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इस लेख के माध्यम से आप भूगोल के लक्ष्य और उद्देश्य (Aims and Purpose of Geography) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
भूगोल का लक्ष्य और उद्देश्य (Aims and Purpose of Geography)
भूगोल का प्रमुख उद्देश्य विश्व सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि करना है। वह पृथ्वी को मानव का घर मानकर उसके विभिन्न क्षेत्रों या स्थानों की विभिन्नताओं तथा अन्तर्सम्बन्धों को समझता है। मानव की समृद्धि हेतु वह प्रादेशिक संसाधनों के अध्ययन पर जोर देता है, उनका समुचित प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाने में योगदान देता है। उसका वास्तविक उद्देश्य पृथ्वी पर विभिन्न देशों की प्रादेशिक विकास योजनाओं (Regional Development Plans) तथा राष्ट्रीय विकास योजनाओं (National Development Plans) को तैयार करने व क्रियान्वित करने में योगदान देना है।
यह विषय भूमि और मानव के सम्बन्धों की सच्चाई को प्रकट करता है, तथा मानव समृद्धि के स्थानिक ढांचे को समझाता है। भूगोल में पृथ्वी तल के विभिन्न तथ्यों का अध्ययन तीन दृष्टिकोण से किया जाता है:
(i) देश (Space)
(ii) काल (Time)
(iii) सम्बन्ध (Relations)
इन तीनों बातों को दूसरे शब्दों में इस प्रकार रखा जा सकता है। भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी तल के
(i) विभिन्न स्वरूपों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में, (ii) वातावरण और मानव वर्गों के पारस्परिक सम्बन्धों का तथा (iii) व्यवस्थाओं के विभिन्न वितरणों की विवेचना करना, और (iv) संसाधन विकास योजना में सहयोग देना है।
मानव ने अपने प्रयासों से पृथ्वीतल के अनेक क्षेत्रों का रूपान्तरण कर दिया है। उसने अनेक क्षेत्रों को अपने रहने योग्य बनाया है। भूगोल का उद्देश्य इस रूपान्तरण का अध्ययन करना है। वह जैव व अजैव दृश्यों व घटनाओं का इसी दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। वह पार्थिव एकता (Terrestrial Unity) को समझता व समझाता है। अतः हार्टशोर्न का कहना तर्कसंगत है कि “भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी को मानव की दुनिया मानकर वैज्ञानिक रीति से वर्णन करता है।”
भूगोलवेत्ताओं का उद्देश्य पृथ्वी तल के प्रदेशों को समझना अर्थात प्रदेश के पार्थिव घटना दृश्यों (Terrestrial Phenomena) से साहचर्य की प्रणालियों को समझना और समझाना है। डिकिन्सन (Dickinson) की इस बात को भूगोल में काफी महत्व दिया गया है। भूगोल के उद्देश्यों पर दिए गए कुछ विचारों को इस प्रकार रखा जा सकता है:
1. अमेरिका की भूगोल समिति ने अपनी एक रिपोर्ट 1965 में प्रकाशित की, जिसके अनुसार भूगोल का मुख्य उद्देश्य स्थानिक वितरणों (spatial distributions) तथा स्थानिक सम्बन्धों (spatial relations) के दृष्टिकोण से मानव-वातावरण की प्रणाली का अध्ययन करना है।
2. अमरीका में व्यवहारिक तथा सामाजिक विज्ञानों पर एक सर्वेक्षण भूगोलवेत्ताओं की एक समिति द्वारा 1970 में किया गया, इसमें ई० जे० टाफ्फी (Taaffe) ने बताया कि भूगोल का उद्देश्य पृथ्वी तल पर प्रारूप (pattern) और प्रक्रिया (process) के आधार पर स्थानिक संगठन (Spatial organization) का अध्ययन करना है।
इसमें निम्न चार बातों का अध्ययन शामिल किया गया।
(i) क्षेत्रों का समाकालित अध्ययन (Integrated)
(ii) क्षेत्रों का समय के साथ होने वाले सभी परिवर्तनों का अध्ययन (Chronological Changes)
(iii) क्षेत्रों का सांस्कृतिक अवगम (Cultural Perception), तथा
(iv) क्षेत्रों के वातावरण की पारिस्थितिक व्याख्या (Ecological Interpretation)
3. चैपमेन (J.D. Chapman) – कनाडा के इस विद्वान ने 1967 में भौगोलिक अध्ययन के तीन पक्ष रखेः
(i) स्थान (Place), (ii) देश (Space), (iii) काल (Time)
4. एकरमैन (E.A. Ackermann) नामक अमरीकी भूगोलवेत्ता के अनुसार भूगोल के तीनों प्रमुख पक्षों को क्रमशः इन नामों से पुकारा जाना चाहिए – विस्तार (Extent), घनत्व (Density). अनुक्रम (Succession).
5. पी० हैग्गट (P. Haggett) – भूगोल में इन तीनों पहलुओं को ध्यान में रखकर भूतल के क्षेत्रों का संसारिक अध्ययन करना इसका उद्देश्य होता है।
6. समकालित उद्देश्य (Integrated Aim) – भूगोल का उद्देश्य क्षेत्रों का विकास की समग्र योजना तैयार करना होता है। भूगोलवेत्ता विश्व के देशों, प्रदेशों और क्षेत्रों या स्थानों का अध्ययन करता है। वह इन स्थानों में विभिन्नता स्थापित करने के साथ-साथ उनको परस्पर जोड़ने का प्रयास करता है; उदाहरण के लिए वह किसी क्षेत्र या प्रदेश की धरातलीय दशा, संरचना, जलवायु, जल प्रवाह, मिट्टियां, वनस्पति, जीव जन्तु, खनिज पदार्थ, जनसंख्या आदि की जानकारी प्राप्त करता है, तथा वातावरण और मानव के सम्बन्धों, आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक भूदृश्य का अध्ययन करता है।
इसके साथ-साथ उस प्रदेश के सभी स्थानों के पारस्परिक समाकलन (mutual adjustment) को समझता है। विभिन्न क्षेत्रों का तुलनात्मक विवेचन करता हैं, इन सब अध्ययनों का समाकालित उद्देश्य प्रादेशिक संगठन (regional organization) और प्रादेशिक योजना (regional plan) बनाने में योगदान देना होता है। वह इस कार्य के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाएँ अपनाता है:
1. पारिस्थितिकी विश्लेषण (Ecological Analysis) – इसके द्वारा किसी प्रदेश के वातावरण के तत्वों और मानव वर्ग के बीच जैविक सम्बन्धों, आर्थिक सम्बन्धों तथा समाजिक, सांस्कृतिक सम्बन्धों को समझना और उनका मूल्यांकन करना होता है।
2. स्थानिक विश्लेषण (Locational Analysis) – इसके द्वारा किसी प्रदेश या प्रदेशों की स्थिति सम्बन्धी भिन्नताओं (locational variations) को समझना होता है। इस अध्ययन में किसी प्रदेश या प्रदेशों में भौगोलिक तथ्यों के वितरणों की विशेषताओं और प्रतिरूप का मूल्यांकन किया जाता है।
3. प्रादेशिक सम्मिश्र विश्लेषण (Regional-Complex Analysis) – इसके द्वारा क्षेत्रीय विभिन्नताओं (areal differentiations) की प्रादेशिक इकाईयों में पारिस्थितिक विश्लेषण और स्थानिक विश्लेषण दोनों का सम्मिश्र अध्ययन होता है। इस प्रकार प्रत्येक प्रदेश का समाकलित मूल्यांकन (integrated appraisal) हो जाता है।
4. प्रादेशिक संगठन और नियोजन (Regional Organization and Planning) – इसके अन्तर्गत उपर्युक्त तीनों विश्लेषणों की सहायता से उस प्रदेश के भौतिक और सांस्कृतिक संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करने के उद्देश्य से विकास की योजना बनाई जाती है।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि भूगोल का प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी तल के किसी क्षेत्र या प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों तथा मानवीय संसाधनों का अध्ययन करना तथा उनके विकास की योजना इस तरह से तैयार करना, जिसके क्रियान्वयन से उस क्षेत्र के मानव की प्रगति अधिक से अधिक हो सके, और वह समृद्धशाली बन सके। संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग (optimum use of resources) की व्यवस्था को प्रादेशिक संगठन कहते हैं।