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बी०एस० गुहा के अनुसार भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण (Classification of Indian species by B.S. Guha)

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इस लेख में आप बी०एस० गुहा के अनुसार किए गए भारतीय प्रजातियों के वर्गीकरण (Classification of Indian species by B.S. Guha) के बारे में जानेंगे।

भारतीय मानवविज्ञान विभाग के पूर्व निदेशक डा० बी०एस० गुहा (B.S. Guha) ने भारतीय मानव प्रजातियों का वर्गीकरण उनके शारीरिक लक्षणों पर वैज्ञानिक तथ्यों का सहारा लेते हुए तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया। जिसका प्रकाशन ‘जनसंख्या में प्रजातीय तत्व’ (Racial Elements in the Population) नाम से 1944 में हुआ। गुहा ने समस्त भारतीय जनसंख्या को 6 प्रमुख प्रजातीय वर्गों में विभक्त किया है जो अन्य वर्गीकरणों से श्रेष्ठतर है। इसे सर्वाधिक मान्यता भी प्राप्त है। गुहा द्वारा प्रस्तुत प्रजातीय वर्गीकरण निम्नांकित है –

Classification of Indian species by B.S. Guha

बी०एस० गुहा के अनुसार भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण (Classification of Indian species by B.S. Guha)

क्रम संख्या प्रमुख प्रजाति उप प्रजाति
1.नीग्रिटो (Negrito)
2.आद्य आस्ट्रेलाइड (Proto-Australoid)
3.मंगोलाइड (Mongoloid)(अ)पुरा मंगोलाइड (Paleo-Mongoloid)
(ब) तिब्बतो मंगोलाइड (Tibeto-Mongoloid)
4.भूमध्य सागरीय (Mediterranean)(अ) पूरा भूमध्यसागरीय (Palae-Mediterranean)
(ब) भूमध्यसागरीय (Mediterranean)
(स) प्राच्य प्रकार (Oriental Type)
5.चौड़े सिर वाली पश्चिमी प्रजातियाँ (Western Brachycephals)(अ) अल्पाइनाइड (Alpinoid) 
(ब) दिनारिक (Dinaric)
(स) आर्मीनाइड (Arminoid),
6.नार्डिक (Nordic)
बी०एस० गुहा के अनुसार भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण

डा० बी०एस० गुहा ने भारतीय प्रजातियों का विवेचन नृतत्वमापी समंकों (Anthropometric data) के आधार पर किया है। यद्यपि गुहा के वर्गीकरण को अन्य वर्गीकरणों की तुलना में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है, किन्तु यह वर्गीकरण भी पूर्णतया दोष मुक्त नहीं है। गुहा ने भारत के समस्त प्रजातीय वर्गों को बाहर से आया हुआ माना है और भारत को उन बाहर से आयी प्रजातियों का आवास स्थल। आदि कालीन सभ्यता वाला भारत इन प्रजातियों के आगमन से पूर्व संभवतः जन विहीन कदापि नहीं रहा होगा। किन्तु गुहा के वर्गीकरण में भारत की मूल प्रजाति के विषय में कोई तार्किक विवरण नहीं दिया गया है।

गुहा के  वर्गीकरण पर आधारित भारत की प्रमुख मानव प्रजातियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-

नीग्रिटो प्रजाति (Negrito Race)

नीग्रिटो, नीग्रोइड महाप्रजाति की एक उप प्रजाति है। भारतीय जनसंख्या में इस प्रजाति के लोगों की उपस्थिति संदेहास्पद है। जहाँ एक ओर कुछ विद्वानों ने दक्षिणी भारत में नीग्रिटो लोगों का उल्लेख किया है। वहीं दूसरी ओर कतिपय लेखक इनकी उपस्थिति से सहमत नहीं हैं। डा० गुहा ने ट्रावनकोर तथा कोच्चि (कोचीन) के कादर लोगों तथा अण्डमान द्वीप समूह के मूल निवासियों को नीग्रिटो प्रजाति का प्रतिनिधि माना है। 

अण्डमान द्वीपसमूह में नीग्रिटो लोगों की अधिकता है किन्तु उनकी संख्या में ह्रास की प्रवृत्ति है। दक्षिण के जंगलों में निवास करने वाली कादर और उराली जातियों में नीग्रो के समान विशेषताएँ (छोटा कद और घुंघराले बाल) पायी जाती है। दक्षिण भारत में पायी जाने वाली नीग्रिटो प्रजाति के मनुष्यों का कद छोटा (प्रायः 152 सेमी० से कम) और त्वचा का रंग भूरे से लेकर काला होता है। इसके साथ ही काले लहरदार बाल (Wavy hair), मोटे होंठ, छोटा चेहरा, साधारण लम्बा से लेकर गोल सिर, आगे की ओर निकला हुआ ललाट नीग्रिटो लोगों के सामान्य लक्षण हैं।

आद्य-आस्ट्रेलाइड प्रजाति (Proto-Australoid Race)

प्रायद्वीपीय भारत में निवास करने वाली अधिकांश जनजातियाँ इसी वर्ग में आती हैं। यह आस्ट्रेलाइड प्रजाति की पूर्ववर्ती मानी जाती हैं। मलायन, कुरुम्बा, मुंडा, यरुवा, चेंचू, कोल आदि जनजातियाँ इसी वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। इनकी त्वचा सामान्यतः काली, बाल घुंघराले और लहरदार, नासिका चौड़ी तथा चपटी होती है। इनका ललाट उभरा हुआ, होंठ मोटे तथा चेहरा बाहर की ओर उभरा हुआ होता है। शरीर का कद छोटा तथा सिर लम्बा से मध्यम आकार का होता है।

डा० गुहा ने भारत में पायी जाने वाली कई अनुसूचित जातियों में भी प्रोटो-आस्ट्रेलाइड विशेषताओं को स्वीकार किया है। मजूमदार ने भी भारत में प्रोटो-आस्ट्रेलाइड विशेषताओं के कमोवेश मात्रा में पाये जाने का समर्थन किया है। अनुमानित है कि प्राचीन काल में यह प्रजाति लगभग सम्पूर्ण भारतीय उप महाद्वीप पर विद्यमान थी। कालांतर में यह मलाया और पूर्वी द्वीपसमूह होती हुई आस्ट्रेलिया तक पहुँच गयी।

मंगोलाइड प्रजाति (Mongoloid Race)

मंगोलाइड प्रजाति ने सर्वप्रथम मध्य एशिया से प्रवास करके पश्चिमोत्तर भारत में प्रवेश किया और बाद में हिमालय की उत्तरी तथा पूर्वी पहाड़ियों में शरण ली। मध्यम कद वाले मंगोलाइड लोगों के शरीर और चेहरे पर बालों की कमी होती है। चेहरा सपाट तथा कपोलस्थियाँ उभरी हुई होती हैं और नेत्र तिरछे होते हैं। भारत में मंगोलाइड प्रजाति के दो उपवर्ग पाये जाते हैं 

(अ) पुरामंगोलाइड, और 

(ब) तिब्बतो-मंगोलाइड

पुरा मंगोलाइड (Palae Mongoloid)

यह सर्वाधिक प्राचीन मंगोलाइड प्रजाति है। अति प्राचीन होने के कारण इनमें वे सभी लक्षण नहीं पाये जाते हैं जो बाद में विकसित मंगोलाइड में मिलते हैं। सिर की बनावट के अनुसार पुरामंगोलाइड प्रजाति भी दो प्रकार की है- (i) लम्बे सिर वाली (Dicho Cephals), और (ii) चौड़े सिर वाली (Brachycephals)।

लम्बे सिर वाली मंगोलाइड प्रजाति के लोग आसाम तथा पूर्वी सीमांत प्रदेश में निवास करते हैं। इनका सिर लम्बा, कद मध्यम, रंग भूरा, चेहरा छोटा और उभरी हुई कपोलास्थियों वाला होता है। इनके शरीर तथा चेहरे पर (दाढ़ी, मूछ) बाल कम होते हैं।

चौड़े सिर वाली पुरा मंगोलाइड प्रजाति के प्रतिनिधि चटगाँव के पहाड़ी प्रदेश में पाये जाते हैं। चकमा जनजाति इसका विशिष्ट उदाहरण है। इनका सिर अपेक्षाकृत् चौड़ा, नेत्र तिरछे तथा चेहरा गोल और त्वचा का रंग हल्का पीला से कत्थई होता है।

तिब्बतो-मंगोलाइड (Tibeto-Mongoloid)

यह प्रजाति हिमालय के पर्वतीय प्रदेश मुख्यतया सिक्किम, भूटान तथा पश्चिमी हिमालय प्रदेश में निवास करती है। इसमें मध्य तथा पूर्वोत्तर एशिया की विशाल भूमि पर रहने वाली मंगोलाइड प्रजाति के लगभग सभी लक्षण पाये जाते हैं। यह लम्बे सिर वाली प्रजाति है जिसके शरीर पर रोमावलियों का लगभग अभाव होता है और केवल सिर पर ही बाल विकसित होते हैं। इनके त्वचा का रंग हल्का पीला या भूरा और नेत्र तिरछे होते हैं।

भूमध्यसागरीय प्रजाति (Mediterranean Race)

यह यूरोपीय या काकेशाइड महाप्रजाति का एक विशिष्ट अंग है। इसकी त्वचा का रंग हल्का भूरा, सिर लम्बा और सिर के बाल लहरदार होते हैं। नासिका सामान्य चौड़ी से पतली होती है। यह प्रजाति भारत में कई चरणों में आयी है। अतः भारत में पायी जाने वाली भूमध्यसागरीय प्रजाति के तीन उपवर्ग भी हैं।

पुरा भूमध्यसागरीय प्रजाति (Palae Mediterranean Race)

यह प्रजाति भूमध्य- सागरीय प्रजाति के प्रथम भारत आगमन के समय सम्भवतः नवपाषाण युग (Neolithic Age) में यहाँ आयी। पहले यह उत्तरी भारत में और बाद में दक्षिणी भारत में पहुँच गयी जहाँ द्रविड़ जाति में आज भी इसके लक्षण विद्यमान हैं। इसकी त्वचा का रंग भूरा, चेहरा और सिर लम्बा, कद मध्यम, सिर के बाल लहरदार और नासिका मध्यम चौड़ी होती है। चेहरे और शरीर पर रोमावलि कम पायी जाती है।

भूमध्यसागरीय प्रजाति (Mediterranean Race)

भारत में इसका आगमन पुरा भूमध्यसागरीय प्रजाति के बाद में हुआ। इसके प्रतिनिधि पंजाब से बंगाल तक तथा महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश में पाये जाते हैं। गुहा के अनुसार उत्तरी भारत की जनसंख्या में यह एक प्रबल तत्व है और मुख्यतः सवर्ण जातियों को समाहित करती है। इनकी त्वचा हल्की भूरी, बाल लहरदार, नासिका पतली, लम्बी तथा उभरी हुई होती है। शारीरिक कद मध्यम या लम्बा, नेत्र भूरे से काले रंग के तथा चेहरे और शरीर पर बाल अपेक्षाकृत् अधिक होते हैं।

पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रजाति (Oriental Mediterranean Race)

यह भूमध्यसागरीय प्रजाति का ही एक परिवर्तित रूप है। इसकी पूर्वोक्त भूमध्यसागरीय प्रजाति से अधिक समानता है किन्तु इसके त्वचा का रंग अधिक हल्का (प्रायः गोरा या गेंहुआ) होता है और नासिका अपेक्षाकृत् अधिक लम्बी होती है। पश्च्चिमोत्तर भारत विशेषतः पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस प्रजाति के लोगों की संख्या अधिक है।

पश्चिमी चौड़े सिर वाली प्रजातियाँ (Western Brachycephals Races)

प्राचीन काल में भारत में पश्चिम से चौड़े सिर वाली कुछ प्रजातियों ने प्रवेश किया जिनका विकास पहाड़ी प्रदेशों में हुआ था। विद्वानों का अनुमान है कि ये प्रजातियाँ उत्तर में हिमालय की तलहटी तथा दक्षिण में पश्चिमी सागरीय तट के सहारे आगे बढ़ती हुई क्रमशः बंगाल एवं बांगलादेश तक और दक्षिण में तमिलनाडु तक पहुँच गयीं। इन प्रजातियों के तीन प्रमुख उपवर्ग हैं 

अल्पाइनाइड (Alpinoid)

यह मध्यम कद वाली प्रजाति है जिनकी त्वचा हल्की भूरी, चेहरा गोल, शरीर सुडौल और नाक लम्बी एवं सुन्दर होती है। सिर और शरीर पर बालों की अधिकता होती है। इस प्रजाति के प्रतिनिधि देश के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही भागों में मिलते हैं।

दिनारिक (Dinaric)

यह लम्बे कद वाली प्रजाति है जिसका चेहरा अपेक्षाकृत् लम्बा तथा नासिका पतली एवं लम्बी होती है। त्वचा भूरी से हल्की काली होती है। अन्य प्रजातियों के साथ इसका मिश्रण अधिक हुआ है। इसके प्रतिनिधि मुख्यतः पश्चिमी हिमालय प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में मिलते हैं।

आर्मीनाइड (Arminoid)

इस प्रजाति के लोगों की संख्या भारत में अत्यल्प है। ये मध्यम कद वाले होते हैं जिनका सिर चौड़ा और नाक लम्बी होती है। अल्पाइनाइड की भांति इनके शरीर पर भी बाल की प्रचुरता पायी जाती है। भारतीय पारसी लोगों में इस प्रजाति के लक्षण मिलते हैं।

नार्डिक प्रजाति (Nordic Race)

भारत में इस प्रजाति का आगमन पूर्वोक्त सभी प्रजातियों के बाद हुआ। सम्भवतः यह प्रजाति मध्य एशिया से स्थानान्तरित होकर सर्वप्रथम पश्चिमोत्तर भारत में प्रवेश की थी। कुछ विद्वानों ने इसे इण्डो-आर्य (Indo-Aryan) की संज्ञा प्रदान की है। यद्यपि इस प्रजाति के अधिकांश प्रतिनिधि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सवर्ण जातियों में पाये जाते हैं, किन्तु उत्तरी मैदान तथा महाराष्ट्र में भी नार्डिक प्रजाति से सम्बन्धित लोग मिलते हैं। 

भारत में नार्डिक लोगों का शरीर सुगठित, सुडौल तथा लम्बा होता है। सिर लम्बा तथा बड़ा, चेहरा लम्बा तथा नासिका लम्बी, पतली और ऊँची होती है। रक्ताभ गोरा रंग, नीली आँखें तथा सुनहरे केश इनकी उत्कृष्ट विशेषताएँ हैं।

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