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इस लेख में आप रौनकियर के अनुसार पौधों का वर्गीकरण (Raunkiaer’s Classification of Plants) को जानेंगे।
रौनकियर (Raunkiaer, 1934) ने पौधों का वर्गीकरण उनके जीवन-रूप (life-form) के आधार पर किया है। रौनकियर ने पौधों के वर्गीकरण का मुख्य आधार पौधों के जीवन रूप एवं जलवायु के कारकों के मध्य सम्बन्ध बनाया। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत पौधों के जीवन-रूप के उनके विकास के प्रतिकूल मौसम के साथ समायोजन (adjustment) को ध्यान में रखा जाता है।
रौनकियर ने अपने वर्गीकरण की योजना में केवल सुप्त (resting) या वर्षस्थायी (perennating) आंख (buds) की मृदा सतह के ऊपर या नीचे की स्थिति को ही शामिल किया है। अर्थात् जिस किसी क्षेत्र विशेष में पौधों के लिए मौसम जितना ही प्रतिकूल होता है, पौधों की सुप्त आंखें मृदा सतह के उतनी ही करीब होती हैं ताकि वे नष्ट न हो सकें अपितु अनुकूल मौसम के आने तक सुरक्षित रह सकें।
उरोक्त आधार पर उन्होंने पौधों को निम्न 5 वर्गों में विभाजित किया :
रौनकियर के अनुसार पौधों का वर्गीकरण (Raunkiaer’s Classification of Plants)
फैनेरोफाइट्स (Phanerophytes)
इस वर्ग के में ऊंचे वृक्ष एवं ऊँची झाड़ियां शामिल हैं जिनमें सुप्त आंखें (resting buds) काफी ऊंचाई पर होती हैं (मृदा सतह से कम से कम 2.5 से 30 मीटर की ऊंचाई पर)। इस श्रेणी के अन्तर्गत पतझड़ (पर्णपाती) तथा सदाबहार वृक्ष आते हैं।
कैमेफाइट्स (Chamaephytes)
इसके अन्तर्गत सदाबहार छोटी झाड़ियां (शाकीय या जड़ी-बूटी वाली झाड़ियां) आती हैं जिनकी सुप्त आंखें या कलियां मिट्टी की सतह के करीब (2.5 मीटर की ऊंचाई तक) होती हैं।
हेमीक्रिप्टोफाइट्स (hemicryptophytes)
इस वर्ग के अन्तर्गत वे पौधे आते हैं जिनकी सुप्त कलियां (आंखें) मिट्टी की सतह पर होती हैं तथा ये आंशिक रूप से पत्तियों के ढेर में या मिट्टियों में ढकी रहती हैं।
क्रिप्टोफाइट्स (cryptophytes)
इस तरह के पौधों की आंखें (buds) पूर्ण रूप से बाहरी पर्यावरण से सुरक्षित रहती हैं। इनकी कलियां (आंखें) पौधों की जड़ों में बल्ब के रूप में होती हैं यथा : डहलिया, गुलदाउदी। भूतल पर तथा जल में पाये जाने वाले ऐसे पौधों को क्रमशः जियोफाइट्स तथा हाइड्रोफाइट्स कहते हैं।
थेरोफाइट्स (therophytes)
इस श्रेणी के अन्तर्गत वे पौधे आते हैं जिनका जीवन एक मौसम तक ही सीमित होता है, अत: इन्हें वार्षिक पौधा भी कहते हैं। अर्थात् इनका जीवन इतिहास बीज से बीज तक ही सीमित रहता है। यानी बीज के अंकुरण से पौधा विकसित होता है तथा पुन: बीज आ जाने पर समाप्त हो जाता है। प्रतिकूल मौसम में ये पौधे बीज के अन्दर भ्रूण (embryo) के रूप में रहते हैं तथा अनुकूल मौसम आने पर पुनः विकसित हो जाते हैं।
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