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दैनिक तापांतर: अर्थ एवं इसको प्रभावित करने वाले कारक

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दैनिक तापांतर (Daily Range of Temperature) का अर्थ

दिन के 24 घण्टों में तापमान सदा एक समान नहीं रहता। किसी स्थान पर किसी एक दिन के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के अन्तर को वहाँ का दैनिक तापान्तर कहा जाता है। इसे ताप परिसर भी कहते हैं। ताप परिसर के माप से जलवायु की विषमता का बोध होता है। 

उदाहरण : सोलन में दैनिक अधिकतम तापमान 22.1° सेल्सियस है और वहाँ का दैनिक न्यूनतम तापमान 9.1° सेल्सियस है। सोलन का दैनिक तापान्तर ज्ञात कीजिए। 

उत्तर     दैनिक तापान्तर = अधिकतम तापमान – न्यूनतम तापमान = 22.1°- 9.1° = 13.0° सेल्सियस सोलन का दैनिक तापान्तर है।  

दैनिक तापांतर (Daily Range of Temperature) को प्रभावित करने वाले कारक

गिडीज़ (Geddes) के अनुसार दैनिक तापान्तर पर निम्नलिखित कारकों का प्रभाव पड़ता है-

भूमध्य रेखा से दूरी या अक्षांश

भूमध्य रेखा के निकट सूर्य की किरणें सदैव लम्बवत् रहने के कारण सौर विकिरण अधिकतम होता है। रात्रि के समय पार्थिव विकिरण अधिक होने से दिन और रात के तापमान में बहुत अन्तर पाया जाता है। सामान्यतः दैनिक ताप परिसर भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर उत्तरोत्तर घटता जाता है। अन्य कारकों का प्रभाव इतना अधिक होता है की अक्षांश दैनिक तापांतर को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए  भूमध्यरेखीय क्षेत्र में महासागरों पर सर्वत्र दैनिक तापांतर वार्षिक तापांतर से कम तथा सामान्य तौर पर कहीं भी पॉइंट .56° सेल्सियस से अधिक नहीं होता। इसी प्रदेश में स्थल खंडो का दैनिक तापमान वार्षिक तापांतर से बहुत अधिक होता है।

समुद्र तट से दूरी

समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण तटवर्ती इलाकों में दैनिक ताप परिसर कम होता है। समुद्र से दूर महाद्वीपों के अन्दरूनी भागों में दैनिक ताप परिसर अधिक होता है।

धरातल का प्रकार

मैदानों की अपेक्षा पर्वतों पर ताप परिसर अधिक होता है। इसकी वजह यह है कि ऊँचे पर्वतों पर वायु विरल होती है जिससे दिन के समय अधिक परिमाण में सूर्यातप मिलने से ताप बहुत बढ़ जाता है। रात के समय पार्थिव विकिरण द्वारा भूमि से बाहर निकलने वाली ऊष्मा को विरल वायु रोक नहीं पाती और इसलिए तापमान नीचे गिर जाता है। 

आकाश की दशा

जिन क्षेत्रों में आकाश लम्बे समय तक बादलों से घिरा रहता है वहाँ ताप परिसर कम हो जाता है। इसका कारण यह है कि मेघों का आवरण एक ओर रात में पार्थिव विकिरण द्वारा ऊष्मा को बाहर जाने से रोकता है और दूसरी ओर दिन में सौर विकिरण के पृथ्वी तक पहुँचने में बाधा बनता है। फलस्वरूप न तो ताप रात में अधिक गिर पाता है और न ही दिन में बढ़ पाता है। 

मिट्टी की प्रकृति

मिट्टी के संघटन का भी दैनिक तापांतर पर प्रभाव पड़ता है। मिट्टी की ऊष्मा चालकता में वृद्धि उसकी आर्द्रता के अनुपात में होती है। आर्द्र मिट्टी वाले क्षेत्र के ऊपर प्राप्त होने वाली ऊष्मा का कुछ वाष्पीकरण की क्रिया में खर्च हो जाता है। इन्हीं सब कारणों से मरुस्थलीय भागों का दैनिक तापांतर आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा अधिक होता है।

हिमाच्छादन

बर्फ से ढकी चोटियों एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में हिमाच्छादन के कारण सौर विकिरण एवं पार्थिव विकिरण दोनों ही कम होते हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों में ताप परिसर कम पाए जाते हैं। 

वायु की स्थिरता

वायु की स्थिरता का भी दैनिक तापांतर से सीधा संबंध होता है। यदि वायुमंडल में तापमान की व्युत्क्रमणता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और व्युत्क्रमणता स्तर धरातल से थोड़ी ही ऊंचाई पर रहता है। तब ऐसी स्थिति में धरातल विकीर्ण ऊष्मा को अपेक्षाकृत थोड़ी वायु राशि को भी गर्म करना पड़ता है। अत: रात में तापमान नीचे नहीं गिरने पाता। जिसके परिणामस्वरुप तापमान की व्युत्क्रमणता दैनिक तापमान को कम करती है।

पवन का वेग

जिस दिन वायु के तेज झोंके चलते हैं उस दिन वायु में मिश्रण अधिक होता है। ऐसी स्थिति में वायु की अधिक मोटी परत में ऊष्मा का संचरण होने से अधिकतम तापमान शांत दिनों की अपेक्षा कम रहता है। दूसरी ओर वायु की विभिन्न परतों के मिश्रण के कारण धरातल से लगी वायु की परत अधिक ठंडी भी नहीं होने पाती और न्यूनतम तापमान शांत दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस दिन हवा तेज होती है उसे दिन का दैनिक तपांतर अपेक्षाकृत कम होता है।

जलवाष्प की मात्रा

वायु में जलवाष्प की मात्रा भी दैनिक तापांतर को प्रभावित करती है। जलवाष्प की मात्रा कम होने पर पार्थिव विकिरण से ऊष्मा की अधिक मात्रा अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है। किंतु जलवाष्प की अधिक मात्रा धरातल से विकरित ऊष्मा का अधिकांश भाग अवशोषित कर लेती है, जिससे तापमान में कम ह्रास होता है। इस प्रकार अन्य बातों के समान होने पर शुष्क वायु का न्यूनतम तापमान अपेक्षाकृत नीचा होता है। इस प्रकार शुष्क वायु दैनिक तापांतर में वृद्धि करती है तथा आर्द्र वायु इसमें कमी लाती है। यही कारण है कि मरू प्रदेशों में दैनिक तापांतर अधिक तथा आर्द्र प्रदेशों में कम अंकित किया जाता।

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