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केन्द्रीयता का अर्थ (Meaning of Centrality)

इस लेख में आप केन्द्रीयता का अर्थ (Meaning of Centrality) और केन्द्रीय कार्यों के प्रकार के बारे में विस्तार से आसान शब्दों में जानेंगे।

केन्द्रीयता का अर्थ (Meaning of Centrality)

हर केन्द्रीय स्थान (Central Place) किसी मार्ग (route) के केंद्र में होता है, यानी यह कई मार्गों के मिलने वाले स्थान पर स्थित होता है। इन मार्गों की मदद से वह अपने आसपास के क्षेत्र को सेवाएँ (services) प्रदान करता है और उससे जुड़ता है।

केन्द्रीय स्थान की सेवा क्षमता इस पर निर्भर करती है कि वहाँ कितनी सेवाएँ और कार्य (functions) उपलब्ध हैं और उनकी प्रकृति क्या है। यदि किसी केन्द्रीय स्थान में अधिक सेवाएँ और कार्य होते हैं, तो उसका महत्व और पद (status) ऊँचा होगा। वहीं, अगर वहाँ कम सेवाएँ और कार्य हैं, तो उसका पद भी कम होगा।

केवल कार्यों की संख्या ही नहीं, बल्कि कुछ और तरीकों से भी किसी बस्ती (settlement) के महत्व और केन्द्रीयता को मापा जा सकता है। यानी, किसी स्थान की केन्द्रीयता (Centrality) को समझने के लिए उसके कार्यों का विश्लेषण ज़रूरी है।

हाल के वर्षों में केन्द्रीयता की अवधारणा पर विशेष ध्यान दिया गया है, और इसे एक सिद्धांत (theory) के रूप में भी माना जाने लगा है। यह सिद्धांत यह बताता है कि किसी नगर (city) में विभिन्न संस्थान (institutions), व्यापार (business) और सेवाएँ कैसे स्थित हैं। किसी नगर की भौगोलिक व्याख्या (Geographical Explanation) में इसकी विशेष भूमिका होती है।

केन्द्रीय कार्य (Central Functions) वे कार्य होते हैं जो कोई केन्द्रीय स्थान (जैसे नगर या शहर) अपने आसपास के क्षेत्र के लिए करता है। ये कार्य अलग-अलग तरह के होते हैं और इनका एक क्रम या स्तर भी होता है। केन्द्रीय कार्यों का पदानुक्रम (Hierarchy) पूरी तरह से बस्तियों के क्रम से जुड़ा होता है। ये कार्य आमतौर पर असर्वगत (Non-ubiquitous) होते हैं, यानी हर जगह नहीं पाए जाते।

केन्द्रीय कार्यों के प्रकार

केन्द्रीय स्थानों के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है:

1. प्रादेशिक कार्य (Basic Activities)

ये वे कार्य होते हैं जिनसे नगर को बाहरी क्षेत्रों से आय (Income) मिलती है। इन कार्यों के कारण नगर आर्थिक रूप से मजबूत बनता है। प्रमुख प्रादेशिक कार्यों में शामिल हैं:

  • औद्योगिक कार्य (Industrial Activities)
  • व्यापारिक कार्य (Commercial Activities)
  • वित्तीय सेवाएँ (Financial Services)
  • प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions)
  • मनोरंजन व शिक्षा संबंधी कार्य (Entertainment & Educational Services)

प्रादेशिक कार्यों को आय के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है:

(अ) कार्यों का विस्तार (Extent of Activities)

कुछ कार्यों का प्रभाव केवल आसपास के क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वे दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुँचते हैं। जैसे:

  • वाराणसी की रेशमी साड़ियाँ सिर्फ स्थानीय बाजार में नहीं बिकतीं, बल्कि उनका राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार होता है।
  • ऐसे कार्यों के कारण नगर का प्रभाव दूर-दूर तक फैलता है।
(ब) कार्यों का आकर्षण (Attraction of Activities)

कुछ कार्य सिर्फ नगर के आसपास के लोगों को आकर्षित करते हैं। ये कार्य नगर के लिए जरूरी होते हैं और इनके कारण नगर के चारों ओर एक प्रभाव-क्षेत्र (Influence Zone) बन जाता है।

  • यह क्षेत्र कितना बड़ा होगा, यह नगर के कार्यों और आसपास के अन्य नगरों में उनकी उपलब्धता पर निर्भर करता है।
  • इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे अमलैण्ड (Umland), हिण्टरलैण्ड (Hinterland), सिटी-रीजन (City Region), अर्बन-फील्ड (Urban Field) आदि।

2. स्थानिक कार्य (Non-Basic Activities)

ये कार्य नगर के अंदर रहने वाले लोगों के लिए होते हैं और इन्हें स्थानीय सेवाएँ (Local Services) भी कहा जाता है।

  • इनसे नगर की आंतरिक आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, लेकिन ये बाहरी आय का स्रोत नहीं होते।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रादेशिक कार्य ही नगर का आधार होते हैं। इन्हीं के कारण नगर अपने आसपास के क्षेत्र को सेवाएँ दे पाता है और इसे केन्द्रीय स्थान कहा जाता है। नगर के विकास को समझने के लिए प्रादेशिक कार्यों का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण होता है।

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