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ब्रिटेन में भूगोल की प्रमुख शाखाएं (Major Branches of Geography in Britain)

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ब्रिटेन में भूगोल की प्रमुख शाखाएं (Major Branches of Geography in Britain)

ब्रिटेन में भूगोल में विशिष्टीकरण और उसकी विभिन्न शाखाओं का विकास बीसवीं शताब्दी में हुआ। ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल की जिन शाखाओं को विकसित किया उनमें राजनीतिक भूगोल, प्रादेशिक भूगोल, भौतिक भूगोल, मानव भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, आर्थिक भूगोल और नगरीय भूगोल प्रमुख हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है: 

राजनीतिक भूगोल (Political Geography)

ब्रिटेन में राजनीतिक भूगोल के विकास में मैकिण्डर का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् 1919 में प्रकाशित उनकी प्रसिद्ध पुस्तक Democratic Ideals and Reality(लोकतंत्रीय आदर्श एवं यथार्थता) राजनीतिक भूगोल की गंभीर पुस्तक है। इसमें यूरेशिया के आंतरिक भाग को ‘हृदयस्थल’ (Heartland) कहा गया है। 

मैकिण्डर ने इस पुस्तक में अपने ‘हृदयस्थल सिद्धंत’ (Heartland Theory) की व्याख्या किया है। उन्होंने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सम्मिलित महाद्वीप बताया और उसे ‘विश्व द्वीप’ (World Island) का नाम दिया था। मैकिण्डर के इस सिद्धांत का भूगोलवेत्ताओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा और विश्व की भूराजनीति (Geopolitics) पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाने लगा। 

प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)

प्रादेशिक भूगोल के विकास में हरबर्टसन (A. J. Herbertson) का विशिष्ट योगदान रहा है। उन्होंने सर्वप्रथम 1905 विश्व को 15 बृहत् प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया और उनकी विशेषताओं का भौगोलिक विश्लेषण किया। हरबर्टसन ने विश्व के प्रादेशिक अध्ययन के लिए राजनीतिक विभागों के स्थान पर प्राकृतिक प्रदेशों (Natural regions) को अध्ययन इकाई माना था। 

उनके मतानुसार एक प्राकृतिक प्रदेश में भौतिक दशाओं के साथ-साथ मानवीय दशाओं में भी काफी समरूपता पायी जाती है। हरबर्टसन ने प्राकृतिक प्रदेशों और मानव के बीच निश्चित सम्बंध की व्याख्या की थी। हरबर्टसन के पश्चात् एक अन्य ब्रिटिश भूगोलवेत्ता पी.एम. राक्सबी (P.M. Roxby) ने मानव प्रदेशों (Human Regions) की संकल्पना का विस्तृत विश्लेषण किया। राक्सबी के अनुसार दो समरूप प्राकृतिक प्रदेश अपने स्थानिक सम्बंधों के कारण एक-दूसरे से भिन्न हो जाते हैं। डडले स्टाम्प ने भी ब्रिटेन, एशिया और अफ्रीका का प्रादेशिक भूगोल लिखा था। 

ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)

ब्रिटेन में ऐतिहासिक भूगोल को लोकप्रिय बनाने और उच्च स्तर प्रदान कराने में हाफोर्ड मैकिण्डर का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में स्वतंत्र भूगोल विभाग की स्थापना के पश्चात् मैकिण्डर को वहाँ रीडर नियुक्त किया गया था। रायल ज्योग्राफिकल सोसाइटी के माध्यम से वह ब्रिटेन के अनेक विश्वविद्यालययों तथा शैक्षणिक संस्थाओं में भूगोल विशेषकर ऐतिहासिक भूगोल से सम्बंधित सारगर्भित भाषण दिये। 

गंभीर अध्ययन के पश्चात् 1902 में मैकिण्डर ने ऐतिहासिक भूगोल की एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक था ‘Britain and the British Seas’ (ब्रिटेन और ब्रिटिश सागर)। मैकिण्डर ने इस पुस्तक की पृष्ठभूमि में ब्रिटेन के इतिहास की भौगोलिक दृष्टिकोण से समीक्षा की है। मैकिण्डर ने 1904 में ‘The Geographical Pivot of History’ (इतिहास की भौगोलिक धुरी) शीर्षक से रायल ज्योग्राफिकल सोसाइटी के सम्मुख एक लेख पढ़ा था जिससे ब्रिटिश भूगोल को एक नयी दिशा प्राप्त हुई। 

मानव भूगोल (Human Geography)

ब्रिटेन में मानव भूगोल का विकास जर्मनी और फ्रांस की भाँति एक पृथक् विज्ञान के रूप में अधिक नहीं हुआ बल्कि इसकी कुछ प्रमुख शाखाओं यथा राजनीतिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, नगरीय भूगोल आदि के विकास पर अधिक ध्यान दिया गया। मानव भूगोल के q में हाफोर्ड मैकिण्डर, पी. डब्ल्यू, ब्रायन, एच. जे. फ्ल्यूर, सी.डी. फोर्ड आदि भूगोलवेत्ताओं के योगदान विशेष उल्लेखनीय हैं। ‘हृदयस्थल संकल्पना’ (Heartland Theory) मैकिण्डर की ही देन है। 

पी. डक्ल्यू. ब्रायन (P. W. Brayan) ने ‘Man’s Adaptation of Nature’ (मनुष्य का प्रकृति से अनुकूलन) नामक मानव भूगोल की पुस्तक लिखा था जिसका प्रकाशन 1933 में हुआ था। वे सांस्कृतिक भूदृश्य की व्याख्या को मानव भूगोल की मुख्य विषय वस्तु मानते थे। उनके अनुसार सांस्कृतिक भूदृश्य मानवीय क्रियाओं और प्राकृतिक पर्यावरण की ठोस अभिव्यक्ति है। 

पी.एम. राक्सबी अग्रणीय ब्रिटिश भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने ‘मानव प्रदेशों’ (Human Regions) की संकल्पना का विस्तृत विवेचन किया। उन्होंने ब्रिटिश भूगोल परिषद् के सम्मुख अपने अध्यक्षीय भाषण (1930) में ‘मानव भूगोल का विषय क्षेत्र एवं उद्देश्य (Scope and Aim of Human Geography) पर बिद्वतापूर्ण प्रकाश डाला था जिसका मानव भूगोल के विकास में उल्लेखनीय योगदान है। 

ब्रिटेन के प्रमुख भूगोलवेत्ता और मानव विज्ञानी एच. जे. फ्ल्यूर (H. J. Fleure) ने मानव भूगोल से सम्बंधित अनेक विद्वतापूर्ण लेख और पुस्तकें प्रकाशित किया है। उनकी पुस्तकों में ‘पश्चिमी यूरोप में मानव भूगोल’ (Human Geography in West Europe), ‘मानव जाति’ (The Races of Mankind), ‘मानव और वनमानुष’ (Man and Ape), और ‘समाज और पर्यावरण की समस्याएं’ (Problems of Society and Environment) अधिक महत्वपूर्ण हैं। 

सी.डी. फोर्ड (C. D. Frode) की पुस्तक ‘Habitat, Economy and Society’ (आवास, अर्थव्यवस्था और समाज) का मानव भूगोल में विशिष्ट स्थान है। पीटर हैगेट को आधुनिक मानव भूगोल का विशेषज्ञ माना जाता है। मानव भूगोल में उन्होंने मात्रात्मक विधियों के प्रयोग तथा माडल निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। 

नगरीय भूगोल (Urban Geography)

नगरीय भूगोल के क्षेत्र में ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं के महत्वपूर्ण योगदान हैं। डिकिन्सन की पुस्तक ‘City Region and Regionalism’ (1947) और ‘The West European City’ (1951) का नगरीय भूगोल में प्रतिष्ठापूर्ण स्थान है। पेट्रिक गेडिस, लुई मम्फोर्ड, सी.बी. फासेट, ए. ई. स्मेल्स आदि ब्रिटिश भूगोलविदों का नगरीय भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। 

पैट्रिक गेडिस (Patrick Geddes) को यूरोप में नगरीय भूगोल का जनक (Father of Urban geography) के रूप में जाना जाता है। गेडिस की प्रसिद्ध पुस्तक ‘Cities in Evolution’ (विकासमान नगर) लंदन से 1915 में प्रकाशित हुई थी। इसमें गेडिस द्वारा प्रतिपादित सन्नगर संकल्पना (Conurbation Concept) का विवरण है। उन्होंने ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस आदि यूरोपीय देशों तथा उत्तरी अमेरिका के अनेक नगरीय प्रदेशों का अध्ययन किया था। बाह्य विस्तार के परिणामस्वरूप कई नगरों के परस्पर मिल जाने से निर्मित सतत नगरीकृत क्षेत्र को गेडिस ने सन्नगर (Conurbation) की संज्ञा प्रदान की थी। 

पैट्रिक गेडिस के कार्यों तथा कार्य-विधियों का परवर्ती शोधकर्ताओं और लेखकों पर अधिक प्रभाव पड़ा विशेष रूप से नगर नियोजन के विषय पर। नागर-योजना के निर्माण पर गेडिस के जैविक उपागम का व्यापक प्रभाव दिखायी पड़ता है। गेडिस के पश्चात् सी.बी. फासेट (C. B. Fawcett) ने 1921 तथा 1931 में और फ्रीमैन (T. W. Freeman) ने 1959 में ब्रिटेन के नगरों का अध्ययन करते हुए सन्नगर की संकल्पना को ठोस आधार प्रदान किया। 

लेविस मम्फोर्ड (Lewis Mumford) द्वारा 1938 में प्रकाशित पुस्तक ‘The Culture of Cities’ (नगरों की सभ्यता) नगरीय विकास और संरचना पर प्रकाश डालती है जिसका नगरीय भूगोल में विशिष्ट स्थान है। लेविस मम्फोर्ड ने विकास अवस्था के आधार पर नगरों को छः वर्गों में विभक्त किया है- 

  1. पूर्वनगर या इओपोलिस (Evopolis)
  2. नगर या पोलिस (Polis)
  3. महानगर या मेट्रोपोलिस (Metropolis)
  4. बृहनगर या मेगालोपोलिस (Megalopolis)
  5. हासोन्मुख नगर या टायरेनोपोलिस (Tyranopolis)
  6. नष्टप्राय नगर या नेक्रोपोलिस (Nekropolis) 

1953 में ब्रिटिश भूगोलवेत्ता स्मेल्स (A. E. Smailes) की पुस्तक ‘Geography of Towns’ (नगरों का भूगोल) प्रकाशित हुई जिसे आधुनिक नगरीय भूगोल की उत्कृष्ट रचना माना जाता है। 

अनुप्रयुक्त भूगोल (Applied Geography)

ब्रिटिश भूगोलवेत्ता सर डडले स्टाम्प (L.D. Stamp) ने ब्रिटेन में अनुप्रयुक्त भूगोल का आरम्भ किया था। उन्होंने अनुप्रयुक्त भूगोल (Applied Geography) नामक एक पुस्तक भी लिखा था जिसमें व्यावहारिक या अनुप्रयुक्त भूगोल से सम्वद्ध पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। स्टाम्प ने ब्रिटेन में भूमि उपयोग सर्वेक्षण को आगे चढ़ाने में सराहनीय कार्य किया था। स्टाम्प ने सर्वे डायरेक्टर के रूप में कार्य करते हुए ब्रिटेन के भूमि उपयोग का सवेक्षण कराया। उन्होंने अपनी मौलिक पद्धति का प्रयोग करते हुए प्रत्येक काउण्टी के प्रति एकड़ भूमि उपयोग को आलेखित किया और उनका मानचित्र भी तैयार किया। बाद में स्टाम्प द्वारा प्रयुक्त भूमि उपयोग सर्वेक्षण की पद्धति को आवश्यक परिवर्तन के साथ अन्यान्य देशों में भूमि उपयोग सर्वेक्षण के लिए प्रयुक्त किया गया। 

भूगोल में मात्राकरण (Quantification in Geography) भौगोलिक अध्ययनों में मात्राकरण का प्रयोग करने वाले ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं में जी. ग्रेगरी (G. Gregory), पीटर हैगेट (Peter Haggett), शोलें (R. J. Chorley), ए०एम० किंग (A. M. King), जे. पी. कोल (J. P. Cole) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन बिद्वानों ने भौगोलिक तथ्यों के विश्लेषण में गणितीय एवं सांख्यिकीय विधियों तथा माडलों (प्रतिरूपों) का प्रयोग अधिक किया है। शोर्ले और हेगेट ने सहलेखक के रूप में भौगोलिक माडल के ऊपर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं है जिनको मात्रात्मक भूगोल में उच्च स्थान प्राप्त है। इन पुस्तकों में भौगोलिक अध्ययन की नयी-नयी विधियां बतायी गयी हैं जो नवीन पीढ़ी के भूगोलवेत्ताओं तथा शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हैं।

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