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वायुमण्डल में जल तीनों ही अवस्थाओं जल-वाष्प के रूप में (गैसीय अवस्था में), हिम के रूप में (ठोस अवस्था में) तथा जल के रूप में (तरल अवस्था में) विद्यमान रहता है। वायुमण्डल में उपस्थित जल को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित करने या होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकिया में खर्च होने वाली ऊर्जा के परिणामस्वरूप वायुमंडल को या तो ऊष्मा की प्राप्ति होती है या उसका व्यय होता है।
इस प्रकार किसी वस्तु की अवस्था परिवर्तन के लिए व्यय की गई ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा (latent heat) कहते हैं। गुप्त ऊष्मा वह ऊष्मा होती है जिसे अवस्था परिवर्तन की प्रक्रिया में कोई पदार्थ सोख लेता है अथवा मुक्त करता है, किन्तु उसका तापमान प्रभावित नहीं होता। जल का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन चार प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है; जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे किया जा रहा है
जल की अवस्था परिवर्तन सम्बन्धी प्रक्रियाएं (Processes Related to Change in State of Water)
वाष्पीकरण (evaporation)
जब कोई द्रव प्रत्येक ताप पर धीरे-धीरे गैस में परिवर्तित होता है, तो इस परिवर्तन की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। संक्षेप में, किसी द्रव का वाष्प या गैस की अवस्था में बदलना ही वाष्पन कहलाता है। जल से जो गैस बनती है, उसे जल वाष्प कहते हैं। गत्यात्मक सिद्धान्त (kinetic theory) से वाष्पन को समझने में सुगमता होती है।
गत्यात्मक सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक पदार्थ गतिशील अणुओं से बना होता है। द्रव के अणु भी प्रत्येक दिशा में विभिन्न वेग से चलते रहते हैं। कुछ अणु द्रव की सतह पर पहुंच कर पारस्परिक आकर्षण के कारण द्रव में वापस पहुँच जाते हैं। किन्तु कुछ अणुओं की गतिज ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि वे स्वतन्त्र तल (free surface) पर पहुँचकर वाह्य वायुमण्डल में पहुँच जाते हैं, अर्थात् उनका वाष्प रूप में अवस्था-परिवर्तन हो जाता है। यह क्रिया हर समय होती रहती है। अतः वाष्पन में अधिक वेग वाले अणुओं के निकल जाने के फलस्वरूप द्रव के शेष अणुओं की मध्यमान गतिज ऊर्जा कम हो जाती है।
किसी वस्तु की ऊष्मा उसके अणुओं की ऊर्जा के समानुपाती होने के कारण शेष द्रव की ऊष्मा के तापमान में न्यूनता आ जाती है। यही कारण है कि वाष्पीकरण की प्रक्रिया में द्रव के द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा का अवशोषण होता है, तथा अणुओं को गैसीय अवस्था में बनाए रखने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा को ही वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (latent heat of evaporation) कहा जाता है।
जल के वाष्पीकरण की गुंप्त ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है जो एक ग्राम जल को उसके क्वथनांक पर वाष्प में बदलने के लिए आवश्यक हो।
किसी द्रव का वाष्पन निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है
- वाष्पन जल के तापमान का समानुपाती होता है। जल के तापमान में वृद्धि के फलस्वरूप वाष्पन की क्रिया शीघ्रता से होती है।
- जिस द्रव का क्वथनांक कम होता है, वह अपेक्षाकृत अधिक शीघ्रता से वाष्पित होता है। खारे जल की अपेक्षा मीठे जल की सतह पर वाष्पन अधिक होता है।
- जल के ऊपर जब शुष्क वायु होती है, तो आर्द्र वायु की अपेक्षा वाष्पन अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, अधिक वाष्प दाब पर वाष्पन कम तथा कम वाष्प दाब पर वाष्पन अधिक होता है।
- जल के तल पर जितने वेग से पवन प्रवाह होगा, उतनी ही शीघ्रता से वाष्पन होगा।
- जल के खुले तल के क्षेत्रफल के अधिक होने पर वाष्पन की दर में वृद्धि हो जाती है।
- जल के तल पर पड़ने वाला वायु दाब जितना ही कम होता है वाष्पन की दर उतनी ही अधिक होती है।
संघनन (condensation)
संघनन (condensation) की प्रक्रिया वाष्पन की उल्टी होती है। इसके द्वारा जल-वाष्प गैसीय अवस्था से तरल अवस्था में परिवर्तित होती है। वाष्पन की प्रक्रिया में अवशोषित ऊष्मा जल-वाष्प से मुक्त हो जाती है। इसे संघनन की गुप्त ऊष्मा (latent heat of condensation) कहते हैं।
संगलन (fusion)
ठोस पदार्थ जब द्रव अवस्था में आता है, तो इस परिवर्तन को गलन (fusion) की प्रक्रिया कहते हैं। पदार्थ के तापमान में इस प्रक्रिया के फलस्वरूप कोई परिवर्तन नहीं होना। निश्चित तापमान पर एक ग्राम बर्फ एक ग्राम जल में बदलने के लिए 80 ग्राम कैलोरी ऊष्मा अपेक्षित होती है। इसे संगलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
ऊर्ध्वपातन (sublimation)
किसी निश्चित तापमान पर कोई ठोस पदार्थ बिना द्रव हुए सीधे गैसीय अवस्था में आ सकता है तथा इसके विपरीत, गैसीय अवस्था से सीधे ठोस अवस्था में भी परिवर्तित हो सकता है। इस प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन (sublimation) कहते हैं।
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