यांत्रिक या भौतिक अपक्षय (Mechanical or Physical Weathering)
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय
इस प्रकार के अपक्षय में चट्टानों का विघटन उनमें होने वाले भौतिक या यांत्रिक परिवर्तन का परिणाम होता हैं। सूर्यताप, तुषार तथा वायु द्वारा चट्टानों में विघटन होने की क्रिया को ‘यांत्रिक अपक्षय’ कहा जाता है।
अपक्षय (Weathering): अर्थ और प्रभावित करने वाले कारक
अपक्षय में चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया तथा उससे उस चट्टान विशेष या स्थान विशेष के अनावरण (uncover) की क्रिया को शामिल किया जाता है। अपक्षय की क्रिया में चट्टान-चूर्ण के परिवहन को शामिल नहीं किया जाता।
भूकम्प का विश्व वितरण (World Distribution of Earthquakes)
वैसे तो भूकम्पीय घटनाएँ पृथ्वी के धरातल पर व्यापक स्तर पर देखने को मिलती है फिर भी विश्व के भूकम्प मानचित्र को देखने से पता चलता है कि इसका सम्बन्ध स्थल के कुछ खास क्षेत्रों से है। भूकम्प के कारणों को जानने के बाद यह पता है कि भूकम्प क्षेत्रों चल जाता है कि भूकंप का सम्बन्ध भूपटल के कमजोर तथा अव्यवस्थित भागों से है।
भूकम्प का वर्गीकरण (Classification of Earthquakes)
भूकम्प के कारणों की जानने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि भूकम्प के स्वभाव में पर्याप्त अन्तर देखने को मिलता है। यदि हम संसार के विभिन्न भूकम्पों का अलग-अलग अध्ययन करें तो पाएंगे कि प्रत्येक भूकम्प की अपनी स्वयं की कुछ विशेषताएं होती हैं जो उसको दूसरे से अलग करती हैं। ये एक दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि इनको निश्चित श्रेणियों में विभाजित करना कठिन ही जाता है ।
भूकंप (Earthquake): अर्थ एवं कारण
भूकम्प, पृथ्वी की संतुलन अवस्था में परिवर्तन या अव्यवस्था उत्पन्न होने से आते हैं। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के अधिकतर भूकम्प प्रायः कमजोर धरातल एवं अव्यवस्थित भूपटल के नजदीक ही आते हैं। लेकिन यह बात सदैव सच हो ऐसा भी नहीं है क्योंकि अपेक्षकृत प्राचीन एवं स्थिर भू-भागों में भी भूकम्प आते हैं।
पर्वत के रूप (Form of Mountain)
पर्वत श्रृंखला को पर्वत माला भी कहा जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकार से निर्मित लम्बे तथा संकरे पर्वतों जिनका विस्तार समानान्तर रूप में पाया जाता है तथा जिनकी उत्पत्ति विभिन्न युगों में हुई हो, उसे पर्वत श्रृंखला कहा जाता है। कभी-कभी विभिन्न श्रेणियों के बीच सपाट भाग अथवा पठार भी पाए जाते हैं। अप्लेशियन पर्वत माला इसका प्रमुख उदाहरण है।
धुँआरे (Fumaroles): अर्थ, क्षेत्र एवं महत्त्व
धुँआरे या धूम्रछिद्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘फ्यूमरोल’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ऐसा छिद्र जिससे होकर गैस तथा वाष्प धरातल पर प्रकट होती हैं। धुँआरे को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो जोरों से धुँआ ही धुँआ, निकल रहा है। इसी कारण से इन्हें ‘धूम्रछिद्र अथवा धुँआरे’ कहते है।
गेसर(Geyser): अर्थ, प्रकार एवं वितरण
गेसर या उष्णोत्स एक प्रकार का गर्म जल का स्त्रोत होता है, जिससे समय-समय पर गर्म जल तथा वाष्प निकलता रहता है। ‘गेसर’ शब्द की उत्पत्ति आइसलैंड की भाषा के शब्द ‘गेसिर’ (geysir) से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘तेजी से उछलता हुआ’ (gusher) अथवा ‘फुहार छोड़ने वाला’ (spouter)। वास्तव में ‘गेसर’ शब्द का प्रयोग आइसलैण्ड के उष्ण जल के स्रोत ‘ग्रेट गेसर’ के उछलते हुए जल के लिए ही किया गया था।
बहिर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियाँ (Extrusive Volcanic Landforms)
ज्वालामुखी में होने वाले केन्द्रीय विस्फोट या उद्गार में गैस तथा वाष्प, लावा तथा अन्य विखण्डित पदार्थों तीव्र गति के साथ धरातल पर प्रकट होते हैं। इन पदार्थों के जमाव से अनेक प्रकार के ऊँचे उठे भागों का निर्माण होता है, जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है
ज्वालामुखी क्रिया से बनने वाले आंतरिक स्थलरूप (Intrusive Volcanic Landforms)
ज्वालामुखी क्रिया में बनने वाली स्थलाकृतियाँ ज्वालामुखी विस्फोट या उद्गार के समय निकलने वाले लावा तथा विखण्डित पदार्थों के अनुपात तथा उनकी मात्रा तथा गुणों पर आधारित होती हैं। जब ज्वालामुखी में उद्गार विस्फोट के साथ होता है तो विखण्डित पदार्थ तथा ज्वालामुखी धूल अधिक होती है और जब ज्वालामुखी में उद्गार शान्त रूप में होता है तो लावा की अधिक निकलता है, जिसके कारण विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
ज्वालामुखी का विश्ववितरण (World Distribution of Volcanoes)
विश्व के लगभग दो तिहाई ज्वालामुखी प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों (island arcs) तथा समुद्रीय द्वीपों के सहारे पाए जाते हैं। ज्वालामुखी की इस मेखला को ‘प्रशान्त महासागर का ज्वालावृत्त’ (fire girdle of the Pacific Ocean अथवा Fire Ring of Pacific) कहते हैं।
ज्वालामुखी उद्गार के कारण (Causes of Volcanic Eruption)
यदि ज्वालामुखी के धरातल पर वितरण को देखें तो पाएंगे कि अधिकतर ज्वालामुखी भूपटल के कमजोर भागों में पाए जाते हैं तथा भूकम्प से इनका गहरा सम्बन्ध होता है । हालांकि हिमालय क्षेत्र इसके अपवाद हैं, क्योंकि यहाँ पर भूकम्प अधिकतर आते रहते हैं, लेकिन ज्वालामुखी घटनाएँ नगण्य हैं। ज्वालामुखियों का सागर तटों के सहारे पाया जाना इस बात ओर इशारा करता है कि जल एवं ज्वालामुखी के उद्गार में गहरा सम्बन्ध है।
उद्गार की अवधि (सक्रियता) के अनुसार ज्वालामुखी का वर्गीकरण (Classification of volcanoes according to duration of eruption)
ज्वालामुखी चाहे कैसे भी हों, केन्द्रीय उद्गार वाले हों या दरारी उद्गार वाले, सब एक समान रूप से क्रियाशील नहीं होते हैं। कुछ ज्वालामुखी उद्गार के तुरंत बाद ही समाप्त हो जाते हैं तथा कुछ ज्वालामुखी कुछ समय के बाद पुन: प्रकट होते रहते हैं। इस प्रकार उद्गार के समय तथा दो उद्गारों के बीच अवकाश के आधार अर्थात् ज्वालामुखी की सक्रियता के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में बाँटा गया है
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcanoes)
जहां एक ओर कुछ ज्वालामुखी बहुत तेज आवाज के साथ विस्फोटक रूप में धरातल पर प्रकट होते हैं, वहीं कुछ दूसरे ज्वालामुखी शान्त रूप में दरार के रूप में धरातल पर प्रकट होते हैं। जबकि कुछ ज्वालामुखी उद्गार के बाद जल्दी ही शान्त हो जाते हैं व कुछ काफी समय तक सक्रिय रहते हैं।
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ व ज्वालामुखी के अंग (Materials Ejected by Volcanoes and Parts of Volcano)
ज्वालामुखी क्विस्फोट के समय होने वाले उद्गार से विभिन्न प्रकार के पदार्थ निकलते हैं। इन पदार्थों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
1. गैस तथा जलवाष्प 2.विखण्डित पदार्थ (fragmental materials) 3. लावा पदार्थ