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तापमान और आर्द्रता में संबंध (Relationship between Temperature and Humidity)
वायुमण्डलीय आर्द्रता एवं तापमान में प्रत्यक्ष सम्बन्ध देखने को मिलता है। दूसरे शब्दों में वायुमंडल का तापमान बढ़ने के साथ उसकी आर्द्रता के ग्रहण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। वायु में किसी निश्चित समय पर जल-वाष्प धारण करने की शक्ति उसके तापमान पर निर्भर करती है। हवा जितनी ही अधिक गर्म होगी, उसमें नमी धारण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी।
वायु में एक निश्चित तापमान पर जल-वाष्प की जो अधिकतम मात्रा धारण की जा सकती है, उसे वायु की “क्षमता” कहते हैं। वायुमण्डल में जल-वाष्प हर समय मौजूद रहता है, किन्तु उसके तापमान के घटने-बढ़ने के कारण आर्द्रता का प्रतिशत घटता बढ़ता रहता है।
जब किसी निश्चित तापमान पर वायु में जल-वाष्प की इतनी मात्रा रहती है जितनी उसकी क्षमता होती है, तो ऐसी दशा में वायु को संतृप्त (saturated) कहते हैं। वायु आगे बताई गई दो अवस्थाओं में संतृप्त हो सकती है
(क) वायु के तापमान के स्थिर रहने पर जल वाष्प की मात्रा में वृद्धि करके, तथा
(ख) जल-वाष्प की मात्रा समान रहने पर वायु के तापमान को कम करके।
प्रकृति में वायु को अधिकतर दूसरे प्रकार से ही संतृप्त होने का अवसर मिलता है। जिस तापमान पर कोई वायु संतृप्त हो जाती है, उस तापमान को उस वायु का ओसांक (dew point) कहते हैं। यदि वायु का तापमान ओसांक से नीचे कम करते जाएँ, तो अतिरिक्त जल-वाष्प का संघनन होने लगेगा। क्योंकि वायु के फैलने पर उसके इकाई आयतन में जल-वाष्प की सघनता या मात्रा कम हो जाती है, अतः ऊपर उठने वाली वायु का ओसांक 1° फा० प्रति 1000 फीट की दर से कम होता है।
कभी-कभी वायु में संघनन नाभिकों (condensation nuclei) के अभाव में ओसांक पर संघनन क्रिया प्रारम्भ नहीं होती। ऐसी वायु जिसमें संघनन क्रिया का प्रारम्भ ओसांक से कई अंश नीचे तापमान पर होता है, “अतिसंतृप्त” (supersaturated) कही जाती है।