इस लेख में आप विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषाओं (Manav bhugol ki paribhasha) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
डी.एच. डेविस के द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा (Manav bhugol ki paribhasha)
डी.एच. डेविस के अनुसार,” मानव भूगोल मे केवल प्राकृतिक वातावरण और मानवीय क्रियाओं के बीच संबंधों का ही नही वरन् पृथ्वी तल के क्षेत्रों का भी अध्ययन होता है।”
डी.एच. डेविस के अनुसार, मानव भूगोल केवल और केवल प्राकृतिक वातावरण और मानव गतिविधियों के बीच संबंधों का अध्ययन नहीं करता, बल्कि यह पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों का भी विश्लेषण करता है। इसका मतलब यह है कि मानव भूगोल न केवल यह समझने की कोशिश करता है कि प्राकृतिक तत्व (जैसे- जलवायु, स्थलाकृति, जल संसाधन आदि) मानव जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं, बल्कि यह भी देखता है कि मनुष्य इन तत्वों के साथ कैसे सामंजस्य बिठाकर अपने स्थान और क्षेत्र का विकास करते हैं।
डी.एच. डेविस के विचारों को हम निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से समझ सकते हैं:
नदी किनारे बस्तियां:
हम जानते हैं कि गंगा और नील जैसी विश्व प्रसिद्ध नदियों के किनारे प्राचीन सभ्यताएं विकसित हुईं। क्योंकि इन क्षेत्रों में खेती, व्यापार और परिवहन की सुविधाओं ने लोगों को बसने के लिए आकर्षित किया। यह प्राकृतिक वातावरण (नदी) और मानवीय क्रियाओं (खेती व व्यापार) के बीच संबंध को दर्शाता है।
शहरी क्षेत्र का विकास:
दक्षिण भारत के मुंबई जैसे महानगर का विकास समुद्री तट पर हुआ, जो व्यापार और परिवहन के लिए अनुकूल था। यह प्राकृतिक विशेषताओं और मानवीय गतिविधियों (उद्योग, व्यापार) के बीच संबंध दिखता है।
रेगिस्तानी क्षेत्र:
राजस्थान के थार रेगिस्तान में लोग विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों के बावजूद पानी की कमी और गर्म जलवायु के साथ सामंजस्य बैठाकर जीवन जीते हैं। यहां कुएं, जलाशय और ऊंट जैसे साधनों का उपयोग दिखाता है कि कैसे मनुष्य अपने वातावरण के साथ तालमेल बिठाते हैं।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि डी.एच. डेविस का दृष्टिकोण मानव भूगोल को अधिक व्यापक बनाता है, जिसमें न केवल प्राकृतिक और मानव के बीच संबंध बल्कि क्षेत्रीय विश्लेषण और विकास की प्रक्रियाएं भी शामिल हैं।
एल्सवर्थ हंटिंगटन द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा (Manav bhugol ki paribhasha)
एल्सवर्थ हंटिंगटन के अनुसार,” मानव भूगोल मे भौगोलिक वातावरण तथा मानवीय क्रियाओं और गुणों के पारस्परिक संबंधो के वितरण और स्वरूप का अध्ययन होता है।”
एल्सवर्थ हंटिंगटन के अनुसार, मानव भूगोल (Human Geography) में यह अध्ययन किया जाता है कि भौगोलिक वातावरण (जैसे- जलवायु, स्थलाकृति, वनस्पति) और मनुष्य की क्रियाएं (जैसे- कृषि, उद्योग, आवास) तथा उसके गुण (जैसे- संस्कृति, भाषा, धर्म) आपस में कैसे जुड़े हुए हैं और उनका भौगोलिक वितरण व स्वरूप कैसा है। इसको नीचे दिए गए उदाहरणों के माध्यम से समझा जा सकता है।
जलवायु और कृषि का संबंध:
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा और शुष्क जलवायु के कारण बाजरा और ज्वार जैसी सूखा-रोधी फसलें उगाई जाती हैं। वहीं, पंजाब और हरियाणा की उपजाऊ मिट्टी और प्रचुर सिंचाई के कारण गेहूं और चावल जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
पर्यावरण और आवास का संबंध:
पहाड़ी क्षेत्रों में जैसे- हिमाचल प्रदेश में मकान लकड़ी के बने होते हैं ताकि सर्दी से बचा जा सके, जबकि राजस्थान के गर्म क्षेत्रों में मकान पत्थर और मिट्टी के बने होते हैं जो गर्मी को कम करते हैं।
संसाधन और उद्योग:
झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संपदा वाले क्षेत्रों में खनन और इस्पात उद्योग विकसित हुए हैं, जबकि मुंबई जैसे समुद्री तटीय क्षेत्र में बंदरगाह आधारित उद्योगों का विकास हुआ है।
इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि हंटिंगटन की यह परिभाषा मानव और पर्यावरण के गहरे संबंध को स्पष्ट करती है। यह बताती है कि कैसे भौगोलिक वातावरण मनुष्य के जीवन और उसकी गतिविधियों को प्रभावित करता है और कैसे मनुष्य भी वातावरण को बदलता है।
रैटजेल के द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा (Manav bhugol ki paribhasha)
रैटजेल के अनुसार “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।“
रैटजेल मानना है कि मानव भूगोल उन विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है, जिनके माध्यम से मानव समाज अपने परिवेश (धरातल) से जुड़ता है और उसे आकार देता है।
यह परिभाषा दो प्रमुख तत्वों को प्रमुख को दर्शाती है:
- मानव समाज – जिसमें लोग, उनकी संस्कृतियाँ, गतिविधियाँ, जीवनशैली, और उनके विभिन्न समूहों का अध्ययन किया जाता है।
- धरातल – यानि पृथ्वी की भौतिक विशेषताएँ जैसे स्थलाकृति, जलवायु, संसाधन, और प्राकृतिक पर्यावरण।
रैटजेल का कहना है कि मानव समाज और धरातल का आपसी संबंध बहुत गहरा है और दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इसके उदाहरण के रूप में निम्नलिखित पर विचार किया जा सकता है:
कृषि और जलवायु
किसी क्षेत्र में जलवायु के अनुसार कृषि गतिविधियाँ विकसित होती हैं। उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में मानसून की अधिक वर्षा के कारण धान की खेती होती है, जबकि ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में गेहूं और जौ की खेती होती है। इस प्रकार, जलवायु (धरातल) मानव समाज के कृषि कार्यों को प्रभावित करती है।
नगरों का विकास
नगरों और शहरों का विकास भूमि के उपयोग, संसाधनों और प्राकृतिक जलवायु से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, नदियों के किनारे बसे नगर (जैसे, वाराणसी) जल परिवहन के लिए अनुकूल होते हैं। इसी तरह, पहाड़ी क्षेत्रों में नगरों का विकास सीमित होता है, क्योंकि वहाँ के स्थलाकृति और जलवायु मानव गतिविधियों पर कड़ा असर डालते हैं।
औद्योगिकीकरण और भूमि उपयोग
औद्योगिकीकरण ने भूमि का उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को बदल दिया। जैसे, कोयला उत्पादन के लिए खनिज संसाधन वाली जगहों पर उद्योगों का विकास होता है। इस प्रकार, मानव समाज की आर्थिक गतिविधियाँ (जैसे, उद्योगों की स्थापना) धरातल के संसाधनों पर निर्भर करती हैं और इसके कारण भूमि का उपयोग भी बदलता है।
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि रैटजेल के दृष्टिकोण के अनुसार, मानव भूगोल केवल मानव समाज का अध्ययन नहीं है, बल्कि यह समाज और धरातल के बीच परस्पर संबंधों का विस्तृत विश्लेषण है।
एलन सी. सेंपल के द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा (Manav bhugol ki paribhasha)
एलन सी. सेंपल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।”
इस परिभाषा का अर्थ है कि मानव भूगोल पृथ्वी के प्राकृतिक तत्वों (जैसे कि भूमि, जल, जलवायु) और मनुष्यों की गतिविधियों (जैसे कि कृषि, उद्योग, शहरीकरण) के बीच के संबंधों को समझने और अध्ययन करने पर केंद्रित है। यह संबंध समय के साथ बदलते रहते हैं, क्योंकि पृथ्वी की स्थिति और मानवीय गतिविधियाँ दोनों ही निरंतर बदलती रहती हैं।
आईए इसको कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं:-
कृषि और जलवायु:
भारत में मानसून के आधार पर कृषि की गतिविधियाँ निर्धारित होती हैं। यदि मानसून समय पर नहीं आता, तो किसानों को सूखे जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। जो यह दर्शाता है कि पृथ्वी की जलवायु (अस्थिर पृथ्वी) और मानव की कृषि गतिविधियाँ (क्रियाशील मानव) एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं।
शहरीकरण और प्राकृतिक संसाधन:
मुंबई जैसे शहर में शहरीकरण के कारण जंगलों को काटकर नई कॉलोनियाँ और सड़कें बनाई जा रही हैं। यह दिखाता है कि मानव (क्रियाशील मानव) पृथ्वी की संरचना (अस्थिर पृथ्वी) को कैसे बदलता है।
प्राकृतिक आपदाएँ और मानव प्रतिक्रिया:
जब कोई भूकंप (अस्थिर पृथ्वी) आता है, तो लोग पुनर्वास, निर्माण और सहायता प्रदान करने की गतिविधियाँ (क्रियाशील मानव) शुरू करते हैं। यह संबंध बताता है कि किस प्रकार प्राकृतिक और मानव-निर्मित प्रक्रियाएँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।
एलन सी. सेंपल की परिभाषा इस तथ्य को उजागर करती है कि मानव भूगोल एक गतिशील विज्ञान है, जो पृथ्वी के प्राकृतिक तत्वों और मानव की गतिविधियों के बीच संबंधों का अध्ययन करता है।
पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा (Manav bhugol ki paribhasha)
पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार “मानव भूगोल हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना है।“
पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश ने जो परिभाषा दी है, उसमें उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद भौतिक नियमों (जैसे भौगोलिक स्थिति, जलवायु, स्थलाकृति आदि) और जीवों (मनुष्यों सहित सभी जीवधारियों) के बीच संबंधों को समझने की बात की है। उनका मानना था कि भौतिक और प्राकृतिक कारकों का जीवों की गतिविधियों और जीवनशैली पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे:-
आर्कटिक क्षेत्रों में जीवन:
ग्रीनलैंड और साइबेरिया जैसे ठंडे क्षेत्रों में लोग मुख्य रूप से मछली पकड़ने, सील का शिकार करने और छोटे पैमाने पर पशुपालन पर निर्भर रहते हैं। यह वहां की कठोर जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों के अनुकूल मानव जीवन के उदाहरण हैं।
प्राकृतिक आपदाओं का मानव बस्तियों पर प्रभाव:
जापान जैसे देश में, भूकंप और ज्वालामुखियों की सक्रियता के कारण घर और भवन हल्के और लचीले बनाए जाते हैं। यह वहां के भौगोलिक खतरों के प्रति मानव द्वारा अपनाई गई अनुकूलन की प्रक्रिया का उदाहरण है।
ज्वालामुखीय क्षेत्रों में कृषि:
इंडोनेशिया और हवाई जैसे ज्वालामुखीय क्षेत्रों में ज्वालामुखीय राख से उपजाऊ मिट्टी बनती है, जो धान, कॉफी और फलों की खेती के लिए आदर्श होती है। हालांकि, इन क्षेत्रों में लोग ज्वालामुखी विस्फोट के जोखिम के साथ रहते हैं।
नदी डेल्टा में जीवन:
सुंदरबन डेल्टा (भारत और बांग्लादेश) में लोग मछली पालन, कृषि, और जलीय जीवों के शिकार पर निर्भर हैं। यह क्षेत्र अपने मैंग्रोव जंगलों और बार-बार आने वाले बाढ़ के लिए जाना जाता है, जिससे लोग विशेष प्रकार के घर (मचान पर) और जल प्रबंधन तकनीक अपनाते हैं।
वन क्षेत्रों में आदिवासी जीवन:
छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के घने जंगलों में रहने वाले आदिवासी लोग जंगलों से लकड़ी, औषधीय पौधों और खाद्य पदार्थों को एकत्र कर अपनी जीवनशैली को बनाए रखते हैं। यह दर्शाता है कि जंगल जैसे प्राकृतिक संसाधन मानव संस्कृति और आर्थिक गतिविधियों को कैसे आकार देते हैं।
मरुस्थलीकरण का प्रभाव:
सहारा मरुस्थल में रहने वाले लोग खानाबदोश जीवन शैली अपनाते हैं। वे ऊंट पालन करते हैं और पानी के स्रोतों की खोज में लगातार यात्रा करते हैं। उनकी जीवनशैली भौगोलिक परिस्थितियों से गहराई से जुड़ी हुई है।
ये सभी उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश की परिभाषा के अनुसार, मानव गतिविधियां और प्राकृतिक परिवेश का संबंध गहराई से जुड़ा हुआ है।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि भौतिक वातावरण (जैसे- जलवायु, स्थलाकृति) मानव जीवन और गतिविधियों को कैसे प्रभावित करता है। साथ ही, मानव भूगोल यह भी देखता है कि मनुष्य इन प्राकृतिक तत्वों के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित कर अपने स्थान और क्षेत्र को विकसित करता है। यह विज्ञान प्राकृतिक और मानव निर्मित परिवेश के पारस्परिक प्रभावों को उजागर करता है।
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