Table of contents
भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department) ने भारत की वार्षिक जलवायु की अवस्थाओं के आधार पर वर्ष को चार ऋतुओं में बाँटा है :
(क) उत्तर-पूर्वी मानसून का समय
1. शीत ऋतु (Winter Season)
2. ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
(ख) दक्षिण-पश्चिमी मानसून का समय
3. वर्षा ऋतु (Rainy Season)
4. शरद ऋतु (Cool Season)
भारत की ऋतुएँ (Seasons of India)
शीत ऋतु (Winter Season)
यह ऋतु नवम्बर के मध्य में शुरू होती है और मार्च में समाप्त हो जाती है। इस ऋतु का सबसे ठण्डा महीना जनवरी होता है। केन्ड्रयू के अनुसार, “स्वच्छ आकाश, सुहाना मौसम, निम्न तापमान एवं आर्द्रता अधिक दैनिक तापान्तर तथा ठण्डी एवं मन्द गति से चलने वाली उत्तरी पवनें इस ऋतु की प्रमुख विशेषताएँ हैं।” (Clear sky, pleasant weather, low temperature and humidity, high diurnal range of temperature, cool and slow northern winds are the chief characteristics of this season.)
शीत ऋतु की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है :
तापमान
- इस ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान विशेष रूप से नीचा रहता है। उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में औसत दैनिक तापमान 21° सेल्सियस से नीचे रहता है और कई क्षेत्रों में रात्रि का तापमान हिमांक से भी नीचे गिर जाता है।
- जनवरी तथा फरवरी के महीने साल के सभी महीनों से ठण्डे होते हैं।
- उत्तरी विशाल मैदान में मध्यमान तापमान 12.5° से 17.5° सेल्सियस के बीच रहता है।
- भारत के प्रायद्वीपीय प्रदेशों में कोई स्पष्ट पारिभाषित शीत ऋतु नहीं होती। इस समय दक्षिण भारत में मध्यमान तापमान 22° सेल्सियस से ऊपर ही रहता है। सुदूर दक्षिण में तो तापमान 25° सेल्सियस से भी अधिक होता है।
- तिरुअनंतपुरम में जनवरी माह का तापमान 31° सेल्सियस होता है।
- तटीय भागों में तापमान के ऋतुवत परिवर्तन का कोई विशेष महत्व नहीं है।
वायुदाब तथा पवनें
- भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब पाया जाता है। सामान्यतः यहाँ पर 1015 से 1020 मिलीबार वायुदाब मिलता है जबकि दक्षिण भारत, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में अपेक्षाकृत कम वायुदाब पाया जाता है।
- 1019 मिलीबार की समभार रेखा उत्तर-पश्चिमी भारत में तथा 1013 मिलीबार की समभार रेखा कन्याकुमारी के निकट से गुजरती है। इसके परिणामस्वरूप उत्तर-पश्चिमी उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी न्यून वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर वायु चलने लगती है। वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradient) कम होने के कारण ये पवनें मन्द गति से चलती हैं।
- पवनों की दिशा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में पश्चिमी तथा उत्तरी-पश्चिम बंगाल में उत्तरी तथा बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में उत्तर-पूर्वी होती है।
- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भागों में पश्चिमी विक्षोभों (Western Disturbances) के आगमन के कारण वायुदाब तथा पवनों की दिशा में परिवर्तन आ जाता है। ये विक्षोभ (चक्रवात) पश्चिमी एशिया तथा भूमध्य सागर के निकटवर्ती प्रदेश में उत्पन्न होते हैं और ईरान तथा पाकिस्तान को पार करके भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में प्रवेश करते हैं।
- पश्चिमी विक्षोभों को भारत में लाने में जेट-प्रवाह का बहुत बड़ा योगदान है। वे दिसम्बर से मार्च तक सक्रिय होते हैं। सामान्यतः एक माह में 4 से 6 चक्रवात आते हैं।
- केन्ड्रयू के अनुसार चक्रवातों की संख्या नवम्बर में 2, दिसम्बर में 4, जनवरी में 5, फरवरी में 5, मार्च में 5, अप्रैल में 5 तथा मई में 2 होती है।’
वर्षा
- शीतकालीन मानसून पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलने के कारण वर्षा नहीं करती। ये पवनें पश्चिम बंगाल को पार करने के पश्चात् बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त करती है और पश्चिमी घाट से टकराकर तमिलनाडु, दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक तथा दक्षिण-पूर्वी केरल में वर्षा करती हैं।
- उत्तर-पश्चिमी भारत में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा हल्की वर्षा होती है। वर्षा की यह मात्रा उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी से पूर्व की ओर आने में कम होती जाती है।
- दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी के तीन महीनों में औसत वर्षा की मात्रा हिमालय प्रदेश में लगभग 60 सेमी०, पंजाब में 12 सेमी०, दिल्ली में 5.3 सेमी० तथा उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बिहार के मैदानों में 1.8 सेमी० से 2.5 सेमी० तक होती है।
- यह वर्षा कम मात्रा में होते हुए भी रबी की फसलों (विशेषतः गेहूँ) के लिए अत्यधिक लाभदायक है। भारत के उत्तर-पूर्वी भागों में भी शीत ऋतु में थोड़ी-बहुत वर्षा होती है। चित्र 4.10 में भारत में शीतकालीन वर्षा का वितरण दर्शाया गया है।
ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
यह ऋतु मार्च से जून तक होती है। उच्च तापमान तथा कम आर्द्रता इस ऋतु की प्रमुख विशेषताएँ हैं। अतः उसे उष्ण-शुष्क ग्रीष्म ऋतु (Hot dry summer season) भी कहते हैं।
ग्रीष्म ऋतु की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है :
तापमान
- जून में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लाम्बिक पड़ती हैं। कर्क रेखा भारत के ठीक बीचों-बीच गुजरती है और भारत को लगभग दो बराबर भागों में बाँटती है।
- इस प्रकार मार्च के माह में तापमान बढ़ना आरम्भ हो जाता है और मई माह में तापमान 41° से 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
- मई-जून में कई स्थानों पर तो तापमान 45° सेल्सियस तक हो जाता है।
- रात्रि का तापमान भी ऊँचा रहता है और शायद ही कभी 26° सेल्सियस से नीचे होता है। दक्षिणी भारत में ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव इतना अधिक नहीं होता जितना कि उत्तरी भारत में होता है। यहाँ पर तापमान 26° से 30° सेल्सियस तक रहता है।
- पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर ऊँचाई के कारण तापमान 25° सेल्सियस से भी कम होता है। तटीय भागों में समताप रेखाएँ तट के समानान्तर उत्तर से दक्षिण दिशा में फैली हुई हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि तापमान सागर से भीतर की ओर बदलता है। इससे समुद्र का समकारी प्रभाव स्पष्ट हो जाता है।
वायुदाब तथा पवनें
- लगभग सारे देश में तापमान अधिक होने के कारण वायुदाब कम होता है।
- उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान बहुत अधिक हो जाता है जिस कारण वहाँ पर वायुदाब बहुत ही कम हो जाता है।
- मार्च से मई तक वायु की दिशा एवं मार्ग में विशेष रूप से परिवर्तन होते हैं।
- उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिक तापमान के कारण स्थानीय रूप से बहुत ही शुष्क एवं उष्ण हवाएँ चलती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘लू’ (Loo) कहते हैं। जब कभी इन शुष्क एवं उष्ण हवाओं के साथ आर्द्र हवाएँ मिलती हैं तो भीषण आँधियाँ तथा तूफान आते हैं। इसका वेग कभी-कभी 100 से 125 किमी० प्रति घण्टा तक हो जाता है। इनसे कभी-कभी वर्षा भी हो जाती है और तापमान में कमी आती है। बंगाल में इन्हें ‘काल बैसाखी’ (Norwester) कहते हैं।
वर्षा
- उत्तरी भारत में ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है, परन्तु पूर्णतः वर्षा रहित नहीं होती।
- इस ऋतु में वार्षिक वर्षा का केवल एक प्रतिशत भाग ही प्राप्त होता है।
- स्थानीय रूप में आने वाली धूल भरी आँधियाँ तथा गरज वाले तूफान कहीं-कहीं छुट-पुट वर्षा करते हैं। राजस्थान, गुजरात व मध्य प्रदेश में 2.5 सेमी० से कम वर्षा होती है।
ग्रीष्म ऋतु में आने वाले कुछ प्रसिद्ध स्थानीय तूफान आम्र वर्षा :ग्रीष्म ऋतु के खत्म होते-होते पूर्व मानसून बौछारें पड़ती हैं, जो केरल व तटीय कर्नाटक में यह एक आम बात है। स्थानीय तौर पर इस तूफानी वर्षा को आम्र वर्षा कहा जाता है, क्योंकि यह आमों को जल्दी पकने में सहायता देती है। फूलों वाली यौछार : इस वर्षा से केरल व निकटवर्ती कहवा उत्पादक क्षेत्रों में कहवा के फूल खिलने लगते हैं। काल बैसाखी : असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में शाम को चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं। इनकी कुख्यात प्रकृति का अंदाजा इसके स्थानीय नाम काल बैसाखी से लगाया जा सकता है। जिसका अर्थ-वैशाख के महीने में आने वाली तबाही। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवनें अच्छी हैं। असम में इन तूफानों को ‘बारदोली छीड़ा’ कहा जाता है। लू : उत्तरी मैदान में पंजाब से बिहार तक चलने वाली ये शुष्क, गर्म व पीड़ादायक पवनें हैं। दिल्ली और पटना के बीच इनकी तीव्रता अधिक होती है। |
- उत्तर-पश्चिमी भारत के उप-हिमालयी जिलों, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा से लेकर प्रायद्वीप के विस्तृत भागों में 14 से 50 सेमी० से अधिक वर्षा होती है।
- छोटा नागपुर पठार में पैदा होने वाली ‘नारवेस्टर’ (Norwester) हवाएँ पछुआ पवनों के प्रभावधीन पूर्व की ओर चली जाती हैं और असम में लगभग 50 सेमी० वर्षा करती हैं। इसके अतिरिक्त, उड़ीसा तथा पश्चिमी बंगाल में भी नारवेस्टर से वर्षा होती है। इस वर्षा को बसन्त ऋतु की तूफानी वर्षा (Spring Storm Showers) कहते हैं।
- असम में मई में होने वाली वर्षा जून की वर्षा का लगभग दो-तिहाई भाग होती है। यह चाय, पटसन तथा चावल की कृषि के लिए बहुत उपयोगी होती है। असम में इसे ‘चाय वर्षा’ (Tea Shower) कहते हैं। गरजते हुए तूफानों से केरल तथा कर्नाटक के तटवर्ती भागों में सेमी० तक वर्षा हो जाती है।
- दक्षिण भारत के भीतरी भागों में लगभग 10 सेमी० वर्षा हो जाती है। यह आम की फसल के लिए बहुत लाभदायक होती है जिसके कारण इसे ‘आम्र वर्षा’ (Mango Shower) कहते हैं।
- कर्नाटक तथा निकटवर्ती कहवा उत्पादक क्षेत्रों में यह वर्षा कहवा की फसल को बहुत लाभ पहुँचाती है। अतः यहाँ इसे ‘फूलों वाली बौछार’ (Cherry blossom showers) कहते हैं।
वर्षा ऋतु (Rainy Season)
यह ऋतु दक्षिण-पश्चिमी मानसून के आगमन के साथ मध्य जून में आरम्भ होती है और मध्य सितबर तक समाप्त होती है। दक्षिण-पश्चिमी मानसून के साथ समस्त भारत का मौसम पूर्णतः परिवर्तित हो जाता है। इसे गर्म आर्द्र ऋतु भी कहते हैं।
वर्षा ऋतु की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है :
तापमान
- वर्षा ऋतु में मानसून की वर्षा होने के साथ ही तापमान में कमी आने लगती है। दक्षिण भारत में जून का तापमान मई के तापमान की अपेक्षा 30° से 6° सेल्सियस कम होता है।
- उत्तर-पश्चिमी भारत में जुलाई माह में 20° से 30° सेल्सियस तापमान की कमी हो जाती है। अगस्त में तापमान और भी नीचे गिर जाता है। इन दिनों यदि लम्बी अवधि तक वर्षा न हो तो तापमान में वृद्धि हो जाती है।
- वर्षा की समाप्ति पर तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस ऋतु में थार मरुस्थल का तापमान 38° सेल्सियस तथा उत्तरी मैदान के अन्य भागों में 30° से 32° सेल्सियस के बीच रहता है।
वायुदाब तथा पवनें
- इस ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान अधिक होने के कारण वायुदाब कम होता है।
- जुलाई माह के वायुदाब के वितरण मानचित्र को देखने से पता चलता है कि भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में कम वायुदाब है और 997 मिलीबार की समभार रेखा राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा के साथ है। ऐसा राजस्थान की मरुभूमि में तापमान की अधिकता के कारण होता है।
- 998 मिलबार की समभार रेखा पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान में से गुजरती है।
- इसके विपरीत, दक्षिणी भारत में तापमान कम होने के कारण वायुदाब अधिक है। 1009 मिलीबार की समभार रेखा अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के अतिरिक्त केरल तथा तमिलनाडु में से होकर गुजरती है।
- वायुदाब की उपरोक्त व्यवस्था के अधीन पवनों की दिशा अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में दक्षिण-पश्चिमी से उत्तर-पूर्व की ओर है।
- प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भाग में भी पवनों की यही दिशा है। परन्तु उत्तरी मैदान में पवनें मुख्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं।
वर्षा
- भारत की 75 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होती है।
- वर्षा अकस्मात् ही शुरू होती है। मानसून के इस अकस्मात् आरम्भ को मानसून प्रस्फोट (Monsoon Burst) कहते हैं।
- भारत के तटीय भागों में मानसून का प्रस्फोट जून के प्रथम सप्ताह या इसके भी पहले हो सकता है जबकि देश के आन्तरिक भागों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें जुलाई तक ही आ पाती हैं।
- दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है:
- अरब सागर की मानसून पवनें
- अरब सागर की मानसून की उत्पत्ति अरब सागर में होती है। जब ये भारत के तट पर पहुँचती हैं तो निम्नलिखित तीन शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं:
- पहली शाखा पश्चिमी घाट से टकराकर पश्चिमी तटीय मैदान में 250 सेमी० से भी अधिक वर्षा करती है। पश्चिमी घाट को पार करने के बाद जब यह नीचे उतरती है, तब इसका तापमान बढ़ जाती है और इसकी आर्द्रता में कमी आ जाती है। इससे दक्षिणी पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र (Rain Shadow Area) में बहुत ही कम वर्षा होती है। यही कारण है कि इस ऋतु में मंगलौर में वर्षा 280 सेमी० होती है जबकि बंगलूरु में केवल 50 सेमी० ही होती है।
- इसकी दूसरी शाखा नर्मदा तथा तापी की घाटियों से होकर भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र में प्रवेश करती है। तट के निकट कोई रुकावट न होने के कारण यह दूर तक चली जाती है और वर्षा करती है। नागपुर में इन पवनों के द्वारा 60 सेमी० वर्षा होती है।
- इसकी तीसरी शाखा उत्तर-पूर्व दिशा में अरावली पर्वत के समानान्तर जाती है। रास्ते में कोई रुकावट न आने के कारण यह पूरे राजस्थान में वर्षा नहीं करती। आगे चलकर यह हिमालय की पहाड़ियों से टकराकर पर्याप्त वर्षा करती है।
- अरब सागर की मानसून की उत्पत्ति अरब सागर में होती है। जब ये भारत के तट पर पहुँचती हैं तो निम्नलिखित तीन शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं:
- अरब सागर की मानसून पवनें
- बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें
- बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें निम्नलिखित दो शाखाओं में विभाजित होती हैं:
- इसकी पहली शाखा गंगा के डेल्टा प्रदेश को पार करके मेघालय की गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियों से टकराती हैं। इन पहाड़ियों की आकृति कीप (Funnel) जैसी है जिससे वायु को एकदम ऊँचा उठना पड़ता है और इससे भारी वर्षा होती है। यहाँ पर चेरापूँजी के 16 किमी० पश्चिम में स्थित मौसिनरम स्थान पर 1221 सेमी० वार्षिक वर्षा होती है जो विश्व में अधिकतम है।
- इसकी दूसरी शाखा सीधे हिमालय पर्वत से टकराती है। यह हिमालय पर्वत की ऊँची श्रेणियों को पार करने में असमर्थ होती है और पश्चिम की ओर हिमालय पर्वत के समानान्दार चलना शुरू कर देती है। ज्यों-ज्यों यह पश्चिम की ओर बढ़ती है, त्यों-त्यों इसकी वर्षा करने की शक्ति कम होती जाती है। इसके द्वारा की गई वर्षा की मात्रा कोलकाता, पटना,इलासबाद तथा दिल्ली में क्रमशः 119 सेमी०, 105 सेमी०, 76 सेमी० तथा 56 सेमी० है।
- बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें निम्नलिखित दो शाखाओं में विभाजित होती हैं:
- दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा होने वाले वर्षा अनिश्चित तथा अनियमित है। ऐसा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के अन्तर्वाह (Inflow) के कारण होता है। इन चक्रवातों के आने से मानसून पवनों का क्रम भंग हो जाता है। मानसून वर्षा की मात्रा के साथ-साथ इसकी तीव्रता भी इन चक्रवातों की आवृत्ति (Frequency) से निर्धारित होती है।
- सितम्बर के प्रथम सप्ताह में वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है।
- भारत का पूर्वी तट, विशेषतः तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा वर्षा प्राप्त नहीं करता और शुष्क रह जाता है। इसका कारण यह है कि तमिलनाडु का तट बंगाल की खाड़ी की मानसून के समानान्तर है और अरब सागर की धारा के वृष्टि-छाया के क्षेत्र में स्थित है।
शरद ऋतु (The Cool Season)
यह ऋतु मध्य सितम्बर में शुरू होकर मध्य नवम्बर में समाप्त हो जाती है। मध्य सितम्बर में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें उत्तर-पश्चिमी भारत से लौटना शुरू कर देती हैं, इसलिए इसे मानसून प्रत्यावर्तन अर्थात् मानसून के लौटने की ऋतु (Season of Retreating Monsoons) भी कहते हैं। देश के सुदूर दक्षिणी भागों में मानसून के लौटने का क्रम दिसम्बर तक जारी रहता है। ग्रीष्मकालीन मानसून प्रस्फोट के विपरीत मानसून का प्रत्यावर्तन क्रमिक (Gradual) होता है।
जिस प्रकार दक्षिण-पश्चिमी मानसून के आने का समय भिन्न स्थानों पर भिन्न है, उसी प्रकार उसकी वापसी का समय भी विभिन्न स्थानों पर विभिन्न है। उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में मानसून पवनें सबसे बाद में पहुँचती हैं और सबसे पहले वापस हो जाती हैं। इस प्रकार इन क्षेत्रों में मानसून की अवधि बहुत ही कम है। इसके विपरीत, तटवर्ती क्षेत्रों में मानसून पवनें जल्दी पहुँचती हैं और देर से वापस होती हैं।
पंजाब में मानसून पबनें जुलाई के पहले सप्ताह में पहुँचती हैं और सितम्बर के मध्य में लौट आती हैं। इस प्रकार पंजाब में मानसून की अवधि केवल ढाई मास है। इसके विपरीत, कारोमण्डल तट पर ये पवनें जून के पहले सप्ताह में पहुँचती हैं और दिसम्बर के मध्य में लौटती हैं। इस प्रकार कारोमण्डल तट पर मानसून की अवधि लगभग साढ़े छः मास है।
शीत ऋतु की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है :
तापमान
- उत्तरी भारत में मानसून के लौटने के साथ तापमान में थोड़ी-सी वृद्धि होती है, परन्तु कुछ ही दिनों में तापमान तेजी से गिरने लगता है।
- अक्टूबर में औसत तापमान 26 सें० रहता है। नवम्बर में न्यूनतम तापमान 10° से० तक गिर जाता है। परन्तु औसत तापमान 22° सें० के आस-पास रहता है।
- उच्च पर्वतीय प्रदेशों में कभी-कभी रात्रि के समय तापमान हिमांक तक गिर जाता है। दैनिक तापान्तर अधिक हो जाता है। दक्षिणी भारत में अब भी प्रायः उच्च तापमान बना रहता है।
वायुदाब तथा पवनें
- मानसून के लौटने के साथ ही उत्तर-पश्चिमी भारत का निम्न वायुदाब क्षेत्र समाप्त होने लगता है और बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ने लगता है। पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व में परिवर्तित होने लगती है। चक्रवातों का स्थान प्रतिचक्रवात ले लेते हैं।
वर्षा
- मानसून के लौटते ही वायु में आर्द्रता कम हो जाती है और वर्षा समाप्त हो जाती है।
- सितम्बर के अन्त तक जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा समाप्त हो जाती है। 15 अक्टूबर तक उत्तर-पूर्वी भारत में भी वर्षा समाप्त हो जाती है।
- लौटती हुई मानसून पवनें जब बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरती हैं तो वे आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश के तटीय भागों तथा तमिलनाडु के विस्तृत भागों में वर्षा करती हैं। केरल में भी कुछ बर्षा हो जाती है।
- उत्तरी भागों में कुछ वर्षा भूमध्य सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा हो जाती है। बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पैदा होने वाले उष्ण कटिवन्धीय चक्रवात तटीय भागों में भारी वर्षा करते हैं।
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