पाँच अवस्थाओं के अनुसार प्रवास तथा संचरण (circulation) के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को प्रकट करने के लिए भी आरेख का निर्माण किया है। इस प्रकार जनांकिकीय संक्रमण माडल की भाँति गतिशीलता संक्रमण मॉडल भी मुख्यतः किसी क्षेत्र या स्थान पर मानव समाज में घटित होने वाले आर्थिक-सामाजिक परिवर्तनों की विभिन्न अवस्थाओं को प्रदर्शित करता है।
गतिशीलता संक्रमण की अवस्थाएँ (Phases of Mobility Transition)
जेलिंस्की द्वारा प्रस्तावित गतिशीलता संक्रमण की पाँच अवस्थाएँ पाई जाती हैं जिनका विवरण निम्नवत् है
प्रथम अवस्था
गतिशीलता संक्रमण की प्रथम अवस्था में सभी प्रकार (अन्तर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय आदि) के जनसंख्या प्रवास नगण्य या अल्पतम होते हैं। इस अवस्था में जन्म दर और मृत्युदर दोनों अधिक ऊँची होती है और दोनों का अन्तर कम होने से जनसंख्या वृद्धि अत्यन्त मन्द रहती है। सामान्यतः लोग अपने मूल निवास स्थान से दूर नहीं जाते हैं और अधिकांश लोग अपना सम्पूर्ण जीवन अपने जन्म स्थान पर ही व्यतीत कर देते हैं। आर्थिक पिछड़ेपन, संचार एवं यातायात सुविधाओं की कमी आदि के कारण बड़े पैमाने के तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास तो बाधित होते ही हैं, स्थानीय एवं ग्रामीण-नगरीय तथा नगरीय ग्रामीण प्रवास भी बहुत कम पाए जाते हैं। यह अवस्था जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था के ही तुल्य है।
द्वितीय अवस्था
ज़नांकिकीय संक्रमण की द्वितीय अवस्था में मृत्युदर में ह्रास की प्रवृत्ति होती है किन्तु जन्मदर अभी भी ऊँची बनी रहती है। इस प्रकार जन्मदर और मृत्युदर में बढ़ते अन्तराल के परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि तीव्र हो जाती है। इससे भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ने लगता है जिससे लोग अन्य उपेक्षित क्षेत्रों एवं संसाधनों की खोज में तत्पर होते हैं। नवीन तकनीक तथा यातायात के साधनों के विकास में जनसंख्या का प्रवास बहिर्वर्ती नवीन क्षेत्रों के लिए प्रेरित होता है।
संक्रमण की इस अवस्था में लोग एक देश से दूसरे देश के लिए, बसे हुए क्षेत्रों से नये सीमान्त क्षेत्रों के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों के लिए और छोटे नगरों (towns) से बड़े नगरों (cities) के लिए स्थानान्तरण करते हैं। 17वीं से 19वीं शताब्दी तक यूरोपीय प्रवास तथा 19वीं शताब्दी में अमेरिकी सीमान्त क्षेत्रों में होने वाले आंतरिक प्रवास गतिशीलता संक्रमण की द्वितीय अवस्था के उदाहरण हैं।
तृतीय अवस्था
गतिशीलता संक्रमण की तृतीय अवस्था भी जनांकिकीय संक्रमण की तृतीय अवस्था से समानता रखती है। इस अवस्था में जन्मदर भी गिरने लगती है और मृत्युदर तो पहले से ही ह्रासमान रहती है। कृषि भूमि पर जन दबाव अधिक होने से तथा उसके सीमांत कृषि भूमि के भी विकसित हो जाने पर भावी कृषि विकास अवरुद्ध हो जाता है और विकास तथा रोजगार की सम्भावनाएँ द्वितीयक तथा तृतीय व्यवसायों में ही दृष्टिगोचर होती हैं।
अब उद्योग, व्यापार, परिवहन आदि के विकास से नगरीय विकास को प्रोत्साहन मिलता है और फलतः ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय केन्द्रों की ओर प्रवास की मात्रा बढ़ जाती है। संक्रमण की तृतीय अवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास और सीमान्त प्रवास कम हो जाता है किन्तु ग्रामीण-नगरीय तथा अन्तः नगरीय (intra-urban) प्रवास का प्रचलन अधिक पाया जाता है।
चतुर्थ अवस्था
गतिशीलता की चौथी अवस्था भी जनांकिकीय संक्रमण की चौथी अवस्था के लगभग समान पाई जाती है। इसमें जन्मदर और मृत्युदर दोनों गिर कर लगभग समान हो जाती है और जनसंख्या वृद्धि अल्पतम होती है अथवा जनसंख्या स्थायी हो जाती है। इस अवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास, सीमावर्ती प्रवास और ग्रामीण-नगरीय प्रवास सभी अत्यन्त कम या नगण्य हो जाते हैं किन्तु अन्तर्नगरीय (inter-urban) तथा अन्तः नगरीय (intra-urban) प्रवास अधिकतम पाया जाता है। यह अवस्था आधुनिक औद्योगिक तथा नगरीय विकास की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित करती है।
पंचम अवस्था
गतिशीलता की पंचम अवस्था वर्तमान काल तक नहीं आ पायी है किन्तु भविष्य में सम्भव हो सकती है। इसके अन्तर्गत जन्मदर घटकर मृत्युदर से भी कुछ नीचे जा सकती है जिससे जनसंख्या में ह्रास होगा। यूरोप के कुछ देशों में इसके लक्षण प्रकट होने लगे हैं। इस अवस्था में नगर से नगर या नगर के भीतर ही जनसंख्या की गतिशीलता अपने चरम सीमा पर होगी किन्तु अन्य प्रकार के प्रवास नगण्य होंगे। इसमें सीमावर्ती प्रवास का पूर्णतया अभाव पाया जायेगा।
जेलिंस्की ने आरेख के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि गतिशीलता संक्रमण की प्रथम अवस्था से पंचम अवस्था (अन्तिम अवस्था) तक संचरण की मात्रा क्रमशः बढ़ती जाती है। इसकी वृद्धि तीसरी अवस्था तक मंद रहती है किन्तु चौथी अवस्था में यह तीव्रता से बढ़ती है। पंचम अवस्था में भी इसके बढ़ने की सम्भावना बनी रहेगी।
जेलिंस्की के अनुसार गतिशीलता की तृतीय अवस्था से संचरण द्वारा तथा संचार व्यवस्था (communication system) द्वारा अवशोषित (absorbed) या जनित सम्भाव्य प्रवास का आरम्भ हो सकता है जो अगली क्रमिक अवस्थाओं में क्रमशः बढ़ता जायेगा।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि किसी देश या समाज में जैसे-जैसे आर्थिक अन्तर्निर्भरत्ता में वृद्धि होती है, जीवनस्तर उन्नत होता है और भावी प्रगति के लिए लोग अपना स्थान या देश छोड़ने के लिए उद्यत होते हैं जिससे उत्प्रवास (emigration or out-migration) को प्रोत्साहन मिलता है।
FAQs
ज़ेलिंस्की (W. Zelinsky) ने सन् 1971 में यह मॉडल प्रस्तुत किया।
ज़ेलिंस्की ने जनसंख्या स्थानांतरण के चार क्रमिक प्रकार प्रदर्शित किए हैं: अंतर्राष्ट्रीय प्रवास, प्रादेशिक प्रवास, ग्रामीण से नगरीय प्रवास, और अन्तः नगरीय एवं अन्तर्नगरीय प्रवास।
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