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मानव भूगोल की प्रकृति (Nature of Human Geography)

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मानव भूगोल की प्रकृति (Nature of Human Geography)

हम जानते हैं कि घर, गाँव, नगर, सड़कों व रेलों का उद्योग, खेत, पत्तन, दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ आदि भौतिक पर्यावरण द्वारा दिए गए संसाधनों का उपयोग करते हुए मानव द्वारा निर्मित किए गए हैं। इन मानवीय तत्वों तथा भौतिक पर्यावरण के बीच, समय व स्थान के साथ बदलते हुए संबंधों का अध्ययन मानव भूगोल है। समय-समय पर मानव भूगोल को विभिन्न विद्वानों द्वारा परिभाषित किया जाता रहा है जिनमें से कुछ के उदाहरण निम्नलिखित हैं।

मानव भूगोल की परिभाषाएँ (Definitions of Human Geography)

रैटजेल के अनुसार “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।“

ऊपर दी गई परिभाषा में संश्लेषण पर जोर दिया गया है।

एलन सी. सेंपल के अनुसार “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।“

सेंपल की परिभाषा में संबंधों की गत्यात्मकता मुख्य शब्द है।

पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार “हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना।“  

मनुष्य के प्रकृति के साथ बदलते हुए संबंधों के अध्ययन के माध्यम से हम मानव भूगोल की प्रकृति को भली-भांति समझ सकते है। यहां हम मानव भूगोल की प्रकृति को निम्नलिखित उदाहरणों या विवरणों के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे।  

मानव का प्राकृतीकरण (Naturalization of Human)

मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानवजनित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के अंतर संबंधों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्य क्रिया के द्वारा करता है। मनुष्य अपनी प्रौद्योगिकी (technology)  की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया (interaction) करता है। इसमें यह  महत्त्वपूर्ण नहीं है, कि मानव क्या उत्पन्न और निर्माण करता है, बल्कि यह महत्व रखता है कि वह ‘किन उपकरणों और तकनीकों की सहायता से उत्पादन और निर्माण करता है’।

यदि देखा जाए तो प्रौद्योगिकी (technology) किसी समाज के सांस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक होती है। मानव प्रकृति के बनाए नियमों को बेहतर ढंग से समझने के बाद ही प्रौद्योगिकी (technology) का विकास कर पाया। उदाहरण के लिए, घर्षण और ऊष्मा की संकल्पनाओं (concepts) ने अग्नि की खोज में हमारी सहायता की। इसी प्रकार डी.एन.ए. और आनुवांशिकी (genetics) के रहस्यों की समझ ने हमें अनेक बीमारियों पर विजय पाने के योग्य बनाया। अधिक तीव्र गति से चलने वाले यान विकसित करने के लिए हम वायु गति के नियमों का प्रयोग करते हैं।

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आप देख सकते हैं कि प्रकृति का ज्ञान प्रौद्योगिकी (technology) को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है और प्रौद्योगिकी (technology)  मनुष्य पर पर्यावरण की बंदिशों को कम करती है। प्राकृतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया (interaction) की आरंभिक अवस्थाओं में मानव इससे अत्यधिक प्रभावित हुआ था। उन्होंने प्रकृति के आदेशों के अनुसार अपने आप को ढाल लिया। इसका कारण यह है कि प्रौद्योगिकी (technology)  का स्तर अत्यंत निम्न था और मानव के सामाजिक विकास की अवस्था भी आदिम (primitive) थी।

आदिम मानव समाज और प्रकृति की प्रबल शक्तियों के बीच इस प्रकार की अन्योन्यक्रिया (interaction)  को पर्यावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism) कहा गया। प्रौद्योगिक विकास की उस अवस्था में हम प्राकृतिक मानव की कल्पना कर सकते हैं जो प्रकृति को सुनता था, उसकी प्रचंडता से भयभीत होता था और उसकी पूजा करता था।

आइए मानव के प्राकृतीकरण को एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं

बेंदा मध्य भारत के अबूझमाड़ क्षेत्र के जंगलों में रहता है। उसके गाँव में तीन झोपड़ियाँ हैं जो जंगल के बीच हैं। यहाँ तक कि पक्षी और आवारा कुत्ते जिनकी भीड़ प्रायः गाँवों में मिलती है, भी यहाँ दिखाई नहीं देते। छोटी लंगोटी पहने और हाथ में कुल्हाड़ी लिए वह पेंडा (वन) का सर्वेक्षण करता है, जहाँ उसका कबीला कृषि का आदिम रूप स्थानांतरी कृषि करता है। बेंदा और उसके मित्र वन के छोटे टुकड़ों को जुताई के लिए जलाकर साफ़ करते हैं। राख का उपयोग मृदा को उर्वर बनाने के लिए किया जाता है। अपने चारों ओर खिले हुए महुआ वृक्षों को देखकर बेंदा प्रसन्न है।

जैसे ही वह महुआ, पलाश और साल के वृक्षों को देखता है; जिन्होंने बचपन से ही उसे आश्रय दिया है, वह सोचता है कि इस सुंदर ब्रह्मांड का अंग बनकर वह कितना सौभाग्यशाली है। विसर्पी गति से पेंडा को पार करके बेंदा नदी तक पहुँचता है। जैसे ही वह चुल्लू भर जल लेने के लिए झुकता है, उसे वन की आत्मा लोई-लुगी की प्यास बुझाने की स्वीकृति देने के लिए धन्यवाद करना याद आता है।

अपने मित्रों साथ आगे बढ़ते हुए बेंदा गूदेदार पत्तों और कंदमूल को चबाता है। लड़के वन से गज्ज्हरा और कुचला का संग्रहण करने का प्रयास कर रहे हैं। ये विशिष्ट पादप हैं जिनका प्रयोग बेंदा और उसके लोग करते हैं। वह आशा करता है कि वन की आत्माएँ दया करेंगी और उसे उन जड़ी बूटियों तक ले जाएँगी। ये आगामी पूर्णिमा को मधाई अथवा जनजातीय मेले में वस्तु विनिमय के लिए आवश्यक है।

वह अपने नेत्र बंद करके स्मरण करने का कठिन प्रयत्न करता है, जो उसके बुजुर्गों ने उन जड़ी बूटियों और उनके पाए जाने वाले स्थानों के बारे में समझाया था। वह चाहता है कि काश उसने अधिक ध्यानपूर्वक सुना होता। अचानक पत्तों में खड़खड़ाहट होती है। बेंदा और उसके मित्र जानते हैं कि ये बाहरी लोग हैं जो इन जंगलों में उन्हें ढूँढ़ते हुए आए हैं। एक ही प्रवाही गति से बेंदा और उसके मित्र सघन वृक्षों के वितान के पीछे अदृश्य हो जाते हैं और वन की आत्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं।

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यह उदाहरण आर्थिक दृष्टि से पिछड़े आदिम समाज से संबंधित एक घर के भौतिक पर्यावरण के साथ प्रत्यक्ष संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे अन्य आदिम (primitive) समाजों के बारे में पढ़ने के बाद आप अनुभव करेंगे कि ऐसे सभी प्रकरणों में प्रकृति एक शक्तिशाली बल, पूज्य, सत्कार योग्य तथा संरक्षित है। सतत (sustainable) पोषण हेतु मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। ऐसे समाजों के लिए भौतिक पर्यावरण ‘माता- प्रकृति’ का रूप धारण करता है।

प्रकृति का मानवीकरण (Humanization of Nature)

समय बीतने साथ लोग अपने पर्यावरण व प्राकृतिक बलों को समझने लगते हैं। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ-2 मानव बेहतर और अधिक सक्षम प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। वे अभाव की अवस्था से स्वतंत्रता की अवस्था की ओर बढते हैं। पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के द्वारा वे संभावनाओं को जन्म देते हैं। इस प्रकार मानवीय क्रियाएँ सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना करती हैं।

मानवीय क्रियाओं की छाप सर्वत्र है, उच्च भूमियों पर स्वास्थ्य विश्रामस्थल, विशाल नगरीय प्रसार, खेत, फलोद्यान, मैदानों व तरंगित पहाड़ियों में चरागाहें, तटों पर पत्तन और महासागरीय तल पर समुद्री मार्ग तथा अंतरिक्ष में उपग्रह इत्यादि । पहले के विद्वानों ने इसे संभववाद (possibilism) का नाम दिया। इनका मानना था कि प्रकृति अवसर प्रदान करती और मानव उनका उपयोग करता है तथा धीरे-धीरे प्रकृति का मानवीकरण हो जाता है तथा प्रकृति पर मानव का प्रभाव पड़ने लगता है।

आइए प्रकृति का मानवीकरण को भी एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं

ट्रॉन्डहाईम (Trondheim), नॉर्वे (Norway) शहर में सर्दियों का अर्थ है- प्रचंड पवनें और भारी हिम। महीनों तक आकाश अदीप्त रहता है। कैरी प्रातः 8 बजे अँधेरे में कार से काम पर जाती है। सर्दियों के लिए उसके पास विशेष टायर हैं और वह अपनी शक्तिशाली कार की लाइटें जलाए रखती है। उसका कार्यालय सुखदायक 23 डिग्री सेल्सियस पर कृत्रिम ढंग से गर्म रहता है। विश्वविद्यालय (university) का परिसर जिसमें वह काम करती है, काँच के एक विशाल गुंबद (dome) के नीचे बना हुआ है।

यह गुंबद (dome) सर्दियों में हिम को बाहर रखता है और गर्मियों में धूप को अंदर आने देता है। तापमान को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाता है और वहाँ पर्याप्त प्रकाश होता है। यद्यपि ऐसे रूक्ष मौसम में नयी सब्जियाँ और पौधे नहीं उगते। कैरी अपने डेस्क पर आर्किड (orchid) रखती है और उष्णकटिबंधीय (tropical) फलों जैसे केला व किवी का आनन्द लेती है। ये नियमित रूप से वायुयान द्वारा उष्ण क्षेत्रों से मँगाए जाते हैं।

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माउस की एक क्लिक के साथ कैरी नयी दिल्ली में अपने सहकर्मियों से कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़ जाती है। वह प्रायः लंदन के लिए सुबह की उड़ान लेती है और शाम को अपना मनपसंद टेलिविजन सीरियल देखने के लिए सही समय पर वापस पहुँच जाती है। यद्यपि कैरी 58 वर्षीय है फिर भी वह विश्व के अन्य भागों के अनेक 30 वर्षीय लोगों से अधिक स्वस्थ और युवा दिखती है।

क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि ऐसी जीवन कैसे संभव हुआ यह प्रौद्योगिकी है जिसके कारण ट्रॉन्डहाईम (Trondheim) के लोग व उन जैसे अन्य लोग प्रकृति द्वारा लगाए गए अवरोधो पर विजय पाने के लिए सक्षम हुए हैं।

भूगोलवेता ग्रिफिथ टेलर ने एक नयी संकल्पना प्रस्तुत की है जो दो विचारों पर्यावरणीय निश्चयवाद (Environmental Determinism) और संभववाद (possibilism) के बीच मध्य मार्ग को दर्शाती है। उन्होंने इसे नवनिश्यचवाद (Neo Determinism) अथवा रुको और जाओ (Stop and Go) निश्चयवाद का नाम दिया। हम सब जानते हैं कि नगर में चौराहों पर यातायात का नियंत्रण बत्तियों (Traffic Lights) द्वारा होता है। लाल बत्ती का अर्थ है रुको, पीली बत्ती, लाल और हरी बत्तियों के बीच रूककर तैयार रहने का अंतराल प्रदान करती है और हरी बत्ती का अर्थ है जाओ।

इस प्रकार यह संकल्पना दर्शाती है कि न तो यहाँ नितांत आवश्यकता की स्थिति (पर्यावरणीय निश्चयवाद) है और न ही नितांत स्वतंत्रता (संभववाद) की दशा है। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक नियमों का पालन करके हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें लाल संकेतों पर प्रत्युत्तर देना होगा और जब प्रकृति रूपांतरण की स्वीकृति दे तो वे अपने विकास के प्रयत्नों में आगे बढ़ सकते हैं। इसका तात्पर्य है कि उन सीमाओं में, जो पर्यावरण की हानि न करती हों, संभावनाओं को उत्पन्न किया जा सकता है। तथा अंधाधुंध रफ्तार दुर्घटनाओं से मुक्त नहीं होती है।

विकसित देशों के द्वारा चली गई मुक्त चाल के परिणामस्वरूप आज हम हरितगृह प्रभाव (Greenhouse effect), ओजोन परत अवक्षय (Ozone layer depletion), भूमंडलीय तापन (Global warming), पीछे हटती हिमनदियाँ (Retreating glaciers), निम्नीकृत भूमियाँ (Degraded lands) आदि देख रहे हैं। इस प्रकार नवनिश्चयवाद (Neo Determinism)  एक संतुलन बनाने का प्रयास करता है जो संभावनाओं के बीच अपरिहार्य (indispensable) चयन द्वैतवाद (Dualism) को निष्फल करता है।

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