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जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Population Resource Regions): परिचय
विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या और संसाधनों के वितरण में अत्यधिक विषमता देखने को मिलती है। कहीं पर संसाधनों की बहुलता है तो कहीं इनका अभाव है। इसी प्रकार कहीं पर प्रौद्योगिकी के विकास से वहाँ के संसाधनों विकास सम्भव हुआ है जबकि कई प्रदेशों में पर्याप्त संसाधन होते हुए भी प्रौद्योगिकी के पिछड़ेपन के कारण उनका विदोहन नहीं हो पा रहा है।
इसी प्रकार की असमानता जनसंख्या के वितरण में भी देखने को मिलती है। जहाँ एक ओर मानसून एशिया, पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र तथा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तटीय भाग सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं, वहीं दूसरी ओर सहारा, कालाहारी, अरब, थार, गोबी, मंगोलिया, अटाकामा और पश्चिमी आस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय क्षेत्र तथा अंटार्कटिका, ग्रीन लैंड, उत्तरी कनाडा और उत्तरी साइबेरिया के शीतल भाग लगभग निर्जन हैं। मध्य अफ्रीका के घने जंगलो भाग भी लगभग निर्जन ही हैं।
इस प्रकार जनसंख्या और संसाधन के सम्बन्धों से उत्पन्न प्रतिरूपों में भी असमानता का पाया जाना स्वाभाविक ही है। संसाधनों की सही परिभाषा, मापदण्ड तथा उनके माप की कठिनाइयों के कारण जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों का निर्धारण करना आसान नहीं है। सम्भवतः यही कारण है कि विश्व के जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों के विभाजन तथा उनके अध्ययन सम्बन्धी कार्य बहुत कम हुए हैं।
जनसंख्या-संसाधन प्रदेश का अर्थ (Meaning of Population Resource Regions)
जनसंख्या-संसाधन प्रदेश का तात्पर्य ऐसे क्षेत्र या प्रदेश से है जिनके अंतर्गत जनसंख्या और संसाधनों के पारस्परिक सम्बन्धों अर्थात् जनसंख्या-संसाधन अनुपात से उत्पन्न प्रतिरूपों में समरूपता देखने को मिलती है।
एकरमैन (1970) द्वारा सम्पूर्ण विश्व को जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों में विभक्त करके उनका विश्लेषण किया गया। जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों के निर्धारण के लिए एकरमैन ने तीन मौलिक आधारों का प्रयोग किया
(अ) जनसंख्या, (ब) संसाधन और (स) प्रौद्योगिकी।
एकरमैन ने जनसंख्या और संसाधन की तुलना में प्रौद्योगिकी के विकास और प्रयोग पर विशेष बल दिया है क्योंकि प्रौद्योगिकी (तकनीक) के अभाव में संसाधनों के होते हुए भी उनका विकास तथा प्रयोग सम्भव नहीं हो पाता है। इसके लिए अधिक जनसंख्या नहीं बल्कि कुशल जनसंख्या की आवश्यकता होती है।
एकरमैन द्वारा प्रस्तुत जनसंख्या-संसाधन प्रदेश (Population-resource region presented by Ackerman)
एकरमैन (E.A. Ackerman) ने जनसंख्या-संसाधन अनुपात तथा उनके विकास के लिए उपयोग में लाई जाने वाली प्रौद्योगिकी के आधार पर सम्पूर्ण विश्व को 5 बृहत् प्रदेशों में विभक्त किया है जो जनसंख्या-संसाधन प्रदेश को व्यक्त करते हैं। विश्व के प्रत्येक भाग इन्हीं पाँच प्रदेशों में से किसी न किसी प्रदेश के अंतर्गत शामिल हैं। इन प्रदेशों का नामकरण सामान्यतः प्रमुख प्रतिनिधि देश या प्रदेश के आधार पर किया गया है।
एकरमैन द्वारा वर्गीकृत विश्व के 5 जनसंख्या-संसाधन प्रदेश निम्नलिखित हैं-
(1) संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेश (United States Type Regions)
इस प्रकर के प्रदेश जनसंख्या-संसाधन सम्बन्ध के दृष्टिकोण से सर्वाधिक विकसित तथा सर्वोत्तम स्थिति में हैं। ऐसे प्रदेशों में सम्भाव्य और ज्ञात दोनों प्रकार के संसाधनों की विशाल राशि है और प्रौद्योगिकी अत्यन्त विकसित अवस्था में है। यहाँ जनसंख्या का आकार विकसित संसाधनों की तुलना में कम है जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय एवं मानवजीवन स्तर अति उच्च है। इसके अन्तर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मध्य एवं पूर्वी रूस (नवीन बसाये गये क्षेत्र) सम्मिलित है। कुछ लोग अर्जेन्टीना और यूरुग्वे को भी इसी श्रेणी के निकट मानते हैं किन्तु इनकी स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है।
केवल रूस को छोड़कर इस वर्ग के अन्य देशों में यूरोप आए प्रवासियों का ही प्रभुत्व है और इन प्रदेशों के भौतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। 18वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक यूरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों से बड़ी संख्या में जनसंख्या का प्रवास उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और आस्ट्रेलिया के लिए हुआ जहाँ विस्तृत भूमि और उपयोग के लिए विशाल संसाधन राशि उपलब्ध थी।
यूरोपीय जन-प्रवास के साथ ही यूरोप में विकसित वैज्ञानिक ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पूँजी का भी स्थानांतरण इन प्रदेशों में हुआ जिसके परिणामस्वरूप यहाँ उपलब्ध विस्तृत भूमियों पर उन्नत ढंग से कृषि की जाने लगी और वहाँ प्राप्त खनिज भंडारों का तीव्र गति से विदोहन प्रारम्भ हुआ जिसके परिणामस्वरूप नये-नये उद्योग-धंधे स्थापित होते गये।
इस श्रेणी के प्रदेशों में प्रौद्योगिकी का सर्वाधिक विकास हुआ है और नवीन शोधों से उनमें निरन्तर उन्नति हो रही है। अतः यहाँ प्रौद्योगिकीय दृष्टि से कुशल श्रमिक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं और राष्ट्रीय मांग के अनुसार पूर्णतया सक्षम हैं। ये प्रदेश अपनी विकसित प्रौद्योगिकी तथा कुशल श्रमिकों का विश्व के पिछड़े प्रदेशों के लिए निर्यात करने में भी पूर्णरूपेण समर्थ हैं। विशाल क्षेत्रीय विस्तार तथा प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता और जनसंख्या की अपेक्षाकृत् सीमितता के परिणामस्वरूप इन प्रदेशों में मानव जीवन स्तर अति – उच्च तथा अर्थव्यवस्था समृद्धिशाली है।
(2) यूरोप तुल्य प्रदेश (European Type Regions)
इस प्रकार के प्रदेश प्रौद्योगिकीय विकास की दृष्टि से उन्नत हैं और यहाँ उपलब्ध संसाधनों का लगभग पूर्ण विकास हो चुका है किन्तु जनसंख्या अधिक होने के कारण जनसंख्या-संसाधन अनुपात उच्च है। इस प्रकार के प्रदेशों में संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय कम और जीवन स्तर नीचा है। इसके अन्तर्गत वे प्रदेश सम्मिलित है जो आधुनिक विकास की श्रृंखला में अग्रणी रह चुके हैं किन्तु जनसंख्या- संसाधन अनुपात उच्च होने के कारण यहाँ उच्च जीवन स्तर बनाये रखना चुनौती बन गया है।
सीमित संसाधनों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से संसाधनों का संरक्षण तथा जनसंख्या नियमन की समस्या इन प्रदेशों की प्रमुख समस्या बन गयी है। यद्यपि आधुनिक प्राविधिकी विकास का आरम्भ सर्वप्रथम इन्हीं प्रदेशों से हुआ है किन्तु जनसंख्या की अधिकता तथा संसाधनों की सीमितता के कारण आर्थिक विकास की दौड़ में ये प्रदेश अब संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेशों के बाद द्वितीय श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
यूरोप तुल्य प्रदेश के अन्तर्गत पश्चिमी यूरोपीय देश, दक्षिण यूरोप के कुछ देश तथा एशिया का जापान देश सम्मिलित है। इस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, स्वीडेन, फिनलैंड, इटली, तथा जापान इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख देश हैं जिनकी गणना विकसित राष्ट्रों में होती है। इन देशों में मृत्युदर और जन्मदर दोनों के अत्यन्त निम्न होने के कारण कई दशकों से जनसंख्या अति मन्द गति से बढ़ रही है अथवा लगभग स्थिर है।
यूरोपीय प्रकार के प्रदेश लगभग 200 वर्ष पूर्व तक ब्राजील प्रकार के प्रदेश थे और वहाँ जनसंख्या को तुलना में संसाधनों की अधिकता थी किन्तु तब तक वे प्रौद्योगिकी के पिछड़ेपन के कारण अधिक विकसित नहीं थे।
(3) मित्र या चीन तुल्य प्रदेश (Egyptian or Chinese Type Regions)
इस श्रेणी के प्रदेशों को मिस्र तुल्य या चीन तुल्य प्रदेश कहा जाता है। इन प्रदेशों में संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने से जनसंख्या-संसाधन अनुपात उच्च है किन्तु प्रौद्योगिकी अभी अल्पविकसित या पछिड़ी अवस्था में है। इसके अन्तर्गत आने वाले सभी देश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले हैं और अधिकांश जनसंख्या कृषि आदि प्राथमिक कार्यों से जीविका प्राप्त करती है। लगभग तीन-चौथाई या इससे अधिक जनसंख्य गाँवों में निवास करती है।
कृषि कार्यों की प्रमुखता, ग्रामीण पर्यावरण, प्रति व्यक्ति अल्प आ निम्न जीवन-स्तर, रूढ़िवादी जीवन पद्धति आदि इन प्रदेशों की प्रमुख विशेषताएँ हैं। भूमि पर जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा निर्भरता के कारण इन प्रदेशों में गहन निर्वाह कृषि का ही एकाधिकार है। किन्तु अभी भी कृषि में आधुनिक तकनीकों, कृषि यंत्रों, वैज्ञानिक पद्धति, रासायनिक उर्वरक आदि का प्रयोग बहुत कम किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप प्रति हेक्टेयर उत्पादन विकसित राष्ट्रों की तुलना में कम है। आर्थिक प्रगति की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर तीव्र है जिसके कारण निर्धनता, बेरोजगारी, भोजन तथा आवासीय समस्याएँ निरन्तर बढ़ती जा रही है।
मित्र तुल्य प्रदेशों में निर्धनता के कारण पर्याप्त पूँजी का भी अभाव है जो औद्योगीकरण तथा आधुनिकीकरण में एक बड़ा अवरोधक है। इसके लिए विदेशी ऋण तथा आयातित पूँजी का सहारा लिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त इन प्रदेशों में व्यापक अशिक्षा के कारण रूढ़िवादी प्रवृत्ति अधिक प्रबल है जिसकी भूमिका विकास के प्रति प्रायः नकारात्मक है।
जनसंख्या -संसाधन सम्बन्ध की दृष्टि से मिस्र तुल्य प्रदेश मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिणी यूरोप में स्थित हैं। पूर्वी एशिया में चीन एवं कोरिया, दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका और नेपाल, दक्षिण-पश्चिम एशिया में अफगानिस्तान, टर्की, लेबनान, साइप्रस आदि; लैटिन अमेरिका में पीरू, कोलम्बिया, हैटी, ग्वाटेमाला तथा एलसल्वाडोर; दक्षिणी यूरोप में सिसलो, यूनान, यूगोस्लाविया, अलवानिया आदि और अफ्रीका में मिस्र, अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया आदि देश इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। सम्भावना है निकट भविष्य में चीन और भारत की गणना यूरोप तुल्य प्रदेशों की श्रेणी में होने लगेगी।
(4) ब्राजील तुल्य प्रदेश (Brazilian Type Regions)
इस वर्ग के अन्तर्गत ऐसे प्रदेश सम्मिलित हैं जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और जनसंख्या-संसाधन अनुपात निम्न है अर्थात् ज्ञात संसाधनों की तुलना में जनसंख्या कम है। ऐसे प्रदेशों में अधिक क्षेत्रीय विस्तार के साथ ही संभाव्य संसाधनों की प्रचुरता है किन्तु ये विभिन्न भौगोलिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अवरोधों के कारण अल्प विकसित हैं।
भविष्य में उन्नत प्राविधिकी के प्रयोग होने पर यहाँ मानव उपयोग के लिए अधिकाधिक संसाधन प्राप्त होने की प्रबल संभावनाएँ हैं। इन संसाधनों के विकसित होने पर ये प्रदेश और अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होंगे जिससे मनुष्य के जीवन-स्तर में उत्थान होगा और सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।
ब्राजील तुल्य प्रदेशों का विस्तार विश्व के तीन प्रमुख भार्गो पर है –
(1) दक्षिणी-पूर्वी एशिया, (2) उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका, और (3) लैटिन अमेरिका।
एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित हिन्द चीन, मलाया, इण्डोनेशिया, फिलीपाइन्स आदि देशों में घने जंगल, पर्याप्त खनिज पदार्थ तथा कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है। जिसके फलस्वरूप वहाँ वर्तमान जनसंख्या से अधिक मनुष्यों के पोषण की क्षमता विद्यमान है।
इसी प्रकार अफ्रीका महाद्वीप के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जहाँ वर्षा प्रचुर वन प्रदेशों और सवाना घास प्रदेशों में पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन – वन, खनिज पदार्थ, कृषि योग्य भूमि, जलविद्युत उत्पादन क्षमता आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है किन्तु इनमें से अधिकांश अविकसित तथा उपेक्षित हैं। भविष्य में यहाँ नवीन वैज्ञानिक ज्ञान तथा तकनीकों के प्रयोग से जब इनके संभाव्य संसाधनों का उचित विकास हो जायेगा, यहाँ वर्तमान से बहुत अधिक मनुष्यों के पोषण की क्षमता प्राप्त होगी और ये प्रदेश धन-धान्य से पूर्ण और विकसित प्रदेशों में से एक हो सकेंगे।
लैटिन अमेरिका में ब्रजील का विशाल पठारी भाग, वेनेजुएला, बोलीविया, भीतरी अर्जेन्टीना तथा पराग्वे आदि क्षेत्र इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। यहाँ भूमि के विस्तार के साथ ही संभाव्य संसाधन भी प्रचुर मात्रा में हैं किन्तु इनका उपयोग तकनीकी पिछड़ेपन के कारण बहुत कम हो रहा है। जनसंख्या कम होने के कारण जनसंख्या-संसाधन अनुपात निम्न है। इसके अतिरिक्त ब्राजील तुल्य प्रदेश का विस्तार लघु स्तर पर पश्चिम द्वीप समूह में क्यूबा तथा कुछ मध्य अमेरिका देशों में भी हैं।
(5) आर्कटिक मरुस्थल तुल्य प्रदेश (Arctic Desert Type Regions)
इसके अन्तर्गत अधिक विस्तार वाले शीत मरुस्थल और उष्ण मरुस्थल शामिल हैं जो अत्यधिक शीत अथवा शुष्कता के कारण वनस्पति विहीन और लगभग या पूर्णतः जनविहीन प्रदेश हैं। अत्यधिक निम्न तापमान रहने के कारण ये प्रदेश सम्पूर्ण वर्ष भर अथवा वर्ष के अधिकांश महीनों में हिमाच्छादित रहते हैं और मिट्टी के विकास के अभाव में यहाँ वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाता है।
यहाँ प्राकृतिक प्रतिकूलता के कारण खाद्य उत्पादन के साधनों का लगभग अभाव है और ये प्रदेश प्रौद्योगिकीय विकास की दृष्टि से तो सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। यहाँ समुद्र तथा समुद्री जीवों से सम्बद्ध संसाधनों, जलशक्ति, कुछ प्रमुख खनिज पदार्थों तथा पेट्रोलियम के भंडार विद्यमान हैं। भविष्य में प्रौद्योगिकी के विकास होने पर इन अदृश्य संसाधनों के उपयोग के मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं जिससे इन प्रदेशों के आर्थिक महत्व बढ़ने की प्रबल सम्भावनाएँ हैं।
विश्व के बड़े-बड़े उष्ण मरुस्थल इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। अफ्रीका में सहारा और कालाहारी, एशिया में अरब, थार, गोबी, तुर्किस्तान आदि, दक्षिण अमेरिका में अटाकामा तथा पैटागोनिया, उत्तरी अमेरिका में दक्षिणी-पश्चिमी संयुक्त राज्य का मरुस्थल और पश्चिमी आस्ट्रेलिया का विशाल मरुस्थल इसी प्रकार के प्रदेश हैं जो भीषण शुष्कता के कारण वनस्पति विहीन हैं तथा जल के अभाव में कृषि के लिए अनुपयुक्त हैं।
सिंचाई की व्यवस्था होने पर इन प्रदेशों के कुछ भागों में कृषि की जा सकती है। इस प्रकार संसाधनों का अभाव तथा अल्पविकसित प्रौद्योगिकी और जनाभाव इन प्रदेशों की प्रमुख विशेषताएँ हैं। जिन भागों में बहुमूल्य खनिज (सोना आदि) अथवा शक्ति संसाधन (पेट्रोलियम) प्राप्त हुए हैं वहाँ नगरों का विकास हुआ है किन्तु ऐसे क्षेत्र बहुत सीमित हैं।
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