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इस लेख में हम बहिर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
बहिर्वेधी ज्वालामुखीय भू-आकृतियाँ को निम्न वर्गो के अंतर्गत शामिल किया जाता है:
केन्द्रीय विस्फोट द्वारा बनने वाले बहिर्वेधी ज्वालामुखीय स्थलरुप (Extrusive Volcanic Landforms)
ऊँचे उठे भाग (elevated forms)
ज्वालामुखी में होने वाले केन्द्रीय विस्फोट या उद्गार में गैस तथा वाष्प, लावा तथा अन्य विखण्डित पदार्थों तीव्र गति के साथ धरातल पर प्रकट होते हैं। इन पदार्थों के जमाव से अनेक प्रकार के ऊँचे उठे भागों का निर्माण होता है, जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है:
सिण्डर शंकु (cinder or ash cone )
सिण्डर शंकु कम ऊँचाईं वाले शंकु होते हैं, जो ज्वालामुखी से निकली धूल व राख एवं विखण्डित पदार्थों के जमाव से बनते हैं। सबसे पहले गैस के उद्गार के साथ छोटे आकार के पदार्थ निकलते हैं तथा चींटी के ढेर के रूप में इकट्ठा होकर शंकु को प्रारम्भिक आकर देते हैं, जिनकी ऊँचाई कुछ इंच से कुछ फीट तक ही होती है। धीरे-धीरे इन पदार्थों का जमाव होता रहता है तथा शंकु का आकार बढ़ता जाता है। कभी-कभी इनके विस्तार एवं वृद्धि की गति इतनी तज होती है कि एक हफ्ते के अन्दर इनकी ऊँचाई 400 फीट तक हो जाती है। मेक्सिको का जोरल्लो, सान साल्वेडोर का माउण्ट इजाल्को, फिलीपाइन के लुजोन द्वीप का कैमिग्विन ज्वालामुखियों के शंकु सिण्डर शंकु के उदाहरण हैं।
कम्पोजिट शंकु (composite cone)
कम्पोजिट शंकु सभी प्रकार के शंकुओं से सबसे ऊँचे होते हैं। इनका निर्माण ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों के क्रमश: तह के रूप में जमा होने से होता है, इस कारण कभी-कभी इनको परतदार शंकु (strata-cones) कहते हैं। विश्व के अधिकांश उच्चतम, अत्यधिक सुडौल तथा बड़े-बड़े ज्वालामुखी पर्वत कम्पोजिट शंकु के प्रमुख उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का शस्ता, रेनियर तथा हुड, फिलीपाइन का मेंयान तथा जापान का फ्यूजीयामा आदि कम्पोजिट शंकु हैं। इसे मिश्रित शंकु भी कहते हैं ।
परपोषित शंकु (parasite cone)
जब ज्वालामुखी शंकु का बहुत अधिक पैलाव हो जाता है तो उसमें दरार पड़ जाने के कारण ज्वालामुखी के मुख्य मार्ग या नली से छोटी-छोटी उपशाखाएँ निकल आती हैं। तथा कुछ मैग्मा व अन्य पदार्थ मुख्य शंकु की इन उपनलियों से निकलने लगते हैं तथा उनके जमा होने से मुख्य शंकु पर छोटे-छोटे अन्य शंकुओं का निर्माण होता है। क्योंकि इन शंकुओं की नली का पोषण ज्वालामुखी की मुख्य नली से होता है, अतः इन्हे ‘परपोषित शंकु’ कहते हैं। शस्तिना शंकु , माउण्ट शस्ता का एक परपोषित शंकु ही है।
पैठिक लावा शंकु (basic lava cone)
जब लावा काफी हल्का तथा पतला होता है तथा सिलिका की मात्रा कम होती है तो लावा अधिक दूर तक फैलने के बाद ही जमता है। इस कारण एक लम्बे स्थान पर कम ऊँचे शंकु का निर्माण होता है । इसका आकार शील्ड की तरह होता है, अत: इसे ‘शील्डं शंकु भी कहा जाता है। क्योंकि इसकी रचना बेसाल्ट लावा से होती है, अतः इसको ‘बेसिक या पैठिक लावा शंकु’ कहते हैं । इस तरह के शंकु को ‘हवाना तरह के शंकु’ भी कहते हैं ।
एसिड लावा शंकु (acid lava cone)
जब ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा काफी गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है एवं सिलिका की मात्रा अधिक होती है तो लावा जैसे ही धरातल परआता है, उसी समय ठंडा होकर जम जाता है । अत: इसको फैलने का समय ही नहीं मिल पाता है। परिणामस्वरूप तीव्र ढाल वाले ऊंचे शंकु का निर्माण होता है । इसे ‘स्ट्राम्बोली प्रकार का शंकु’ भी कहते हैं।
इनको भी पढ़ें
- ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcanoes)
- ज्वालामुखी उद्गार के कारण (Causes of Volcanic Eruption)
- ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ व ज्वालामुखी के अंग (Materials Ejected by Volcanoes and Parts of Volcano)
- उद्गार की अवधि (सक्रियता) के अनुसार ज्वालामुखी का वर्गीकरण
- ज्वालामुखी व ज्वालामुखी क्रिया में क्या अन्तर होता है? (What is the difference between Volcano and Vulcanicity?)
लावा गुम्बद (Lava Dome)
लावा गुम्बद प्रायः शील्ड शंकु का ही रूप होता है। अन्तर केवल इतना ही होता है कि गुम्बद, शंकु से विस्तृत होता है। इसका ढाल अधिक होता है। लावा गुम्बद का निर्माण ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ लावा के जमाव से होता है। उत्पत्ति के अनुसार तथा निर्माण स्थान के आधार पर लावा गुम्बद को तीन भागों में विभाजित किया जाता है- ड्राट गुम्बद,आन्तरिक गुम्बद तथा बाह्य गुम्बद।
लावा डाट (Lava Plug)
जब कभी मिश्रित शंकु वाले ज्वालामुखी शान्त हो जाते हैं तो उनकी नली तथा छिद्र ठोस लावा से भर जाते हैं। और जब शंकु अपरदन द्वारा नष्ट हो जाता है तो नली में जमा डाट दीवार की तरह दिखाई पड़ती है, जिसे लावा डाट या ज्वालामुखी ग्रीवा (volcanic neck) कहते हैं। एक औसत ग्रीवा 200 फीट की ऊंचाई तक पाई जाती है।
इस तरह के अनेक उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू मेक्सिको प्रान्त के माउण्ट टेलर जिले में पाए जाते हैं। ज्वालामुखी ग्रीवा की व्यास 1000 से 2000 फीट तक हो सकती है तथा इसका आकार बेलनाकार होता है। ब्लैक हिल्स तथा डेविल टावर इसके प्रमुख उदाहरण हैं। जिस प्रकार बोतल बन्द करने के लिए कार्क का प्रयोग होता है उसी प्रकार ज्वालामुखी छिद्र के भर जाने से बने आकार को ‘ज्वालामुखी कार्क या डाट’ कहते हैं।
कभी-कभी ज्वालामुखी की नली तथा मुख ब्रेसिया से भर जाता है। ऐसी आकृति को डायट्रेम (diatreme) कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू मेक्सिको की शिपराक इसका प्रमुख उदाहरण हैं।
नीचे धंसे भाग (depressed forms)
कभी-2 ज्वालामुखी के केन्द्रीय विस्फोट के समय ज्वालामुखी का कुछ भाग उड़ जाता है या नीचे धँस जाता है। इस प्रकार के बने आकारों में क्रैटर (crater) तथा काल्डेरा (caldera) प्रमुख हैं। इन्हें धँसे हुए भाग’ कहते हैं ।
क्रेटर
ज्वालामुखी के छिद्र के ऊपर स्थित कीपाकार बड़े गड्डे या गर्त को ‘क्रैटर’ या ‘ज्वालामुखी का मुख’ कहते हैं। काल्डेरा तथा क्रैटर में बड़ा अन्तर होता है। काल्डेरा, क्रैटर से बहुत अधिक विस्तृत होता है। एक औसत क्रेटर का विस्तार 1000 फीट तथा गहराई 1000 फीट के लगभग होती है । अलास्का (संयुक्त राज्य) के शान्त (extinct) ज्वालामुखी एनियाकचक का क्रेटर व्यास में 6 मील लम्बा है तथा उसकी दीवारों की ऊंचाई 1200 फीट से 2000 फीट तक है।
क्रेटर में जब जल भर जाता है, तब उसे ‘क्रैटर झील’ कहा जाता है। जब किसी ज्वालामुखी के क्रैटर बहुत बड़ा हो जाता है तथा पुनः जब ज्वालामुखी का उद्गार छोटे पैमाने पर होता है तो क्रेटर के अन्दर छोटे शंकुओं पर भी कई क्रैटर बन जाते हैं। इस प्रकार एक विस्तृत क्रेटर के अन्दर कई छोटे-छोटे क्रैटर पाए जाते हैं। इस प्रकार की आकृति को घोंसलादार क्रेटर (nested crater) या सामूहिक क्रेटर कहते हैं। फिलीपाइन द्वीप के माउण्ट ताल ज्वालामुखी के क्रैटर में तीन क्रेटर पाए जाते हैं ।
कभी-कभी पुराने ज्वालामुखी शंकु के ढालों पर तथा परपोषित शंकुओं (parasite cones) में भी मुख्य क्रैटर के अलावा अन्य क्रैटर पाए जाते हैं। जब प्राचीन शंकु में दरार हो जाती है तो उसके सहारे गैस आदि निकलकर भयंकर उद्भेदन के साथ क्रैटर का निर्माण करती है। ऐसे क्रैटर को ‘आश्रित क्रेटर’ (adventive crater) कहते हैं ।
काल्डेरा
क्रैटर का विस्तृत स्वरूप ही ‘काल्डेरा’ कहलाता है । परन्तु ”काल्डेरा’ शब्द का प्रयोग सभी विद्वानों द्वारा एक ही अर्थ के लिए नहीं किया जाता है। काल्डेरा के निर्माण से संबंधित दो प्रमुख संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं
प्रथम संकल्पना के अनुसार काल्डेरा ज्वालामुखी क्रैटर का विस्तृत रूप होता है, जो चारों तरफ से दीवारों से घिरा होता है। जब कभी क्रैटर का धँसाव होता है तो उसका पर्याप्त विस्तार हो जाता है। इस प्रकार काल्डेरा का निर्माण पूर्ण रूप से क्रेटर के नीचे धँसने से होता है। इस मत का प्रतिपादन संयुक्त राज्य अमेरिका के भूगर्भिक सर्वेक्षण विभाग ने किया है। इस मत के समर्थकों का कहना कि जापान का आसो क्रेटर तथा संयुक्त राज्य का क्रेटर लेक का निर्माण पहले से बने क्रेटर के नीचे की ओर धँसाने से हुआ है।
द्वितीय संकल्पना के अनुसार काल्डेरा की रचना क्रेटर के धँसाव से न होकर ज्वालामुखी के विस्फोटक उद्भेदन से होती है। डेली महोदय इस मत के प्रमुख प्रवक्ता हैं। उन्होंने बताया है कि धँसाव के कारण बनी आकृति को ‘ज्वालामुखी गर्त’ कहते हैं। इस मत के पक्ष में कई प्रमाण दिए गए हैं ।
उदाहरण के लिए जब ज्वालामुखी क्रेटर के निर्माण के बाद भयंकर विस्फोट होता है, तो उसके अवशेष भाग ज्वालामुखी राखं एवं विखंडित पदार्थ के रूप में आसपास एवं अधिक दूर तक जमा हो जाते हैं । अगर काल्डेरा का निर्माण क्रैटर के धँसाव से होता है, तो उसके आसपास उस शंकु से सम्बन्धित अवशेष भाग नहीं मिलने चाहिए। परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि काल्डेरा के आस-पास ही नहीं उससे कई किलोमीटर दूर तक उस शंकु के अवशेष पदार्थ पाए गए हैं। उदाहरण के लिए क्रैटर लेक के उत्तर- पूर्व में मुख्य ज्वालामुखी से 128 किमी० की दूरी पर एक इंच व्यास वाले विखंडित पदार्थ पायें जाते हैं
इस प्रकार काल्डेरा के विषय में दो विपरीत मत प्रचलित हैं, परन्तु वर्तमान पर्यवेक्षणों तथा प्रमाणों के आधार पर यही सत्य प्रतीत होता है कि काल्डेरा का निर्माण विस्फोटक उद्गार से ही होता है । अत्यधिक विस्तृत काल्डेरा को ‘सुपर काल्डेरा’ (दीर्घ काल्डेरा) कहते हैं। उत्तरी-पश्चिमी सुमात्रा के ‘बारसिन उच्च भाग’ के शिखर पर स्थित ‘लेक टोवा’ सुपर काल्डेरा का प्रमुख उदाहरण है। जब काल्डेरा के अन्दर पुनः ज्वालामुखी उद्गार होता है, तो नये शंकु की रचना होती है। इन शंकुओं के विस्फोटक विनाश के कारण पुनः काल्डेरा का निर्माण होता है। इसे घोंसलादार काल्डेरा (nested caldera) कहते हैं ।
दरारी उद्गार से बनने वाले बहिर्वेधी ज्वालामुखीय स्थलरूप
लावा पठार तथा लावा मैदान
ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से लावा एक लम्बी दरार के सहारे धरातल पर प्रकट होता है तथा तरल होने के कारण शीघ्रता से धरातल के ऊपर क्षैतिज रूप में फैल जाता है । आसपास के धरातलीय भाग पर लावा की मोटी या पतली (लावा की मात्रा तथा उसके गाढ़ेपन के अनुसार) चादर बिछ जाती है। लावा के क्रमिक प्रवाह के साथ लावा की अनेक चादरों (lava sheets) का विस्तार हो जाता है तथा प्रत्येक लावा परत की गहराई 20 फीट से 100 फीट तक होती है ।
इस प्रकार लगातार जमाव के कारण लावा पठार तथा लावा मैदान का निर्माण होता है । इस प्रकार के विस्तृत पठार तथा मैदान संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी अर्जेन्टाइना, ब्राजील, न्यूजीलैण्ड, मध्य पश्चिमी भारत, फ्रांस, आइसलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका एवं साइबेरिया में पाए जाते हैं।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह
- भौतिक भूगोल, बी. सी. जाट
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