नदी अपरदन का सिद्धान्त (Principal of River Erosion)
नदी का अपरदन कार्य नदी के ढाल तथा वेग एवं उसमें स्थित नदी के बोझ (अवसाद भार) पर निर्भर होता है। नदी के अवसाद भार (sediment load) के अन्तर्गत ग्रैवेल, रेत, सिल्ट तथा क्ले को शामिल किया जाता है। ग्रैवेल के अन्तर्गत बोल्डर (256 mm), कोबुल (64-256mm), पेबुल (4-64 mm) तथा ग्रैनूल (2-4mm) आते हैं।
नदी किसे कहते हैं? (What is called a River?)
वर्षा का जो जल धरातल पर किसी न किसी रूप में बहने लगता है, उसे बाही जल (runoff) कहते हैं। जब यही बाही जल एक निश्चित रूप में ऊँचाई से निचले ढाल पर गुरुत्वाकर्षण के कारण बहने लगता है तो उसे नदी या सरिता कहा जाता है।
अपक्षय के भ्वाकृतिक प्रभाव (Geomorphic Effects of Weathering)
विशेषक अपक्षय (differential weathering) द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। जैसे जालीदार पत्थर (stone lattice), हागबैक, अपदलन गुम्बद (exfoliation domes), मेसा, बुटी (buttes) के निर्माण का प्रमुख कारक विशेषक अपक्षय (differential weathering) ही बताया गया है, परन्तु यहां यह भी याद रखना है कि इनके निर्माण में नदियों के बहते जल का योगदान अधिक रहता है।
जैविक अपक्षय (Biological Weathering)
प्राणिवर्गीय या जैविक अपक्षय के कारणों में वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु एवं मानव तीनों चट्टानों के विघटन तथा वियोजन क्रियाओं में महत्त्पूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीव-जन्तु विशेषकर जो बिलो में रहते हैं, वें पृथ्वी की सतह को खोदते रहते हैं, जिससे अपक्षय को बढ़ावा मिलता है।
रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
हम जानते हैं कि वायुमण्डल के निचले भाग में आक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड गैसों तथा जलवाष्प आदि की प्रधानता होती है। जब तक ये गैसें नमी या जल के सम्पर्क में नहीं आती है, तब तक अपक्षय की दृष्टि से ये तत्व महत्त्पूर्ण या क्रियाशील नहीं होते। परन्तु जैसे ही इनका सम्पर्क जल से हो जाता है, ये सक्रिय घोलक के रूप में काम करना शुरू कर देते हैं।
यांत्रिक या भौतिक अपक्षय (Mechanical or Physical Weathering)
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय
इस प्रकार के अपक्षय में चट्टानों का विघटन उनमें होने वाले भौतिक या यांत्रिक परिवर्तन का परिणाम होता हैं। सूर्यताप, तुषार तथा वायु द्वारा चट्टानों में विघटन होने की क्रिया को ‘यांत्रिक अपक्षय’ कहा जाता है।
अपक्षय (Weathering): अर्थ और प्रभावित करने वाले कारक
अपक्षय में चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया तथा उससे उस चट्टान विशेष या स्थान विशेष के अनावरण (uncover) की क्रिया को शामिल किया जाता है। अपक्षय की क्रिया में चट्टान-चूर्ण के परिवहन को शामिल नहीं किया जाता।
भूकम्प का विश्व वितरण (World Distribution of Earthquakes)
वैसे तो भूकम्पीय घटनाएँ पृथ्वी के धरातल पर व्यापक स्तर पर देखने को मिलती है फिर भी विश्व के भूकम्प मानचित्र को देखने से पता चलता है कि इसका सम्बन्ध स्थल के कुछ खास क्षेत्रों से है। भूकम्प के कारणों को जानने के बाद यह पता है कि भूकम्प क्षेत्रों चल जाता है कि भूकंप का सम्बन्ध भूपटल के कमजोर तथा अव्यवस्थित भागों से है।
भूकम्प का वर्गीकरण (Classification of Earthquakes)
भूकम्प के कारणों की जानने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि भूकम्प के स्वभाव में पर्याप्त अन्तर देखने को मिलता है। यदि हम संसार के विभिन्न भूकम्पों का अलग-अलग अध्ययन करें तो पाएंगे कि प्रत्येक भूकम्प की अपनी स्वयं की कुछ विशेषताएं होती हैं जो उसको दूसरे से अलग करती हैं। ये एक दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि इनको निश्चित श्रेणियों में विभाजित करना कठिन ही जाता है ।
भूकंप (Earthquake): अर्थ एवं कारण
भूकम्प, पृथ्वी की संतुलन अवस्था में परिवर्तन या अव्यवस्था उत्पन्न होने से आते हैं। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के अधिकतर भूकम्प प्रायः कमजोर धरातल एवं अव्यवस्थित भूपटल के नजदीक ही आते हैं। लेकिन यह बात सदैव सच हो ऐसा भी नहीं है क्योंकि अपेक्षकृत प्राचीन एवं स्थिर भू-भागों में भी भूकम्प आते हैं।
पर्वत के रूप (Form of Mountain)
पर्वत श्रृंखला को पर्वत माला भी कहा जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकार से निर्मित लम्बे तथा संकरे पर्वतों जिनका विस्तार समानान्तर रूप में पाया जाता है तथा जिनकी उत्पत्ति विभिन्न युगों में हुई हो, उसे पर्वत श्रृंखला कहा जाता है। कभी-कभी विभिन्न श्रेणियों के बीच सपाट भाग अथवा पठार भी पाए जाते हैं। अप्लेशियन पर्वत माला इसका प्रमुख उदाहरण है।
धुँआरे (Fumaroles): अर्थ, क्षेत्र एवं महत्त्व
धुँआरे या धूम्रछिद्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘फ्यूमरोल’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ऐसा छिद्र जिससे होकर गैस तथा वाष्प धरातल पर प्रकट होती हैं। धुँआरे को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो जोरों से धुँआ ही धुँआ, निकल रहा है। इसी कारण से इन्हें ‘धूम्रछिद्र अथवा धुँआरे’ कहते है।
गेसर(Geyser): अर्थ, प्रकार एवं वितरण
गेसर या उष्णोत्स एक प्रकार का गर्म जल का स्त्रोत होता है, जिससे समय-समय पर गर्म जल तथा वाष्प निकलता रहता है। ‘गेसर’ शब्द की उत्पत्ति आइसलैंड की भाषा के शब्द ‘गेसिर’ (geysir) से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘तेजी से उछलता हुआ’ (gusher) अथवा ‘फुहार छोड़ने वाला’ (spouter)। वास्तव में ‘गेसर’ शब्द का प्रयोग आइसलैण्ड के उष्ण जल के स्रोत ‘ग्रेट गेसर’ के उछलते हुए जल के लिए ही किया गया था।
बहिर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियाँ (Extrusive Volcanic Landforms)
ज्वालामुखी में होने वाले केन्द्रीय विस्फोट या उद्गार में गैस तथा वाष्प, लावा तथा अन्य विखण्डित पदार्थों तीव्र गति के साथ धरातल पर प्रकट होते हैं। इन पदार्थों के जमाव से अनेक प्रकार के ऊँचे उठे भागों का निर्माण होता है, जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है
ज्वालामुखी क्रिया से बनने वाले आंतरिक स्थलरूप (Intrusive Volcanic Landforms)
ज्वालामुखी क्रिया में बनने वाली स्थलाकृतियाँ ज्वालामुखी विस्फोट या उद्गार के समय निकलने वाले लावा तथा विखण्डित पदार्थों के अनुपात तथा उनकी मात्रा तथा गुणों पर आधारित होती हैं। जब ज्वालामुखी में उद्गार विस्फोट के साथ होता है तो विखण्डित पदार्थ तथा ज्वालामुखी धूल अधिक होती है और जब ज्वालामुखी में उद्गार शान्त रूप में होता है तो लावा की अधिक निकलता है, जिसके कारण विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।