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उष्ण स्थानीय पवनें (Warm Local Winds)

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उष्ण स्थानीय पवनें (Warm Local Winds)

जब पवनों का तापमान उनके प्रवाह स्थल की अपेक्षा अधिक होता है, तब वो उष्ण पवनें कहलाती हैं। इस लेख में हम ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण स्थानीय उष्ण पवनों के बारे में जानेंगे। 

फॉन (foehn)

आल्पस् पर्वत के उत्तर में स्थित स्विट्जरलैण्ड की घाटियों में चलने वाली गर्म और शुष्क स्थानीय हवाओं को  फॉन (foehn) के नाम से जाना जाता है। इनकी उत्पत्ति सामान्यतया उन पर्वतीय क्षेत्रों में होती है; जहाँ चक्रवातीय तूफान चला करते हैं, तथा हवा पर्वतों के वायु विमुख ढाल की ओर नीचे उतरती या अवतलित होती है। 

वैसे तो चक्रवातों से प्रभावित लगभग सभी पर्वतीय भागों में ऐसी हवाएं चला करती हैं, किन्तु आल्पस् पर्वत के उत्तर में स्थित स्विट्जरलैण्ड की घाटियों में इस प्रकार की स्थानीय हवाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस स्थानीय हवा को ऑस्ट्रिया तथा जर्मनी में फॉन कहा जाता है। 

फॉन एवं चिनूक पवनें (Source: youtubeshorts@studyiqiasHindi)

कैसे होती है, फॉन (foehn) की उत्पत्ति?

जब कोई चक्रवात आल्पस् के उत्तर से गुजरता है, तो इसकी ओर दक्षिण से आने वाली हवाओं को इस ऊँचे पर्वत को पार करना पड़ता है। ये दक्षिणी हवाएं जब इस पर्वत के वायु अभिमुख ढाल (windward slope) पर ऊपर उठती हैं तो संघनन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तथा इनसे प्रायः वृष्टि भी होती है। इस प्रक्रिया के कारण इस आरोही पवन में जलवाष्प की मात्रा तो कम हो जाती है, किन्तु संघनन स्तर के ऊपर आरोहण करने के फलस्वरूप इनका शीतलन आर्द्र-रुद्धोष्म दर (moist adiabatic rate) से होता है, क्योंकि इनके तापमान में संघनन के गुप्त ताप (latent heat of condensation) द्वारा वृद्धि हो जाती है। 

पुनः आल्पस् के द्वारा उत्पन्न घर्षण बल के कारण ये हवाएं वायुविमुख ढाल पर उतरने के लिए बाध्य होती हैं। नीचे उतरते समय इनके तापमान में शुष्क-रुद्धोष्म दर से वृद्धि होती है तथा इनकी सापेक्ष आर्द्रता भी कम हो जाती है। वायु के नीचे उतरने का क्रम झोकों के द्वारा सम्पादित होने से ये हवाएं आस-पास की वायु से गर्म, शुष्क तथा झोकेंदार होती हैं।

फॉन हवाएं मुख्यतः शीत ऋतु के अन्त तथा बसन्त ऋतु के प्रारम्भ में चला करती हैं। इनके आगमन से घाटियों में धरातल पर जमा बर्फ की परत तेजी से पिघल जाती है जिससे घाटियाँ हिम-मुक्त हो जाती हैं। कृषि कार्य में इनसे बड़ी सहायता मिलती है। ग्रीष्म में इन पवनों की संख्या अल्पतम होती है। 

चिनूक (Chinook)

रॉकी पर्वत माला के पूर्वी ढाल पर फॉन की ही भाँति गर्म और शुष्क हवाएं स्थानीय रूप में उत्पन्न होती हैं तथा शीत ऋतु अथवा बसन्तु ऋतु के आरम्भ में विशेष रूप से चला करती हैं। पश्चिमी कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में इन हवाओं को चिनूक (chinook) कहा जाता है। रॉकी पर्वत को पार करके जब हवाएं उसकी पूर्वी ढाल पर उतरती हैं तो फॉन की ही भाँति उनके तापमान में शुष्क रुद्धोष्म दर से वृद्धि हो जाती है। 

वस्तुतः फॉन अथवा चिनूक हवाओं के गर्म होने के दो प्रमुख कारण हैं: पहला कारण, वायु अभिमुख ढाल पर आरोही पवन में संघनन की गुप्त ऊष्मा द्वारा वायु के तापमान में वृद्धि है, तथा दूसरा कारण, उन हवाओं के अवरोहण के समय सम्पीडन के कारण उनके तापमान में अतिरिक्त वृद्धि है। वैसे तो इन चिनूक हवाओं का वास्तविक तापमान शीत ऋतु में लगभग 4.4° सेल्सियस ही होता है, फिर भी निचले मैदानी भागों के अत्यधिक न्यून तापमान की तुलना में इन हवाओं का तापमान अधिक ही रहता है। जिसके कारण ये वहां के लिए गर्म होती हैं। 

चिनूक (chinook) के आगमन के फलस्वरूप धरातल पर पड़ा हुआ हिम का आवरण अल्प समय में नष्ट हो जाता है। जैसा कि इसके पूर्व बताया गया है, ये हवायें अपेक्षाकृत गर्म होती हैं। इनका वास्तविक तापमान कभी-कभी हिमांक से भी नीचे होता है, किन्तु इनकी शुष्कता के कारण ऊर्ध्वपातन (sublimation) प्रक्रिया द्वारा इनके द्वारा धरातल पर पड़ा हिम लुप्त हो जाता है। 

इनके कारण वायु के तापमान में चौबीस घण्टे में 22° सेल्सियस की वृद्धि साधारण बात है। किन्तु मोन्टाना राज्य में स्थित किप नामक स्थान के तापमान में इस गर्म वायु के कारण 7 मिनट में 19° सेल्सियस की असाधारण वृद्धि भी देखि गई है। कुक एवं टापिल के वर्णनानुसार 27 जनवरी, 1940 को अर्द्धरात्रि के थोड़ी देर उपरान्त शुष्क एवं गर्म वायु के आगमन से डेनेवर (कोलोरेडो) के तापमान में लगभग 2 घण्टे में 14° सेल्सियस वृद्धि अंकित की गई। 

व्योमिंग तथा मोन्टाना राज्यों में इन हवाओं का प्रभाव अधिक दिखाई पड़ता है। ऐसी गर्म हवाएं पर्वतों के पाद-प्रदेश में ही नहीं, अपितु सैकड़ों किलोमीटर दूर तक के क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदान के पश्चिमी भाग में इन हवाओं के द्वारा हिम पिघल जाने से पशुओं के लिए शीत ऋतु के अन्त में चरागाह शीघ्र उपलब्ध हो जाते हैं तथा कृषि कार्य में भी सहायता मिलती है। इन्हीं हवाओं के आते रहने से पश्चिमी मैदानी भाग में शीत ऋतु अधिक कठोर नहीं होती। 

सान्ता आना (Santa Ana)

पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित घाटियों में जब ऊँचाई पर एकत्रित वायुपुंज तीव्र गति से नीचे उतरती है, तो उन शुष्क और गर्म हवाओं को फाल विन्ड्स (fall winds) की भी संज्ञा प्रदान की जाती है। दक्षिणी कैलीफोर्निया में सान्ता आना केनियन (Santa Ana canyon) से होकर तटवर्ती मैदानों की ओर चलने वाली धूल भरी आँधी को सान्ता आना कहा जाता है। ये आँधियाँ पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व की ओर से चलती हैं। वायु के तेज प्रवाह के साथ ही इनमें शुष्कता अत्यधिक मात्रा में होती है। 

इन आँधियों की उत्पत्ति का मूल स्थान ग्रेट बेसिन है जिसमें इतनी अधिक शीतल हवाएं एकत्रित हो जाती हैं कि उन्हें घाटियों और दर्रों से मैदानों की ओर उतरना पड़ता है। इन अत्यधिक शुष्क एवं गर्म हवाओं से कैलीफोर्निया के फल के बगीचों की अपार क्षति होती है। इन हवाओं से पेड़ सूख जाते हैं तथा जंगलों में आग लग जाती है। हवा में रेत के महीन कणों की अधिकता के कारण श्वास लेना भी कठिन हो जाता है। इस प्रकार की गर्म और शुष्क हवाओं को जापान में यामो तथा अर्जेन्टाइना में जोन्डा कहते हैं। एण्डीज पर्वत से पश्चिमी पेटागोनियाँ में चलने वाली स्थानीय हवाओं को भी जोन्डा कहते हैं। 

सिरक्को (Sirocco)

भू-मध्य सागरी क्षेत्र में उत्तरी अफ्रीका से चलने वाले गर्म और शुष्क पवनों को सिरक्को (sirocco) कहा जाता है। भू-मध्य सागर से होकर चलने वाले चक्रवात सहारा मरुस्थल की अत्यधिक उष्ण एवं शुष्क वायु को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं। ये धूल भरी आँधियाँ चक्रवातों के अग्र भाग में आती हैं। भू-मध्य सागर के दक्षिणी किनारे ये हवाएं अत्यन्त शुष्क, गर्म तथा धूल भरी आँधी के रूप में लगातार कई दिनों तक चलती रहती हैं। 

इन सिरक्को नामक हवाओं का तापमान 3.7° सेल्सियस तथा सापेक्ष आर्द्रता 10 से 20 प्रतिशत होती है। ये हवाएं लगातार 24 घण्टे से 43 घण्टे तक चला करती हैं। धूल के कणों से वायुमण्डल इतना गँदला हो जाता है कि सूर्य भी नहीं दिखाई पड़ता। जब ये हवाएं भू-मध्य सागर को पार करके दक्षिणी फ्रांस तथा इटली पहुँचती हैं, तो इनमें आर्द्रता की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस आर्द्रता को ये गर्महवाएं भू-मध्य सागर से प्राप्त कर लेती हैं।

इस गर्म पवन के कई स्थानीय नाम हैं। स्पेन में इसे लेवेश (leveche) कहते हैं। मदीरा तथा कनारी द्वीप समूह में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को, जो सहारा के उष्ण मरुस्थल से चलती हैं, लेस्ट (leste) नाम से पुकारा जाता है।

सिरक्को पवनें (Source: youtubeshorts@studyiqiasHindi)

खमसिन (Khamsin)

यह एक अत्यन्त गर्म तथा शुष्क पवन है जो मिश्र में उत्तर की ओर चला करती है। उष्ण मरु प्रदेश में उत्पन्न होने के साथ ही इन पवनों में रेत के कणों की भी अधिकता होती है। जब कभी भू-मध्य सागर के ऊपर से शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात गुजरते हैं, तब उनके अग्र भाग में दक्षिण में स्थित मरु प्रदेश से इस प्रकार धूलभरी आँधियाँ चला करती हैं। इस प्रकार की आँधियाँ प्रायः बसन्त ऋतु में ही चलती हैं। 

सिमूम (Simoom)

अरब सागर तथा सहारा के गर्म मरुस्थलों से चलने वाले एक अत्यधिक गर्म एवं शुष्क पवन को सिमूम (simoom) कहते हैं, जिसकी उत्पत्ति उष्ण वायु राशि से होती है। इस प्रकार की गर्म हवाओं की आँधियां कभी-कभी चला करती हैं तथा इनमें रेत के महीन कण होने से मौसम बड़ा ही कष्टदायक हो जाता है। इन हवाओं के कारण घुटन महसूस होने लगती है। 

हरमटन (Harmattan)

सहारा मरुप्रदेश से ही हरमटन (harmattan) नामक अन्य स्थानीय पवन चलता है जो गर्म एवं शुष्क होता है। इस पवन की उत्पत्ति शीतकाल में सहारा मरुप्रदेश में होती है। वहीं से ये शुष्क और धूलभरी हवाएं गिनी तट की ओर चलती हैं जहाँ की वायु उष्णार्द्र होती है। वहाँ उसका प्रभाव शीतलकारी होता है। उस क्षेत्र में इसे ‘डॉक्टर’ की संज्ञा प्रदान की जाती है, क्योंकि उत्तर-पूर्व से गिनी तट की ओर चलने वाली ये स्थानीय हवायें वाष्पीकरण के कारण कभी-कभी शीतल हो जाती हैं। 

हरमटन पवनें (Source: youtubeshorts@studyiqiasHindi)

इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया में मरुस्थलीय प्रदेशों से चलने वाले गर्म एवं शुष्क उत्तरी पवन को ब्रिकफील्डर (brickfielder) कहा जाता है। उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदान में दक्षिणी-पश्चिमी या उत्तरी-पश्चिमी तेज, धूलभरी आँधियां चला करती हैं जिनसे कभी-कभी मार्ग में पड़ने वाली इमारतें रेत के ढेर से नीचे दब जाती हैं। इन स्थानीय पवनों को ब्लैक रोलर (black roller) कहा जाता है। इनसे बहुत अधिक मात्रा में आर्थिक क्षत्रि होती है। मेसोपोटामिया तथा फारस की खाड़ी की ओर उत्तर-पूर्व से चलने वाली गर्म हवा को शामल (shamal) कहा जाता है। न्यूजीलैण्ड में वहाँ की पर्वत मालाओं से उत्पन्न गर्म, शुष्क तथा झोंकेदार पवन को नार्वेस्टर (norwester) कहा जाता है।

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