Search
Close this search box.

Share

जेफ्रीज का तापीय संकुचन सिद्धान्त (Thermal Contraction Theory of Jeffreys)

Estimated reading time: 8 minutes

फ्रीज का तापीय संकुचन सिद्धांत पृथ्वी के संकुचन के इतिहास पर आधारित है। यह सिद्धांत बताता है कि विकिरण के कारण पृथ्वी का तापमान घट रहा है, जिससे वह ठंडी और सिकुड़ती जा रही है। गणितीय गणनाओं के अनुसार, पृथ्वी के बाहरी 400 किमी तक के भाग में 500° सेंटीग्रेड तापमान कम होने से पृथ्वी के व्यास में 20 किमी और परिधि में 130 किमी की कमी होती है। ऊपरी परतें निचली परतों से पहले शीतल होकर संकुचित होती हैं, जिससे पर्वत बनते हैं। यह सिद्धांत भूगोल के छात्रों के लिए उपयोगी है, हालांकि इसकी कुछ आलोचनाएं भी हैं।

जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धांत के बारे में जानकारी दी गई है, जो बीए, एमए, यूजीसी नेट, यूपीएससी, आरपीएससी, केवीएस, एनवीएस, डीएसएसएसबी, एचपीएससी, एचटीईटी, आरटीईटी, यूपीपीसीएस और बीपीएससी जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले भूगोल के छात्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।

इस लेख को पढ़ने के बाद

  • आप जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धान्त (Thermal Contraction Theory of Jeffreys) की आलोचनात्मक व्याख्या कर पाएंगे।
  •  जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धान्त से संबंधित तनावहीन स्तर या तनावहीन तल (level of no strain) को परिभाषित कर सकेंगे।

जेफ्रीज का तापीय संकुचन सिद्धान्त (Thermal Contraction Theory of Jeffreys)

जेफ्रीज का सिद्धान्त पृथ्वी के संकुचन इतिहास पर आधारित है। विकिरण के कारण पृथ्वी के प्रारम्भिक इतिहास से ही उसके तापमान में कमी हो रही है जिस कारण पृथ्वी ठंडी होकर सिकुड़ती जा रही है।

गणितीय गणनाओं के आधार पर जेफ्रीज ने बताया कि पृथ्वी के बाहरी 400 किमी० तक वाले भाग में 500° सेण्टीग्रेड ताप कम होने से जो संकुचन होगा, उसके कारण पृथ्वी के व्यास में 20 किमी० तथा परिधि में 130 किमी० की कमी आएगी। पृथ्वी में वास्तविक संकुचन की गणना करके जेफ्रीज ने बताया कि अधिकतम संकुचन के कारण परिधि में 200 किमी० तथा धरातलीय क्षेत्रफल में 5×1016 वर्ग सेण्टीमीटर की कमी हुई है।

जेफ्रीज के अनुसार पृथ्वी में कई सकेन्द्रीय परतें (concentric shells) पायी जाती हैं। पृथ्वी के ठंडा होने की क्रिया परत के रूप में होती है, परन्तु धरातल से 700 किमी० की गहराई तक ही तापमान में कमी के कारण पृथ्वी ठंडी होती है। धरातल में 700 किमी० के बाद वाला भाग (केन्द्र तक) इस परिवर्तन से अप्रभावित रहता है। 

लेकिन 700 किमी० की गहराई तक प्रत्येक ऊपरी परत अपने से निचली परत से पहले शीतल तथा संकुचित होती है। इस तरह सबसे पहले पृथ्वी की ऊपरी परत विकिरण द्वारा ताप ह्रास होने से शीतल होने लगी। शीतल होने की एक सीमा होती है, जिसके आगे परत पुनः शीतल नहीं हो सकती है। पृथ्वी की ऊपरी परत के अधिकतम शीतल हो जाने तथा सिकुड़ जाने के बाद निचली परत में शीतल होने की क्रिया प्रारम्भ होती है, जिस कारण निचली परत में सिकुड़न होने लगती है, परिणामस्वरूप ऊपरी परत निचली परत से बड़ी रह जाती है।

तनावहीन स्तर या तनावहीन तल (level of no strain) क्या होता है?

ऊपरी तथा निचली परतों के बीच का एक ऐसा स्तर भी होता है, जहाँ पर संकुचन इतना होता है कि मध्यवर्ती परत निचली परत के साथ फिट हो सके। इस स्तर को तनावहीन स्तर या तनावहीन तल (level of no strain) कहते हैं। इस तनावहीन तल से ऊपर स्थित परत इतनी बड़ी होती है कि उसे निचली परत से सटे रहने के लिए पुनः सिकुड़ना पड़ता है। इस तरह ऊपरी परत झुककर निचली परत पर ध्वस्त हो जाती है, जिस कारण उसमें झुर्रियाँ पड़ जाती हैं तथा पर्वतों का निर्माण होता है। 

तनावहीन तल के नीचे वाली परत इतनी छोटी होती है कि उसे निचली परत से सटे रहने के लिए फैलना पड़ता है। जिस कारण तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। परिणामस्वरूप उसमें भ्रंशन तथा फटन का निर्माण होने से चट्टानें टूट जाती हैं, जिसके कारण ऊपरी परत पुनः नीचे की ओर ध्वस्त होती है जिससे पूर्व निर्मित मोड़ों में उत्थान होता है।

कब होती है, पर्वत निर्माण की क्रिया?

पर्वत निर्माण की क्रिया सदैव न होकर कुछ खास समयों में ही होती है। संकुचन के कारण पैदा होने वाला दबाव तथा तनाव की शक्ति का संग्रह होता रहता है तथा यह क्रिया तब तक सक्रिय रहती है, जब तक कि वह शक्ति चट्टान की शक्ति से अधिक नहीं हो जाती है। इस अवस्था के प्राप्त हो जाने पर वलन तथा भ्रंशन प्रारम्भ हो जाता है तथा पर्वत निर्माण की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। 

जब तनाव तथा दबाव मंद पड़ जाता है तो पर्वत निर्माण रुक जाता है। इस तरह पर्वत निर्माण काल तथा शान्त काल का बारी-बारी से आगमन होता रहता है। इस आधार पर जेफ्रीज ने पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास में पांच पर्वत निर्माण कालों का उल्लेख किया है।

जेफ्रीज ने बताया है कि पर्वत निर्माण धरातल पर प्रत्येक क्षेत्र में नहीं होता है। पर्वत निर्माण चट्टान के स्वभाव तथा उसकी शक्ति पर आधारित होता है। जहाँ पर चट्टानें मुलायम तथा लचीली होती हैं, वहाँ पर पर्वत निर्माण होता और जहाँ पर चट्टानें अधिक कठोर होती हैं, वहाँ पर तनाव तथा दबाव के कारण भ्रंशन के अधिक अवसर होते हैं, क्योंकि चट्टानें टूट जाती हैं।

पृथ्वी के शीतल होने की क्रिया महाद्वीपों के नीचे की अपेक्षा सागरीय तली के नीचे अधिक होती है, अतः महासागरीय तली के अधिक सिकुड़ने के कारण दबाव की दिशा महासागर से महाद्वीप की ओर होती है, जिस कारण पर्वतों की स्थिति महासागरों के सामने तथा उनके समानांतर होती है। राकीज़ तथा एण्डीज इसके उत्तम उदाहरण हैं।

जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धान्त की आलोचना

यद्यपि जेफ्रीज ने अपने सिद्धान्त को कई प्रमाणों तथा उदाहरणों द्वारा प्रमाणित करने और पृथ्वी की विभिन्न स्थलाकृतियों की समस्याओं को सुलझाने का भरसक प्रयास किया है तथापि सिद्धान्त का विभिन्न बातों पर विरोध किया गया है, जिनका जिक्र नीचे किया गया है-

  • जेफ्रीज ने पृथ्वी में संकुचन द्वारा उत्पन्न जिस बल द्वारा पर्वतों की व्याख्या की है, वह इतना पर्याप्त नहीं है कि भूपटल के पर्वतों की निर्माण क्रिया को समझा सके।
  • जेफ्रीज की पृथ्वी की सकेन्द्रीय परत के रूप में शीतल होने की कल्पना भ्रामक है।
  • यदि टर्शियरी युग के अल्पाइन पर्वतों पर ध्यान दिया जाय तो यह असम्भव सा लगता है कि आज से केवल 20 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी में इतना संकुचन हो गया कि हिमालय जैसे गगनचुम्बी पर्वत का निर्माण हो गया।
  • जेफ्रीज के सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीपों तथा सागरों के वितरण में समानता होनी चाहिए, क्योंकि पृथ्वी के चारों तरफ संकुचन हुआ है, परन्तु वर्तमान समय में यह वितरण असमान है।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार पर्वतों की स्थिति महासागरों के समानान्तर होनी चाहिए, परन्तु आल्प्स तथा हिमालय की स्थिति इसके विपरीत है।
  • इस सिद्धान्त को यदि मान भी लिया जाय तो विशाल पर्वतों का निर्माण नहीं हो सकता है, इसके विपरीत छोटे-छोटे वलन का ही निर्माण हो सकता है।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार पर्वतों के वितरण में निश्चित प्रणाली नहीं हो सकती है, जबकि भूतल पर इनमें निश्चित प्रणाली पायी जाती है।

Test Your Knowledge with MCQs

  1. जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के तापमान में कमी का मुख्य कारण क्या है?
    a) ज्वालामुखीय क्रियाएँ
    b) विकिरण
    c) भूकंपीय गतिविधियाँ
    d) चुम्बकीय क्षेत्र
  2. जेफ्रीज के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के बाहरी 400 किमी तक के भाग में तापमान में कितनी कमी होती है?
    a) 200° सेंटीग्रेड
    b) 500° सेंटीग्रेड
    c) 100° सेंटीग्रेड
    d) 1000° सेंटीग्रेड
  3. तनावहीन तल (level of no strain) के संदर्भ में कौन-सा कथन सही है?
    a) यह ऊपरी और निचली परतों के बीच एक स्थिर स्तर है।
    b) यह केवल निचली परत में होता है।
    c) यह केवल ऊपरी परत में होता है।
    d) यह धरातल के ऊपर होता है।
  4. जेफ्रीज के सिद्धांत के अनुसार, पर्वत निर्माण की प्रक्रिया किसके कारण होती है?
    a) ऊपरी परत का निचली परत पर ध्वस्त होना
    b) चट्टानों का विघटन
    c) महासागरीय तरंगें
    d) भूमध्य रेखा की गतिविधियाँ
  5. जेफ्रीज के अनुसार, पृथ्वी के व्यास में कितनी कमी आती है?
    a) 10 किमी
    b) 20 किमी
    c) 30 किमी
    d) 40 किमी
  6. जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धांत के अनुसार, सबसे पहले कौन-सी परत ठंडी होती है?
    a) निचली परत
    b) ऊपरी परत
    c) केंद्र परत
    d) कोई परत नहीं
  7. जेफ्रीज के सिद्धांत की किस प्रमुख बात पर आलोचना की गई है?
    a) संकुचन बल की पर्याप्तता
    b) महाद्वीपों की स्थिति
    c) समुद्र की गहराई
    d) तापमान वृद्धि
  8. जेफ्रीज के सिद्धांत के अनुसार, पर्वत निर्माण का स्थान कहाँ होता है?
    a) समुद्री तल पर
    b) महाद्वीपों के सामने
    c) भूमध्य रेखा के पास
    d) पर्वतीय क्षेत्र के अंदर
  9. जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धांत के अनुसार, तनावहीन तल का क्या महत्व है?
    a) यह चट्टानों के विघटन का कारण है।
    b) यह ऊपरी परत के ध्वस्त होने का कारण है।
    c) यह संकुचन और विस्तार के बीच संतुलन बनाता है।
    d) यह तापमान वृद्धि का कारण है।
  10. जेफ्रीज के अनुसार, पृथ्वी के शीतल होने की क्रिया कहाँ अधिक होती है?
    a) महासागरीय तली के नीचे
    b) महाद्वीपों के नीचे
    c) भूमध्य रेखा पर
    d) ध्रुवीय क्षेत्रों में

उत्तर:

  1. b) विकिरण
  2. b) 500° सेंटीग्रेड
  3. a) यह ऊपरी और निचली परतों के बीच एक स्थिर स्तर है।
  4. a) ऊपरी परत का निचली परत पर ध्वस्त होना
  5. b) 20 किमी
  6. b) ऊपरी परत
  7. a) संकुचन बल की पर्याप्तता
  8. b) महाद्वीपों के सामने
  9. c) यह संकुचन और विस्तार के बीच संतुलन बनाता है।
  10. a) महासागरीय तली के नीचे

FAQs

जेफ्रीज के तापीय संकुचन सिद्धांत क्या है?

जेफ्रीज का तापीय संकुचन सिद्धांत बताता है कि पृथ्वी के तापमान में कमी के कारण वह ठंडी और सिकुड़ती जा रही है। यह संकुचन पृथ्वी के बाहरी 400 किमी भाग में 500° सेंटीग्रेड तापमान कम होने से होता है, जिससे पृथ्वी के व्यास और परिधि में कमी आती है। इस सिद्धांत के अनुसार, पर्वत निर्माण की प्रक्रिया ऊपरी परत के निचली परत पर ध्वस्त होने से होती है।

जेफ्रीज के सिद्धांत के अनुसार पर्वत निर्माण कैसे होता है?

जेफ्रीज के अनुसार, पर्वत निर्माण तब होता है जब पृथ्वी की ऊपरी परत ठंडी होकर संकुचित हो जाती है और निचली परत पर ध्वस्त हो जाती है। इससे तनाव और संकुचन पैदा होते हैं, जो पर्वतों का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया लगातार नहीं होती, बल्कि संकुचन और तनाव के साथ विश्राम काल में होती है।

थ्वी के तापीय संकुचन का प्रभाव क्या है?

पृथ्वी के तापीय संकुचन का मुख्य प्रभाव पर्वत निर्माण है। जब पृथ्वी ठंडी होकर संकुचित होती है, तो उसकी ऊपरी परत निचली परत पर ध्वस्त हो जाती है, जिससे पर्वत और पर्वतीय श्रृंखलाएँ बनती हैं। इसके अलावा, पृथ्वी की परिधि और व्यास में कमी भी होती है, जो भूगर्भीय संरचनाओं को प्रभावित करती है।

You Might Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Category

Realated Articles