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भूमिगत जल का अर्थ
पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे चट्टानों के छिद्रों और दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल (groundwater) कहा जाता है। इसके प्रमाण कुएं, गेसर, और जलस्रोतों के रूप में मिलते हैं। वर्षा का जल धरातल से रिसकर नीचे जाता है और पारगम्य चट्टानों के रिक्त स्थानों में एकत्रित होकर भूमिगत जल बनता है।
भूमिगत जल सतह के ऊपर और नीचे दोनों स्थानों पर कार्य करता है, जैसे ऊपरी सतह पर जल रिसते समय अपरदन (घोलीकरण) करता है, जिससे छोटे-छोटे गर्त और कटक बनते हैं। जब ऊपरी सतह के नीचे पारगम्य शैल की स्थिति होती है, तो जल नीचे जाकर अपरदन और निक्षेप द्वारा स्थलरूपों का निर्माण करता है।
भूमिगत जल के अन्तर्गत जब तक गति नहीं होती है, तब तक भूगर्भशास्त्र और भूआकृति विज्ञान में कोई महत्त्व नहीं होता, लेकिन गतिशील भूमिगत जल का अध्ययन भूगोल और भूगर्भशास्त्र के लिए महत्वपूर्ण है।
भूमिगत जल के स्रोत
भूमिगत जल कई स्रोतों से मिलता है:
- जलवर्षा और हिम: भूमिगत जल के सबसे प्रमुख स्रोत हैं जलवर्षा और हिम। धरातलीय सतह पर स्थित तालाब, झील, नदी, वनस्पति और समुद्र से वाष्पीकृत जल, वर्षा और हिमपात के रूप में धरातल पर आता है। इसे आकाशी जल कहते हैं। जब आकाशी जल धरातल पर आता है, तो यह चट्टानों की दरारों और छिद्रों से होकर रिसता है और अंततः सतह के नीचे अपारगम्य चट्टानी सतह पर रुककर भूमिगत जल बन जाता है। वर्षा के कम होने या शुष्क मौसम में कुओं का जलस्तर नीचा हो जाता है और जलस्रोत सूख जाते हैं, जो भूमिगत जल में आकाशी जल की प्रमुखता को दर्शाता है।
- सहजात जल (Connate Water): दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत है सहजात जल, जिसे तलछट जल भी कहते हैं। सागर या झीलों में निक्षेपित परतदार चट्टानों के छिद्रों में स्थित जल सहजात जल कहलाता है। जब चट्टानों का जमाव हो जाता है, तो सागरीय जल पारगम्य स्तरों के मध्य रुक जाता है और अपारगम्य शैल से घिरा रहता है। जब ये शैल ऊपर उठती हैं, तो उनका जल भूमिगत जल से मिल जाता है।
- मैगमा जल (Magmatic Water): पृथ्वी के भीतर ज्वालामुखीय क्रियाओं के कारण तप्त मैगमा चट्टानों में प्रवेश करता है। इसके वाष्पीय पदार्थ घनीभूत होकर जल में बदल जाते हैं और भूमिगत जल से मिल जाते हैं, जिसे मैगमा जल कहते हैं।
भूमिगत जल का संचयन
जब सतह का पानी चट्टानों के छिद्रों में जमा हो जाता है, तो चट्टानें धीरे-धीरे जलयुक्त हो जाती हैं, जिसे चट्टान का सम्पृक्त होना (saturation) कहते हैं। जब चट्टानें पूरी तरह जलयुक्त हो जाती हैं, तो उन्हें सम्पृक्त चट्टानें (saturated rocks) कहा जाता है। इन चट्टानों के क्षेत्र को सम्पृक्त मण्डल (saturated zone) कहते हैं और इसके ऊपरी तल को जलतल (water table) कहते हैं।
भूमिगत जल की स्थिति को तीन मण्डलों में विभाजित किया जा सकता है:
असंपृक्त मण्डल (Unsaturated Zone)
यह जलतल (water table) के ऊपर का हिस्सा, जिसे वैडोज जोन भी कहते हैं। इसमें मिट्टी के छिद्र हवा से भरे होते हैं और जल का कुछ हिस्सा इनमें रुक जाता है। इस मण्डल का जल वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन द्वारा वापस वायुमण्डल में चला जाता है। वर्षा के मौसम में यह मण्डल जलयुक्त रहता है, लेकिन शुष्क मौसम में सूख जाता है।
संपृक्त मण्डल (Saturated Zone)
यह धरातल के नीचे वह भाग है जहां असंपृक्त मण्डल से अधिकांश जल रिसकर आता है, यहां चट्टानों के छिद्र पूरी तरह जल से भरे होते हैं। इसे फ्रीटिक मण्डल भी कहते हैं। इसे दो उपभागों में बांटा गया है:
आन्तरायिक संपृक्त मण्डल (Zone of Intermittent Saturation)
इसमें जल की मात्रा मौसम के अनुसार बदलती रहती है। वर्षा के समय जलतल ऊंचा और शुष्क मौसम में नीचा हो जाता है।
स्थायी संपृक्त मण्डल (Zone of Permanent Saturation)
यह मण्डल आन्तरायिक संपृक्त मण्डल के नीचे स्थित होता है और इसका जलतल स्थिर रहता है। यह स्थायी जलतल अक्सर जलस्रोत, दलदल, झील या नदियों के रूप में सतह पर आता है।
चट्टान प्रवाह मण्डल (Rock Flowage Zone)
एक निश्चित गहराई पर चट्टानों का भार इतना अधिक हो जाता है कि छिद्र बंद हो जाते हैं और जल नीचे नहीं जा सकता। यह मण्डल लगभग 16 किलोमीटर की गहराई पर होता है।
कभी-कभी अपारगम्य चट्टानों के कारण भूमिगत जल कई मण्डलों में विभाजित हो जाता है। जैसे, यदि किसी चीका या मृत्तिका की परत के ऊपर भूमिगत जल जमा हो जाए और उसके नीचे पुनः दूसरा जल मण्डल हो, तो सबसे ऊपरी जलतल (water table) को लटका हुआ जलतल (perched water table) कहा जाता है। इस तरह के दो या अधिक संतृप्त मण्डलों के बीच सूखा भाग रहता है। जिन चट्टानों से होकर भूमिगत जल बहता है, उन्हें जलभरा (aquifer) कहते हैं। रेत, बजरी या मलवे के ढेर जलभरे के लिए उपयुक्त होते हैं। दो जलभरों के बीच अपारगम्य स्तर को अक्वीक्लूड (aquiclude) कहते हैं।
FAQs
भूमिगत जल वह जल है जो पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे चट्टानों के छिद्रों और दरारों में स्थित होता है। इसे कुएं, गेसर, और जलस्रोतों के रूप में देखा जा सकता है।
भूमिगत जल के प्रमुख स्रोतों में जलवर्षा, हिम, सहजात जल, और मैगमा जल शामिल हैं।
संपृक्त मण्डल वह क्षेत्र है जहां चट्टानों के छिद्र पूरी तरह जल से भरे होते हैं। इसे फ्रीटिक मण्डल भी कहा जाता है और इसे आन्तरायिक और स्थायी संपृक्त मण्डलों में बांटा गया है।
जलभरे वे चट्टानें होती हैं जिनसे होकर भूमिगत जल बहता है, जैसे रेत और बजरी। अक्वीक्लूड वे अपारगम्य स्तर होते हैं जो जल के प्रवाह को रोकते हैं।
लटका हुआ जलतल वह ऊपरी जलतल है जो किसी चीका या मृत्तिका की परत के ऊपर भूमिगत जल के जमा होने से बनता है, और इसके नीचे पुनः दूसरा जल मण्डल हो सकता है।