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पर्वत समीर एवं घाटी समीर (Mountain Breeze and Valley Breeze)
पर्वत समीर एवं घाटी समीर (Mountain Breeze and Valley Breeze) स्थानीय पवनों के नाम से स्पष्ट होता है कि इनकी उत्पत्ति पर्वतीय प्रदेशों में होती है। ये पवनें पर्वतीय भागों में ढाल और घाटी के दिन व रात में अलग-अलग दर से गर्म एवं ठण्डा के कारण उत्पन्न तापमान में अंतर का परिणाम होती है। आइए इन दोनों के बारे में विस्तार से से जानते हैं।
पर्वत-समीर (Mountain Breeze)
जब रात के समय आसमान साफ रहता है, तब पर्वतों के ढाल ऊष्मा के विकिरण द्वारा ठण्डे हो जाते हैं, जिससे उनके सम्पर्क में आने वाली वायु की परत भी ठण्डी और भारी हो जाती है। इसी ऊँचाई पर ढाल से दूर वायुमण्डल की समान परत अपेक्षाकृत गर्म रहती है। नीचे घाटी की वायु भी ढाल से लगी हुई वायु की अपेक्षा गर्म होती है। अत: ढाल की शीतल और भारी वायु अधिक घनत्व के कारण ढालों से खिसक कर नीचे घाटी की ओर प्रवाहित होने लगती है, तथा घाटियों और निचले भागों में एकत्रित हो जाती है। क्योंकि इस प्रकार की पवन पर्वतों से घाटियों की ओर चलती है, अतः इसे पर्वत समीर (mountain breeze) कहते हैं।
पर्वत समीर (mountain breeze) से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- पर्वतीय ढालों से आने वाली शीतल हवाओं के घाटियों में भर जाने से वहाँ का तापमान रात्रि के अन्तिम भाग तक वायु की ऊपरी परतों की अपेक्षा कम हो जाता है। इस प्रकार तापमान व्युत्क्रमणता उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी तापमान 0° सेल्सियस से नीचे गिर जाता है जिससे घाटियों में पाला (frost) पड़ जाता है।
- जब पर्वत-समीर स्थानीय उच्चावच के कारण अत्यधिक सँकरी घाटियों अथवा गार्ज (gorge) में प्रवाहित होती है, तो उसके वेग में वृद्धि हो जाती है तथा उसके द्वारा वायु में विक्षोभजनित मिश्रण के कारण तापमान-व्युत्क्रमणता भंग हो जाती है।
- जब पर्वतीय ढालों पर से शीतल और भारी हवाएं नीचे की ओर उतरती हैं, तो ढालों पर खाली हुई जगह को भरने के लिए आस-पास के वायुमण्डल से उष्ण वायु की प्रतिवर्ती धाराएं चल पड़ती हैं।
- मार्विन के अनुसार प्रतिवर्ती वायु धाराएं छोटे-छोटे आवर्तों (vortices) का रूप ग्रहण करके घाटी के ऊपर दोनों ओर पर्वतीय ढालों की ओर गर्म हवाएं ले जाती हैं। ये गर्म हवायें ढाल पर पहुँचकर पुनः ताप विकिरण के कारण ठण्डी हो जाती हैं और ढाल के नीचे खिसक जाती हैं।
- तटवर्ती क्षेत्रों में चलने वाले स्थल समीर से मिलकर पर्वत समीर प्रबल हो उठता है।
- पर्वत समीर को अवरोही पवन या गुरुत्व पवन (katabatic winds or gravity winds) भी कहा जाता है।
घाटी समीर (Valley Breeze)
स्वच्छ धूपदार मौसम में दिन के समय घाटियों के पार्श्व भाग तथा पर्वतीय ढाल घाटी के नितल (valley floors) की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं, जिससे वहाँ की वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म होने के कारण वायु फैल कर हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठने लगती है। इसके फलस्वरूप दिन के समय पर्वतीय ढालों पर वायु भार कम तथा घाटी में वायु भार अधिक हो जाता है। अतः घाटी से ढालों की ओर पवन प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है, जिसे घाटी समीर कहा जाता है।
घाटी समीर (Valley Breeze) से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- पर्वतीय तटवर्ती क्षेत्रों में दिन के समय सागर-समीर से मिलकर घाटी समीर (valley breeze) का वेग अधिक हो जाता है।
- ट्रेवार्था ने दिन में घाटी से पर्वतों की ओर चलने वाली पवन धाराओं को दो वर्गों में विभक्त किया है:- (क) तापीय ऊर्ध्वढाल पवन (Thermal upslope winds), (ख) घाटी समीर।
- तापीय ऊर्ध्वढाल पवनों (thermal upslope winds) की उत्पत्ति का कारण पर्वतीय ढालों तथा उनसे कुछ दूर पर स्थित स्वतन्त्र वायु के तापमान में अन्तर माना गया है।
- सूर्योदय के थोड़ी ही देर बाद ढाल के ऊपर की ओर पवन चलना प्रारम्भ होकर दोपहर तक इनका पूर्ण विकास हो जाता है। ऐसे पवनों को अनाबेटिक विन्ड्स (anabatic winds) भी कहा जाता है।
- पर्वतों के उन ढालों पर जिनका रुख सूर्य की ओर होता है, इन पवनों का विकास अपेक्षाकृत अधिक होता है।
- इन उर्ध्व ढाल के पवनों के आरोहण के कारण ही दिन के अन्तिम भाग अर्थात् अपराह्न में पर्वत शिखरों पर कपसीले मेघ दिखाई पड़ते हैं। इनसे प्रायः वर्षा भी हो जाया करती है।
- ट्रेवार्था ने घाटी समीर को उपर्युक्त पवनों से सर्वथा पृथक् माना है। उनके अनुसार सुविस्तृत घाटियों के अक्ष के समानान्तर प्रवाहित होने वाला पवन घाटी समीर कहलाता है।
- आल्पस् अथवा हिमालय की विस्तृत घाटियों में ग्रीष्म ऋतु में दिन के समय स्वच्छ एवं धूपदार मौसम में घाटियों से बाहर की ओर ऐसे पवन चला करते हैं।
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