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भारत में पेट्रोलियम (Petroleum in India): उत्पादन एवं वितरण

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परिचय (Introduction)

‘पेट्रोलियम’ शब्द लेटिन भाषा के दो शब्दों के मेल से बना है – ‘पेट्रा’ जिसका अर्थ होता है ‘चट्टान’ तथा ‘ओलियम’ जिसका अर्थ है ‘तेल’ । अर्थात् पेट्रोलियम पृथ्वी की चट्टानों से प्राप्त होने वाला तेल है। इसलिए इसे ‘खनिज तेल’ भी कहते हैं।

पेट्रोलियम की उत्पत्ति वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं से हुई है। करोड़ों की संख्या में जो जीव-जन्तु तथा महासागरों में रहते थे, मरते गए तथा चट्टानों की परतों में दबते गए। समय बीतने के साथ इनका ऑक्सीकरण और सड़न रुक गया। बाद में ताप तथा दबाव में निरन्तर वृद्धि के कारण जीव-जन्तुओं की चर्बी का आंशिक आसवन हुआ तथा तेल और गैस की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार पेट्रोलियम केवल परतदार चट्टानों में ही पाया जाता है। कई स्थानों पर पेट्रोलियम के साथ प्राकृतिक गैस भी पाई जाती है।

पेट्रोलियम के उपयोग (Uses of Petroleum)

पेट्रोलियम का प्रयोग बड़े पैमाने पर सन् 1860 के बाद ही शुरू हुआ जब मनुष्य ने पेट्रोलियम से प्रकाश, ताप तथा शक्ति प्राप्त करना सीख लिया। अन्तर दहन इंजन (Internal Combustion Engine) के आविष्कार से पेट्रोलियम की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई क्योंकि इसका  प्रयोग मोटर कार, वायुयान, ट्रक तथा ट्रैक्टर आदि में प्रचुर मात्रा में होने लगा। अब अधिकांश रेल के इंजन तथा जलयान भी इसी से चलते हैं।

पेट्रोलियम जब कुओं से निकाला जाता है तो उसमें बहुत सारी अशुद्धियाँ होती है। अतः इसका उपयोग करने से पहले इसे शोधनशाला (Refinery) में शुद्ध किया जाता है। शुद्ध करते समय इससे 5,000 से भी अधिक वस्तुएँ बनती हैं, जिनमें शुद्ध पेट्रोल, डीजल, गैसोलीन, मिट्टी का तेल, ग्रीस तथा अन्य चिकने पदार्थ, बिटुमन तथा गैस महत्वपूर्ण हैं।

इस प्रकार पेट्रोलियम का उपयोग उद्योगों में शक्ति का साधन तथा कच्चे माल के अतिरिक्त मशीनों को चिकना करने के लिए भी किया जाता है। कृत्रिम तथा प्लास्टिक, रसायन उद्योग तथा अनेक प्रकार के शृंगार प्रसाधन और सुगन्धित वस्तुओं के निर्माण में पेट्रोल का प्रयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।

पेट्रोलियम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे उत्पादक क्षेत्रों से उपभोक्ता क्षेत्रों तक पाइप लाइनों तथा टैंकरों द्वारा आसानी से पहुंचाया जा सकता है। अतः इसका प्रयोग दूर स्थित इलाकों में भी किया जा सकता है। यह धुआँ बहुत कम छोड़ता है और राख बिल्कुल नहीं छोड़ता। 

भारत में पेट्रोलियम की खोज (Discovery of Petroleum in India)

  • भारत में तेल की खोज सबसे पहले असम के माकूम क्षेत्र से सन् 1867 में हुई जब यहाँ पर 36 मीटर गहरा कुआँ खोदा गया। 
  • खनिज तेलयुक्त अवसादी चट्टानों का विस्तार भारत में 17.2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर है। इसमें से 3.20 लाख वर्ग किमी० महाद्वीपीय मग्नतट है जो सागर तल से 200 मीटर की गहराई तक है। शेष उत्तरी तथा तटीय मैदानी भाग में विस्तृत है। 
  • तेलयुक्त परतों वाले 13 महत्वपूर्ण बेसिन है जिन्हें तीन वर्गों में रखा गया है। 
  • कैम्बे बेसिन, ऊपरी असम तथा मुम्बई अपतट बेसिन में वाणिज्य उत्पादन किया जा रहा है। 
  • राजस्थान, कावेरी-कृष्णा-गोदावरी बेसिन, अंडमान, बंगाल-हिमालय पाद पहाड़ियाँ, गंगा घाटी तथा त्रिपुरा-नागालैण्ड वलय मेखला के बारे में यह ज्ञात है कि यहाँ पर तेलयुक्त परतें पाई जाती हैं। परन्तु अभी तक यहाँ पर वाणिज्यिक पैमाने पर उत्पादन आरम्भ नहीं हुआ। 
  • कच्छ-सौराष्ट्र, केरल-कोंकण तथा महानदी में ऐसी भूवैज्ञानिक संरचनाएँ पाई जाती है जहाँ से तेल प्राप्त किया जा सकता है। अतः ये हमारे तेल उत्पादन के भावी प्रदेश हैं।

भारत में पेट्रोलियम का उत्पादन(Petroleum Production in India)

जैसा की ऊपर बताया गया है कि भारत में पहला तेल का कुआँ सन् 1867 में असम के माकुम क्षेत्र में खोदा गया, परन्तु काफी समय तक तेल के उत्पादन में वृद्धि नहीं हो सकी। हमारे तेल उत्पादन की स्थिति संतोषजनक नहीं है क्योंकि तेल की खपत इसके उत्पादन से सदा ही अधिक रही है। सन् 1950-51 में तेल का उत्पादन केवल 3 लाख मीट्रिक टन था जबकि खपत 34 लाख मीट्रिक टन थी।

वित्त वर्ष 2018-19 में कच्चे तेल का उत्पादन लगभग 340.20 लाख मिलियन मीट्रिक टन रहा। लगभग 71.15% कच्चा तेल का उत्पादन ओएनजीसी और ओआईएल द्वारा होता है और शेष 28.85% कच्चे तेल का उत्पादन पीएससी व्यवस्था से निजी/जेवी कंपनियों द्वारा होता है।

Table: State-wise Crude Oil Production Trends (Thousand Metric Tonnes)

State/Source2014-152015-162016-172017-182018-192019-20
Onshore
Andhra Pradesh254295276322296182
Arunachal Pradesh695755504341
Assam4,4734,1854,2034,3454,3093,090
Gujarat4,6534,4614,6054,5914,6263,527
Rajasthan8,8488,6028,1657,8877,6675,205
Tamil Nadu241261284345395310
Total Onshore18,53817,86117,58817,54017,33612,355
Share of PSUs (excluding JV share)9,4829,0519,1929,3869,3676,913
Share of Private/JV9,0568,8108,3968,1547,9695,442
Offshore
Share of PSUs (excluding JV share)16,19416,54316,28416,24014,96910,829
Share of Private/JV2,7292,5462,1371,9051,8991,192
Total Offshore18,92319,08918,42118,14516,86812,021
Grand Total37,46136,95036,00935,68434,20324,376
Share of PSUs (excluding JV share)25,67625,59425,47625,62524,33517,747
Share of Private/JV11,78511,35610,53310,0599,8686,634
State-wise Crude Oil Production in India (Ministry of petroleum and natural gas, India)

भारत में तेल का वितरण भारत में तेल निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में पाया जाता:

1. असम के तेल क्षेत्र

2. गुजरात के तेल क्षेत्र

3. अरब सागर के अपतटीय (Off-shore) तेल क्षेत्र।

1. असम के तेल क्षेत्र

  • असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है। भारत में सबसे पहले तेल असम के माकुम क्षेत्र से ही प्राप्त हुआ था। 1990-91 में असम से लगभग 58 लाख टन तेल प्राप्त किया गया जो भारत के कुल उत्पादन का लगभग 8 था। 
  • असम के तेल उत्पादक क्षेत्र इस राज्य के उत्तर-पूर्वी किनारों से ब्रह्मपुत्र तथा सुरमा घाटियों के पूर्वी किनारों तक लगभग 320 किमी0 लम्बी पेटी में मिलते हैं। 
  • यहाँ का तेल डिगबोई, नूनमती, बरौनी तथा बोगाइगाँव की तेल-शोधनशालाओं में साफ किया जाता है।
  • असम के मुख्य तेल उत्पादक क्षेत्रों के नाम इस प्रकार है (1) डिगबोई, (ii) सुरमा घाटी, (iii) नाहरकटिया (iv) हुग्गरीजन-मोरेन (v) शिवसागर ।

2. गुजरात के तेल क्षेत्र

  • गुजरात राज्य में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के अनुसार 15,360 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेल के भण्डार हैं। 
  • यहां तेल की पेटी सूरत से लेकर अमरेली (राजकोट) तक फैली हुई है। 
  • कच्छ, बड़ौदरा, भड़ौच, सूरत, खेड़ा, मेहसाना आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं। इन जिलों में नवगाम, कलीन, बलोल, कोसाम्बा, सानन्द, सन्थील, कठाना, बावेल, ढोलका, अहमदाबाद, मेहसाना, शोभासन, कादी, दबका आदि स्थानों पर तेल के कुँए खोदे गए हैं। 
  • गुजरात के मुख्य तेल उत्पादक क्षेत्र अंकलेश्वर, अहमदाबाद, कलोल, महसाना आदि हैं।

3. अरब सागर के अपतटीय तेल क्षेत्र

  • सन् 1976 में अरब सागर के अपतटीय तेल क्षेत्रों में तेल का उत्पादन शुरु हुआ। 
  • सन् 2008-09 में यहाँ से देश का लगभग 62.5 प्रतिशत तेल प्राप्त हुआ। इस प्रकार अरब सागर का अपतटीय भाग भारत का सबसे अधिक महत्वपूर्ण तेल उत्पादक बन गया है। 
  • अरब सागर के महाद्वीपीय मग्न तट पर तेल के विशाल भंडार हैं। 

रब सागर के अपतटीय भागों में तीन प्रमुख तेल क्षेत्र हैं, जो इस प्रकार हैं:

(i) मुंबई हाई तेल क्षेत्र

  • यह महाराष्ट्र के महाद्वीपीय मग्न तट (Continental Shelf) पर मुंबई के उत्तर-पश्चिम में 176 किमी० दूर स्थित है। 
  • इस तेल क्षेत्र की खोज 1974 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा की गई थी। 
  • मई 1976 में यहां पर तेल का उत्पादन शुरू हुआ।
  • वर्तमान में यह क्षेत्र भारत के कुल तेल उत्पादन का आधे से अधिक तेल पैदा करता है। 
  • यहां मायोसीन युग की तेलयुक्त चट्टानें लगभग 2,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 80 मीटर की गहराई पर फैली हुई हैं। 
  • समुद्र पर तैरते हुए विशाल जलयान की सहायता से तेल की खोज व उसका दोहन किया जाता है। यह एक प्रकार का जल में बना हुआ प्लेटफार्म है जिसे ‘सागर सम्राट’ कहते हैं। 

(ii) बसीन (Bassein) तेल क्षेत्र

  • बसीन (Bassein) तेल क्षेत्र  मुंबई हाई के दक्षिण में स्थित है और इसकी खोज अभी हाल ही में हुई है। 
  • यहाँ 1,900 मीटर की गहराई पर तेल के विशाल भण्डार मिले हैं। 
  • यहाँ के दो या तीन कुओं का उत्पादन मुम्बई हाई के 16 कुओं के बराबर होगा। 

(iii) अलियाबेट तेल क्षेत्र 

  • अलियाबेट तेल क्षेत्र गुजरात में भावनगर के 45 किमी पश्चिम में खम्भात की खाड़ी में अलियाबेट द्वीप पर स्थित है। 
  • यहाँ पर तेल के विशाल भण्डारों का पता चला है। 

अन्य क्षेत्र

गंगा के मैदान की अवसादी चट्टानों में तेल के विशाल भण्डार मिलने की सम्भावना है। यद्यपि राजस्थान कीअवसादी शैलों में अधिक तेल मिलने की सम्भावना नहीं है तो भी यहाँ पर गैस के बड़े भंडार मिलने की आशा है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में लगभग एक लाख वर्ग किमी० क्षेत्र पर तेल प्राप्त होने की आशा है।

हिमाचल प्रदेश में ज्वालामुखी क्षेत्र से तेल प्राप्त होने की बड़ी सम्भावनाएं हैं। यहाँ 800 मीटर की गहराई पर गैस प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त धर्मशाला तथा बिलासपुर में भी तेल मिलने की सम्भावना है। पंजाब के होशियारपुर, लुधियाना तथा दसूआ क्षेत्रों में तेल उपस्थित है। जम्मू के मुसलगढ़ में भी तेल मिलने की सम्भावना है।

तेल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय हम अपनी तेल की आवश्यकताओं का केवल 5% ही पैदा करते थे। शेष तेल विदेशों से आयात किया जाता था। इसके पश्चात् तेल के उत्पादन तथा इसकी माँग में बड़ी तेज गति से वृद्धि हुई। हमारे लिए तेल के उत्पादन में आत्म-निर्भर होना अति आवश्यक है क्योंकि हमारी विदेशी मुद्रा का आधे से भी अधिक भाग तेल के आयात पर खर्च होता है।

जहाँ तेल की घरेलू मांग बढ़ने से अधिक आयात की आवश्यकता बढ़ती जा रही है यहाँ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल का मूल्य बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। अतः हमें अपनी विदेशी मुद्रा का अधिकांश भाग तेल के आयात पर ही खर्च करना पड़ता है।भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं में सर्वाधिक योगदान पट्रोलियम का ही है।

वर्ष 2021-22 के दौरान इसका कुल आयत में 26.4% हिस्सा रहा वहीं वर्ष  2022-23 के दौरान 30.3 % हिस्सा रहने की संभावना रही (Economic Survey, 2023)। तेल तथा इससे सम्बन्धित वस्तुओं के आयात पर भारत ने 2022-23 में 904375 करोड़ रुपए खर्च किए। परिवहन, उद्योग तथा चालक शक्ति के क्षेत्रों में उन्नति होने के साथ-साथ हमारे देश में तेल की खपत इसके उत्पादन से अधिक बढ़ रही है।

भारत में तेल का आयात

वर्ष1960-611970-711980-811990-912000-012010-112020-212022-23
मात्रा (हजार टन में)800127672353729369N.A.N.A.N.A.N.A.
मूल्य (करोड़ रुपय में)6913652671081671497482282611353904375
Source: Economic Survey, 2022-23

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