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जल-विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक दशाएँ (Conditions Required for Hydroelectric Power Generation)
पर्याप्त वर्षा
जल विद्युत के विकास के लिए पर्याप्त जल का होना अति आवश्यकता है, जो पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में ही मिलना सम्भव है।
सुनिश्चित जल-पूर्ति
नदियों में सारा जल उपलब्ध होना चाहिए जिससे जल-विद्युत के उत्पादन में कोई बाधा न पड़े। उत्तरी भारत की अधिकांश नदियाँ हिमाच्छादित(बर्फ से ढकी) हिमालय की पर्वतमालाओं से निकलती हैं और गर्मी की शुष्क ऋतु में बर्फ पिघलकर जल आपूर्ति करती हैं। परन्तु कुछ नदियाँ शुष्क ऋतु में सूख जाती हैं जिससे वे शुष्क मौसम में जल-विद्युत उत्पादन के लिए उपयोगी नहीं रहतीं।
उच्चावच
ऊँचे-नीचे पर्वतीय क्षेत्र जल-विद्युत उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त रहते हैं। तीव्र ढाल वाले प्रदेशों में जल का वेग अधिक होता है तथा जल-विद्युत अधिक मात्रा में उत्पन्न की जा सकती है। जल-प्रपात जल विद्युत के उत्पादन के लिए बहुत ही उचित स्थान है। कई बार नदियों में बाँध बनाकर कृत्रिम जल-प्रपात बनाए जाते हैं और जल-विद्युत उत्पन्न की जाती है।
स्वच्छ जल
नदियों का जल स्वच्छ होना चाहिए ताकि विद्युत उत्पादक यंत्रों को हानि न पहुँचे।
तापमान
जल विद्युत उत्पादन क्षेत्र में तापमान सदा हिमांक से ऊपर रहना चाहिए ताकि जल-प्राप्ति निरन्तर बनी रहे। हिमालय के ऊँचें भागों में बहने वाली नदियों का पानी कम तापमान के कारण जम जाता है जिससे विद्युत उत्पादन नहीं हो पाता।
माँग
मांग के क्षेत्र बिजली उत्पादक केन्द्रों के निकट होने चाहिए क्योंकि अधिक दूर पहुंचने में विद्युत का हास होता है। सामान्यतः 160 किमी0 दूर बिजली ले जाने में 8% , 320 किमी0 में 10%, 640 किमी० में 17% तथा 800 किमी० में 21% विद्युत का हास हो जाता है। इस प्रकार यदि भाखड़ा नांगल बाँध की बिजली दिल्ली तक पहुंचाई जाए तो लगभग 15% विद्युत का हास हो जाता है।
ऊर्जा के अन्य साधनों का अभाव
कोयला या खनिज तेल जैसे ऊर्जा के अन्य साधनों का अभाव जल-विद्युत के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। उत्तर-पश्चिमी भारत में जल-विद्युत के अधिक उत्पादन का एक बड़ा कारण वहाँ पर कोयले तथा खनिज तेल की कमी है।
सस्ता कच्चा माल
जल विद्युत संयंत्र के निर्माण के लिए भारी मात्रा में सीमेंट तथा लोहे की आवश्यकता पड़ती है। इसके साथ ही विद्युत तारों की लाइनें बिछाने के लिए भी पर्याप्त मात्रा में सस्ते दामों पर कच्चे माल की आवश्यकता होती है।
पूँजी एवं तकनीकी ज्ञान
उपर्युक्त सारे कारक तब तक व्यर्थ हैं जब तक उनका लाभ उठाने के लिए किसी देश के पास पूंजी एवं तकनीकी ज्ञान न हो। भारत में तकनीकी विज्ञान की उन्नति के साथ जल विद्युत का उत्पादन भी बढ़ा है। जलविद्युत पैदा करने के लिए भाखड़ा जैसे बड़े-बड़े बांध बनाने पड़ते हैं, जिसके लिए बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है।
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