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परिचय
जनसंख्या प्रवास का मुख्य अभिकर्ता (agent) मानव है जो अत्यन्त गतिशील और विचारशील तत्व है जिसके व्यवहार में अनिश्चतता देखि जाती है। यही कारण है कि जनसंख्या प्रवास के सम्बन्ध में किसी निश्चित नियम या सिद्धान्त का प्रतिपादन करना अत्यन्त कठिन कार्य है। जनसंख्या एक गतिशील तत्व है जो देश व काल के अनुसार बदलता रहता है। प्रवास के लिए उत्तरदायी मानव व्यवहार भी सभी लोगों में एक जैसा नहीं पाया जाता है।
समान सामाजिक-आर्थिक दशा में कुछ लोग प्रवास के इच्छुक एवं प्रयत्नशील हो सकते हैं जबकि अन्य लोग इसमें तटस्थ भी होते हैं और प्रवास नहीं करना चाहते हैं। प्रवास के लिए व्यक्ति के निर्णय निश्चित कम और अनिश्चित अधिक होते हैं। अतः प्रवास की प्रक्रिया को किसी निश्चित माडल या सिद्धान्त के रूप में बांधना अत्यन्त कठिन कार्य है क्योंकि इसमें कोई निश्चित नियम लागू नहीं हो पाता है। इस सन्दर्भ में हम्फ्रे का कथन ‘प्रवास का नियम निश्चितता के लिए नहीं बल्कि नियम विहीनता के लिए कुख्यात है’ सही लगता है।
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल सहित अन्य सामाजिक विज्ञानों में आई मात्रात्मक क्रांति के परिणामस्वरूप मॉडल तथा सिद्धान्त निर्माण में विद्वानों ने अधिक अभिरुचि दिखायी है। प्रवास सिद्धान्त तथा मॉडल के निर्माण में जनांकिकीविदों, समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, भूगोलविदों आदि ने प्रयास किए हैं। इस दिशा में रैवेन्स्टीन (1889) के प्रयास को प्रथम महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। तब से लेकर अब तक अनेक विद्वानों ने विभिन्न तत्वों के आधार पर प्रवास के अलग-अलग सिद्धान्तों, नियमों तथा माडलों की रचना की है। लेकिन हम यहां केवल रैवेन्स्टीन के प्रवास सिद्धान्त की ही चर्चा करेंगे।
रैवेन्स्टीन का प्रवास नियम (Ravenstein’s Law of Migration)
मानव प्रवास के सम्बन्ध में सैद्धान्तिक विवेचन तथा किसी सिद्धान्त के प्रतिपादन का प्रथम उल्लेखनीय प्रयास रैवेन्स्टीन का माना जाता है जिन्होंने सन् 1889 में प्रवास के नियम की रूपरेखा प्रस्तुत की। इन्होने ग्रेट ब्रिटेन के काउन्टी स्तर पर होने वाले प्रवासों के आनुभविक आधार पर प्रवास के नियम का प्रतिपादन किया था। रेवैन्स्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रवास के सात नियम निम्नलिखित हैं –
रेवैन्स्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रवास के सात नियम
प्रवास और दूरी (Migration and Distance)
अधिकांश प्रवासी थोड़ी दूरी तक ही स्थानान्तरित होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में स्थानीय परिवर्तन एक सर्वव्यापी घटना है। इससे प्रवास धारा उत्पन्न होती है जो बृहत् स्तर पर व्यापारिक तथा औद्योगिक केन्द्रों की ओर अग्रसर होती है। इसका कारण यह है कि इन केन्द्रों में अधिक प्रवासियों को धारण करने की क्षमता विद्यमान होती है। यह नियम दो प्रकार से क्रियाशील होता है
- दूरी-क्षय कार्य (Distance decay function) जिसके अनुसार दूरी बढ़ने के साथ-साथ प्रवास की मात्रा घटती है, और
- लम्बी दूरी के प्रवासी बृहत् व्यापारिक तथा औद्योगिक केन्द्रों को प्राथमिकता देते हैं।
अवस्थाओं में प्रवास (Migration in Phases)
पहले ग्रामीण क्षेत्र के लोग तीव्रगति से बढ़ते हुए अपने समीपवर्ती नगर में एकत्रित होते हैं जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में रिक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन रिक्तियों की पूर्ति के लिए अपेक्षाकृत् दूरस्थ क्षेत्रों के प्रवासी आते हैं। रैवेन्स्टीन के अनुसार यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि बृहत् नगर का प्रभाव कई चरणों में बढ़ता हुआ दूरस्थ क्षेत्र तक नहीं पहुँच जाता है। इसमें बिखराव या प्रकीर्णन प्रक्रिया (Dispersion process) अवशोषण या अन्तर्लयन प्रक्रिया (Absorption process) के विपरीत होती है किन्तु दोनों के लक्षणों में सादृश्यता पाई जाती है।
धारा और प्रतिधारा (Drift and Counter-drift)
प्रत्येक प्रवास की मुख्य धारा से रिक्तियाँ उत्पन्न होती हैं जिनकी पूर्ति के लिए प्रतिधारा का जन्म होता है। इस प्रकार प्रवास की मुख्य धारा प्रतिधारा को उत्पन्न करती है।
ग्रामीण-नगरीय विभेद (Rural-Urban Differential)
नगर निवासियों में ग्रामवासियों की तुलना में प्रवास की प्रवृत्ति कम पाई जाती है। इसका कारण यह है कि नगरीय केन्द्रों पर जीवन की मुलभूत सुविधाओं के साथ ही रोजगार के नए-नए अवसर उपलब्ध होते हैं जिससे नगर वासियों को बाहर जाने की आवश्यकता कम होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी सुविधाओं के अभाव में वहाँ के लोग अन्य स्थानों के लिए प्रवास के इच्छुक होते हैं।
स्त्रियों की बहुलता (Female Majority)
लघु दूरी के प्रवास में स्त्रियों को बहुलता पाई जाती है। लम्बी दूरी के प्रवास में स्त्रियों की भागीदारी बहुत कम होती है।
तकनीकी विकास और प्रवास (Technological Development and Migration)
तकनीकी प्रगति के साथ-साथ जनसंख्या के प्रवास की मात्रा में वृद्धि होती है।
आर्थिक उद्देश्य की प्रमुखता (Primacy of Economic Aims)
प्रवास आर्थिक तथा अनार्थिक दोनों ही उद्देश्यों से होते हैं किन्तु इनमें आर्थिक उद्देश्य ही सर्वोपरि होता है।
रैवेन्स्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रवास के अधिकांश नियम व्यावहारिक जगत में सत्य सिद्ध हुए हैं। इनके आधार पर बाद के विद्वानों ने अन्य सिद्धान्तों तथा माडलों पर प्रतिपादन किया है। मध्यवर्ती अवसर माडल, सोपानी संचलन माडल आदि रैवेन्स्टीन के उपर्युक्त नियमों पर ही आधारित हैं।