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रसेल की द्वैतारक परिकल्पना

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भूगोल के छात्र और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, खगोल विज्ञान के सिद्धांतों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है। “रसेल की द्वैतारक परिकल्पना” एक ऐसा ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो हमारे सौरमंडल की उत्पत्ति के पीछे के कारणों को समझने में मदद करता है। चाहे आप B.A., M.A., UGC NET, UPSC, RPSC, या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हों, यह परिकल्पना आपके पाठ्यक्रम का एक अहम हिस्सा हो सकती है। इस पोस्ट में, हम इस परिकल्पना के विभिन्न पहलुओं को सरल हिंदी में समझाने की कोशिश करेंगे, ताकि आप इसे आसानी से समझ सकें और अपने परीक्षा की तैयारी को मजबूत बना सकें।

द्वैतारक परिकल्पना

खगोल विज्ञान के इतिहास में, कई वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के लिए विविध परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प परिकल्पना है “रसेल की द्वैतारक परिकल्पना,” जिसे एच. एन. रसेल और लिटिलटन ने प्रस्तुत किया। इस परिकल्पना के अनुसार, सूर्य का शुरुआती समय अकेले नहीं बीता था। इसके बजाय, सूर्य के पास एक और तारा था, जिसे “साथी तारा” कहा गया। यह साथी तारा सूर्य से लगभग 290 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित था, और दोनों तारे एक ही केंद्र के चारों ओर घूम रहे थे।

एक दिन, अंतरिक्ष में एक तीसरा तारा आया, जो इस साथी तारे के बहुत करीब, लगभग 45-65 लाख किलोमीटर की दूरी पर पहुंच गया। इस तीसरे तारे की आकर्षण शक्ति इतनी जबरदस्त थी कि इससे साथी तारे में एक विशाल ज्वार उत्पन्न हो गया। इस ज्वार के कारण साथी तारे का कुछ पदार्थ बाहर निकल आया। हालांकि, यह तारा सूर्य से काफी दूर था, इसलिए सूर्य पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा। लेकिन साथी तारे से निकला ज्वार-पदार्थ सूर्य की शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से खिंचकर सूर्य की परिक्रमा करने लगा। इस घनीभूत पदार्थ से ही धीरे-धीरे ग्रहों का निर्माण हुआ। इस प्रकार, इस परिकल्पना के अनुसार, हमारे सौरमंडल के ग्रहों की उत्पत्ति एक प्रकार की ब्रह्मांडीय दुर्घटना का परिणाम है।

लिटिलटन ने आगे यह भी विचार रखा कि ग्रहों के निर्माण के तुरंत बाद वे तरल अवस्था में रहे होंगे। जब ये ग्रह ठंडे होने लगे, तो उन पर भी ज्वार उत्पन्न होने लगे। इन ज्वारों ने धीरे-धीरे ग्रहों के उपग्रहों को जन्म दिया। इसलिए, इस परिकल्पना के अनुसार, हमारे सौरमंडल के ग्रह और उनके उपग्रह दोनों ही ज्वारीय प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप बने।

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना

द्वैतारक परिकल्पना विश्लेषण

युग्म तारा कोई नई बात नहीं: खगोलविदों के अनुसार, अंतरिक्ष में युग्म या बाइनरी स्टार सिस्टम कोई असामान्य चीज नहीं है। जी. क्वीपर के अनुसार, अंतरिक्ष में लगभग 80% तारे युग्म या छोटे समूहों में पाए जाते हैं। ये तारे एक-दूसरे के चारों ओर घूमते हैं और एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बंधे रहते हैं। यहां तक कि सबसे रूढ़िवादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो भी, आकाश में कम से कम 10% तारे युग्म के रूप में मौजूद हैं। यह तथ्य इस परिकल्पना को समर्थन देता है कि हमारे सूर्य के पास भी कभी एक साथी तारा था।

ग्रहों की दूरी का स्पष्टीकरण: इस परिकल्पना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह ग्रहों के बीच की विशाल दूरियों को समझाने में मदद करती है। आज, हमारे सौरमंडल के ग्रह एक-दूसरे से काफी दूर स्थित हैं। इस परिकल्पना के अनुसार, जब साथी तारे से निकला पदार्थ सूर्य की परिक्रमा करने लगा, तो यह पदार्थ धीरे-धीरे ग्रहों में तब्दील हो गया। यह प्रक्रिया इतनी धीमी और विस्तारित थी कि ग्रहों के बीच बड़ी दूरी बन गई। यह स्पष्टीकरण खगोलविदों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है, जो हमारे सौरमंडल की संरचना को समझने में मदद करता है।

कोणीय संवेग का स्पष्टिकरण: इस परिकल्पना के अनुसार, साथी तारे से निकले पदार्थ के कारण ग्रहों का अधिक कोणीय संवेग भी स्पष्ट होता है। जब यह पदार्थ सूर्य की ओर खिंचा, तो यह तेजी से घूमता रहा। यह तेजी से घूमने वाली गति ही ग्रहों के उच्च कोणीय संवेग का कारण बनी। इसी संवेग के कारण ग्रह आज भी अपने-अपने अक्ष पर घूम रहे हैं। इस परिकल्पना से यह भी स्पष्ट होता है कि ग्रहों का घूर्णन और उनकी कक्षाएँ किस प्रकार निर्धारित हुईं।

द्वैतारक परिकल्पना आपत्तियां

अवशिष्ट पदार्थ का क्या हुआ?: इस परिकल्पना की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह इस सवाल का जवाब नहीं देती कि ग्रहों के निर्माण के बाद बचे हुए अवशिष्ट पदार्थ का क्या हुआ। जब साथी तारे से निकला पदार्थ ग्रहों में तब्दील हो गया, तो क्या बाकी बचे पदार्थ का सूर्य में विलय हो गया, या वह कहीं और चला गया? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है, जिससे इस परिकल्पना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होता है।

साथी तारे का अवशिष्ट भाग: इसके अलावा, इस परिकल्पना में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि जब ग्रहों की तरह साथी तारे का अवशिष्ट भाग था, तो वह सूर्य के प्रभाव में क्यों नहीं आया। अगर सूर्य ने ग्रहों को अपनी गुरुत्वाकर्षण से खींच लिया, तो साथी तारे का शेष हिस्सा भी खींचा जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जो इस परिकल्पना की एक और कमजोरी को दर्शाता है।

ग्रहों की वर्तमान स्थिति: एक और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि प्रारंभ में दूर-दूर तक फैले हुए ग्रह अपनी वर्तमान स्थिति में कैसे आ गए? अगर ग्रहों का निर्माण साथी तारे से निकले पदार्थ से हुआ, तो वे पहले काफी दूर-दूर तक फैले होंगे। फिर वे कैसे अपनी वर्तमान स्थिति में आ गए, और उनकी कक्षाएँ इतनी स्थिर कैसे हो गईं? इस सवाल का जवाब भी इस परिकल्पना में नहीं मिलता, जिससे इस पर और भी सवाल खड़े होते हैं।

निष्कर्ष

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो हमारे सौरमंडल की उत्पत्ति के रहस्यों को समझने की कोशिश करता है। हालांकि, इसमें कुछ सवालों के जवाब अब भी अधूरे हैं, जिनका समाधान खगोलविदों को करना बाकी है। यह परिकल्पना एक दिलचस्प दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, लेकिन इसे पूरी तरह से स्वीकार करने से पहले और भी शोध और विश्लेषण की आवश्यकता है।

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प्रश्न 1: रसेल की द्वैतारक परिकल्पना किस सिद्धांत पर आधारित है?

(A) सूर्य का साथी तारा

(B) सूर्य का अकेलापन

(C) तीसरे तारे का आगमन

(D) सूर्य की परिक्रमा

प्रश्न 2: रसेल और लिटिलटन के अनुसार सूर्य के पास उसका साथी तारा कितनी दूरी पर था?

(A) 290 करोड़ किमी

(B) 300 करोड़ किमी

(C) 500 करोड़ किमी

(D) 45-65 लाख किमी

प्रश्न 3: तीसरा तारा किस प्रक्रिया को उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार था?

(A) सूर्य का विस्फोट

(B) साथी तारे में ज्वार उत्पन्न करना

(C) ग्रहों का निर्माण

(D) उपग्रहों की उत्पत्ति

प्रश्न 4: लिटिलटन के अनुसार ग्रहों की प्रारंभिक अवस्था क्या थी?

(A) ठोस

(B) गैसीय

(C) तरल

(D) प्लाज़्मा

प्रश्न 5: रसेल की द्वैतारक परिकल्पना के अनुसार किस प्रक्रिया से ग्रहों की उत्पत्ति हुई?

(A) साथी तारे के ज्वार से निकले पदार्थ के घनीभूत होने से

(B) सूर्य के विस्फोट से

(C) तीसरे तारे की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से

(D) साथी तारे की परिक्रमा से

प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा इस परिकल्पना की एक प्रमुख आपत्ति है?

(A) सूर्य के साथी तारे से अवशिष्ट पदार्थ का गायब होना

(B) ग्रहों का अधिक कोणीय संवेग

(C) ग्रहों की दूरी का स्पष्टीकरण

(D) तीसरे तारे का प्रभाव

प्रश्न 7: जी. क्वीपर के अनुसार अंतरिक्ष में कितने प्रतिशत तारे युग्म के रूप में पाए जाते हैं?

(A) 10%

(B) 20%

(C) 50%

(D) 80%

प्रश्न 8: रसेल की द्वैतारक परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति में कौन सा तारा मुख्य भूमिका निभाता है?

(A) सूर्य

(B) साथी तारा

(C) तीसरा तारा

(D) कोई भी नहीं

प्रश्न 9: किस कारण से साथी तारे में ज्वार उत्पन्न हुआ था?

(A) सूर्य के विस्फोट से

(B) तीसरे तारे की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से

(C) सूर्य की परिक्रमा से

(D) साथी तारे के विस्फोट से

प्रश्न 10: लिटिलटन की परिकल्पना के अनुसार किस प्रक्रिया से उपग्रहों की उत्पत्ति हुई?

(A) ग्रहों पर ज्वारों के उत्पन्न होने से

(B) सूर्य के विस्फोट से

(C) साथी तारे के ज्वार से

(D) तीसरे तारे के प्रभाव से

उत्तर:

  1. (A)
  2. (A)
  3. (B)
  4. (C)
  5. (A)
  6. (A)
  7. (D)
  8. (B)
  9. (B)
  10. (A)

FAQs

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई?

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना के अनुसार, सूर्य के पास एक साथी तारा था, जिससे तीसरे तारे की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ज्वार उत्पन्न हुआ। इस ज्वार से निकला पदार्थ सूर्य की परिक्रमा करने लगा और धीरे-धीरे घनीभूत होकर ग्रहों का निर्माण हुआ। इस प्रकार, ग्रहों की उत्पत्ति एक प्रकार की ब्रह्मांडीय घटना से हुई।

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना के अनुसार उपग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई?

लिटिलटन के अनुसार, ग्रहों के बनने के बाद वे तरल अवस्था में थे, जिससे उनमें ज्वार उत्पन्न हुए। इन ज्वारों की प्रक्रिया के कारण ग्रहों के चारों ओर उपग्रहों की रचना हुई। यानी, उपग्रहों की उत्पत्ति ग्रहों के ज्वारीय प्रभाव के परिणामस्वरूप हुई।

रसेल की द्वैतारक परिकल्पना पर कौन सी आपत्तियां उठाई गई हैं?

इस परिकल्पना पर कई आपत्तियां उठाई गई हैं, जैसे ग्रहों के निर्माण के बाद बचे अवशिष्ट पदार्थ का क्या हुआ? साथी तारे का अवशिष्ट भाग सूर्य के प्रभाव में क्यों नहीं आया? और प्रारंभ में फैले हुए ग्रह अपनी वर्तमान स्थिति में कैसे आए? ये सवाल इस परिकल्पना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं।

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