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इस लेख को पढ़ने के बाद आप रोमन भूगोलवेत्ताओं पोम्पोनियस मेला व प्लिनी के भूगोल में योगदान (Contribution of Pomponius Mela and Pliny to Geography) को जान पाएंगे।
पोम्पोनियस मेला व प्लिनी का भूगोल में योगदान (Contribution of Pomponius Mela and Pliny to Geography)
पोम्पोनियस मेला (Pomponius Mela)
- पोम्पोनियस (प्रथम शताब्दी ईस्वी) दक्षिणी स्पेन के निवासी और रोमन भूगोलवेत्ता थे।
- उन्होंने भौगोलिक तथ्यों की जानकारी के लिए तत्कालीन ज्ञात कुछ स्थानों की यात्रा की और अपनी यात्रा का वर्णन अपनी पुस्तक में किया।
- पोम्पोनियस मेला ने पहले भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्रों की यात्रा की और बाद में इटली, यूनान, स्पेन, फ्रांस, सीरिया आदि देशों के अनेक स्थानों की यात्राएं की।
- पोम्पोनियस मेला ने लैटिन (स्पेनी) भाषा में छोटी-बड़ी कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें निम्नांकित तीन विशेष महत्वपूर्ण हैं-
प्रमुख रचनाएँ
ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmography)
मेला ने अपने कास्मोग्राफी नामक पुस्तक में ब्रह्मांड के विषय में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। उन्होंने पृथ्वी को ब्रह्मांड मध्य में स्थित बताया है। इसमें पृथ्वी के ग्रहीय सम्बंधों का विवरण है।
डिकोरोग्राफिया (De Chorographia)
इस पुस्तक में पृथ्वी को पाँच बृहत् कटिबंधों में विभक्त किया गया है-
1. उष्ण कटिबंध
2. उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध
3. दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध
4. उत्तरी शीत कटिबंध
5. दक्षिणी शीत कटिबंध
इस पुस्तक में उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध का भौगोलिक वर्णन किया गया है। इसमें मेला की भौगोलिक यात्राओं का भी वर्णन सम्मिलित है ।
स्काईलैक्स (Skylax)
स्काईलैक्स पुस्तक में भूमण्डल के विभिन्न प्रदेशों का संक्षिप्त भौगोलिक वर्णन है। इसमें मेला ने पृथ्वी के दो ध्रुव; उत्तरी और दक्षिणी बताया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि पृथ्वी के पाँच बृहत् कटिबंधों में से केवल दो कटिबंधों- उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध और दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध में ही मानव निवास के अनुकूल दशाएं पाई जाती हैं और मानव निवास के लिए उपयुक्त ये कटिबंध चारों ओर से जल (समुद्र) से घिरे हुए हैं। ये जलीय क्षेत्र हैं- भूमध्यसागर, हिन्द महासागर, सीथियन सागर और अनंत सागर ।
प्लिनी (Pliny)
- प्लिनी (27-79 ई०) का जन्म उत्तरी इटली के विक्रोना नामक स्थान पर हुआ था।
- प्लिनी ने कुशल प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नीरो तथा टाइटस के शासनकाल में कई उच्च पदों पर कार्य किया था।
- वे एक भूगोलवेत्ता के साथ-साथ महान गणितज्ञ और प्रशासक भी थे। प्लिनी ने पृथ्वी के पिण्डाकार स्वरूप को स्वीकार किया था और बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष (धुरी) पर झुकी हुई है जिसके कारण ऋतु परिवर्तन होता है।
- उन्होंने विभिन्न भागों के भौगोलिक वर्णन के साथ ही वहाँ की आकाशीय (वायुमंडलीय) दशाओं का भी उल्लेख किया है।
- प्लिनी की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘प्राकृतिक इतिहास’ (Historia Naturalis) है जिसमें 37 खण्ड हैं। इसके अतिरिक्त तीन अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं- जर्मनी में युद्धों का इतिहास, स्वकालीन इतिहास और मौसम विज्ञान । जिनका संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया गया है:
प्लिनी की प्रमुख रचनाएँ
प्राकृतिक इतिहास (Historia Naturalis)
37 खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक के प्रारंभिक दो खण्डों में आकाशीय पिण्डों और पृथ्वी के आकार, स्वरूप, धरातल और मौसम आदि का वर्णन है। तीसरे से लेकर छठें खण्ड तक विभिन्न प्रदेशों का भौगोलिक विवरण दिया गया है। सातवें से ग्यारहवें खण्ड तक मानवशास्त्र और जीव विज्ञान सम्बंधी विवरण मिलता है। शेष खण्डों में वनस्पति विज्ञान सम्बंधी तथ्यों का विवरण दिया गया है।
जर्मनी में युद्धों का इतिहास (History of Wars in Germany)
बीस खण्डों में प्रकाशित इस में जर्मनी के युद्धों का ऐतिहासिक विवरण दिया गया है।
स्वकालीन इतिहास (History of His Own Times)
साहित्यिक ढंग से लिखा गया यह ग्रंथ इक्कीस खण्डों में प्रकाशित हुआ था।
मौसम विज्ञान (Meteorology)
प्राकृतिक इतिहास के बाद यह प्लिनी का दूसरा महत्वपूर्ण भौगोलिक ग्रंथ है जिसमें भौतिक भूगोल और जलवायु विज्ञान के तथ्यों का विवरण दिया गया है। इसमें विभिन्न मौसमी दशाओं की उत्पत्ति, सूर्य और चन्द्र ग्रहण, ज्वालामुखी प्रस्फोट, भूकम्प आदि का तथ्यपूर्ण वर्णन किया गया है।
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