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प्रस्तुत लेख में आप वलन का अर्थ एवं उसके प्रकारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
अन्तर्जात बलों से उत्पन्न होने वाले क्षैतिज संचलन द्वारा चट्टानों में संपीडन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो चट्टानों में लहरनुमा मोड़ पड़ जाते हैं। इस तरह के मोड़ों को ही ‘वलन’ कहा जाता है। वलन में कुछ भाग ऊपर उठ जाता है और कुछ भाग नीचे धँस जाता है। ऊपर उठे भाग को अपनति (anticlines) तथा नीचे धँसे भाग को अभिनति (synclines) कहते हैं।
वलन कैसा होगा यह कई बातों पर निर्भर करता है। यदि वलन वाले क्षेत्र में चट्टानें अधिक लचीली तथा कोमल होंगी तो वलन अधिक होगा। परन्तु इसके विपरीत स्थिति होने अर्थात् चट्टानें अधिक कठोर होंगी तो वलन साधारण होगा। इसी तरह सम्पीडन के लिए एक दूसरे की ओर कार्य करने वाले क्षैतिज बलों की मात्रा अलग-2 होगी तो इस तरह बनने वाले वलन में भी अन्तर देखने को मिल्रेगा।
सामान्य वलन में दोनों भुजाओं के झुकाव बराबर होते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि एक वलन की दो भुजाओं के झुकाव अलग-अलग होते हैं। इस आधार पर वलन में काफ़ी अंतर देखने को मिलता है। वलन को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
वलन के प्रकार (Types of Folds)
1. सममित वलन (symmetrical folds)
साधारण प्रकार के वलन को ही सममित वलन कहते हैं। सममित वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव बराबर होता है। सममित के अर्थ से ही प्रकट हो जाता है कि इसमें समानता होती है। यह खुला हुआ वलन होता है।
2. असममित वलन (asymmetrical folds)
इस तरह के वलन की दोनों भुजाओं में असमानता होती है। एक भुजा का झुकाव साधारण होता है, जिसका ढाल कम होता है, जबकि दूसरी भुजा छोटी होती है और इसका झुकाव अधिक होता है। इस तरह दोनों भुजाओं के झुकाव तथा लम्बाई में असमानताएँ होती हैं।
3. एकदिग्नत वलन (monoclinal folds)
जब किसी वलन की एक भुजा का झुकाव साधारण तथा ढाल कम होता है और दूसरी भुजा का झुकाव समकोण पर है तथा ढाल एकदम खड़ा होता है तो उसे ‘एकनति’ या ‘एकदिग्नत वलन’ कहते हैं। एकदिग्नत वलन’ का निर्माण लम्बवत् संचलन (धरातल से समकोण) के कारण होता है।
अधिक संपीडन होने पर वलन की एक भुजा के टूट जाने की संभावना बनी रहती है। इसके टूटने पर भ्रंश का निर्माण हो सकता है। क्षैतिज संचलन द्वारा दो दिशाओं से (एक दूसरे की ओर) लगने वाले बलों की मात्रा में अंतर के कारण होने वाले असमान संपीडन से भी एकदिग्नत वलन का निर्माण हो सकता है।
4. समनत वलन (isoclinal folds)
दोनों दिशाओं से क्षैतिज संचलन में लगे बलों की मात्रा समान होती है तब समान संपीडन के कारण वलन की दोनों भुजाएं एक समान रूप में झुक जाती हैं तथा दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ जाती हैं कि दोनों भुजाएं समानान्तर हो जाती हैं। इस तरह के समानान्तर भुजा वाले वलन को ‘समनत वलन’ कहते हैं।
लेकिन यहां यह याद रखना जरूरी है कि समनत वलन की भुजाएँ परस्पर समानान्तर तो होती हैं परन्तु क्षैतिज दिशा में (धरातल के समानांतर) नहीं होती हैं।
5. परिवलित वलन (recumbent folds)
जब अंतर्जात बलों के कारण क्षैतिज संचलन अत्यधिक तीव्र होता है तो अत्यधिक संपीडन के कारण इतना अधिक वलन हो जाता है कि वलन की दोनों भुजाएं एक दूसरे के समानान्तर होने के साथ-2 क्षैतिज दिशा में भी हो जाती हैं।
6. प्रतिवलन (overturned folds)
अत्यधिक संपीडन के कारण जब वलन की एक भुजा दूसरे पर उलट जाती है तो उसे ‘प्रतिवलन’ कहते हैं। इस प्रकार के वलन की भुजाएँ क्षैतिज अवस्था में नहीं होती।
7. अवनमन वलन (plunging folds)
जब किसी वलन की अक्ष (axis), क्षैतिज तल के समानान्तर न होकर उसके साथ कोण बनाती है तो उसे ‘अवनमन वलन’ कहते हैं।
8. पंखा वलन (fan folds)
जब एक बहुत बड़े वलन की बृहद् अपनति तथा अभिनति में कई छोटी-छोटी अपनतियाँ मिलती हैं तो उस वलन को ‘पंखा वलन’ कहते हैं। इनकी आकृति एक पंखे से मिलती है, अत: इन्हें पंखा वलन कहते हैं।
9. खुला वलन (open folds)
जब किसी वलन की दोनों भुजाओं के बीच का कोण 90° से अधिक परन्तु 180° से कम होता है अर्थात् जब भुजाओं के बीच का कोण अधिक कोण (obtuse angle) होता है तो उस वलन को ‘खुला वलन’ कहते हैं। इसका निर्माण सामान्य संपीडन के कारण लहरनुमा वलन पड़ने से होता है।
10. बन्द वलन (closed folds)
जब किसी वलन की दो भुजाओं के बीच का कोण न्यून कोण (acute angle) होता है तो उस वलन को ‘बन्द वलन’ कहते हैं। इसका निर्माण अत्यधिक संपीडन के कारण होता है।
References:
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविंद्र सिंह
- भूआकृतिक विज्ञान, बी. सी. जाट
- Image Credit: Facebook Page – Geology of World and the Environment, geologypics.com, flickr.com
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