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वाष्पीकरण क्या होता है (what is evaporation)?

जल के तरलावस्था अथवा ठोसावस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। एक ग्राम जल को वाष्प या गैस में परिवर्तित करने के लिए ऊष्मा के रूप में 607 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। इस ऊर्जा की पूर्ति वाष्पन सतह (Evaporating Surface) द्वारा की जाती है जो ऊष्मा के ह्रास हो जाने के परिणामस्वरूप कुछ ठण्डी हो जाती है। यह ऊर्जा वास्तव में सौर ऊर्जा का ही परिवर्तित रूप है।

वाष्पीकरण से ठण्डक पैदा क्यों होती है …. 
जल से वाष्प बनने की प्रक्रिया में ऊर्जा खर्च होती है जो वाष्पन सतह (जलीय सतह जिससे वाष्पीकरण होता है) से प्राप्त होती है। गर्मी के मौसम से तेज़ हवा चलने से शरीर के पसीने का वाष्पीकरण होता है। वाष्पीकरण शरीर से गर्मी अवशोषित करता है जिसके कारण हमें ठण्ड का अनुभव होता है।तेज़ बुखार में तपते आदमी के माथे पर ठण्डी, गीली पट्टियाँ इसलिए लगाई जाती हैं ताकि वाष्पित होने वाला जल शरीर का कुछ ताप सोख ले।नहाने पर इसलिए ठण्डक महसूस होती है क्योंकि शरीर का कुछ ताप जल को वाष्प बनाने में खर्च हो जाता है। धूप में भी पेड़ के पत्ते या समुद्र का जल गर्म नहीं हो पाते। इसका कारण भी वाष्पोत्सर्जन या वाष्पीकरण के दौरान हुई ऊष्मा की हानि है।
वाष्पीकरण से ठण्डक पैदा क्यों होती है

वाष्पीकरण के दौरान यह ऊर्जा गैस रूपी जलवाष्प को गर्म नहीं करती बल्कि केवल जल को तरलावस्था से गैसावस्था में बदलने के लिए प्रयुक्त होती है। इसे गुप्त ऊष्मा (Latent heat; latent means hidden) इसलिए कहते हैं क्योंकि यह ऊर्जा थर्मामीटर पर दिखाई नहीं देती, गुप्त रहकर कार्य करती है। जो ऊर्जा जल को गैस बनाने में प्रयुक्त होती है, वही ऊर्जा जलवाष्प में संघनित होकर जल में परिवर्तित होते समय मुक्त (Release) होती है जो मौसम में विक्षोभ और प्रचण्डता लाती है या गर्मी का कारण होती है। ऐसी ऊर्जा को संघनन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। 

वाष्पीकरण की दर को नियन्त्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Rate of Evaporation)

तापमान (temperature)

ऊँचा तापमान वाष्पीकरण की दर को बढ़ाता है। यही कारण है कि उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में साल भर पाए जाने वाले ऊँचे तापमान के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक वाष्पीकरण होता है। ताप की अधिकता के कारण ही रात की अपेक्षा दिन में और सर्दियों की अपेक्षा गर्मियों में वाष्पीकरण अधिक होता है।

स्वच्छ आकाश (clear sky)

बादल प्रवेशी सौर विकिरण (incoming solar radiation) को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकते हैं। अतः यदि आकाश मेघरहित होगा तो भूतल पर सूर्यातप बढ़ेगा और वाष्पीकरण तीव्र होगा। 

वायु की शुष्कता (dryness of air)

शुष्क वायु जलवाष्प का अधिक अवशोषण कर पाती है जबकि पहले से आर्द्र वायु में और अधिक वाष्पीकरण करने की सम्भावना कम हो जाती है। यही कारण है कि शुष्क ऋतु में वर्षा ऋतु की अपेक्षा वाष्पीकरण की दर तीव्र होती है। वर्षा ऋतु में गीले कपड़ों का देर से सूखना भी इसी वजह से होता है। 

पवनों की गति (wind speed)

ठहरी हुई वायु अपनी क्षमता के अनुसार एक बार वाष्प ग्रहण कर लेती है और बाद में और अधिक वाष्प ग्रहण नहीं कर पाती। इसके विपरीत तेज़ गतिशील पवन जलवाष्प ग्रहण करके आगे बढ़ जाती है और उसकी जगह पीछे से आने वाली शुष्क पवन जलवाष्प ग्रहण करती है। अतः पवनों की गति वाष्पन की दर बढ़ाती है। 

जल के तल का विस्तार (extent of water surface)

वाष्पीकरण पानी की सतह पर होता है, जल की गहराई से उसका सम्बन्ध नहीं होता। अतः जल-क्षेत्र के अधिक विस्तृत होने पर वाष्पीकरण के क्षेत्र और मात्रा में बढ़ोतरी होती है। 

वाष्पीकरण का अक्षांशीय वितरण (Latitudinal Distribution of Evaporation)

Latitudinal Distribution of Evaporation
वाष्पीकरण का अक्षांशीय वितरण (Latitudinal Distribution of Evaporation)

वाष्पीकरण मुख्य रूप से तापमान पर निर्भर करता है और तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर निरन्तर घटता जाता है। स्पष्ट है कि सम्भाव्य वाष्पीकरण (Potential evaporation) भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर निरन्तर घटता जाता है। सम्भाव्य वाष्पीकरण वास्तविक वाष्पीकरण से भिन्न होता है। 

सम्भाव्य वाष्पीकरण वायु की वाष्पीकरण करने की क्षमता को दर्शाता है अर्थात् सम्भाव्य वाष्पीकरण किसी स्थान पर जल की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होने पर अधिकतम वाष्पीकरण की मात्रा को दर्शाता है। जबकि वास्तविक वाष्पीकरण वह मात्रा है जो वास्तव में वायु में उपस्थित होता है। सहारा मरुस्थल जैसे शुष्क इलाकों में वास्तविक वाष्पीकरण की क्षमता बहुत होती है हालांकि शुष्क वायु में वाष्पीकरण कम होता है। 

ध्यान देने योग्य बात यह है कि 30° उत्तरी अक्षांश पर सम्भाव्य वाष्पीकरण 1200 मिलीमीटर है जबकि वास्तविक वाष्पीकरण केवल 800 मिलीमीटर है। दो-तिहाई से अधिक वाष्पीकरण 30° उत्तरी तथा 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच ही होता है। उष्ण कटिबन्धीय इलाकों से दूर वाष्पीकरण की दर में तेजी से गिरावट आती है और ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान कम होने के कारण वाष्पीकरण लगभग शून्य होता है।

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