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मेघ: अर्थ एवं वर्गीकरण (Cloud: Meaning and Classification)

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मेघ अथवा बादल का अर्थ (Meaning of Cloud)

पृथ्वी के धरातल से अलग-2 ऊँचाइयों पर वायुमण्डल में जल वाष्प के संघनन के परिणामस्वरूप बने हिमकणों या जलसीकरों की राशि को मेघ या बादल कहा जाता है। हम जानते हैं कि धरातल से जल का वाष्पीकरण होता रहता है और वायु में मिलता रहता है। और जब नमी से भरी यह वायु ऊपर की उठकर फैलती है तो ऊपरी वायुमंडल में तापमान कम होने के कारण यह  शीतल होकर पूर्णतया संतृप्त हो जाती है। 

ओसांक के उपरान्त वायु ठंडी होने के कारण संघनन क्रिया होने लगती है जिससे वायु में उपस्थित वाष्प जल सीकरों या हिमकणों में बदल जाती है। इसी को हम भू-पृष्ठ से मेघ के रूप में देखते हैं। जल की बूँदों का आकार प्रारम्भ में इतना छोटा होता है कि वे वायु में तैरती रहती हैं। किन्तु जब विभिन्न प्रक्रियाओं के कारण उन बूँदों का आकार बड़ा हो जाता है, तब वायु की तरंगें उन्हें रोक सकने में असमर्थ हो जाती हैं और वे धरातल पर गिर पड़ती हैं। इसी को वृष्टि कहते हैं। 

बूँदों के आकार तथा वायुमण्डल की परतों के तापमान के अनुसार वृष्टि के अनेक प्रकार होते हैं जैसे- फुहार (drizzle), जल-वृष्टि, हिम-वृष्टि अथवा उपल-वृष्टि आदि। इस प्रकार वाष्पीकरण की प्रक्रिया से प्रारम्भ होकर वृष्टि तक जलीय चक्र पूरा हो जाता है। वस्तुतः मेघ इस जलीय चक्र की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वायुमण्डल में उपस्थित मेघ केवल वृष्टि की दृष्टिकोण से नहीं, वरन् जलवायु के अन्य महत्वपूर्ण घटक के रूप में भी महत्वपूर्ण है।

मेघों या बादलों का वर्गीकरण (Classification of Clouds)

मेघों के वर्गीकरण से पहले  यह जान लेना आवश्यक है कि मेघों की निर्माण विधि एवं उनके स्वरूप में गहरा सम्बन्ध होता है। जिन मेघों की उत्पत्ति वायु की तीव्र गति वाली ऊर्ध्वाधर तरंगों से होती है, उनका लम्बवत् विकास अधिक होता है तथा उनका स्वरूप रूई जैसा होता है। लेकिन जिन मेघों की उत्पत्ति वायु के धीरे- धीरे ऊपर उठने से होती है, उनका विकास परतों में होता है। 

जिन लक्षणों के आधार पर मेघों का सामान्य एवं सर्वमान्य वर्गीकरण किया गया है, उनमें धरातल से ऊँचाई, आकार, प्रकाश का परावर्तन तथा उनका रंग आदि प्रमुख हैं। 

धरातल से ऊँचाई के आधार पर मेघों या बादलों को चार वर्गों में बाँटा जाता है। उच्च मेघ, मध्य मेघ, निम्न मेघ तथा ऊर्ध्वाधर विकास वाले मेघ। 

स्वरूप के आधार पर भी मेघ या बादल मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं। पक्षाभ, स्तरी, कपासी तथा वर्षी मेघ। 

लेकिन आसमान में प्रायः इनमें से कई प्रकार के मेघ मिश्रित रूपों में दिखाई देते हैं। इसीलिए अन्तर्राष्ट्रीय ऋतु विज्ञान परिषद ने इन्हें निम्नलिखित 10 (genes) में विभाजित किया है- 

अ) उच्च मेघ या बादल (धरातल से औसत ऊँचाई 5-13 किलोमीटर) 

  • पक्षाम मेघ या बादल (cirrus clouds) 
  • पक्षाभ स्तरी मेघ या बादल (cirrostratus clouds) 
  • पक्षाभ-कपासी मेघ या बादल (cirrocumulus clouds) 

ब) मध्य मेघ या बादल (धरातल से 2-7 किलोमीटर)

  • स्तरी मध्य मेघ या बादल (altostratus clouds) 
  • कपासी मध्य मेघ या बादल (alto-cumulus clouds) 

(स) निम्न मेघ या बादल (धरातल से 0-2 किलोमीटर)

  • स्तरी कपासी मेघ या बादल (stratocumulus clouds) 
  • स्तरी मेघ या बादल (stratus clouds) 
  • वर्षास्तरी मेघ या बादल (nimbostratus clouds) 

(द) ऊर्ध्वाधर विकास वाले मेघ या बादल (आधार से शीर्ष तक की ऊँचाई 18 किलोमीटर अथवा अधिक) 

  • कपासी मेघ या बादल (cumulus clouds) 
  • कपासी वर्षों मेघया बादल (cumulonimbus clouds) 

पक्षाभ मेघ या बादल (cirrus clouds)

cirrus clouds
  • ये मेघ वायुमण्डल में सबसे अधिक ऊँचाई पर पाए जाते है तथा इनकी रचना हिमकणों  से होती है। 
  • दिन के समय आसमान में ये मेघ पंख की भाँति रेशों से निर्मित दिखाई पड़ते हैं। 
  • पक्षाभ मेघ अत्यधिक कोमल तथा सफेद रेशम की भाँति होते हैं। 
  • जब ये मेघ पृथक्-पृथक् तथा आकाश में अनियमित क्रम में फैले होते हैं, तो इनसे स्वच्छ मौसम की पूर्व सूचना मिलती है। किन्तु जब ये नियमित क्रम में पक्षाभ-स्तरी अथवा स्तरी मध्य मेघों के साथ दिखाई पड़ते हैं, तो इनसे मौसम में गड़बड़ी होने की सम्भावना व्यक्त होती है। 

पक्षाभ-स्तरी मेघ या बादल (cirrostratus clouds)

  • ये मेघ पृथक्-पृथक् न होकर महीन और सफेद चादर के समान समस्त आकाश में छा जाते हैं। आकाश दूधिया रंग का दिखाई पड़ने लगता है। 
  • इन मेघों से दिन में सूर्य और रात्रि में चन्द्रमा के चारों ओर प्रभा मण्डल (halo) का निर्माण हो जाता है। ये मेघ तूफान के आने के संकेतक होते हैं। 
cirrostratus clouds

पक्षाभ कपासी मेघ या बादल (cirrocumulus clouds)

  • पक्षाभ कपासी  मेघ सदैव पंक्तियों अथवा समूहों में दिखाई देते हैं। 
  • इनमें छोटी-छोटी गोलाकार राशियाँ अथवा छोटे श्वेत पत्रक पाए जाते हैं। 
  • ये प्रायः छायाहीन होते हैं। इन्हें Mackerel Sky भी कहा जाता है। 

स्तरी मध्य मेघ या बादल (altostratus clouds)

  • स्तरी मध्य मेघ भूरे अथवा नीलाभ रंग की मोटी परतों के रूप में आकाश में दिखाई देते हैं। 
  • इनकी परतें रेशेदार अथवा धारीदार दिखाई पड़ती हैं। 
  • इन मेघों से प्रभा मण्डल नहीं बनते। 
  • कहीं-कहीं इन मेघों की पतली परत से सूर्य अथवा चन्द्रमा धुंधला दिखाई पड़ता है। 
  • प्रायः स्तरी मध्य मेघ लगातार वृष्टि की होने की सम्भावना को प्रकट करते हैं।
altostratus clouds

कपासी मध्य मेघ या बादल (alto-cumulus clouds)

alto-cumulus clouds
  • कपासी मध्य  मेघ भूरे या श्वेताभ अथवा श्वेत और भूरे रंगों के होते हैं। तथा ये पंक्तिबद्ध या लहरों के रूप में पाए जाते हैं। 
  • ये मेघ छायादार होते हैं। 
  • वायुमण्डल के जिस भाग में ये मेघ उत्पन्न होते हैं, उसमें वायु की लम्बवत् धाराओं के कारण इनका विकास ऊपर की ओर होता है। 
  • कभी-कभी संवहन तरंगों अथवा किसी पर्वत पर आरोहण करने वाली वायु धाराओं की लहरों में यत्र-तत्र एकाकी कपासी मध्य मेघ उत्पन्न हो जाते हैं; शर्त केवल यह है कि वायु इतने ऊपर तक पहुँच जाए कि उसका तापमान ओसांक से नीचे हो जाए। 
  • पर्वत की चोटियों पर उत्पन्न ऐसे मेघ “पताका मेघ” (banner clouds) कहे जाते हैं। 

स्तरी-कपासी मेघ या बादल (stratocumulus clouds) 

  • गोलाकार राशियों से बने मेघों की निचली और भूरी परतें इस वर्ग में रखी जाती हैं। 
  • स्तरी-कपासी मेघ समूहों, पंक्तियों अथवा लहरों में दिखाई पड़ते हैं। 
  • ये पर्वत के शिखर अथवा वायुयान से देखने पर कपासी मध्य मेघ की तरह दिखाई पड़ते हैं। 
stratocumulus cloud

स्तरी मेघ या बादल (stratus clouds)

stratus clouds
  • स्तरी मेघ निम्न मेघों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • ये धरातल से थोड़ी ऊंचाई पर कोहरे की भाँति आकाश को ढँक लेते हैं। 
  • प्रायः इनका निर्माण कोहरे की निचली परतों के विसरण अथवा उनके उत्थान के कारण होता है।
  • स्तरी मेघ के शीर्घ भाग से विकिरण द्वारा ऊष्मा के क्षय के कारण इनके ऊपर वायु की परतों में संघनन होने से इनका विकास ऊपर की ओर होता है। 
  • इनके खंडित होने से नीला आकाश दिखाई पड़ता है। इस प्रकार के खंडित-मेघों Fractostratus को कहा जाता है। 

वर्षा स्तरी मेघ या बादल (nimbostratus clouds)

  • वर्षा स्तरी मेघ भी एक प्रकार का निम्न मेघ होता है, जिसका रंग गहरा भूरा तथा जिसका आधार अविच्छिन्न होता है। 
  • इन मेघों से लगातार जल वृष्टि अथवा हिम वृष्टि होती है। 
  • कभी-कभी इनसे होने वाली वर्षा धरातल तक पहुँचने के पहले ही वाष्प बनकर वायुमण्डल में विलीन हो जाती है । 
  • शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के उष्ण वाताग्र पर मोटी परत वाले वर्षास्तरी मेघ बनते होते हैं। 
nimbostratus clouds

कपासी मेघ या बादल (cumulus clouds)

 (cumulus clouds
  • कपासी मेघ आकाश में धुनी हुई रूई के ढेर के समान दिखाई देते हैं। इनका ऊर्ध्वाधर विकास बहुत अधिक होता है। 
  • इनके खण्ड आकाश में गुम्बदाकार रूप में दिखाई पड़ते हैं, जिनके शीर्ष भाग फूलगोभी जैसे होते हैं। इनके आधार काले रंग वाले क्षैतिज होते हैं, किन्तु इनके वे भाग जो सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं, चमकीले दिखाई पड़ते हैं। 
  • ये सघन तथा स्पष्ट रूप-रेखा वाले होते हैं। कभी-कभी ये ऊबड़-खाबड़ दिखाई पड़ते हैं। इनके दो प्रकार होते हैं

(1) स्वच्छ मौसम के सूचक वे रंग के छोटे-छोटे मेघों के टुकड़े 

(2) अधिक ऊँचे मेघ, जो कपासी वर्षी अथवा झंझावातीय मेघों में विकसित होते हैं।

कपासी-वर्षी मेघ या बादल (cumulonimbus clouds)

  • कपासी-वर्षी मेघों का विकास लम्बवत् रूप में होता हैं। 
  • इन मेघों के शीर्ष भाग पर्वताकार अथवा गुम्बदाकार होते हैं।
  • इनकी ऊँचाई आधार से शीर्ष तक कभी-कभी 18 किलोमीटर होती है तथा पवन की विपरीत दिशा में फैलकर इनका शीर्ष भाग निहाई (anvil) का स्वरूप धारण कर लेता है। 
  • कपासी-वर्षी मेघों से तेज बौछार पड़ती है। उपलवृष्टि तथा प्रबल झंझावात इनके अन्य लक्षण हैं।
  • इनके ठीक नीचे खड़े हुए व्यक्ति को सम्पूर्ण आकाश मेघाच्छादित दिखाई पड़ता है, तथा ये वर्षा-स्तरी मेघ जैसे दिखाई पड़ते हैं। 
  • आगे बढ़ते ऐसे मेघों के अग्र भाग में विक्षोभ के कारण काले रंग वाले खण्डित-कपासी अथवा खण्डित-स्तरी मेघ उमड़ते-घुमड़ते दिखाई पड़ते हैं। 
  • इनमें भयंकर मेघ गर्जन तथा बिजली की चमक होती है। इन मेघों के आधार के नीचे प्रायः निम्न ऊबड़-खाबड़ मेघ पाए जाते हैं, जो इसमें कभी-कभी मिल जाते हैं तथा कभी पृथक् ही रहते हैं।
  • इनके आधार से वृष्टि पट्टियाँ अथवा वर्गा (virga) दिखाई पड़ते हैं।
cumulonimbus clouds

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