Search
Close this search box.

Share

भारत में लौह-इस्पात उद्योग (Iron-Steel Industry in India) 

Estimated reading time: 11 minutes

Table of contents

भारत में लौह-इस्पात उद्योग (Iron-Steel Industry in India)

लौह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है; क्योंकि इससे मशीन औजार, परिवहन, निर्माण, कृषि उपकरण आदि कई उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति होती है। इसके महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज इसे औद्योगीकरण और आर्थिक विकास के स्तर के संकेतक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

Location of major steel plants on Indian map
भारतीय मानचित्र पर प्रमुख इस्पात संयंत्र की स्थिति

भारत में लौह-इस्पात उद्योग का विकास

  • भारत के लोगों को इस्पात बनाने की कला प्राचीन काल से ही पता थी जिसका प्रमाण दिल्ली के लौह स्तम्भ (350 A.D.) के रूप में हमारे सामने उपलब्ध है। 
  • आधुनिक तरीके से इस्पात बनाने का पहला प्रयास सन् 1830 ई० में पोर्टोनोवों (तमिलनाडु) के पास किया गया। यह कारखाना 1866 में बन्द हो गया। 
  • 1874 में पहली बार बंगाल आइरन वर्क्स, कुल्टी द्वारा कच्चे लोहे का सफल उत्पादन किया गया। 
  • इस्पात उद्योग में एक महत्वपूर्ण मोड़ टाटा आयरन एवं स्टील कम्पनी द्वारा 1907 में साकची (जमशेदपुर) के पास नए कारखाने की स्थापना से आया जिसमें 1908 में कच्चा लोहा और 1911 में इस्पात का निर्माण शुरू हुआ। 
  • 1908 में हीरापुर (आसनसोल में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO) तथा 1923 में भद्रावती (कर्नाटक) में विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लि० (VISL) की स्थापना हुई। 
  • स्वतंत्रता के बाद द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान विदेशी तकनीकी सहायता से राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (प० बंगाल) में सार्वजनिक क्षेत्र में तीन एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की गई। 
  • तीसरी पंचवर्षीय योजना में वर्तमान तीन सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों की क्षमता में वृद्धि के अतिरिक्त 1964 में बोकारो (झारखंड में) के पास एक नए कारखाने का निर्माण शुरू किया गया जिसमें 1972 में उत्पादन शुरू हो गया। 
  • भारत में लौह-इस्पात उद्योग के विकास की देख-रेख के लिए जनवरी 1973 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण लि० (SAIL) का गठन किया गया। 
  • पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में सलेम (तमिलनाडु), विजयनगर (कर्नाटक), विशाखापत्तनम (आन्ध्र प्रदेश) और पाराद्वीप (उड़ीसा) में चार नए इस्पात कारखानों को लगाने का निर्णय लिया गया। 
  • जुलाई 1991 में घोषित नई औद्योगिक नीति के तहत लौह- इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के आरक्षण से मुक्त करते हुए इसमें लाइसेन्स की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। इस प्रकार निजी निवेशकों द्वारा अब नए कारखानों की स्थापना में कोई रुकावट नहीं है। 

लौह-इस्पात उद्योग के लिए कच्चा माल

लौह-इस्पात उद्योग में कच्चे माल के रूप में लौह अयस्क, मैंगनीज, रद्दी लोहा, गालक (flux) और ईंधन (कोयला) का उपयोग किया जाता है। ये सभी पदार्थ पर्याप्त मात्रा में देश में उपलब्ध हैं। चूंकि ये भारी पदार्थ हैं, इसीलिए इस्पात के कारखानों की स्थापना इनकी समीपता और उपलब्धता को ध्यान में रखकर की जाती है। 

परिवहन व्यय को कम करने के लिए भिलाई और राउरकेला को झरिया से कोयला ढोने वाले रेल के डिब्बों में लौटते समय दुर्गापुर, बोकारो और बर्नपुर के लिए लौह अयस्क भेजा जाता है। 

लौह-इस्पात के निर्माण प्रक्रिया

कैसे तैयार किया जाता लौह-इस्पात
भारत में इस्पात का निर्माण डुप्लेक्स और अर्ध-डुप्लेक्स प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है। इसमें लौह अयस्क और कोयले को लगातार धमनभट्टी में ऊपर से डाला जाता है। इसमें अशुद्धियों को दूर करने के लिए कुछ मात्रा में डोलोमाइट और चूना पत्थर मिलाया जाता है। भट्टी के निचले भाग से पिघला लोहा इकट्ठा किया जाता है जिसे कच्चा लोहा (pig iron) कहते हैं। विऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा इसमें से अशुद्धियों को दूर कर और इसमें सख्त बनाने वाले पदार्थो (कार्बन इत्यादि) को मिलाकर इस्पात प्राप्त किया जाता है। हाल की कोरेक्स पद्धति में कोयले की जगह पर कोक का इस्तेमाल किया जाता है। सामान्यतया 1 टन कच्चा लोहा (pig iron) तैयार करने के लिए 1.6 टन लौह अयस्क, 0.8 टन कोक (बनाने के लिए 1.5 टन कोयला ), 0.5 टन चूना पत्थर और डोलोमाइट की आवश्यकता होती है। 

भारत में लौह-इस्पात का वितरण प्रतिरूप

भारत में लौह-इस्पात उद्योग की स्थिति पर कच्चे माल जैसे लौह अयस्क और कोयला, बाजार और बंदरगाह सुविधाओं का प्रभाव देखने को मिलता है। प्रारंभिक इस्पात संयंत्रों की अवस्थिति में कच्चे माल की उपलब्धता का विशेष योगदान रहा है। इसीलिए भारत में अधिकतर लौह इस्पात उद्योग का सर्वाधिक संकेन्द्रण झारखण्ड, उड़ीसा और समीपवर्ती छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और प० बंगाल के प्रायद्वीप भाग के उत्तरी- पूर्वी हिस्सों देखने को मिलता है जो खनिज सम्पन्न है। 

यह क्षेत्र लौह अयस्क, कोयला और इस्पात उद्योग में प्रयोग किए जाने वाले खनिजों से भरपूर है। देश का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र मयूरभंज, क्योंझर (उड़ीसा) औसिंहभूम (झारखंड) जिलों में स्थित है। इसी क्षेत्र के दामोदर और महानदी घाटी क्षेत्रों में देश के कोयले का सबसे बड़ा भण्डार भी पाया जाता है। अन्य खनिजों में चूना पत्थर रांची पहाड़ियों से, मैंगनीज मध्य प्रदेश से, सिलिका जबलपुर और धनबाद से, स्फटिक मुंगेर के पास की खड़गपुर पहाड़ियों से और क्रोमाइट झारखण्ड, बिहार और उड़ीसा से प्राप्त किया जाता है। 

दक्षिणी भारत में कर्नाटक का क्षेत्र ऐसा ही इस्पात उत्पादन का दूसरा गौण क्षेत्र है। इनके अतिरिक्त नए इस्पात संयंत्र समुद्र तट के सहारे बंदरगाह सुविधाओं वाले भागों में लगाए जा रहे हैं। वर्तमान समय में लौह-इस्पात के 10 बड़े एकीकृत कारखाने, 145 लघु कारखाने और कई बेलनी मिल और ढलाई मिले हैं। TISCO को छोड़कर अन्य बड़े कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत हैं जिनका प्रबन्धन SAIL के अन्तर्गत है। 

टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO), जमशेदपुर

  • यह कारखाना जमशेदपुर के पास सुबर्णरेखा और खारकई नदियों के संगम पर कोलकाता से 240 किमी० उत्तर-पश्चिम कोलकाता- नागपुर रेलमार्ग के सहारे झारखण्ड के सिंहभूम जिले में स्थित है। 
  • यह देश का दूसरा बड़ा और निजी क्षेत्र का एकमात्र स्टील संयंत्र है जिसकी वार्षिक क्षमता 19 लाख टन कच्चा लोहा, 20 लाख टन इनमाट इस्पात और 30 लाख टन बिक्री योग्य इस्पात बनाने की है। 
  • इसकी स्थापना सन् 1907 में प्रसिद्ध उद्योगपति जे० एन० टाटा द्वारा की गई। 
  • इस कारखाने को गुरुमहिसानी, बादाम पहाड़ (मयूरभंज) और नोआमुण्डी (सिंहभूम) की खदानों से लौह अयस्क (दूरी 72.5-96.6 किमी०); झरिया, सिज्या, जमदोबा एवं प० बोकारो की खानों से कोयला (दूरी 177 किमी०); बीरमित्रपुर, हाथीबाड़ी और बड़ादुआर से चूना पत्थर; जोडा (क्योंझर) और मध्य प्रदेश से मैंगनीज, पासपोश (गांगपुर) से डोलोमाइट, बेल पहाड़ (सुन्दरगढ़) से अग्नि मिट्टी, कालीमती (10 किमी०) से क्वार्टजाइट बालू; सुवर्णरेखा एवं खारकई नदियों पर बने डिमना बांध की झील से स्वच्छ जल; कोलकाता से बन्दरगाह सुविधाएँ; और गंगा घाटी (मुख्यत: बिहार और पू० उत्तर प्रदेश) के घने बसे क्षेत्रों से सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं। 
  • इसके समीप कृषि औजार, भारी मशीन, पटरी, टिन-प्लेट, स्लीपर, लोकोमोटिव आदि बनाने के कारखाने स्थापित हो गए हैं जिससे यहाँ एक औद्योगिक संश्लिष्ट विकसित हो गया है 

इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO), बर्नपुर

  • इसके कारखाने कुल्टी, हीरापुर (1908) और बर्नपुर (1937) में आसनसोल के समीप कोलकाता से 227 किमी० उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं। 
  • इनको लौह अयस्क गुआ की खान से; कोयला रामनगर, नूनोडीह और जितपुर (झरिया) खदानों से; चूना पत्थर पाराघाट एवं बारादुआर से; मैंगनीज उड़ीसा के बड़ा जामदा-बांसपानी से; क्वार्ट्ज मुंगेर के पास की खड़गपुर पहाड़ियों से; अग्नि मिट्टी कुमार धबी (सिंहभूम) से; स्वच्छ जल दामोदर नदी से; सस्ती जल विद्युत दामोदर घाटी निगम (DVC) से; सस्ता श्रम प० बंगाल, बिहार और उड़ीसा से; बन्दरगाह सुविधा कोलकाता से; और बाजार कोलकाता-हुगली औद्योगिक क्षेत्र से मिल जाता है। 
  • इसके आसपास कई सहायक उद्योग विकसित हुए हैं जिसमें चितरंजन लोकोमोटिव प्रमुख है। 

विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लि० (VISL), भद्रावती

  • इसकी स्थापना 1923 में कर्नाटक के शिमोगा जिले में भद्रावती नदी के तट पर की गई थी। 
  • इसे कच्चा लोहा बाबाबूदन पहाड़ियों की केमानगुण्डी खानों (चिकमगलूर जिला) से, चूना पत्थर- भण्डीगुण्डा (20.8 किमी०) से, मैंगनीज एवं क्रोमाइट 48 किमी० की दूरी से, चारकोल मलनाद क्षेत्र के वन से (अब बिजली जोग और श्रावती परियोजनाओं से) और बाजार की सुविधा दक्षिण भारत के क्षेत्र से प्राप्त हो जाती है। 
  • 1962 में इसका अधिग्रहण कर लिया गया और आज यह SAIL के प्रबंध में है। 

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL), राउरकेला

  • इसकी स्थापना सन् 1959 में जर्मनी की फर्म क्रूप्स एण्ड डिमैग के सहयोग से शंख और कोइल नदियों के संगम के पास उड़ीसा राज्य के सुन्दरगढ़ जिले में हुई है। 
  • इस कारखाने को लौह अयस्क की आपूर्ति बरसुआ (दूरी 72 किमी०) से; कोयला की बोकारो, करगली, झरिया, तलचेर और कोरबा की खदानों से; मैंगनीज की बराजमदा से; ; चूना पत्थर की हाथीबाड़ी, पुर्णापानी और बीरमित्रपुर (दूरी 24 किमी०) से; डोलोमाइट की बरदवार से; बिजली की समीप के शक्तिगृह ( क्षमता 75000 kw) और हीराकुड से और पानी की मंदिरा बांध (दूरी 26 किमी०) और महानदी से होती है। 
  • इसमें चपटे आकार की प्लेटें और विभिन्न मोटाई की चादरें प्रमुख हैं। 

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL), भिलाई

  • इसकी स्थापना पूर्व सोवियत संघ की सहायता से 1953 में छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर कोलकाता-मुम्बई रेल मार्ग के सहारे (कोलकाता से 720 किमी० पश्चिम) की गई है। 
  • इस स्थान का चयन दल्ली-राजहरा लौह अयस्क भण्डार (दूरी 96.6 किमी०) हेतु किया गया है। इसे कोयला कोरबा (छत्तीसगढ़), बोकारो, करगली और झरिया (झारखण्ड) की खदानों से,; चूना पत्थर नन्दिनी (दूरी 19 किमी०) से, मँगनीज बालाघाट और भण्डारा से; डोलोमाइट भाटापाड़ा, रामटोला, हर्दी, कसोंदी, भानेश्वर, परसोदा, खैरा और पतपाड़ा से; पानी तंदुला नहर से; बिजली कोरबा से; और बन्दरगाह सुविधाएँ विशाखापत्तनम से प्राप्त होती हैं । 
  • यहाँ रेल की पटरियाँ, छड़ें, शहतीर, स्लीपर जहाज की प्लेट और कतरनें आदि बनाई जाती हैं। 

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL), दुर्गापुर

  • इस कारखाने का निर्माण 1962 में ब्रिटेन के सहयोग से प० बंगाल के वर्धमान जिले में कोलकाता से 160 किमी० उत्तर-पश्चिम आसनसोल के पास किया गया है। 
  • इसे झरिया कोयला खदान, दामोदर घाटी परियोजना, कोलकाता नगर और पत्तन की समीपता का लाभ प्राप्त है। इसे लौह अयस्क गुआ क्षेत्र के बोलनी खदान से; कोयला झरिया और बराकर की खानों से; चूना पत्थर बीरमित्रपुर और हाथीबाड़ी क्षेत्रों (सुन्दरगढ़ जिला) से; मैंगनीज जमदा (क्योंझर जिला) से; जल दामोदर नदी से; और बिजली DVc से प्राप्त होती है। 
  • यहाँ मुख्यत: रेल की पहिया, धुरियाँ, पटरियाँ, छड़ें, कतरने आदि बनायी जाती हैं। 

बोकारो स्टील लिमिटेड (BSL), बोकारो

  • यह कारखाना झारखंड के हजारीबाग जिले में बोकारो और दामोदर नदियों के संगम के पास रूसी सहयोग से 1964 में लगाया गया (अक्टूबर 1972 में उत्पादन शुरू)। 
  • इसे कोयला बोकारो, करगली और झरिया की कोयला खदानों से; लौह अयस्क किरिबुरु (क्योंझर, उड़ीसा) खानों से; चूना पत्थर भवन्तपुर और डाल्टनगंज (पलामू जिला) से; डोलोमाइट बिलासपुर जिला (छत्तीसगढ़) से; स्वच्छ जल दामोदर नदी के तेनू बांध से; और सस्ती बिजली दामोदर घाटी निगम से प्राप्त होती है। 

सलेम इस्पात संयंत्र, सलेम

  • इस कारखाना का निर्माण सलेम जिला (तमिलनाडु) में किया गया है ( मार्च 1982 में उत्पादन शुरू)। 
  • इसके पास के क्षेत्र में प्रचुर लौह अयस्क, चूना पत्थर, लौह मिश्र धातु और ऊष्म सह पदार्थ, बिजली और नेवेली से लिग्नाइट उपलब्ध है। इसमें विशेष किस्म का इस्पात बनाया जाता है। 

विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र, विशाखापत्तनम

  • यह देश का पहला समुद्र तट पर स्थित इस्पात कारखाना है जिसकी स्थापना विशाखापत्तनम बन्दरगाह के पास की गई है। 
  • यह बैलाडिला (छत्तीसगढ़) की खानों से लोहा, खम्मम जिला से चूना पत्थर, दामोदर घाटी क्षेत्र और आयात द्वारा कोयला और समीपवर्ती क्षेत्रों से मैगनीज और डोलोमाइट आदि प्राप्त करता है। 
  • इसका निर्माण कार्य 1982 में शुरू होकर 1992 में पूरा किया गया। 

विजयनगर इस्पात संयंत्र, विजयनगर

  • इस कारखाने की स्थापना तोर्नगाल के पास कर्नाटक के बेल्लारी जिले में की गयी है। 
  • इसे हास्पेट क्षेत्र के लौह अयस्क, कान्हन घाटी (छत्तीसगढ़) और सिंगरेनी (आन्ध्र प्रदेश) के कोयला, 200 किमी० की दूरी से चूना पत्थर और डोलोमाइट, तुंगभद्रा जलाशय (दूरी 36 किमी०) से जल और तुंगभद्रा परियोजना से सस्ती जल विद्युत की सुविधाएँ प्राप्त हैं। 

उड़ीसा में पाराद्वीप के निकट दैतारी स्थान पर और महाराष्ट्र में रत्नगिरि जिले के डोल्वी के पास इस्पात संयंत्रों के लगाये जाने की योजना है। 

लघु इस्पात संयंत्र

इनका सर्वाधिक संकेन्द्रण महाराष्ट्र और गोवा राज्यों में पाया जाता है। देश में इस्पात उत्पादन में क्षेत्रीय संतुलन बनाने, क्षेत्रीय मांगों को पूरा करने, कम लागत पर इस्पात बनाने और कम पूँजी और कम समय में तैयार होने में इन कारखानों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसमें कच्चे माल के तौर पर रद्दी लोहा, स्पंज लोहा और ढलवां लोहा इस्तेमाल होता है। 

भारत के प्रमुख इस्पात संयंत्रों की उत्पादन क्षमता

इस्पात संयंत्रउत्पादन क्षमता (‘000 tpy)
Bhilai Steel Plant, Durg, Chhattisgarh 2675 
Bokaro Steel Plant, Bokaro, Jharkhand 7884 
Rourkela Steel Plant, Rourkela, Odisha 1570 
Durgapur Steel Plant, Durgapur, West Bengal 566 
IISCO Steel Plant, Burnpur, West Bengal400
Visvesvaraya Iron & Steel Plant, Bhadravati, Karnataka 400
Tata Steel Ltd, Jamshedpur, Jharkhand 2100 
JSW Steel Ltd, Ballari, Karnataka (Vijaynagar Steel Plant)NA
Rashtriya Ispat Nigam Ltd, Visakhapatnam, Andhra Pradesh 1440
भारत के प्रमुख इस्पात संयंत्रों की उत्पादन क्षमता

लौह-इस्पात उद्योग की समस्याएँ

भारी पूँजी निवेश

इस्पात कारखाना लगाने के लिए अधिक पूँजी निवेश की जरूरत पड़ती है। इसके तैयार होने में लम्बा समय लगता है। यही कारण है कि इन कारखानों की स्थापना बड़े पूंजीपतियों और सरकार के द्वारा ही की जा सकती है। 

सार्वजनिक कारखानों की अकुशलता

सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश इस्पात के कारखाने अपनी स्थापित क्षमता से बहुत कम उत्पादन (दुर्गापुर केवल 40 प्रतिशत) कर रहे हैं एवं घाटे में चल रहे हैं। इसके लिए कच्चे माल की नियमित आपूर्ति में बाधा, बिजली की कमी, मार्गावरोध, खराब श्रमिक संबंध, अकुशल प्रबंध, पुरानी प्रौद्योगिकी, घटती मांग आदि कारक उत्तरदायी हैं। 

नियंत्रित मूल्य

लौह एवं इस्पात का मूल्य सरकार द्वारा तय किया जाता है जिससे निवेशकों को भरपूत लाभ नहीं मिल पाता है।

गिरती मांग

विश्व बाजार में इस्पात उद्योग मन्दी की स्थिति से गुजर रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। 2005-06 में घरेलू उत्पादन मांग से 53 लाख टन अधिक हुआ था । 

लघु इस्पात संयंत्रों की रुग्णता

कई छोटे इस्पात संयंत्र घाटा देते हुए बन्द होने के कगार पर हैं। इन्हें कच्चे माल की कमी, अपर्याप्त बिजली, पूँजी के अभाव, अधिक लागत, बड़े संयंत्रों से प्रतिस्पर्धा, गुणवत्ता में कमी आदि समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है। 

अच्छे ईंधन की कमी

भारत में इस्पात धमन भट्टियों में इस्तेमाल करने के लिए अच्छे किस्म के कोकिंग कोयले की कमी पाई जाती है। कारखानों की संख्या के बढ़ने से यह कमी अधिक बढ़ गयी है और देश को अच्छे किस्म के कोयले का आयात विदेशों ते करना पड़ रहा है। अधिक खर्चीला होने के साथ-साथ ऐसे कोयले की नियमित आपूर्ति में कठिनाई होती है जिससे कारखाने में उत्पादन प्रभावित होता है। 

गुणवत्ता में कमी

अधिकांश इस्पात संयंत्रों में पुरानी तकनीक से इस्पात बनाया जाता है जिससे गुणवत्ता में कमी के साथ-साथ उत्पादन लागत बढ़ जाती है। यही कारण है कि भारत के इस्पात की विश्व बाजार में बहुत कम मांग होती है।

You Might Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Category

Realated Articles