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भारत में चीनी उद्योग (Sugar Industry in India) 

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भारत में चीनी उद्योग (Sugar Industry in India)

परिचय

वैसे तो  चीनी गन्ने, चुकन्दर, शकरकन्द तथा अन्य कई मीठे पदार्थों से बनाई जाती हैं। लेकिन भारत में चीनी का बनाने को स्रोत मुख्य गन्ना ही है। सन् 1931 तक हमारे देश में चीनी उद्योग की प्रगति बहुत धीमी रही। सन् 1932 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने चीनी उद्योग को संरक्षण देने के उद्देश्य से चीनी के आयात पर कर लगा दिया। यह संरक्षण सन् 1950 तक रहा। इससे भारत में चीनी उद्योग (Sugar Industry) को बहुत प्रोत्साहन मिला।

जहां, सन् 1931 में चीनी की मिलों की संख्या 31 थी जिनमें 1.63 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। सन् 1950-51 में चीनी मिलों की संख्या तथा चीनी का उत्पादन बढ़कर क्रमशः 139 तथा 11.34 लाख टन हो गया। सन् 2022-23 में चीनी मिलों की संख्या 531थी जिनमें 288 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया। चीनी के उत्पादन में व संख्या में समय के साथ हुए बदलावों को नीचे तालिका में दर्शाया गया है।

SeasonCooperativePrivate  PublicTotal
2022-23 * 19033011 531
2021-22197 3178522
2020-2120429210506
2019-201982528459
2018-1922129810529
2017-1822129310524
Sector-wise numbers of the sugar mills in operation in India

वर्तमान समय में चीनी उद्योग (Sugar Industry) भारत का सूती वस्त्र उद्योग के बाद दूसरा सबसे बड़ा कृषि पर आधारित (Agro-based) संगठित उद्योग है। भारत का गन्ने के उत्पादन की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान तथा चीनी के उत्पादन की दृष्टि से क्यूबा के बाद द्वितीय स्थान है। परन्तु यदि इस उद्योग में गुड़, शक्कर व खांडसारी आदि को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो भारत विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है।  चीनी मिलों और इससे जुड़ी  सहायक क्रियाओं में सीधे तौर पर लगभग 5 लाख श्रमिकों जुड़े हुए हैं। और लगभग 5 करोड़ गन्ना किसान और उनके परिवार अप्रत्यक्ष रूप से अपना गुजारा कर रहे हैं। 

2022-23 (As on 21.03.2023) Production of Sugar (Qty. in lakh tonne) 
2011-12263
2012-13 252
2013-14245
2014-15284
2015-16251
2016-17202
2017-18322
2018-19332
2019-20274
2020-21310
2021-22359
2022-23 (As on 21.03.2023) 288
Season wise production of sugar from 2011-12 and onwards

चीनी उद्योग (Sugar Industry) का स्थानीयकरण

चीनी उद्योग (Sugar Industry) के स्थानीयकरण में सबसे अधिक महत्व गन्ने का है। चीनी की उत्पादन लागत में लगभग 60 प्रतिशत खर्च गन्ने पर होता है। सामान्य तौर पर 100 टन गन्ने से 10-12 टन ही चीनी प्राप्त की जाती है। हम जानते हैं कि गन्ना एक ह्रासमान (Weight Loosing) पदार्थ है। अतः कटाई एवं पिराई लगभग साथ-साथ होनी चाहिए। अधिक देर होने पर गन्ने का रस सूख जाता है और गन्ना खराब हो जाता है। 

भारत में आज भी पिछड़े हुए क्षेत्रों में गन्ना बैलगाड़ियों से ही ढोया जाता है। अतः खेत से मिल तक अधिकतम दूरी 20 से 25 किमी० तक होनी चाहिए। इक्कीसवीं शताब्दी में गन्ने के परिवहन में ट्रैक्टर ट्राली, ट्रक तथा रेलवे के प्रयोग के बावजूद भी गन्ने को 70-75 किमी० से अधिक दूरी तक नहीं ले जाया जा सकता क्योंकि अधिक दूर ले जाने से परिवहन व्यय बढ़ जाता है। अतः चीनी की मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही स्थापित की जाती हैं। गन्ने की खोई ईंधन के रूप में प्रयोग की जा सकती है। अतः यह उद्योग कोयला अथवा विद्युत शक्ति जैसे स्रोतों से मुक्त है।

चीनी उद्योग (Sugar Industry) का वितरण

भारत की 90% चीनी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा कर्नाटक में उत्पादित की जाती है। गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में भी चीनी का उत्पादन किया जाता है। 

उत्तर प्रदेश

यहाँ पर चीनी मिलों की संख्या सभी राज्यों से अधिक है परन्तु उत्पादन में यह महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर है। वास्तव में उत्तर प्रदेश परम्परागत रूप से भारत का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य रहा है और महाराष्ट्र कभी-कभी चीनी उत्पादन में इससे आगे निकल जाता है। पिछले कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान के लिए एक होड़-सी लगी हुई है। यहाँ 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार देश की 116 चीनी मिलें काम कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना दोआब तथा तराई का क्षेत्र महत्वपूर्ण उत्पादक है। सबसे अधिक उत्पादन गंगा-यमुना दोआब के सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर जिलों में है। सहारनपुर से गाजियाबाद तक लगभग हर रेलवे स्टेशन के पास एक चीनी मिल है। तराई के क्षेत्र में गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं। इन दोनों क्षेत्रों के बीच मुरादाबाद, बरेली, बिजनौर, शाहजहाँपुर जिले चीनी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

महाराष्ट्र

परम्परागत रूप से महाराष्ट्र भारत का दूसरा बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है परन्तु कभी-कभी यह प्रथम स्थान भी पा लेता है। महाराष्ट्र को भारत में चीनी की मिलों की दृष्टि से द्वितीय स्थान प्राप्त है। यहाँ 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार देश की 150 चीनी मिलें काम कर रही हैं। यहाँ सबसे बड़ा केन्द्र अहमदनगर है। यहाँ 11 मिलें हैं। अन्य उत्पादक जिले कोल्हापुर, पुणे, उत्तरी सतारा, दक्षिणी सतारा, शोलापुर, औरगांबाद तथा सांगली हैं। 

आन्ध्र प्रदेश

आन्ध्र प्रदेश में चीनी का उत्पादन पूर्वी तथा पश्चिमी गोदावरी, कृष्णा, विशाखापट्टनम, निजामाबाद, हैदराबाद, मेडक, चित्तूर, हास्पेट, पीठापुरम, सामलकोट आदि जिलों में होता है। पिछले कुछ वर्षों में आन्ध्र प्रदेश ने चीनी के उत्पादन में उल्लेखनीय उन्नति की है। इस राज्य में 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार देश की 18 चीनी मिलें काम कर रही हैं। 

कनार्टक

कर्नाटक में 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार देश की 59 चीनी मिलें काम कर रही हैं। बेलगाँव में तथा रायचूर में अधिकतर मिलें हैं। अन्य मिलें पाण्डवपुरा, सम्मेश्वर, हास्पेट, मुनीराबाद, गंगावती तथा कोलार स्थानों पर हैं। 

बिहार

बिहार में उत्पादन के मुख्य क्षेत्र उत्तरी बिहार में है जहाँ चम्पारन, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पटना, गया, शाहबाद, भागलपुर जिलों में चीनी की मिलें लगी हुई हैं। यहां 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार देश की 11 चीनी मिलें काम कर रही हैं। 

तमिलनाडु

तमिलनाडु की लगभग सारी की सारी मिलें कोयम्बटूर, उत्तरी एवं दक्षिणी अरकाट, तिरुचिरापल्ली तथा रामनाथपुरम् में हैं। 

अन्य राज्य – पंजाब में नवांशहर, फगवाड़ा, धूरी, राजपुरा, होशियारपुर, गुरदासपुर तथा अमृतसर में चीनी की मिलें हैं। हरियाणा की चीनी मिलें यमुनानगर, पानीपत, रोहतक, सोनीपत, पलवल, अब्दुल्लापुर (अम्बाला) आदि स्थानों पर हैं। राजस्थान में चीनी की मिलें भोपाल सागर ( चितौड़गढ़), केशोराय पाटन (बुन्दी), माडेला (उदयपुर), बारा (बाँसवाड़ा), झालावाड़ तथा श्री गंगानगर में हैं। 

गुजरात में अहमदाबाद तथा भावनगर चीनी उद्योग के मुख्य केन्द्र हैं। पश्चिम बंगाल में बेलडांग एवं गंगानगर (मुर्शिदाबाद), प्लासी (नदियों), बशीरहट (चौबीस परगना) तथा हावड़ा में चीनी की मिलें लगी हुई हैं। उड़ीसा में गंजम, रायगढ़ (कोरापुट) तथा भुवनेश्वर में चीनी की मिलें हैं। केरल में तिरुअनन्तपुरम व कुन्दारा (कोल्लम), जम्मू-कश्मीर में रणसिंहपुर, तथा पुदुचेरी में भी चीनी की मिलें हैं। 

चीनी उद्योग (Sugar Industry) का दक्षिण भारत की ओर स्थानान्तरण

चीनी उद्योग (Sugar Industry) में दक्षिण भारत की ओर स्थानान्तरण की प्रवृत्ति आ गई है। यह बात इस तथ्य से सिद्ध होती है कि पहले उत्तर भारत, विशेषतः उत्तर प्रदेश तथा बिहार में देश की 90% चीनी तैयार की जाती थी किन्तु अब ये क्षेत्र केवल 60% से 65% ही चीनी पैदा करते हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं : 

1. दक्षिण भारत उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है जिससे यहाँ का गन्ना मोटा तथा अधिक रस एवं मिठास वाला होता है। 

2. दक्षिण भारत में जलवायु उष्ण तथा आर्द्र रहने के कारण गन्ने की पिराई काफी लम्बे समय तक होती रहती है। जबकि उत्तर भारत में ग्रीष्म ऋतु में अधिक शुष्कता तथा तापमान के कारण गन्ने की पिराई का समय कम होता है। साधारणतया उत्तर भारत में पिराई की अवधि केवल चार मास होती है, जबकि दक्षिण भारत के कुछ में वर्ष में आठ मास की अवधि तक गन्ना पेरा जाता है। 

3. दक्षिण भारत में चीनी बनाने की मिलें सहकारी क्षेत्र में हैं जिनका संचालन ठीक ढंग से किया जाता है। 

4. दक्षिण भारत में अधिकांश मिल नई हैं जिनमें आधुनिक मशीनें लगी हुई हैं। 

चीनी उद्योग (Sugar Industry) की समस्याएँ

भारतीय चीनी उद्योग (Sugar Industry) को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनमें प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं : 

1. मौसमी उद्योग – यह एक मौसमी उद्योग है। चीनी की मिलें नवम्बर से अप्रैल तक केवल 4-5 महीने काम करती हैं। वर्ष के बाकी 7-8 महीने बन्द रहती हैं। इससे चीनी की उत्पादन लागत बढ़ती है और श्रमिकों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो जाती है। 

2. गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम-भारत में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है। इससे चीनी के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि चीनी के उत्पादन मूल्य का लगभग 60% भाग गन्ने पर व्यय होता है। 

3. चीनी मिलों का उचित स्थानीयकरण न होना-चीनी के उत्पादन के लिए दक्षिण भारत में अधिक अनुकूल’ भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं जबकि अधिकांश चीनी मिलें उत्तर भारत में हैं। बनाने के लिए गन्धक का प्रयोग किया जाता है। यह भारत में कम मिलता है और अमेरिका 

4. गन्धक की समस्या – चीनी से आयात करना पड़ता है। 

5. परिवहन पर अधिक व्यय गन्ना एक भारी एवं सस्ता कच्चा माल है जो परिवहन का अधिक व्यय सहन नहीं कर सकता। भारत की कई मिलें गन्ना उत्पादन क्षेत्रों से 20-25 किमी० दूर हैं जिससे परिवहन का व्यय अधिक हो जाता है। यह आर्थिक दृष्टि से ठीक नहीं है। 

6. गन्ने का ऊँचा मूल्य- प्रायः सरकार किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए गन्ने का मूल्य निर्धारित कर देती है जो काफी ऊँचा होता है। इससे किसानों को तो लाभ होता है परन्तु चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

7. मिलों का आकार – भारत की बहुत-सी मिलें छोटे आकार की हैं जिनकी उत्पादन क्षमता कम है। इससे बचत कम होती है और उत्पादन मूल्य बढ़ जाता 1 

8. नियन्त्रण का अभाव- भारत के अधिकांश भागों में गन्ने का उत्पादन किसान करते हैं जबकि उसका प्रयोग मिलों में होता है। इस प्रकार उत्पादक क्षेत्रों पर मिलों का कोई नियन्त्रण नहीं होता और प्रायः गन्ने की सप्लाई में बाधा आ जाती है। जिन मिलों की अपनी गन्ना उत्पादक भूमि है उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। 

9. पुरानी मशीनें भारत की अधिकांश चीनी मिलों में लगी हुई मशीनें पुरानी हैं और घिस चुकी हैं इसलिए उनकी कार्य क्षमता बहुत कम है। मिलों में नये ढंग की आधुनिक मशीनें लगाने की आवश्यकता है। 

10. गौण उपजों का उपयुक्त उपयोग न होना-शीरा (Molasses), रसमैल (Press mud) तथा खोई (Baggasse) चीनी उद्योग की प्रमुख गौण उपज हैं। इनका उपयुक्त प्रयोग नहीं किया जाता। शीरे का प्रयोग शराब, अल्कोहल, रसायन, प्लास्टिक तथा कृत्रिम रबड़ बनाने के लिए किया जा सकता है। खोई कागज गत्ता व नकली रेशम बनाने के काम आती है। रसमैल से मोम बनता है। 

11. ऊँचे कर-राज्य सरकारों द्वारा गन्ने पर तथा केन्द्र सरकार द्वारा चीनी पर कर लगाया जाता है। इससे चीनी का क्रय मूल्य बढ़ जाता है और बाजार में इसकी माँग कम हो जाती है।

चीनी उद्योग (Sugar Industry) की उन्नति के सुझाव

चीनी के उत्पादन को बढ़ाने के लिए योजना आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं : 

1. वर्तमान चीनी उत्पादन का ढंग सुधारने के लिए उचित निरीक्षण करने की आवश्यकता है।

2. नई मिलों को लगाने की अपेक्षा पुरानी चीनी की मिलों का सुधार किया जाना चाहिए। उनमें अधिकतम शक्ति के साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। 

3. राज्य सरकारों द्वारा जो गन्ने के द्वारा कर एकत्रित किया जाता है उसको और किसी वस्तु या उद्योग पर खर्च न करके गन्ने के अनुसन्धान कार्य पर खर्च किया जाना उचित होगा। 

4. कुछ मिलें गन्ना उत्पादन क्षेत्रों से बहुत दूर बनी हैं। इसलिए मिलों तक गन्ना पहुँचाने में अधिक व्यय करना पड़ता है। उन मिलों को गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में स्थित करने की आवश्यकता है। 

5. आधुनिक तथा वैज्ञानिक मशीनों की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए जिससे पुरानी मशीनों के स्थान पर नई मशीनों को लगाया जा सके। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी। 

6. चीनी उत्पादन पर समय-समय पर सरकारी नियन्त्रण होना चाहिए। इसके भावों में उतार-चढ़ाव के चीनी अनुसार तथा गुड़ आदि के उत्पादन को उचित प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। 

7. किसानों को गन्ने की कीमत उसके भार के अनुसार दी जाती है। किन्तु भार के साथ-साथ यदि चीनी की मात्रा का भी ध्यान रखा जाए तो कृषक गन्ने की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयत्न करेंगे। 

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