भारत की तटरेखा लगभग 6100 किलोमीटर लंबी है जो पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा तक जाती है। भारतीय प्रायद्वीपीय पठार की पश्चिमी एवं पूर्वी सीमा तथा भारतीय तटरेखा के बीच स्थित संकरे मैदान को तटीय मैदान कहा जाता है।
- पश्चिमी तट रेखा एवं पश्चिमी घाट के बीच स्थित मैदान को पश्चिमी तटीय मैदान तथा पूर्वी तट रेखा एवं पूर्वी घाट के बीच स्थित मैदान को पूर्वी तटीय मैदान कहा जाता है।
- इनका निर्माण नदियों की निक्षेपण क्रिया (अवसाद जमा करने) एवं सागरीय तरंगों के अपरदनात्मक और निक्षेपण क्रियाओं द्वारा हुआ है।
- इन दोनों मैदानों में धरातल तथा संरचना संबंधी विभिन्नताएं देखने को मिलती हैं।
- कुछ भूविज्ञानी मानते हैं कि भारत के पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों की उत्पत्ति अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के अंशन एवं अवतलन के उपरांत हुई, जो आदिनूतन (Eocene) काल के आस-पास की घटना मानी गयी है। इन्हीं कारणों से इन तटीय प्रदेशों में अतिनूतन (Pliocene) काल से लेकर उसके बाद के कालों के काफी नये उद्भव वाले जलोढ़ पाये जाते हैं।
- इन तटीय मैदानों में निमज्जन (submergence) और निर्गमन (emergence) के प्रमाण मिलते हैं।
भारतीय तटीय मैदानों को तीन भागों में बांटा जा सकता है:
(i) गुजरात तटीय मैदान, (ii) पश्चिम तटीय मैदान, एवं (iii) पूर्व तटीय मैदान।
(i) गुजरात तटीय मैदान (The Gujarat Coastal Plains)
- गुजरात तटीय मैदान में बनासकांठा और साबरकांठा जिलों को छोड़कर पूरा गुजरात राज्य आता है।
- इसका निर्माण साबरमती, माही, लूनी तथा अनेक अनुवर्ती एवं छोटी समानांतर नदियों के जलोढ़ निक्षेपों से हुआ है।
- इसके कुछ हिस्सों के निर्माण में हवा की निक्षेपण क्रिया एवं सागर के अपगमन (पीछे हटने की भी भूमिका रही है।
- गुजरात तटीय मैदान में सागरीय जुरैसिक चट्टानों पर टिकी गोंडवाना चट्टानें फैली हुईहैं, जो निचले क्रिटेशस संस्तरों से ढकी हैं।
- गुजरात मैदान का पूर्वी भाग प्रायद्वीपीय भारत में सिन्धु-गंगा जलोढ़ का एक प्रक्षिप्त हिस्सा है। इस प्रक्षेपित हिस्से का निर्माण अभिनूतन (Pleistocene) काल में हुए अवसादन की विस्तृत प्रक्रिया से हुआ है।
- पूर्वी गुजरात का अरोसुर पर्वत, सतपुड़ा की राजपिप्ला पहाड़ियां (अगेट उत्खनन के लिए प्रसिद्ध), बलसाड़ जिले की परनेरा पहाड़ियां, दक्षिणी भाग की सहयाद्रि, गिरनार पहाड़ियों (गोरखनाथ शिखर, 1117 मी.) के अग्नेय समूह तथा काठियावाड़ की महादेव पहाड़ियां यहां की प्रमुख उच्च भूमियां हैं।
कच्छ का रण (The Rann of Kuchchh ) :
- यह एक विस्तृत नग्न ज्वारीय पंक-मैदानी (mud flat) क्षेत्र है।
- कच्छ के रण को कच्छ की खाड़ी काठियावाड़ प्रायद्वीप से अलग करती है।
- इस निम्न-स्थलीय दलदल क्षेत्र की मृदाओं में नमक की उच्च मात्रा विद्यमान है जिस कारण यह पूरा क्षेत्र लगभग बंजर और अनुपजाऊ है।
- रण के दक्षिण में कच्छ स्थित है जो पहले एक द्वीप हुआ करता था। आज कच्छ सिर्फ दक्षिण-पश्चिम को छोड़कर चारों तरफ से रण से घिरा है।
भारत के तटीय मैदान (The Coastal Plains of India)
(ii) पश्चिम तटीय मैदान (The West Coastal Plain)
- यह मैदान सहयाद्रि या पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच स्थित है, जो कच्छ की खाड़ी से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। हालांकि, कुछ भूगोलवेत्ता कच्छ-काठियावाड़ के मैदान को पश्चिमी तटीय मैदान का हिस्सा नहीं मानते। इनके अनुसार पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात के सूरत से लेकर कन्याकुमारी तक है।
- इस मैदान लंबाई लगभग 1400 कि.मी. तथा चौड़ाई 10 से 80 कि.मी. के बीच है।
- समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई लगभग 150 मी. है जो कई जगहों पर 300 मी. तक भी है।
- रेत के पुलिन (beach). तटीय बालुका स्तूप, पंक-मैदान, लैगून, नदियों के जलोढ़ क्षेत्र, ज्वारनदमुख (estuary), लेटेराइट-प्लेटफार्म एवं अवशिष्ट पहाड़ी… इत्यादि इन मैदानी क्षेत्र की मुख्य स्थलाकृतिक विशेषताएं हैं।
- सहयाद्रि के उत्तरी भाग में थालघाट और भोरघाट दरें तथा दक्षिणी भाग में पालघाट (पलावकाड़) दर्रा (नीलगिरि के दक्षिण) विद्यमान है।
- पश्चिमी तटीय मैदान को धरातल तथा संरचना की दृष्टि प्रमुख रूप से तीन उप-भागों में बांटा गया है
(i) कोंकण तट (ii) कर्नाटक या कन्नड़ तट (iii) मालाबार तट
- पश्चिम तटीय मैदान का उत्तरी भाग को कोंकण तट कहते हैं। इसका विस्तार मुंबई से गोवा तक है। कोंकण तट की लंबाई लगभग 530.कि.मी. लं और चौड़ाई 30 से 50 कि.मी. के बीच है।
- दक्षिण जाने पर कर्नाटक तटीय मैदान पड़ता है, जिसका विस्तार गोवा से मंगलौर तक है। कर्नाटक तटीय मैदान लगभग 225 कि.मी. लंबा और 8 से 25 कि.मी. चौड़ा है। कर्नाटक तटीय मैदान पश्चिम तटीय मैदानों का सबसे संकीर्ण हिस्सा है।
- पश्चिम तटीय मैदानों का सबसे दक्षिणी हिस्सा मालाबार तट(Malabar Coast) के नाम से जाना जाता है, जिसकी लंबाई लगभग 500 कि. मी. और चौड़ाई 20 से 100 कि.मी. के बीच है। बालू के टीलों की उपस्थिति इस मैदान की मुख्य विशेषता है, जिन्हें यहां टेरिस (Teris) कहते हैं। मालाबार तट के साथ अनेक लैगून और पश्चजल (backwater) स्थित हैं, जिन्हें यहां ‘कयाल’ (Kayals) कहते हैं। ये लैगून आपस में जुड़े हुए हैं “जिनमें छोटे देशी नौकाओं द्वारा नौपरिवहन संपन्न होता है। वेम्बनाथ और अष्टमुडी मालाबार तट के महत्वपूर्ण लैगून (झील) हैं। इस तट पर निर्गमन और निमज्जन के साक्ष्य भी मिलते हैं।
(iii) पूर्व तटीय मैदान (The East Coastal Plains)
- पूर्व तटीय मैदान पूर्वी घाट एवं बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है, जिसका विस्तार उड़ीसा, आंध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में है।
- इस मैदान का विस्तार उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल की सीमा पर बहने वाली स्वर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक है तथा इसका कुल क्षेत्र लगभग 1,02,900 वर्ग कि.मी. है।
- यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है। कुछ स्थानों पर इसकी चौड़ाई 200 किलोमीटर से भी अधिक है, परंतु कहीं-कहीं पर इसकी चौड़ाई केवल 32 किलोमीटर रह जाती है।
- पूर्व तटीय मैदान का निर्माण विश्व के कुछ सबसे बड़े नदी डेल्टा क्षेत्रों में जलोढ़ों के जमा होने से हुआ है।
- पश्चिम तटीय मैदान की तरह इस मैदान को भी दो प्रमुख उप -भागों में बांटा गया है
(i) उत्तरी सरकार तट (ii) कोरोमंडल तट
- उत्तरी सरकार(Northern Circar) महानदी एवं कृष्णा नदियों के बीच स्थित है, वही कृष्णा एवं कावेरी नदियों के बीच के तटीय क्षेत्र को कोरोमंडल तट (Coromandel Coast) कहते हैं
- पूर्व तटीय मैदान की एकरूपता को जगह-जगह स्थित पहाड़ियों द्वारा विच्छिन्न किया गया है।
- इन मैदानों के समुद्री तट लगभग सीधे हैं जहां पर रेत और समुद्री कंकड़ (shingle) से बने पुलिनों (beaches) की उपस्थिति है। इनमें चेन्नई स्थित मरिना पुलिन(Marina Beach) सबसे प्रसिद्ध है।
- पूर्व सागर तट अनेक बालू-भित्तियों (sandbars) से भरे पड़े हैं (विशेषकर नदियों के मुहानों पर)। भारत के कुछ महत्वपूर्ण लैगून इन्हीं मैदानों में स्थित हैं।
- महानदी डेल्टा के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित यहां की चिल्का झील(Chilika Lake) (165 कि.मी. x 8 कि.मी.) भारत की सबसे बड़ी झील है। गोदावरी और कृष्णा के डेल्टा के बीच कोल्लेरू (Kolleru) झील स्थित है। दक्षिण जाने पर आंध्रप्रदेश एवं तमिनाडु की सीमा पर पुलिकट झील(Pulicat Lake) स्थित है।
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