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थामस डबलडे का आहार सिद्धान्त (Diet Theory of Thomas Doubleday)

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इस लेख को पढ़ने के बाद आप थामस डबलडे के आहार सिद्धान्त (Diet Theory of Thomas Doubleday) की आलोचनात्मक व्याख्या कर पाएंगे। 

थामस डबलडे का आहार सिद्धान्त (Diet Theory of Thomas Doubleday)

ब्रिटिश अर्थशास्त्री तथा दार्शनिक थामस डबलडे (Thomas Doubleday) 1790-1870 ने खाद्य पूर्ति और जनसंख्या वृद्धि के सम्बन्ध में अपने सिद्धान्त का विश्लेषण किया। उनके अनुसार “जनसंख्या वृद्धि और खाद्यपूर्ति में विपरीत सम्बन्ध होता है।” (man’s increase in number was inversely related to food supply)। 

उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी देश में खाद्य सामग्री जितनी अधिक मात्रा में उपलब्ध होगी वहाँ जनसंख्या वृद्धि उतनी ही धीमी गति से होगी। इस प्रकार उन्होंने प्रत्येक समाज में जनसंख्या वृद्धि पर खाद्यपूर्ति को एक महान नियंत्रण बताया है। डबलडे ने उपलब्ध आहार (food) की मात्रा के आधार पर समस्त मानव समाज को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है

  1. वह मानव समाज जहाँ खाद्यपूर्ति की कमी है और निर्धनता अधिक है, वहाँ जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।
  2. वह मानव समाज जहाँ खाद्यपूर्ति की अधिकता है और लोग सुख- समृद्धि से पूर्ण हैं। वहाँ जनसंख्या की वृद्धि मंद गति से होती है।
  3. वह समाज जो इन दो विपरीत दशाओं के मध्य का है जहाँ खाद्यपूर्ति की स्थिति सामान्यतः अच्छी है, वहाँ जनसंख्या स्थायी होती है। 

इस प्रकार किसी समाज में जनसंख्या की वृद्धि या ह्रास उपरोक्त तीनों दशाओं पर निर्भर करता है।

डबलडे का कहना है कि खाद्यपूर्ति की कमी वाले समाज में प्रजननता अधिक पाई जाती है और खाद्यपूर्ति की बहुलता वाले समाज में यह कम पाई जाती है। उन्होंने मनुष्य की तुलना पशुओं और पक्षियों से की है। उन्होंने प्रजनन शक्ति का सम्बन्ध शरीर के आकार से स्थापित करने का प्रयास किया है। 

उनके अनुसार सभी जीवों की प्रजनन क्षमता उनके शरीर के आकार (मोटेपन या दुबलेपन) पर आधारित होती है। उन्होंने बताया कि मोटे पशु-पक्षी कम बच्चों को जन्म देते हैं और दुबले-पतले जीव अधिक बच्चे पैदा करते हैं। इसी प्रकार बहुत अधिक उर्वरक और जल पाने वाले पौधों में भी अधिक फल नहीं आते हैं।

डबलडे ने प्रजनन क्षमता पर आहार के प्रकार के प्रभाव की भी व्याख्या की है। उन्होंने बताया कि मांसाहारी व्यक्तियों की प्रजनन शक्ति कम होती है और शाकाहारी व्यक्तियों में यह अधिक पाई जाती है। मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार के भोजन करने वाले व्यक्तियों की प्रजनन क्षमता मध्यम प्रकार की होती है। इस प्रकार डबलडे ने खाद्यपूर्ति और जनसंख्या वृद्धि में विपरीत सम्बन्ध की पुष्टि की है।

इस प्रकार डबलडे का सिद्धान्त आशावादी है। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि खाद्यपूर्ति की वृद्धि होने से प्रजननता में कमी आती है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या और खाद्यपूर्ति में असंतुलन की स्थिति नहीं आने पाती है और खाद्यपूर्ति तथा सम्पत्तियों के वितरण में समानता आ जाती है।

सिद्धान्त की आलोचना

  • डबलडे ने प्रजननता (Fertility) और प्रजनन क्षमता (Fecundity) को समान मान लिया है जबकि दोनों में मौलिक अंतर है।
  • डबलडे के अनुसार धनी व्यक्ति मोटा होता है और उसकी प्रजनन शक्ति कम होती है, वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य नहीं है। उनका यह कथन भी अस्वाभाविक है कि धनी व्यक्तियों के कम बच्चे होते हैं और निर्धन व्यक्तियों के अधिक बच्चे होते हैं। 
  • डबलडे के अनुसार जनांकिकीय प्रवृत्तियों के द्वारा अंत में अच्छे समाजवाद की स्थापना हो जाएगी। उनकी यह अवधारणा कल्पना मात्र है।
  • इस सिद्धान्त में यह तथ्य निहित है कि खाद्यपूर्ति के अभाव में भोजन की कमी से और खाद्यपूर्ति की बहुलता की दशा में प्रजनन शक्ति में हास के कारण जनसंख्या समाप्त हो सकती है। किन्तु यह विचार पूर्णतया असत्य है क्योंकि मानव इतिहास में इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं।

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